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कोरोना काल व वर्षा ऋतु में खुद का कैसे रखें ध्यान

🙏 वर्षा ऋतु विसर्ग काल के आरंभ में आती है(विसर्ग काल मध्य जुलाई से मध्य जनवरी तक होता है)विसर्ग काल की शुरुआत में प्रकृति शरीर को शक्तियां प्रदान करना शुरू करती हैl बीती ग्रीष्म में क्षीण हुई पाचन शक्ति व वर्षा ऋतु की नमी से वात दोष (जिस कारण शरीर में दर्द आदि बढते हैं) कुपित हो जाता है जिससे पाचन शक्ति और अधिक दुर्बल हो जाती हैl
वर्षा की बौछारों से पृथ्वी से निकलने वाली गैस,अम्लता की अधिकता,धूल और धुएं से युक्त वात का प्रभाव भी पाचन शक्ति पर पड़ता है
बीच-बीच में बारिश कम होने से सूर्य की गर्मी बढ़ जाती है इससे शरीर में पित्त दोष जमा होने लगता हैव गेहूं,चावल आदि धानो की शक्ति भी कम हो जाती है,इन सब कारणों के संक्रमण से मलेरिया,बुखार,जुकाम,दस्त (आँव से युक्त)पेचिश, आंत्रशोथ, सन्धियों में सूजन,उच्चरक्तचाप फुंसियां,दाद खुजली आदि अनेक रोग आक्रमण सकते हैंl

वर्षा ऋतु का रहन सहन व खान-पान
वर्षा ऋतु में ऐसा खानपान लेना चाहिए जो वात को शांत करने वाले हो इस दृष्टि से पुराना अनाज जैसे गेहूं,साठी चावल सरसों,राई ,जीरा ,खिचड़ी दही( केवल सौंठ,पीपली,काली मिर्च,सैन्धा नमक,अजवाइन का चूर्ण डालकर लें)मठा,मूंग और अरहर की७ दालl
#सब्जियों में लौकी,तुरई,टमाटर सब्जियों का सूप लेंl
#फलों में सेब, केला ,अनार नाशपाती तथा घी व तेल से बनी नमकीन पदार्थ उपयोगी रहते हैं इस समय में अम्ल नमकीन और चिकनाई वाले पदार्थों का सेवन करने से वात दोष का शमन करने में सहायता मिलती है विशेष रूप से उस समय जब अधिक वर्षा और आंधी से मौसम ठंडा हो गया हो, रसायन के रूप में (जो शरीर का त्रीदोश साम्य अवस्था में रखे) के लिए हरड़ का चूर्ण व सिंध-नमक आधी मात्रा में मिलाकर आधा चम्मच रात को सोने से पहले लें

वर्षा ऋतु मैं क्या न करें और क्या न खाएं
वर्षा ऋतु में पत्ते वाली सब्जियां ठंडे,रूखे पदार्थ चना, मोठ, उडद,मटर,ज्वार ,आलू ,कटहल, करेला और पानी में सत्तू घोलकर पीना हानिकारक है(बचा हुआ हो तो उसे गेहूँ आटे में मिलाकर रोटियाँ बना लें)l
इस समय में पित्त बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करेंl एक लोकोक्ति के अनुसार श्रावण मास में दूध,भाद्रपद में छाछ,क्वार मास में करेला और कार्तिक मास में दही का सेवन नहीं करना चाहिएl

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