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मीठे शहद के गुणकारी नुस्खे

कई बार हम साधारण सी बीमारी में भी घबरा जाते हैं लेकिन अगर हमें थोड़ा भी घरेलू नुस्खों के बारे में पता हो तो आसानी से तुरंत इलाज किया जा सकता है। दादी-नानी के खजाने से हम लेकर आए हैं ऐसे ही कुछ खास लाजवाब सरल-सहज नुस्खे, जिन्हें अपना कर आप भी पा सकते हैं निरोगी काया :

  • अदरक के रस में या अडूसे के काढ़े में शहद मिलाकर देने से खांसी में आराम मिलता है।
  • पके आम के रस में शहद मिलाकर देने से पीलिया में लाभ होता है।
  • जिन बच्चों को शकर का सेवन मना है, उन्हें शकर के स्थान पर शहद दिया जा सकता है।
  • उल्टी (वमन) के समय पोदीने के रस के साथ शहद का प्रयोग लाभकारी रहता है।
  • शुष्क त्वचा पर शहद, दूध की क्रीम व बेसन मिलाकर उबटन करें। इससे त्वचा की शुष्कता दूर होकर लावण्यता प्राप्त होगी।
  • एक गिलास दूध में बिना शकर डाले शहद घोलकर रात को पीने से दुबलापन दूर होकर शरीर सुडौल, पुष्ट व बलशाली बनता है।
  • शहद नित्य सेवन निर्बल आमाशय व आंतों को बल प्रदान करता है।
  • प्याज का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर चाटने से कफ निकल जाता है तथा आंतों में जमे विजातीय द्रव्यों को दूर कर कीड़े नष्ट करता है। इसे पानी में घोलकर एनीमा लेने से लाभ होता है।
  • हृदय की धमनी के लिए शहद बड़ा शक्तिवर्द्धक है। सोते वक्त शहद व नींबू का रस मिलाकर एक ग्लास पानी पीने से कमजोर हृदय में शक्ति का संचार होता है।
  • पेट के छोटे-मोटे घाव और शुरुआती स्थिति का अल्सर शहद को दूध या चाय के साथ लेने से ठीक हो सकता है।
  • सूखी खाँसी में शहद व नींबू का रस समान मात्रा में सेवन करने पर लाभ होता है।
  • शहद से मांसपेशियां बलवती होती हैं।
  • बढ़े हुए रक्तचाप में शहद का सेवन लहसुन के साथ करना लाभप्रद होता है।
  • अदरक का रस और शहद समान मात्रा में लेकर चाटने से श्वास कष्ट दूर होता है और हिचकियां बंद हो जाती हैं।
  • संतरों के छिलकों का चूर्ण बनाकर दो चम्मच शहद उसमें फेंटकर उबटन तैयार कर त्वचा पर मलें। इससे त्वचा निखर जाती है और कांतिवान बनती है।
  • कब्जियत में टमाटर या संतरे के रस में एक चम्मच शहद डालकर सेवन करें, लाभ होगा।
    [2/6, 7:34 AM] Kumar Store: घुटने दर्द

घुटनों के दर्द का कारण :
घुटनों में दर्द होना एक सामान्य परेसानी है, जो किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। कई बार घुटनों में दर्द किसी चोट लगने के कारण भी होने लगता है, जैसे लिगामेंट का टूटना या कार्टिलेज का फटना इनके अलावा घुटनों में दर्द अन्य कई रोगों के कारण भी होता है, जैसे गठिया (Arthritis), गाउट (Gout) और संक्रमण आदि।
घुटने के रोग से पीड़ित रोगी करे इन चीजों से परहेज :
• इस रोग से पीड़त रोगी को कभी भी किसी प्रकार की खटाई, अचार, छाछ, दही, टमाटर तथा पेट में वायु बनाने वाले पदार्थो को नहीं खाना चाहिए।
• इस रोग से पीड़ित रोगी को दालों का सेवन नहीं करना चाहिए।
• घुटने के दर्द से पीड़ित रोगी को मैदे व बेसन से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
• घुटने के दर्द से पीड़ित रोगी को तली-भुनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
• इस रोग से पीड़ित रोगी को ठंडे पदार्थों जैसे- कोल्डड्रिंक, आइसक्रीम, बर्फ का पानी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

घुटने दर्द दूर करने के घरेलु उपचार :

1)लहसुन : 
• इस रोग को ठीक करने के लिए प्रतिदिन 4 से 5 लहसुन की कलियां पानी के साथ निगलने से घुटने का दर्द कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
• अगर आपके घुटनों में दर्द की समस्या रहती है तो इसके लिए नियमित रूप से 1 गिलास दूध में 3-4 लहसून की कलियां डालकर उबाल कर पिए |इस्से दर्द को राहत मिलती है
2)आक : घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए सबसे पहले दर्द वाले स्थान पर तेल लगा लें। फिर इसके बाद आक के पत्तों को गर्म करके उस स्थान पर रखें और इसके ऊपर से रुई रखकर लाल कपड़े की पट्टी बांध लें। इससे कुछ ही दिनों में घुटनों में दर्द का रोग ठीक हो जाता है।
3) सोंठ : घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए 5 ग्राम सोंठ, 50 ग्राम काला नमक तथा 100 ग्राम अजवाइन को एक सूखी कड़ाही में डालकर इसे भूने और फिर इसे गर्म-गर्म ही एक रूमाल में बांध लें। इसके बाद इससें घुटने पर सिंकाई करें। इससे कुछ ही समय में घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।
4)निर्गुण्डी : 
• निर्गुण्डी के पत्तों का 10 से 40 मि.ली. रस लेने से अथवा सेंकी हुई मेथी का कपड़छन चूर्ण तीन ग्राम, सुबह-शाम पानी के साथ लेने से वात रोग में लाभ होता है। यह मेथीवाला प्रयोग घुटने के वातरोग में भी लाभदायक है। साथ में वज्रासन करें।
• घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए निर्गुण्डी के ताजे 7-8 पत्तों को कुचलकर मिट्टी के घड़े में डालकर ढक्कन लगाकर गर्म कर लें। इसके कुछ देर बाद मिट्टी के घड़े को आग पर से उतार लें और पत्ते को हल्का ठंडा करके घुटने पर उस जगह लगायें, जिस जगह पर दर्द हो रहा हो। इसके बाद ऊपर से कपड़े की पट्टी बांधें और इस पट्टी को दिन में दो बार बदलें। इस प्रकार से कुछ दिनों तक उपचार करने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।
5) नीम : घुटने के दर्द को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए लगभग दो लीटर पानी में थोड़ी-सी नीम की पत्तियां, मेथीदाना, थोड़ी सी अजवाइन और आधा चम्मच नमक डालकर उबाल लें और जब यह गर्म हो जाए तो इसको हल्का सा ठंडा करके इस पानी में कपड़े के दो छोटे टुकड़े डाल दें और फिर इस कपड़े के टुकड़े को निकालकर, इससे घुटने पर सिंकाई करे। इसके फलस्वरूप घुटने का दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है।
• घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए थोड़े से अरण्डी के पत्तों को पीस लें। फिर थोड़ा से कपूर और थोड़े से सरसों के तेल को इसके साथ मिलाकर कर घुटने के ऊपर लेप करें और फिर इसके ऊपर से कपड़े की पट्टी बांध लें। इसके बाद इसके ऊपर से गर्म सिंकाई करें जिसके फलस्वरूप घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।
6) मेथीदाना : घुटने के दर्द (ghutno ka dard)को ठीक करने के लिए मेथीदाना को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को सुबह ताजे जल के साथ एक चम्मच लेने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
7)अखरोट :सुबह के समय में खाली पेट 4 से 5 अखरोट की गिरियां अच्छी तरह से चबाकर खाने से कुछ ही दिनों में घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।
8)नारियल : इस रोग को ठीक करने के लिए प्रतिदिन नारियल की गिरी का एक टुकड़ा खाना चाहिए तथा यदि ताजा नारियल न मिले तो सूखे नारियल की गिरी खानी चाहिए।
9)खजूर: रात को सोते समय 100 ग्राम खजूर को एक गिलास पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह के समय जब उठे तो इसे चबाकर खा जाएं। प्रतिदिन कुछ दिनों तक ऐसा करने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।
10)आंवला : 20 ग्राम सूखे आंवले का चूर्ण, 10 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम अजवाइन, 5 ग्राम काले नमक को एक साथ लेकर पीस लें। इस चूर्ण को रात को सोते समय आधा चम्मच सेवन करें। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
11)हरड़ : 100 ग्राम छोटी हरड़ को कूट-पीसकर छान लें। रात को सोते समय इसके 5 ग्राम चूर्ण को दूध या गुनगुने पानी के साथ लें। इसका सेवन कुछ दिनों तक लगातार करने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।
12)सूर्य किरण: घुटने के दर्द से पीड़ित रोगी को सूर्य की किरणों में बैठकर घुटने की मालिश करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।
13) घुटने के दर्द के लिए योग :
★ घुटने का दर्द ठीक करने के लिए सीधे कमर के बाल लेटें, अक्सर घुटनों को मोडते हुए साइकल की तरह चलाएँ|
★ घुटनों को बिना मोड़ें पाँव ऊपर नीचे २० बार करें|
★ घुटनों को मोड़ते हुए वज्रासन करें व नीचे गरम तकिया रखें| यह आसन ५ मिनिट तक करें|
★ पेट के बाल लेटकर पैरों को मोड़ें ओर दोनो हाथों से एडियो को पकड़ें|

स्वस्थ व समृद्ध बने रहने हेतु जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें व उनके बतायें गये खान पान के नियम का कटरता से पालन करें

★ आंत का अपने स्थान से हट जाना ही आंत का उतरना कहलाता है। यह कभी अंडकोष में उतर जाती है तो कभी पेडु या नाभि के नीचे खिसक जाती है। यह स्थान के हिसाब से कई तरह की होती है जैसे स्ट्रैगुलेटेड, अम्बेलिकन आदि। जब आंत अपने स्थान से अलग होती है तो रोगी को काफी दर्द व कष्ट का अनुभव होता है।

★ इसे छोटी आंत का बाहर निकलना भी कहा जाता है। खासतौर पर यह पुरुषों में वक्षण नलिका से बाहर निकलकर अंडकोष में आ जाती है। स्त्रियों में यह वंक्षण तन्तु लिंगामेन्ट के नीचे एक सूजन के रूप में रहती है। इस सूजन की एक खास विशेषता है कि नीचे से दबाने से यह गायब हो जाती है और छोड़ने पर वापस आ जाती है। इस बीमारी में कम से कम खाना चाहिए। इससे कब्ज नहीं बनता। इस बात का खास ध्यान रखें कि मल त्याग करते समय जोर न लगें क्योंकि इससे आंत और ज्यादा खिसक जाती है।

हर्निया का कारण :

कब्ज, झटका, तेज खांसी, गिरना, चोट लगना, दबाव पड़ना, मल त्यागते समय जोर लगाने से या पेट की दीवार कमजोर हो जाने से आंत कहीं न कहीं से बाहर आ जाती है और इन्ही कारणों से वायु जब अंडकोषों में जाकर, उसकी शिराओं नसों को रोककर, अण्डों और चमड़े को बढ़ा देती है जिसके कारण अंडकोषों का आकार बढ़ जाता है। वात, पित्त, कफ, रक्त, मेद और आंत इनके भेद से यह सात तरह का होता है।

हर्निया के प्रमुख लक्षण

★ वातज रोग में अंडकोष मशक की तरह रूखे और सामान्य कारण से ही दुखने वाले होते हैं।

★ पित्तज में अंडकोष पके हुए गूलर के फल की तरह लाल, जलन और गरमी से भरे होते हैं।

★ मूत्रज के अंडकोष बड़े होने पर पानी भरे मशक की तरह शब्द करने वाले, छूने में नरम, इधर-उधर हिलते रहने वाले और दर्द से भरे होते है। अंत्रवृद्धि में अंडकोष अपने स्थान से नीचे की ओर जा पहुंचती हैं। फिर संकुचित होकर वहां पर गांठ जैसी सूजन पैदा होती है।

★ कफज में अंडकोष ठंडे, भारी, चिकने, कठोर, थोड़े दर्द वाले और खुजली से भरे होते हैं।

★ मेदज के अंडकोष नीले, गोल, पके ताड़फल जैसे सिर्फ छूने में नरम और कफ-वृद्धि के लक्षणों से भरे होते हैं।

★ कफज में अंडकोष ठंडे, भारी, चिकने, कठोर, थोड़े दर्द वाले और खुजली से भरे होते हैं।

भोजन तथा परहेज :

★ चावल, चना, मसूर, मूंग और अरहर की दाल, परवल, बैगन, गाजर, सहजन, अदरक तरकारियां तथा गर्म करके ठंडा किया हुआ थोड़ा दूध पीना फायदेमंद है। लहसुन, शहद, लाल चावल, गाय का मूत्र गाजर, जमीकंद, मट्ठा, पुरानी शराब, गर्म पानी से नहाना और हमेशा लंगोट बांधे रहने से लाभ मिलता है।

★ इनसे बचे :- उड़द, दही, पिट्ठी के पदार्थ, पोई का साग, नये चावल, पका केला, ज्यादा मीठा भोजन, समुद्र देश के पशु-पक्षियों का मांस, स्वभाव विरुद्ध अन्नादि, हाथी घोड़े की सवारी, ठंडे पानी से नहाना, धूप में घूमना, मल और पेशाब को रोकना, पेट दर्द में खाना और दिन में सोना नहीं चाहिए

हर्निया का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार :

१. मारू बैंगन : मारू बैगन को भूभल में भूनकर बीच से चीरकर फोतों यानी अंडकोषों पर बांधने से अंत्रवृद्धि व दर्द दोनों बंद होते हैं। बच्चों की अंडवृद्धि के लिए यह उत्तम है।

२. छोटी हरड़ : छोटी हरड़ को गाय के मूत्र में उबालकर फिर एरंडी के तेल में तल लें। इन हरड़ों का पाउडर बनाकर कालानमक, अजवायन और हींग मिलाकर 5 ग्राम मात्रा मे सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ खाने से या 10 ग्राम पाउडर का काढ़ा बनाकर खाने से आंत्रवृद्धि की विकृति खत्म होती है।

३. समुद्रशोष : समुद्र शोष विधारा की जड़ को गाय के मूत्र मे पीसकर लेप करने करने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है

४. त्रिफला : इस रोग में मल के रुकने की विकृति ज्यादा होती है। इसलिए कब्ज को खत्म करने के लिए त्रिफला का पाउडर 5 ग्राम रात में हल्के गर्म दूध के साथ लेना चाहिए।

५. अजवायन : अजवायन का रस 20 बूंद और पोदीने का रस 20 बूंद पानी में मिलाकर पीने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।

६. सम्भालू : सम्भालू की पत्तियों को पानी में खूब उबालकर उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर सेंकने से आंत्रवृद्धि शांत होती है।

७. दूध : उबाले हुए हल्के गर्म दूध में गाय का मूत्र और शक्कर 25-25 ग्राम मिलाकर खाने से अंडकोष में उतरी आंत्र अपने आप ऊपर चली जाती है।

८. गोरखमुंडी : गोरखमुंडी के फलों की मात्रा के बराबर मूसली, शतावरी और भांगर लेकर कूट-पीसकर पाउडर बनायें। यह पाउडर 3 ग्राम पानी के साथ खाने से आंत्रवृद्धि में फायदा होता है।

९. हरड़ : हरड़, मुलहठी, सोंठ 1-1 ग्राम पाउडर रात को पानी के साथ खाने से लाभ होता है।

१०. लाल चंदन : लाल चंदन, मुलहठी, खस, कमल और नीलकमल इन्हें दूध में पीसकर लेप करने से पित्तज आंत्रवृद्धि की सूजन, जलन और दर्द दूर हो जाता है।

११. देवदारू : देवदारू के काढ़े को गाय के मूत्र में मिलाकर पीने से कफज का अंडवृद्धि रोग दूर होता है।

१२. सफेद खांड : सफेद खांड और शहद मिलाकर दस्तावर औषधि लेने से रक्तज अंडवृद्धि दूर होती है।

१३. वच : वच और सरसों को पानी में पीसकर लेप करने से सभी प्रकार के अंडवृद्धि रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाते हैं।

१४. पारा : पारे की भस्म को तेल और सेंधानमक में मिलाकर अंडकोषों पर लेप करने से ताड़फल जैसी अंडवृद्धि भी ठीक हो जाती है।

१५. एरंड :

• एक कप दूध में दो चम्मच एरंड का तेल डालकर एक महीने तक पीने से अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है।

• खरैटी के मिश्रण के साथ अरण्डी का तेल गर्मकर पीने से आध्यमान, दर्द, आंत्रवृद्धि व गुल्म खत्म होती है।

• रास्ना, मुलहठी, गर्च, एरंड के पेड की जड़, खरैटी, अमलतास का गूदा, गोखरू, पखल और अडूसे के काढ़े में एरंडी का तेल डालकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म होती है।

• इन्द्रायण की जड़ का पाउडर, एरंडी के तेल या दूध में मिलाकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म हो जाएगी।

• लगभग 250 मिलीलीटर गरम दूध में 20 मिलीलीटर एरंड का तेल मिलाकर एक महीने तक पीयें इससे वातज अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है।

• एरंडी के तेल को दूध में मिलाकर पीने से मलावरोध खत्म होता है।

• दो चम्मच एरंड का तेल और बच का काढ़ा बनाकर उसमें दो चम्मच एरंड का तेल मिलाकर खाने से लाभ होता है।

१६. गुग्गुल : गुग्गुल एलुआ, कुन्दुरू, गोंद, लोध, फिटकरी और बैरोजा को पानी में पीसकर लेप करने से अंत्रवृद्धि खत्म होती है।

१७. कॉफी : बार-बार काफी पीने से और हार्निया वाले स्थान को काफी से धोने से हार्निया के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता है।

१८. तम्बाकू : तम्बाकू के पत्ते पर एरंडी का तेल चुपड़कर आग पर गरम कर सेंक करने और गरम-गरम पत्ते को अंडकोषों पर बांधने से अंत्रवृद्धि और दर्द में आराम होता है।

१९. कॉफी : बार-बार काफी पीने और हार्निया वाले स्थान को काफी से धोने से हार्नियां के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता है। मृत्यु के मुंह के पास पहुंची हुई हार्नियां की अवस्था में भी लाभ होता है।

२०. मुलहठी : मुलहठी, रास्ना, बरना, एरंड की जड़ और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर, थोड़ा सा कूटकर काढ़ा बनायें। इस काढ़े में एरंड का तेल डालकर पीने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।

२१. बरियारी : लगभग 15 से 30 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा 5 मिलीलीटर रेड़ी के तेल के साथ दिन में दो बार सेवन करने से लाभ होता है।

२२. रोहिनी : रोहिनी की छाल का काढ़ा 28 मिलीलीटर रोज 3 बार खाने से आंतों की शिथिलता धीरे-धीरे दूर हो जाती है।

२३. इन्द्रायण : इन्द्रायण के फलों का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग या जड़ का पाउडर 1 से 3 ग्राम सुबह शाम खाने से फायदा होता है। अनुपात में सोंठ का चूर्ण और गुड़ का प्रयोग करते है।

• इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 4 ग्राम की मात्रा में 125 मिलीलीटर दूध में पीसकर छान लें तथा 10 मिलीलीटर अरण्डी का तेल मिलाकर रोज़ पीयें इससे अंडवृद्धि रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाता है।

• इन्द्रायण की जड़ और उसके फूल के नीचे की कली को तेल में पीसकर गाय के दूध के साथ खाने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।

२४. मोखाफल : मोखाफल कमर में बांधने से आंत उतरने की शिकायत मिट जाती है इसका दूसरा नाम एक सिरा रखा गया है। आदिवासी लोग बच्चों के अंडकोष बढ़ने पर इसके फल को कमर में भरोसे के साथ बांधते है जिससे लाभ भी होता है।

२५. भिंडी : बुधवार को भिंडी की जड़ कमर में बांधे। हार्निया रोग ठीक हो जायेगा ।

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या

निरोगी हेतु महामन्त्र का पालन जरूर करें

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-
• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें
• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें
• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)
• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)
• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)
• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें
• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-
• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)
• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)
• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये
• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें
• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये
• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें

आयुर्वेद में आरोग्य जीवन हेतु 7000 सूत्र हैं आप सब सिर्फ इन सूत्रों का पालन कर 7 से 10 दिन में हुए बदलाव को महसूस कर अपने अनुभव को अपने जानकारों तक पहुचाये

पीलिया का करेंगे जड़ से खात्मा यह घरेलू उपाय

पाचन तंत्र कमजोर होना पीलिया का प्रमुख कारण है। पीलिया(Jaundice) के रोग का प्रभाव शरीर में खून बनने पर पड़ता है जिससे शरीर में ब्लड की कमी होने लगती है। इस रोग में अगर लापरवाही की जाये तो ये काला पीलिया बन जाता है जो जानलेवा रोग हो सकता है। पीलिया पुराना हो या नया घरेलू देसी नुस्खे और आयुर्वेदिक दवा से आप इसका उपचार कर सकते है। इस बीमारी से छुटकारा पाने में इलाज के साथ परहेज करना भी जरुरी है और जैसे ही पीलिये के लक्षण आपको दिखने लगे इसका उपचार शुरू करे। पीलिया तीन तरह का होता है, हेपेटाइटिस सी (काला पीलिया), हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस ए।

पीलिया(Piliya) के लक्षण :

इसके लक्षण शुरुआत में दिखाई नहीं देते पर ये रोग जब बढ़ जाता है तब मरीज की आँखे और नाख़ून पीले पड़ जाते है, इसके इलावा पेशाब पीले रंग का आने लगता है और खाना ठीक से नहीं पचता। इसके इलावा कुछ और लक्षण भी है जिनसे पीलिया की पहचान कर सकते है।

1* बुखार आना

2* सिर दर्द होना

3* आँखे दर्द होना

4* भूख कम लगना

5* उल्टी आना और जी मचलना

6* कमज़ोरी आना और जल्दी थकान आना

पीलिया(Jaundice)के कारण :

1* इंफेक्शन होने से

2* लिवर कमज़ोर होने से

3* शरीर में ब्लड की कमी होने से

4* सड़क किनारे कटी, खुली और दूषित चीज़े खाने से

उपाय :-

पहला प्रयोगः एक केले का छिलका जरा-सा हटाकर उसमें 1 चने जितना भीगा हुआ चूना लगायें एवं रात भर ओस में रखें। सुबह उस केले का सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।

दूसरा प्रयोगः आकड़े की 1 ग्राम जड़ को शहद में मिलाकर खाने अथवा चावल की धोवन में घिसकर नाक में उसकी बूँद डालने से पीलिया में लाभ होता है।

तीसरा प्रयोगः 5-5 ग्राम कलमी शोरा एवं मिश्री को नींबू के रस में लेने से केवल छः दिन में पीलिया में बहुत लाभ होता है। साथ में गिलोय का 20 से 50 मि.ली. काढ़ा पीना चाहिए।

चौथा प्रयोगः आँवला, सोंठ, काली मिर्च, पीपर (पाखर), हल्दी और उत्तम लोहभस्म इन सबको बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। दो आनी भार (करीब 1.5 ग्राम) जितना चूर्ण दिन में तीन बार शहद के साथ लेने से पीलिया का उग्र हमला भी 3 से 7 दिन में शांत हो जाता है।

पाँचवाँ प्रयोगः पीलिया में गौमूत्र या शहद के साथ 2 से 4 ग्राम त्रिफला देने से एक माह में यह रोग मिट जाता है।

छठा प्रयोगः दही में मीठा सोडा डालकर खाने से भी लाभ होता है।

सातवाँ प्रयोगः जामुन में लौहतत्त्व पर्याप्त मात्रा में होता है अतः पीलिया के रोगियों के लिए जामुन का सेवन हितकारी है।

पथ्यः पीलिया में केवल मूँग एवं चने ही आहार में लें। गन्ने को छीलकर एवं काटकर उसके टुकड़ों को ओस में रखकर सुबह खाने से पीलिया में लाभ होता है।

स्वस्थ व समृद्ध बने रहने हेतु जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें व उनके बतायें गये खान पान के नियम का कटरता से पालन करें

भाई राजीव दीक्षित जी का सपना स्वस्थ समृद्ध स्वच्छ सुरक्षित भारत को साकार हेतु एक पहलगिरते बालों का हर्बल इलाज: आसानी से मिलने वाली इस जड़ीबूटी से ऐसे करें शैम्पू
भृंगराज आस्टेरेसी कुल का पौधा है। यह प्राय: नम स्थानों में उगता है। यह लगभग पूरे संसार में पाया जाता है। आयुर्वेद में इसका तेल बालों के लिये बहुत उपयोगी माना जाता है। बालों को घने, काले और सुंदर बनाने के लिए भृंगराज का उपयोग कई तरह से किया जाता है। हम बताने जा रहे हैं आपको भृंगराज के कुछ ऐसे ही उपयोगी प्रयोग….

  • भृंगराज के पत्तों का रस निकालकर बराबर का नारियल तेल लें और धीमी आंच पर रखें। जब केवल तेल रह जाए, तो बन जाता है भृंगराज केश तेल। अगर धीमी आंच पर रखने से पहले आंवले का रस मिला लिया जाए तो और भी अच्छा तेल बनेगा। बालों में रूसी हो या फिर बाल झड़ते हों, तो इसके पत्तों का रस 15-20 ग्राम लें।
  • थोडा सुहागे की खील, भृंगराज और दही मिलाकर बालों की जड़ में लगाकर एक घंटे के लिए छोड़ दें। बाद में धो लें नियमित रूप से ऐसा करने पर बाल सुंदर घने और मजबूत हो जाते हैं।
  • एसिडिटी होने पर भृंगराज के पौधे को सुखाकर चूर्ण बना लिया जाए और हर्रा के फलों के चूर्ण के साथ समान मात्रा में लेकर गुड के साथ सेवन कर लिया जाए तो एसिडिटी की समस्या से निजात मिल सकती है।
  • त्रिफला, नील और भृंगराज तीनों एक एक चम्मच लेकर 50 मिली पानी में मिलाकर रात को लोहे की कड़ाही में रख देते है। प्रात: इसे बालों में लगाकर, इसके सूख जाने के बाद नहाना चाहिए। बाल नेचुरली काले हो जाएंगे।
  • माईग्रेन या आधा सीसी दर्द होने पर भृंगराज की पत्तियों को बकरी के दूध में उबाला जाए व इस दूध की कुछ बूँदें नाक में डाली जाए तो आराम मिलता है। हाथी पाँव हो गया हो तो इसके पत्ते पीसकर सरसों का तेल मिलाकर लगाएं।

-भृंगराज एवं आंवले लें के ताजे पत्तों को पीस कर बालों की जड़ों में लगायें ,साथ ही नीम,शिकाकाई ,आंवला, कालातिल, रीठा इन सब को साथ मिलाकर एक पेस्ट बना लें, यह आपके लिए एक हर्बल शैम्पू का काम करेगा जो बालों को कंडिशनिंग के साथ ही जड़ों को मजबूत बनाएगा। पेट साफ रखने के लिए केवल त्रिफला के चूर्ण का प्रयोग करें ,यह आपके बालों के जड़ों को भी मजबूती प्रदान करेगा।
[2/6, 7:36 AM] Kumar Store: चुटकीभर हल्दी का देसी नुस्खा: ये हर तरह के जाइंट पेन को ठीक कर देगा

खान-पान और प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण आजकल किसी भी उम्र में जोड़ों का दर्द होना एक आम समस्या है। असल में हमारा शरीर इस प्रकृति का ही एक हिस्सा है। इसलिये शरीर से जुड़ी समस्याओं का समाधान भी हमें प्रकृति की गोद में ही मिल सकता है। आइये हम बताते हैं कि आप कैसे नेचुरल देसी तरीकों से जोड़ों के दर्द से छुटकारा पा सकते हैं….

  • सरसों के तेल में चुटकीभर हल्दी मिलाकर धीमी आंच पर गर्म कर लें। इस तेल के ठंडा होने पर शरीर के सभी जोड़ों पर इसकी हल्की मसाज करें। सुबह की नर्म धूप में यह प्रयोग करने पर सीघ्र लाभ मिलता है। मसाज के बाद शरीर को तत्काल ढक लें हवा न लगने दें अन्यथा लाभ की बजाय हानि भी हो सकती है।
  • अजवाइन को तवे के ऊपर थोड़ी धीमी आंच पर सेंक लें तथा ठंडा होने पर धीरे-धीरे चबाते हुए निगल जाएं। लगातार 7 दिनों तक यह प्रयोग किया जाए तो आठवे दिन से ही जोड़ों के दर्द या कमर दर्द में 100 फीसदी लाभ होता है।
  • जहां दर्द होता होता है हो वहां 5 मिनट तक गरम सेंक करें और दो मिनट ठंडा सेंक देने से तत्काल लाभ पहुंचता है।
    साईटिका के सबसे असरकारक देसी घरेलु उपचार

साइटिका इलाज  :

★ मनुष्य के शरीर में एक साईटिका नाड़ी होती है जिसका ऊपरी सिरा 1 इंच मोटा होता है। यह साईटिका नाड़ी शरीर में प्रत्येक नितम्ब के नीचे से शुरू होकर टांग के पीछे के भाग से होती हुई पैर की एड़ी पर खत्म होती है। इस साईटिका नाड़ी को साइटिका नर्व भी कहते हैं।
★ इस नाड़ी में जब सूजन तथा दर्द होने लगता है तो इसे साईटिका या फिर वात-शूल कहते हैं। जब यह रोग होता है तो व्यक्ति के पैर में अचानक तेज दर्द होने लगता है। यह रोग अधिकतर 30 से 50 वर्ष की आयु के लोगों को होता है।
★ साईटिका का दर्द एक समय में एक ही पैर में होता है। जब यह दर्द सर्दियों में होता है तो यह रोगी व्यक्ति को और भी परेशान करता है।
★ इस रोग में किसी-किसी रोगी को कफ प्रकोप भी हो जाता है। इस रोग के कारण रोगी को चलने में परेशानी होती है।
★ रोगी व्यक्ति जब उठता-बैठता या सोता है तो उसकी टांगों की पूरी नसें खिंच जाती हैं और उसे बहुत कष्ट होता है।

साईटिका रोग होने के लक्षण:

जब किसी व्यक्ति को साईटिका रोग हो जाता है तो उसके पैर के निचले भाग से होते हुए ऊपर के भागों तक तेज दर्द होता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति अपने पैर को सीधा नहीं कर पाता है तथा सीधा खड़ा भी नहीं हो पाता है। रोगी व्यक्ति को चक्कर आने लगते हैं। रोगी व्यक्ति को कभी-कभी धीरे-धीरे दर्द होता है तो कभी बहुत तेज दर्द होता है। इस दर्द के कारण रोगी व्यक्ति को बुखार भी हो जाता है।

साईटिका रोग का कारण:

• असंतुलित भोजन का सेवन करने तथा गलत तरीके के खान-पान से भी यह रोग हो जाता है।

• रात के समय में अधिक जागने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
• जब किसी व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी में चोट लग जाती है तो उसे यह रोग हो जाता है।
• यदि साईटिका नाड़ी के पास विजातीय द्रव (दूषित द्रव) जमा हो जाता है तो नाड़ी दब जाती है जिसके कारण साईटिका रोग हो जाता है।
• रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में आर्थराइटिस रोग हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
• अधिक समय तक एक ही अवस्था में बैठने या खड़े रहने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
• अपनी कार्य करने की क्षमता से अधिक परिश्रम करने के कारण या अधिक सहवास करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

साईटिका का घरेलु उपचार :

1) लहसुन से साईटिका का उपचार : रोजाना एक दिन में 2-3 लहसुन की कलियों को पानी के साथ निगले इससे भी साइटिका में लाभ मिलती हैं |
2) नींबू से साईटिका का उपचार : 2 चम्मच शहद को एक नींबू के रस में मिलाकर पिने से साइटिका का दर्द दूर होता हैं
3) हार-श्रृंगार से साईटिका का उपचार : हार-श्रृंगार के ताजे पत्ते पीस कर एक गिलास पानी में उबाल लें, जब आधा गिलास पानी बचे तो उसको छान कर रोजाना पिए ऐसा एक सप्ताह तक करे साइटिका में लाभ मिलती हैं |
4) जायफल से साईटिका का उपचार : 10 ग्राम जायफल 100 ग्राम तिल के तेल में मिलाकर पका लें, पके हुए तेल से कमर पर मालिश करे इस प्रयोग से साइटिका का दर्द दूर होता हैं
5) आलू  से साईटिका का उपचार : 310 ग्राम आलू का रस रोजाना दो-तीन महीने तक पिने से साइटिका के दर्द में बहुत आराम मिलता हैं |
6) साइटिका का तेल – 2-3 लहसुन लें और इसको राई के तेल में डालकर पकाये, जब अच्छे से पक जाए तो इस तेल से दर्द वाली जगह पर मालिश करने से तुरंत आराम मिलता हैं, यह तुरंत असरकारी /साइटिका का अचूक उपाय/ हैं |
7)तुलसी से साईटिका का उपचार : तुलसी की 5 पत्तियां प्रतिदिन सुबह के समय में खाने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
8)कालीमिर्च से साईटिका का उपचार : 5 कालीमिर्च को तवे पर सेंककर कर सुबह के समय में खाली पेट मक्खन के साथ सेवन करना चाहिए। इस प्रयोग को प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
9) पारिजात से साईटिका का उपचार : लगभग 250 ग्राम पारिजात के पत्तों को 1 लीटर पानी में अच्छी तरह से उबाल लें और जब उबलते-उबलते पानी 700 मिलीलीटर बच जाए तब उसे छान लें। इस पानी में 1 ग्राम केसर पीसकर डाल दें और फिर इस पानी को ठंडा करके बोतल में भर दें। इस पानी को रोजाना 50-50 मिलीलीटर सुबह तथा शाम के समय पीने से यह रोग 30 दिनों में ठीक हो जाता है। अगर यह पानी खत्म हो जाए तो दुबारा बना लें।
10) नेगड़ से साईटिका का उपचार : 100 ग्राम नेगड़ के बीजों को कूटकर पीस लें। फिर इसके 10 भाग करके 1-1 पर्ची में पैक करके पुड़ियां बना लें। इसके बाद शुद्ध घी में सूजी या आटे का हलवा बना लें और जितना हलवा खा सकते हैं उसको अलग निकाल लें। इस हलवे में एक पुड़िया नेगड़ के चूर्ण की डालकर इसे खा लें और मुंह धो लें। लेकिन रोगी व्यक्ति को पानी नहीं पीना चाहिए। इस हलवे का कम से कम 10 दिनों तक सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
11) मेथी दाना से साईटिका का उपचार : 20 ग्राम आंवला, 20 ग्राम मेथी दाना, 20 ग्राम काला नमक, 10 ग्राम अजवाइन और 5 ग्राम नमक को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1 चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
12) मालिश तेल साइटिका के दर्द में तुरंत राहत प्रदान करता है |
13) चुना :- पथरी की शिकायत न हो तो दो गेहूँ के दाने के बराबर चुना दूध छोड़कर किसी भी तरल पेय में सूर्यास्त से पहले दिन में एक बार
14) होमेओपेथी द्वारा लक्षणानुसार

● जब दर्द खास कर दायीं टांग में हो, दर्द कूल्हे से घुटने या एड़ी तक जाय, चलते चलते टांग सुन्न हो जाए, दर्द वाली टांग का घुटना मोड़ कर लेटने से आराम आये – (कोलोसिन्थ 200 या 1M, दिन मे 2 बार)

● दर्द के साथ सुन्न हो जाना, टांग को पेट के साथ सिकोड़ कर लेटने से और कुर्सी पर बैठने से आराम , चलने फिरने से दर्द बढ़े – (नैफेलीयम 200 या 1M, दिन में 2 बार)

● अधिक मेहनत करने या ठण्ड लगने के कारण रोग, चलने फिरने से आराम – (कैमोमिला 30 या 200, दिन में 3 बार)

● अधिक मेहनत करने या ठण्ड लगने के कारण रोग, चलने फिरने से आराम – (कैमोमिला 30 या 200, दिन में 3 बार)

● जब दर्द असहनीय हो – (मैडोरिनम 200 या 1M 2-3 खुराक)

● जब दर्द नीचे से ऊपर को जाए – (कालमिया लैट 200, दिन में 3 बार)

● जब ठंडी पट्टी से आराम आये – (लीडम 200 या 1M , दिन में 2 बार)

साईटिका रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:

1)  इस रोग से पीड़ित रोगी को गर्म पानी में आधे घण्टे के लिए अपने पैरों को डालकर बैठ जाना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को तुरंत आराम मिल जाता है। इस क्रिया को प्रतिदिन करने से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
2)  साईटिका रोग को ठीक करने के लिए आधी बाल्टी पानी में 40-50 नीम की पत्तियां डाल दें और पानी को उबालें। फिर उबलते हुए पानी में थोड़े से मेथी के दाने तथा काला नमक डाल दें। फिर इस पानी को छान लें। इसके बाद गर्म पानी को बाल्टी में दुबारा डाल दें और पानी को गुनगुना होने दे। जब पानी गुनगुना हो जाए तो उस पानी में अपने दोनों पैरों को डालकर बैठ जाएं तथा अपने शरीर के चारों ओर कंबल लपेट लें। रोगी व्यक्ति को कम से कम 15 मिनट के लिए इसी अवस्था में बैठना चाहिए। इसके बाद अपने पैरों को बाहर निकालकर पोंछ लें। इस प्रकार से 1 सप्ताह तक उपचार करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
3) रोगी को प्रतिदिन अपने पैरों पर सरसों के तेल से नीचे से ऊपर की ओर मालिश करनी चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
4)  करेला, लौकी, टिण्डे, पालक, बथुआ तथा हरी मेथी का अधिक सेवन करने से साईटिका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
5)  इस रोग से पीड़ित रोगी को पपीते तथा अंगूर का अधिक सेवन करना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
6)  सूखे मेवों में किशमिश, अखरोट, अंजीर, मुनक्का का सेवन करने से भी यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
7)  फलों का रस दिन में 3 बार तथा आंवला का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से साईटिका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
8)  इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सबसे पहले एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। इसके बाद रोगी को अपने पैरों पर मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए। इसके बाद रोगी को कटिस्नान करना चाहिए और फिर इसके बाद मेहनस्नान करना चाहिए। इसके बाद कुछ समय के लिए पैरों पर गर्म सिंकाई करनी चाहिए और गर्म पाद स्नान करना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से साईटिका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
9) सुबह के समय में सूर्यस्नान करने तथा इसके बाद पैरों पर तेल से मालिश करने और कुछ समय के बाद रीढ़ स्नान करने तथा शरीर पर गीली चादर लपेटने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
10) सुबह तथा शाम के समय में अपने पैरों पर प्रतिदिन 2 मिनट के लिए ताली बजाने से भी यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
11)  साईटिका रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के व्यायाम तथा योगासन हैं जिनको करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
ये आसन तथा योगासन इस प्रकार हैं-
• इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को पीठ के बल सीधे लेट जाना चाहिए। फिर रोगी को अपने पैरों को बिना मोड़े ऊपर की ओर उठाना चाहिए। इस क्रिया को कम से कम 20 बार दोहराएं। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक व्यायाम करने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
• रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को मोड़कर, अपने घुटने से नाभि को दबाना चाहिए। इस क्रिया को कई बार दोहराएं। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक व्यायाम करने से साईटिका रोग में बहुत लाभ मिलता है।
• साईटिका रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को पीठ के बल सीधे लेटकर अपने घुटने को मोड़ते हुए पैरों को साइकिल की तरह चलाना चाहिए। इस व्यायाम को प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में करने से साईटिका रोग में आराम मिलता है।
12)  साईटिका रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं जिनको प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है, ये आसन इस प्रकार हैं-उत्तानपादासन, नौकासन, शवसान, वज्रासन तथा भुजंगासन आदि।

साइटिका में परहेज :

1)   इस रोग से पीड़ित रोगी को खटाई, मिठाई, अचार, राजमा, छोले, दही तथा तेल आदि का भोजन में सेवन नहीं करना चाहिए।
2)  रोगी व्यक्ति को तली हुई चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
3)  रोगी व्यक्ति को दालों का सेवन नहीं करना चाहिए तथा यदि दाल खाने की आवश्यकता भी है तो छिलके वाली दाल थोड़ी मात्रा में खा सकते हैं।
4)  साईटिका रोग से पीड़ित रोगी को ठंडे पेय पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
5)  इस रोग से पीड़ित रोगी को जमीन या तख्त पर सोना चाहिए तथा अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें



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