धर्म क्या है ? कर्तव्य का दूसरा नाम ही धर्म है। क्या कोई व्यक्ति कर्तव्य का पालन किए बिना जी सकता है? नहीं जी सकता।
इसका अर्थ हुआ कि धर्म के बिना कोई भी नहीं जी सकता ।
तो धर्म वह हुआ जो हमारे जीवन की रक्षा करता है , जो हमारे जीवन को सुख दाई बनाता है, उसी आचरण का नाम धर्म है . इसलिए धर्म के पालन में सदा बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए । बुद्धि पूर्वक विचार कर ही देखना चाहिए , कि कौन सा आचरण हमारे लिए सबके लिए सुखदायक है । सब के जीवन की रक्षा करने वाला है । उसी उत्तम आचरण का नाम धर्म है।
जैसे वायु के बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। ऐसे ही धर्म के बिना भी व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता । धर्म , वायु के समान अत्यंत आवश्यक है। इसलिए धर्म का आचरण बहुत सोच-समझकर करें ।
कहीं ऐसा ना हो कि भ्रांति के कारण, धर्म के स्थान पर अधर्म का आचरण कर बैठें।
जो आचरण हानिकारक है, अपने लिए और सब के लिए दुख दायक है , ऐसे आचरण का नाम अधर्म है।
तो सावधानी से बुद्धिमत्ता से विचार करके सुखदायक सर्वहितकारक कार्यों का ही आचरण करें । वही सच्चा धर्म है. – स्वामी विवेकानंद परिव्राजक