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यह बात बिल्कुल सही है की भगवान की कृपा के बिना साधन संभव नहीं। और यह भी की हमसे साधन हो सके ऐसी कृपा भगवान ने की ही है।
पर कितने ही साधक यह कहते मिलते हैं कि भगवान की कृपा जब तक नहीं होगी, हम क्या कर पाने में सक्षम हैं? मालूम है इसका अर्थ क्या है? जिस कृपा की न खिसकने वाली चट्टान पर चढ़ कर उस आत्मस्वरूप को छुआ जाता है, उसको ही बाधा बना कर, अपनी संकल्पहीनता को छिपाकर, वासना के कीचड़ में लथपथ रहने की कामना वाले, उसी चट्टान के पीछे दुबके, गजब, धिक्कार योग्य बहाना बनाते हैं। आँख वाले अंधे की तरह, इनकी मूर्खता की कोई सीमा है?
अपनी ही वृत्ति काबू नहीं, जीभ नाम में टिकती नहीं, दिन रात भोगों की लालसा में नुक्कड़ों पर लार टपकाते घूमते हैं, आरोप भगवान पर, कि कृपा नहीं करते?
विचार करें, अखिल कोटि ब्रह्मांड हैं, जिस ब्रह्मांड में हम हैं उसकी अनन्त आकाशगंगाओं में से एक है देवयानी आकाशगंगा, उसमें भी खरबों सौरमंडलों में से अपना यह सूर्यमंडल, फिर पृथ्वी, और उस पर भी इस परम पावन भारतभूमि पर आपका जन्म हुआ है, किसी सनातन परम्परा से संबंधित परिवार का सानिध्य मिला है, बिना सींग पूंछ का मनुष्य कहलाने वाला शरीर प्राप्त है, न्यूनाधिक बुद्धि है, हाथ पैर आँख कान जीभ काम करते हैं, रोटी ऐसी मिलती है कि जन्म से आज तक एक समय भी इस कारण से भूखे नहीं रहे कि रोटी थी नहीं, आज तक नंगे नहीं रहना पड़ा ऐसे कपड़ा मिलता है, फिर साँस चलती है, दिल धड़कता है, शास्त्र और संतों का संग उपलब्ध है, बिना अलग खर्चा किए, बिना कहीं आए जाए, अपने ही स्थान पर बैठे बैठे, इस समय, यह बात पढ़ने को मिल रही है, अभी भी कृपा नहीं हुई? क्या यह भगवान की आप पर कोई कम कृपा है? और कितनी कृपा की प्रतीक्षा है?
क्या कोई अब भी कह सकता है कि मैं साधन कैसे करूं, मुझे कृपा नहीं मिली? क्या आप के लिए इतनी कृपा पर्याप्त नहीं?
अब, वास्तव में यह बात कि बिना कृपा के साधन नहीं होता, उनके लिए कही गई है जो पहले से ही साधन में लगे हैं। यह बात तो उन्हें कर्तृत्वाभिमान न हो जाए, इसके लिए कही जाती है। कि आप साधन कर रहे हों, तो ऐसा मत समझो कि “मैं साधन करता हूँ।” अपने द्वारा हुए साधन को भगवान की कृपा का ही फल समझना चाहिए। ऐसा समझते रहने से आपको कर्म का अभिमान नहीं होगा।
पर जो साधन तो करता नहीं, कोरी बहानेबाजी ही करता है, और इस कृपा वाली बात के पीछे छिपना चाहता है, वह न केवल इस बात का दुरुपयोग कर रहा है, अपना जीवन भी व्यर्थ गंवा रहा है।
जो अब भी छोटी मोटी विपरीतता की आड़ लेकर, “कृपा नहीं मिली, कृपा नहीं मिली” ऐसा कहते कहते छाती पीटते थकता नहीं, उसे जितनी कृपा इस समय मिल रही है, जब उससे उतनी भी कृपा वापिस छीन ली जाएगी, और उसे पशु या मलेच्छ बना दिया जाएगा, तब उसका क्या हाल होगा ?

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