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: ये रहे गोमूत्र चिकित्सा के 11 फायदे और 7 सावधानियां

शास्‍त्रों में ऋषियों-महर्षियों ने गौ की अनंत महिमा लिखी है। उनके दूध, दही़, मक्खन, घी, छाछ, मूत्र आदि से अनेक रोग दूर होते हैं। गोमूत्र एक महौषधि है। इसमें पोटैशियम, मैग्नीशियम क्लोराइड, फॉस्‍फेट, अमोनिया, कैरोटिन, स्वर्ण क्षार आदि पोषक तत्व विद्यमान रहते हैं इसलिए इसे औषधीय गुणों की दृष्टि से महौषधि माना गया है। जानिए वि‍भि‍न्न रोगों में गोमूत्र के लाभ –

  1. जोड़ों का दर्द – जोड़ों में दर्द होने पर गोमूत्र का प्रयोग दो तरीकों से किया जा सकता है। इनमें से पहला तरीका है, दर्द वाले स्थान पर गोमूत्र से सेंक करें। और सर्दी में जोड़ों का दर्द होने पर 1 ग्राम सोंठ के चूर्ण के साथ गोमूत्र का सेवन करें।
  2. मोटापा – गोमूत्र के माध्यम से आप मोटापे पर आसानी से नियं‍त्रण पा सकते हैं। आधे गिलास ताजे पानी में 4 चम्मच गोमूत्र, 2 चम्मच शहद तथा 1 चम्मच नींबू का रस मिलाकर नित्य सेवन करें।
    3 दंत रोग – दांत दर्द एवं पायरिया में गोमूत्र से कुल्ला करने से लाभ होता है। इसके अलावा पुराना जुकाम, नजला, श्वास- गोमूत्र एक चौथाई में एक चौथाई चम्मच फूली हुई फिटकरी मिलाकर सेवन करें।

4 हृदयरोग – 4 चम्मच गोमूत्र का सुबह-शाम सेवन करना हृदय रोगियों के लिए लाभकारी होता है। इसके साथ ही मधुमेह रोगियों के लिए भी यह लाभकारी है। मधुमेह के रोगियों को बिना ब्यायी गाय का गोमूत्र प्रतिदिन डेढ़ तोला सेवन करना चाहिए।

5 पीलिया – 200-250 मिली गोमूत्र 15 दिन तक पिएं, उच्च रक्तचाप होने पर एक चौथाई प्याले गोमूत्र में एक चौथाई चम्मच फूली हुई फिटकरी डालकर सेवन करें और दमा के रोगी को छोटी बछड़ी का 1 तोला गोमूत्र नियमित पीना लाभकारी होता है।
6 यकृत, प्लीहा बढ़ना- 5 तोला गोमूत्र में 1 चुटकी नमक मिलाकर पि‍एं या पुनर्नवा के क्वाथ को समान भाग गोमूत्र मिलाकर लें। आप यह भी कर सकते हैं कि गर्म ईंट पर उससे गोमूत्र में कपड़ा भिगोकर लपेटें तथा प्रभावित स्थान पर हल्की-हल्की सिंकाई करें।
7 कब्ज या पेट फूलने पर – (क) 3 तोला ताजा गोमूत्र छानकर उसमें आधा चम्मच नमक मिलाकर पिलाएं। (ख) बच्चे का पेट फूल जाए तो 1 चम्मच गोमूत्र पिलाएं। और गैस की समस्या में प्रात:काल आधे कप गोमूत्र में नमक तथा नींबू का रस मिलाकर पिलाएं या फिर पुराने गैस के रोग के लिए गोमूत्र को पकाकर प्राप्त किया गया क्षार भी गुणकारी है।

8 गले का कैंसर – 100 मिली गोमूत्र तथा सुपारी के बराबर गाय का गोबर दोनों को मिलाकर स्वच्छ बर्तन में छान लें। सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर निराहार 6 माह तक प्रयोग करें।

9 चर्मरोग – नीम गिलोय क्वाथ के साथ सुबह-शाम गोमूत्र का सेवन करने से रक्तदोषजन्य चर्मरोग नष्ट हो जाता है। इसके अलावा चर्मरोग पर जीरे को महीन पीसकर गोमूत्र मिलाकर लेप करना भी लाभकारी है।
10 आंख के रोग – आंख के धुंधलेपन एवं रतौंधी में काली बछिया के मूत्र को तांबे के बर्तन में गर्म करें। चौथाई भाग बचने पर छान लें और उसे कांच की शीशी में भर लें। उससे सुबह-शाम आंख धोएं।

  1. पेट में कृमि – आधा चम्मच अजवाइन के चूर्ण के साथ 4 चम्मच गोमूत्र 1 सप्ताह सेवन करें। और कब्ज की समस्या होने पर हरड़ के चूर्ण के साथ गोमूत्र सेवन करें।

गोमूत्र सेवन में कुछ सावधानियां रखना भी बेहद आवश्यक है। जानिए ऐसी ही 7 जरूरी सावधानियां –
1 देशी गाय का गोमूत्र ही सेवन करें। गाय गर्भवती या रोगी न हो।
2 जंगल में चरने वाली गाय का मूत्र सर्वोत्तम है।
3 1 वर्ष से कम की बछिया का मूत्र सर्वोत्तम है।
4 मालिश के लिए 2 से 7 दिन पुराना गोमूत्र अच्‍छा रहता है।
5 पीने हेतु गोमूत्र को 4 से 8 बार कपड़े से छानकर प्रयोग करना चाहिए।
6 बच्चों को 5-5 ग्राम और बड़ों को 10 से 20 ग्राम की मात्रा में गोमूत्र सेवन करना चाहिए।

  • पत्‍थरचट्टा के फायदेे और नुकसान – Patharchatta Benefits and Side effects

पत्‍थरचट्टा (Patharchatta) एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है, पत्थरचट्टा का वैज्ञानिक नाम ब्रायोफिलम पिनाटा (Bryophyllum pinnatum) है। आमतौर पर पथरचटा को अन्‍य नामों जैसे कि मिरेकल लीफ (Miracle Leaf), एयर प्‍लांट (air plant), कैथेड्रल वेल (cathedral bells), लीफ आफ लाइफ (leaf of life) और गोएथे पौधे (Goethe plant) के रूप मे जाना जाता है। यह एक लोकप्रिय घरेलू पौधा है जो उष्‍णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से होता है। यह क्रसुलाकेआ (Crassulaceae) परिवार से संबंधित है। पथरचटा के फायदे बहुत से घरेलू उपचारों के लिए उपयोग किये जाते है। पथरचटा के गुण पथरी हटाने, रक्‍तचाप, सिरदर्द, अस्‍थमा, मूत्ररोग आदि को ठीक करने के लिए जाने जाते है। आइये जाने पत्‍थरचट्टा के फायदे और पत्‍थरचट्टा के नुकसान (Patharchatta ke fayde aur Nuksan) के बारे में।

पत्‍थरचट्टा का पौधा – Patharchatta Plant
एयर प्‍लांट एक लंबा, सीधा और बारहमासी पौधा होता है जो लगभग 1-2 मीटर तक लंबा होता है। यह एक जड़ी बूटी है जो आमतौर पर भारत के सभी घरों में घरेलू पौधे के रूप में मौजूद रहता है। इसके पत्‍ते विभिन्‍न औषधीय उपयोग के लिए जाने जाते हैं। इस पौधे के तने खोखले होते हैं जिनका रंग हरा या लाल होता है। इस पौधे की छाल मोटी, चमकदार और रसीली होती है।

इसकी पत्तियां 5-25 सेमी. लंबी और 2-12 सेमी. चौड़ी होती है। इस पौधे की शाखाओं में 6-7 पत्‍ते होते हैं। इसकी एक विशेषता यह है कि इसके पत्‍ते गीली जमीन पर अलग से नये पौधे को जन्‍म दे सकती हैं। इसके फूलों का रंग हरा-पीला या गुलाबी हो सकता है। ये फूल सर्दी और बसंत के मौसम में फूलते हैं। इसके फल झिल्‍लीदार आवरण से ढके रहते हैं, जिनमें चार भाग होते हैं, ये बीज आकार में छोटे होते हैं जो फूल के आंतरिक भाग में लगे होते हैं। इस पौधे का प्रजनन पत्तियों या बीज से होता है।

पत्‍थरचट्टा के पोषक तत्‍व – Patharchatta Nutrition Value in Hindi
इस घरेलू पौधे के पौधे का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्‍सा में उपयोग किया जाता है। पथरचटा में जीवाणुरोधी, एंटीवायरल, एंटीमिक्राबियल, एंटीफंगल, एंटीहिस्‍टामाइन और एनाफिलेक्टिक गुण होते हैं जो कि लगभग सभी प्रकार की बीमारियों को कम करने में मदद करते हैं।

पोषक तत्‍वों की अच्‍छी मात्रा और एंटीवायरल गुणों के कारण पत्‍थरचट्टा के फायदे सूजन को कम करने, मासिक धर्म की ऐंठन को रोकने, घावों को भरने, गुर्दे की पथरी को हटाने, आंखों के दर्द को दूर करने, पाचन, दस्‍त आदि समस्‍यओं को दूर करने में मदद करता है। अगर आप पत्‍थरचट्टा के फायदे नहीं जानते हैं, तो यह लेख पत्‍थरचट्टा के फायदे जानने में आपकी मदद करेगा।

गुर्दे की पथरी के लिए पत्‍थरचट्टा के फायदे – Miracle Leaf for Kidney Stones
जिन लोगों को गुर्दे की पथरी की समस्‍या होती है, उनके लिए पत्‍थरचट्टा के फायदे इसलिए हैं क्‍योंकि यह आसानी से पित्‍त पत्‍थर (bile stone) को ठीक कर सकता है। गुर्दे के पत्‍थरों के मामले में पत्‍थरचट्टा के पूरे पौधे को उबालकर 40-50 मिली लीटर काढ़ा तैयार करें जिसे दिन में दो बार सेवन करें। आप 5 ग्राम शिलाजीत के साथ 2 ग्राम पथरचटा के काढ़ें (Decoction) को भी दे सकते हैं आप इसे स्‍वादिष्‍ट बनाने के लिए शहद भी मिला सकते हैं। इस मिश्रण को भी दिन में दो बार तक सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से आप पथरी की समस्‍या से छुटकारा पा सकते हैं।

फोड़ों के इलाज में पत्थरचट्टा के पत्तों के फायदे –

इस आयुर्वेदिक औषधी पथरचटा के फायदे फोड़ों का उपचार करने के लिए चमत्‍कारिक है। पत्थरचट्टा के पत्तों को तोड़कर इन्‍हें हल्‍का गर्म करने के बाद फोड़े और सूजन वाली जगह पर रखकर बांधलें। यह आपकी सूजन को कम करने के साथ ही फोड़ों का उपचार करने में मदद करता है।

पथरचटा के गुण योनि समस्‍याओं के लिए – Patharchatta ke fayde for Vaginal problems

अगर महिलाओं को योनि स्राव का अनुभव होता है तो तुरंत राहत पाने के लिए आप पत्थरचट्टा के पत्तों का उपयोग कर सकतीं हैं। इसके लिए आपको पत्थरचट्टा के पत्तों का 40-60 मिली ग्राम काढ़े (Decoction) के साथ 2 ग्राम शहद को मिलाकर सेवन करें। इस मिश्रण का उपयोग आपको दिन में दो बार करना चाहिए।

सिर दर्द के लिए पत्‍थरचट्टा के लाभ – Patharchatta for Treats Headache in Hindi
एयर प्‍लांट या पत्‍थरचट्टा के फायदे उन लोगों के लिए भी होते हैं जो अक्‍सर सिरदर्द की समस्‍याओं से ग्रसित रहते हैं। पथरचटा की पत्तियों से आप अपने सिरदर्द का उपचार कर सकते हैं। इस पौधे की पत्तियों को तोड़ें और उन्‍हें माथे पर चिपकाएं। यह आपके लिए किसी दवा से कम नहीं है। ऐसा करने से आपको सिरदर्द से छुटकारा पाने में मदद मिलती है।

पत्थरचट्टा का पेड़ घावों को ठीक करे – Patharchatta ke fayde for Wounds

यदि आपके शरीर के किसी भी अंग में कोई घाव है तो आप पत्‍थरचट्टा का उपयोग करके इन घावों का उपचार कर सकते हैं। आप इसकी पत्तियों को तोड़कर इन्‍हें पीस लें और हल्‍की आंच में गर्म करें। फिर इस मिश्रण को फोड़ों के ऊपर लगाएं। यह जड़ी बूटी घावों को ठीक करने के साथ साथ उनके निशानों को भी दूर करने में आपकी मदद करेगी।

पत्‍थरचट्टा का उपयोग खूनी दस्‍त मे – Patharchatta Treat Bleeding Diarrhea

ब्रायोफिलम पिनाटम (पत्थरचट्टा का पेड़) का उपयोग कर आप दस्‍त के सा‍थ आने वाले खून को रोक सकते हैं। यह पत्‍थरचट्टा के फायदों में से एक है। आप पत्थरचट्टा का पेड़ की पत्तियों के 3-6 ग्राम जूस के साथ जीरा और घी मिलाकर रोगी को रोजाना दो बार पिलाएं। यह दस्‍त के साथ आने वाले खून को रोकने में मदद करता है।

हृदय स्‍वास्‍थ्‍य के लिए पथरचटा का इस्तेमाल – Patharchatta Helps Heart health in Hindi

इस आयुर्वेदिक जड़ी बूटी के फायदे दिल को स्‍वस्‍थ्‍य रखने के लिए भी जाने जाते है। यह आपके शरीर के सबसे महत्‍वपूर्ण अंग दिल को सुरक्षित रखने में मदद करता है।

मूत्र संबंधी विकारों के लिए पत्‍थरचट्टा के फायदे – Patharchatta Useful for Urinary problems

प्‍यास और मूत्र (thirst and urine) से सं‍बंधित परेशानियों को दूर करने के लिए पथरचटा के पत्‍तों का 5 मिली लीटर रस दें। यह इस समस्‍या का प्रभावी रूप से इलाज करने में मदद करता है। पुरुषों में मूत्र संबंधी विकार के मामले में पत्‍थरचट्टा के 40 – 60 ग्राम काढ़ें के साथ 2 ग्राम शहद मिला कर सेवन करना चाहिए। ऐसी स्थिति में इस मिश्रण को दिन में दो बार लेना चाहिए।

दांत दर्द के लिए पत्‍थरचट्टा का उपयोग – Patharchatta Ka Upyog for Toothache

दांतों के दर्द को ठीक करने के लिए पत्‍थरचट्टा को पारंपरिक दवा के रूप में उपयोग किया जाता है। पत्‍थरचट्टा में एंटी-वायरस और एंटी-बैक्‍टीरिया (anti-bacterial) गुण होते हैं जो आपके दांतों के दर्द को दूर करने में मदद करते हैं।

पत्‍थरचट्टा के घरेलू उपयोग बुखार के लिए – Patharchatta ke fayde for Fever in Hindi
पत्‍थरचट्टा के एंटीप्रियेटिक (Antipyretic) गुणों के कारण यह बुखार का इलाज करने में मदद करता है। बुखार एक शर्त के साथ शारीरिक तापमान 38 डिग्री सेल्सियस के ऊपर होने पर होता है। यह वायरस और बैक्‍टीरिया के विरूध शरीर की रक्षा करता है। इन पत्तियों के रस का सेवन करने से बुखार को कम किया जा सकता है।

गर्भावस्‍था में पत्‍थरचट्टा के फायदे – Patharchatta Benefits for Pregnancy

कुछ अध्‍ययनों से पता चलता है कि पत्‍थरचट्टा के पत्‍ते गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद होते हैं। जानवरों पर किये गए अध्‍ययन से यह साबित होता है कि यह गर्भावस्‍था के समय इन पत्तियों का काढ़ा पीने से यह वजन को बढ़ने से रोकता है और मां और उसक भ्रूण को कोई भी नुकसान नही पहुंचाता है। गर्भावस्‍था के समय महिलाओं द्वारा इन पत्तियों के रस का सेवन करने से नींद संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में मदद मिलती है।

पत्‍थरचट्टा के गुण बालों के लिए लाभकारी – Patharchatta Ke Gun for Hair in Hindi

कुछ लोगों का मानना है कि पत्‍थरचट्टा के फायदे बालों को स्‍वस्‍थ्‍य बनाते हैं और उन्‍हें प्राकृतिक रंग दिलाने में मदद करते हैं। हालाकि इसके अभी तक कोई भी वैज्ञानिक पुष्टि नहीं की गई है। फिर भी कुछ लोगों का दावा है कि इस पौधे की पत्तियों के रस का उपयोग बालों पर करने से यह उन्‍हें भूरे रंग से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकता है। आप भी इस आयुर्वेदिक औषधी का उपयोग कर लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं।

अस्‍थमा के लिए पत्‍थरचट्टा के फायदे – Miracle Leaf for Asthma

कई पशु अध्‍ययनों से पता चलता है कि पत्‍थरचट्टा में एंटी-अस्‍थमा गुण होते हैं। पत्‍थरचट्टा में एंटीमाइक्रोबायल एजेंट होते हैं जो अस्‍थमा के इलाज में मदद करते हैं। यदि आप अस्‍थमा रोग से परेशान हैं तो आप पत्‍थरचट्टा का उपयोग कर सकते हैं, यह आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

मधुमेह के लिए पत्थरचट्टा के पत्तों के फायदे – Patharchatta Helpful for Diabetics in Hindi

ब्रायोफिलम पिनाटम (Bryophyllum pinnatum) की पत्तियों का उपयोग कर आप मधुमेह को नियंत्रित कर सकते हैं। मधुमेह रोगी को प्रतिदिन दो बार पत्थरचट्टा के पत्तों के काढ़े का सेवन करना चाहिए। यह आपके शरीर में रक्‍तशर्करा के स्‍तर को कम करने में मदद करता है।

पत्‍थरचट्टा के उपयोग कब्‍ज को दूर करे – Leaf of Life for Constipation

कब्‍ज को दूर करने के लिए पत्‍थरचट्टा के पत्‍तों का उपयोग बहुत ही फायदेमंद होता है। आप इसके लिए पत्‍थरचट्टा के सूखे पत्‍तों की चाय का सेवन कर सकते हैं। यह आपको कब्‍ज से छुटकारा दिलाने में मदद करेगा।

खून को साफ करने में पत्‍थरचट्टा के फायदे – Patharchatta for Purifies Blood

इस जड़ी बूटी में खून को साफ करने वाले गुण होते हैं, जो शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को हटाने में मदद करता है। खून मे अशुद्धियां होने के कारण त्‍वचा संबंधी बहुत सी परेशानियां हो सकती है। ऐसी परेशानियों से बचने के लिए आप पत्‍थरचट्टा का उपयोग कर सकते हैं। यह आपके रक्‍त को साफ कर आपके शरीर को स्‍वस्‍थ्‍य रखने में मदद करता है।

पत्‍थरचट्टा के नुकसान (साइड इफेक्ट्स) – Patharchatta ke Nuksan (Side effects) in Hindi
ऊपर आपने जाना पत्‍थरचट्टा के फायदों के बारे में, अभी तक ज्ञात अध्‍ययनों के आधार पर पत्‍थरचट्टा के किसी भी गंभीर नुकसान की जानकारी नहीं है। लेंकिन फिर भी आप किसी भी प्रकार की चिकित्‍सकीय दवाओं का सेवन कर रहें हैं मुख्‍य रूप से एस्प्रिन या अन्‍य दवाएं तो हो सकता है ऐसे में पत्‍थरचट्टा का सेवन करना इन दवाओं के असर को कम या बढ़ा दे, इसलिए ऐसी किसी भी समस्‍या से बचने के‍ लिए इलाज के दौरान या बिना पूर्ण जानकारी के पत्‍थरचट्टा का सेवन करने से बचें।

योग, आयुर्वेद, अपनायें । सदैव स्वस्थ रहें ।

सहजन पेड़ नहीं मानव के लिए कुदरत का चमत्कार

सेंजन, मुनगा या सहजन आदि नामों से जाना जाने वाला सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है। आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आज के वैज्ञानिक युग में वे साबित हो चुकी हैं। सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है। इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है।

कम देखरेख और ढेरों फायदे

सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है । इसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। यह जिस जमीन पर यह लगाया जाता है, उसके लिए भी लाभप्रद है। दक्षिण भारत में साल भर फली देने वाले पेड़ होते है. इसे सांबर में डाला जाता है। उत्तर भारत में यह साल में एक बार ही फली देता है। सर्दियां जाने के बाद फूलों की सब्जी बना कर खाई जाती है फिर फलियों की सब्जी बनाई जाती है। इसके बाद इसके पेड़ों की छटाई कर दी जाती है।सहजन वृक्ष किसी भी भूमि पर पनप सकता है और कम देख-रेख की मांग करता है। इसके फूल, फली और टहनियों को अनेक उपयोग में लिया जा सकता है। भोजन के रूप में अत्यंत पौष्टिक है और इसमें औषधीय गुण हैं। इसमें पानी को शुद्ध करने के गुण भी मौजूद हैं। सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है और छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से दवाएं तैयार की जाती हैं। सहजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में है। सहजन में दूध की तुलना में ४ गुना कैल्शियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है।

सैकड़ों औषधीय गुण

सहजन की फली वात व उदरशूल में पत्ती नेत्ररोग, मोच ,शियाटिका ,गठिया में उपयोगी है। सहजन की जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग के लिए उपयोगी है। छाल का उपयोग शियाटिका ,गठियाए,यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है। सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वातए व कफ रोग शांत हो जाते है, इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है, शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है। सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है। सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है। सहजन की सब्जी खाने से पुराने गठिया ए जोड़ों के दर्दए वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है। सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है। सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है। सहजन की जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है। सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है। सहजन फली का रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है। सहजन की पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है। सहजन. की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है। सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है। सहजन की जड़ का काढे को सेंधा नमक और हींग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। सहजन की पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है। सहजन के पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे तो सर दर्द दूर हो जाता है। सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है। सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शरीर के कई रोगों से लड़ता है खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तोए आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी। सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है।सहजन का जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है। सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है।सहजन का सूप पीने से शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।सहजन की पत्ती को सुखाकर उसकी चटनी बनाने से उसमें आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। गर्भवती महिलाएँ और बुजुर्ग भी इस चटनी, अचार का प्रयोग कर सकते हैं और कई बीमारियों जैसे रक्त अल्पता तथा आँख की बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं। सहजन या सुरजने का समूचा पेड़ ही चिकित्सा के काम आता है। इसे जादू का पेड़ भी कहा जाता है। त्वचा रोग के इलाज में इसका विशेष स्थान है। सहजन के बीज धूप से होने वाले दुष्प्रभावों से रक्षा करते हैं। अक्सर इन्हें पीसकर डे केअर क्रीम में इस्तेमाल किया जाता है। बीजों का दरदरा पेस्ट चेहरे की मृत त्वचा को हटाने के लिए स्क्रब के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। फेस मास्क बनाने के लिए सहजन के बीजों के अलावा कुछ और मसाले भी मिलाना पड़ते हैं। सहजन के बीजों का तेल सूखी त्वचा के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ताकतवर मॉश्चराइजर है। इसके पेस्ट से खुरदुरी और एलर्जिक त्वचा का बेहतर इलाज किया जा सकता है। सहजन के पेड़ की छाल गोखरू, कील और बिवाइयों के इलाज की अक्सीर दवा मानी जाती है। सहजन के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्व कॉस्मेटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है। सत्व के जरिए त्वचा की गहराई में छिपे विषैले तत्व बाहर निकाले जा सकते हैं। सहजन के बीजों का पेस्ट त्वचा के रंग और टोन को साफ रखने में मदद करता है।मृत त्वचा के पुनर्जीवन के लिए इससे बेहतर कोई रसायन नहीं है। धूम्रपान के धुएँ और भारी धातुओं के विषैले प्रभावों को दूर करने में सहजन के बीजों के सत्व का प्रयोग सफल साबित हुआ है।

सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना

-विटामिन सी- संतरे से सात गुना।

-विटामिन ए- गाजर से चार गुना।

-कैलशियम- दूध से चार गुना।

-पोटेशियम- केले से तीन गुना।

-प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना।

उत्तम स्वास्थ्य के लिए योग आयुर्वेद अपनाओ खाना मिट्टी के बर्तनों में पकायें । 100% पोषक तत्व पायें ।

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः

वन्देमातरम ।

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