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गायत्री गुप्त मन्त्र और सम्पुट
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गायत्री मन्त्र के साथ कौन सा सम्पुट लगाने पर क्या फल मिलता है!!

ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ
श्रीं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ क्लीं धियो यो न: प्रचोदयात ॐ नम:! ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ श्रीं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ क्लीं धियो यो न: प्रचोदयात ॐ नम:! ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ऐं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ क्लीं भर्गो देवस्य
धीमहि ॐ सौ: धियो यो न: प्रचोदयात
ॐ नम:! ॐ श्रीं ह्रीं ॐ भूर्भुव:
स्व: ॐ ऐं ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ क्लीं ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ सौ: ॐ धियो यो न: प्रचोदयात ॐ ह्रीं श्रीं ॐ!!

गायत्री जपने का अधिकार जिसे नहीं है वे निचे लिखे मन्त्र का जप करें!

ह्रीं यो देव: सविताSस्माकं मन: प्राणेन्द्रियक्रिया:!
प्रचोदयति तदभर्गं वरेण्यं समुपास्महे !!

सम्पुट प्रयोग
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गायत्री मन्त्र के आसपास कुछ बीज
मन्त्रों का सम्पुट लगाने का भी विधान है जिनसे विशिष्ट कार्यों की सिद्धि होती है ! बीज मन्त्र इस प्रकार हैं—-

१- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं — का सम्पुट लगाने से
लक्ष्मी की प्राप्ति होती है!

२- ॐ ऐं क्लीं सौ:– का सम्पुट लगाने से
विद्या प्राप्ति होती है!

३– ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं —
का सम्पुट लगाने से संतान प्राप्ति, वशीकरण और मोहन होता है!

४– ॐ ऐं ह्रीं क्लीं — का सम्पुट के
प्रयोग से शत्रु उपद्रव, समस्त विघ्न बाधाएं और संकट दूर होकर भाग्योदय होता है!

५– ॐ ह्रीं — इस सम्पुट के प्रयोग से रोग नाश होकर सब प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है!

६– ॐ आँ ह्रीं क्लीं — इस सम्पुट
के प्रयोग से पास के द्रव्य की रक्षा होकर
उसकी वृद्धि होती है तथा इच्छित वस्तु
की प्राप्ति होती है! इसी प्रकार किसी भी मन्त्र की सिद्धि और विशिष्ट कार्य
की शीघ्र सिद्धि के लिए भी दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों के साथ सम्पुट
देने का भी विधान है! गायत्री मन्त्र समस्त मन्त्रों का मूल है तथा यह आध्यात्मिक शान्ति देने वाले हैं!!

गायत्री शताक्षरी मन्त्र
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” ॐ भूर्भुव: स्व : तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि! धियो यो न: प्रचोदयात! ॐ जातवेदसे सुनवाम सोममराती यतो निदहाति वेद:! स न: पर्षदतिदुर्गाणि
विश्वानावेव सिंधु दुरितात्यग्नि:!
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम! उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात !!”

शास्त्र में कहा गया है कि गायत्री मन्त्र जपने से पहले गायत्री शताक्षरी मन्त्र
की एक माला अवश्य कर लेनी चाहीये! माला करने पर मन्त्र में चेतना आ जाती है!!
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[ एक मंदिर जो विज्ञान के लिए आश्चर्यजनक पहेली 1600 साल से।

1600 वर्षों से इस मंदिर में हो रहा है चमत्कार!! शिव के अभिषॆक के समय घी बनजाता है मक्खन!! विज्ञान भी नहीं खॊज पाया इसके रहस्य को।कुछ विषयों का उत्तर विज्ञान के पास में भी नहीं होता है। सनातन धर्म के बारे में आप जितना जानने की कोशिश करते हैं, वह उतनी ही रहस्यमयी और गहरी होती जाती है। अब एक रहस्य ऐसा भी है, जहां शिवजी पर अभिषेक किया गय घी, मक्खन का रूप ले लेता है!! हम सब जानते हैं कि एक बार मक्खन को पिघलाकर घी बना दिया तो फिर उसे मक्खन के रूप में लाना असंभव है।

लेकिन कर्नाटक के तुमुकूरु जिले के शिवगंगा गंगाधरेश्वर मंदिर में ऐसा अद्भुत होता है, जहां पर विज्ञान भी तर्क विहीन हो कर मूक प्रेक्षक बन जाता है। कर्नाटक की राजधानी बेंगलूर से 54 किलोमीटर और तुमुकूरु से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शिवगंगा पहाड़ पर यह मंदिर स्थित है। शिवगंगा 804.8 मीटर या 2640.3 फीट की ऊंचाई के पर्वत शिखर पर यह मंदिर स्थित है। इस पर्वत का आकार शिवलिंग की तरह है और पास ही में एक नदी बहती है, जिसे गंगा के नाम से जाना जाता है। इसी कारण से इस मंदिर का नाम शिवगंगा पड़ गया है।

शिवगंगा गंगाधरेश्वर मंदिर को “दक्षिण काशी” भी कहा जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के स्वयंभू शिवलिंग पर जब घी का अभिषॆक किय जाता है, तो वह मक्खन में बदल जाता है! यह भगवान का चमत्कार है या इसके पीछे कॊई विज्ञान है यह कॊई नहीं जानता। माना जा रहा है कि करीब 1600 वर्शों से यह चमत्कार हो रहा है। अभिषेक के समय भक्त इस चमत्कार को अपने आँखों से देख सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मक्खन में बदलने वाली घी में औषधीय शक्तियां होती है और उसका सेवन कई बीमारियों को ठीक कर सकती है।

पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर के गर्भ गृह से एक गुप्त सुरंग मार्ग गुजरता है जो 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित गवि गंगाधरेश्वर मंदिर से संपर्क करता है। मक्खन से घी बनते सबने देखा है लेकिन घी से मखन बनते न किसी ने देखा है ना सुना है। अगर इस चमत्कार को अपने आँखो से देखना है तो शिवगंगा मंदिर जाइये और सत्य को परख कर देखिए।
[ सामुद्रिक शास्त्र में शरीर के विभिन्न अंगों पर पाए जाने वाले तिल

१- ललाट पर तिल – ललाट के मध्य भाग में तिल निर्मल प्रेम की निशानी है। ललाट के दाहिने तरफ का तिल किसी विषय विशेष में निपुणता, किंतु बायीं तरफ का तिल फिजूलखर्ची का प्रतीक होता है। ललाट या माथे के तिल के संबंध में एक मत यह भी है कि दायीं ओर का तिल धन वृद्धिकारक और बायीं तरफ का तिल घोर निराशापूर्ण जीवन का सूचक होता है।

२- भौंहों पर तिल – यदि दोनों भौहों पर तिल हो तो जातक अकसर यात्रा करता रहता है। दाहिनी पर तिल सुखमय और बायीं पर तिल दुखमय दांपत्य जीवन का संकेत देता है।

३- आंख की पुतली पर तिल – दायीं पुतली पर तिल हो तो व्यक्ति के विचार उच्च होते हैं। बायीं पुतली पर तिल वालों के विचार कुत्सित होते हैं। पुतली पर तिल वाले लोग सामान्यत: भावुक होते हैं।

४- पलकों पर तिल – आंख की पलकों पर तिल हो तो जातक संवेदनशील होता है। दायीं पलक पर तिल वाले बायीं वालों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होते हैं।

५- आंख पर तिल – दायीं आंख पर तिल स्त्री से मेल होने का एवं बायीं आंख पर तिल स्त्री से अनबन होने का आभास देता है।

६- कान पर तिल – कान पर तिल व्यक्ति के अल्पायु होने का संकेत देता है।

७- नाक पर तिल – नाक पर तिल हो तो व्यक्ति प्रतिभासंपन्न और सुखी होता है। महिलाओं की नाक पर तिल उनके सौभाग्यशाली होने का सूचक है।

८- होंठ पर तिल – होंठ पर तिल वाले व्यक्ति बहुत प्रेमी हृदय होते हैं। यदि तिल होंठ के नीचे हो तो गरीबी छाई रहती है।

९- मुंह पर तिल – मुखमंडल के आसपास का तिल स्त्री तथा पुरुष दोनों के सुखी संपन्न एवं सज्जन होने के सूचक होते हैं। मुंह पर तिल व्यक्ति को भाग्य का धनी बनाता है। उसका जीवनसाथी सज्जन होता है।

१०- गाल पर तिल – गाल पर लाल तिल शुभ फल देता है। बाएं गाल पर कृष्ण वर्ण तिल व्यक्ति को निर्धन, किंतु दाएं गाल पर धनी बनाता है।

११- जबड़े पर तिल – जबड़े पर तिल हो तो स्वास्थ्य की अनुकूलता और प्रतिकूलता निरंतर बनी रहती है।
ठोड़ी पर तिल – जिस स्त्री की ठोड़ी पर तिल होता है, उसमें मिलनसारिता की कमी होती है।

१२- कंधों पर तिल – दाएं कंधे पर तिल का होना दृढ़ता तथा बाएं कंधे पर तिल का होना तुनकमिजाजी का सूचक होता है।

१३- दाहिनी भुजा पर तिल – ऐसे तिल वाला जातक प्रतिष्ठित व बुद्धिमान होता है। लोग उसका आदर करते हैं।

१४- बायीं भुजा पर तिल – बायीं भुजा पर तिल हो तो व्यक्ति झगड़ालू होता है। उसका सर्वत्र निरादर होता है। उसकी बुद्धि कुत्सित होती है।

१५- कोहनी पर तिल – कोहनी पर तिल का पाया जाना विद्वता का सूचक है।

१६- हाथों पर तिल – जिसके हाथों पर तिल होते हैं वह चालाक होता है। गुरु क्षेत्र में तिल हो तो सन्मार्गी होता है। दायीं हथेली पर तिल हो तो बलवान और दायीं हथेली के पृष्ठ भाग में हो तो धनवान होता है। बायीं हथेली पर तिल हो तो जातक खर्चीला तथा बायीं हथेली के पृष्ठ भाग पर तिल हो तो कंजूस होता है।

१७- अंगूठे पर तिल – अंगूठे पर तिल हो तो व्यक्ति कार्यकुशल, व्यवहार कुशल तथा न्यायप्रिय होता है।

१८- तर्जनी पर तिल – जिसकी तर्जनी पर तिल हो, वह विद्यावान, गुणवान और धनवान किंतु शत्रुओं से पीड़ित होता है।

१९- मध्यमा पर तिल – मध्यमा पर तिल उत्तम फलदायी होता है। व्यक्ति सुखी होता है। उसका जीवन शांतिपूर्ण होता है।

२०- अनामिका पर तिल – जिसकी अनामिका पर तिल हो तो वह ज्ञानी, यशस्वी, धनी और पराक्रमी होता है।
कनिष्ठा पर तिल – कनिष्ठा पर तिल हो तो वह व्यक्ति संपत्तिवान होता है, किंतु उसका जीवन दुखमय होता है।

२१- जिसकी हथेली में तिल मुठ्ठी में बंद होता है वह बहुत भाग्यशाली होता है लेकिन यह सिर्फ एक भ्रांति है। हथेली में होने वाला हर तिल शुभ नहीं होता कुछ अशुभ फल देने वाले भी होते हैं।

२२- सूर्य पर्वत मतलब रिंग फिंगर के नीचे के क्षेत्र पर तिल हो तो व्यक्ति समाज में कलंकित होता है। किसी की गवाही की जमानत उल्टी अपने पर नुकसान देती है। नौकरी में पद से हटाया जाना और व्यापार में घाटा होता है। मान- सम्मान पर प्रभावित होता है और नेत्र संबंधित रोग तंग करते हैं।

२३- बुध पर्वत यानी लिटिल फिंगर के नीचे के क्षेत्र पर तिल हो तो व्यक्ति को व्यापार में हानि उठानी पड़ती है। ऐसा व्यक्ति हिसाब-किताब व गणित में धोखा खाता है और दिमागी रूप से कमजोर होता है।

२४- लिटिल फिंगर के नीचे वाला क्षेत्र जो हथेली के अंतिम छोर पर यानी मणिबंध से ऊपर का क्षेत्र जो चंद्र क्षेत्र कहलाता है, इस क्षेत्र पर यदि तिल हो तो ऐसे व्यक्ति के विवाह में देरी होती है। प्रेम में लगातार असफलता मिलती है। माता का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है।

२५- गले पर तिल – गले पर तिल वाला जातक आरामतलब होता है। गले पर सामने की ओर तिल हो तो जातक के घर मित्रों का जमावड़ा लगा रहता है। मित्र सच्चे होते हैं। गले के पृष्ठ भाग पर तिल होने पर जातक कर्मठ होता है।

२६- छाती पर तिल – छाती पर दाहिनी ओर तिल का होना शुभ होता है। ऐसी स्त्री पूर्ण अनुरागिनी होती है। पुरुष भाग्यशाली होते हैं। शिथिलता छाई रहती है। छाती पर बायीं ओर तिल रहने से भार्या पक्ष की ओर से असहयोग की संभावना बनी रहती है। छाती के मध्य का तिल सुखी जीवन दर्शाता है। यदि किसी स्त्री के हृदय पर तिल हो तो वह सौभाग्यवती होती है।

२७- कमर पर तिल – यदि किसी व्यक्ति की कमर पर तिल होता है तो उस व्यक्ति की जिंदगी सदा परेशानियों से घिरी रहती है।

२८- पीठ पर तिल – पीठ पर तिल हो तो जातक भौतिकवादी, महत्वाकांक्षी एवं रोमांटिक हो सकता है। वह भ्रमणशील भी हो सकता है। ऐसे लोग धनोपार्जन भी खूब करते हैं और खर्च भी खुलकर करते हैं। वायु तत्व के होने के कारण ये धन संचय नहीं कर पाते।

२९- पेट पर तिल – पेट पर तिल हो तो व्यक्ति चटोरा होता है। ऐसा व्यक्ति भोजन का शौकीन व मिष्ठान्न प्रेमी होता है। उसे दूसरों को खिलाने की इच्छा कम रहती है।

३०- घुटनों पर तिल – दाहिने घुटने पर तिल होने से गृहस्थ जीवन सुखमय और बायें पर होने से दांपत्य जीवन दुखमय होता है।

३१- पैरों पर तिल – पैरों पर तिल हो तो जीवन में भटकाव रहता है। ऐसा व्यक्ति यात्राओं का शौकीन होता है। दाएं पैर पर तिल हो तो यात्राएं सोद्देश्य और बाएं पर हो तो निरुद्देश्य होती हैं।
समुद्र विज्ञान के अनुसार जिनके पांवों में तिल का चिन्ह होता है उन्हें अपने जीवन में अधिक यात्रा करनी पड़ती है। दाएं पांव की एड़ी अथवा अंगूठे पर तिल होने का एक शुभ फल यह माना जाता है कि व्यक्ति विदेश यात्रा करेगा। लेकिन तिल अगर बायें पांव में हो तो ऐसे व्यक्ति बिना उद्देश्य जहां-तहां भटकते रहते हैं।
[सर्वश्रेष्ठ विचार

ईश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय तीन विशेष रचना की…

1. अनाज में कीड़े पैदा कर दिए, वरना लोग इसका सोने और चाँदी की तरह संग्रह करते।

2. मृत्यु के बाद देह (शरीर) में दुर्गन्ध उत्पन्न कर दी, वरना कोई अपने प्यारों को कभी भी जलाता या दफ़न नहीं करता।

3. जीवन में किसी भी प्रकार के संकट या अनहोनी के साथ रोना और समय के साथ भूलनादिया, वरना जीवन में निराशा और अंधकार ही रह जाता, कभी भी आशा, प्रसन्नता या जीने की इच्छा नहीं होती।

जीना सरल है…
प्यार करना सरल है..
हारना और जीतना भी सरल है…
तो फिर कठिन क्या है?

सरल होना बहुत कठिन है

कोई तन दुखी, कोई मन दुखी, कोई धन बिन रहत उदास।
थोड़े-थोड़े सब दुखी, सुखी कृष्ण के दास ।।
एक भी व्यक्ति संसार में ऐसा नहीं है जिसके बारे में आप यह कह सकें कि यह सुखी है, कोई भी व्यक्ति संसार में ऐसा नहीं है जो छाती पर हाथ धर कर कहे कि मैं सुखी हूँ, दो-दो हजार करोड़ का टर्नओवर हर महीने कर रहे है, पाँच-पाँच हजार करोड़ का टर्नओवर हर महीने कर रहे है, लेकिन खाते क्या है? मूँग की दाल के साथ रूखा फुल्का।
एक ऐसे ही अरबपति सेठजी से पूछा ये क्या भोजन? इतना सब वैभव और मूँग की दाल के साथ रूखा फुल्का, बोले क्या करें डॉक्टर ने मना किया है, रोटी चुपड़कर खा लूंगा तो ब्लड प्रेशर हाई हो जायेगा, सम्पत्ति अरबों की है लेकिन खाते हैं रूखा फुल्का, किसी को किसी बात की कमी नहीं है, अनन्त सम्पत्ति है, बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीयाँ है लेकिन मानसिक चिंता भयानक रूप से व्याप्त हैं।

धनी तो वहीं है जिसके पास राम जी नाम का धन है, राम के राम नाम का धन जिसने कमा लिया वही एकमात्र धनी है, और कौन धनी है?🙌🏻🙌🏻🙌🏻✍🏻
राम जी राम राम राम राम राम 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[ विचारणीय विषय

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वम् मम देवदेव।।

सरल-सा अर्थ है, ‘हे भगवान! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो। मेरे देवता हो।’

बचपन से प्रायः सबने पढ़ी है। छोटी और सरल है इसलिए रटा दी गई है। बस त्वमेव माता भर बोल दो, सामने वाला तोते की तरह पूरा श्लोक सुना देता है।

मैंने ‘अपने रटे हुए’ कम से कम 50 मित्रों से पूछा होगा, ‘द्रविणं’ का क्या अर्थ है? संयोग देखिए एक भी न बता पाया। अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी। एक ही शब्द ‘द्रविणं’ पर सोच में पड़ गए।

द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं। द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति। द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता। आखिर ‘लक्ष्मी’ भी कहीं टिकती है क्या!

कितनी सुंदर प्रार्थना है और कितना प्रेरक उसका ‘वरीयता क्रम’। ज़रा देखिए तो! समझिए तो!

सबसे पहले माता क्योंकि वह है तो फिर संसार में किसी की जरूरत ही नहीं। इसलिए हे प्रभु! तुम माता हो!

फिर पिता, अतः हे ईश्वर! तुम पिता हो! दोनों नहीं हैं तो फिर भाई ही काम आएंगे। इसलिए तीसरे क्रम पर भगवान से भाई का रिश्ता जोड़ा है।

जिसकी न माता रही, न पिता, न भाई तब सखा काम आ सकते हैं, अतः सखा त्वमेवं!

वे भी नहीं तो आपकी विद्या ही काम आना है। यदि जीवन के संघर्ष में नियति ने आपको निपट अकेला छोड़ दिया है तब आपका ज्ञान ही आपका भगवान बन सकेगा। यही इसका संकेत है।

और सबसे अंत में ‘द्रविणं’ अर्थात धन। जब कोई पास न हो तब हे देवता तुम्हीं धन हो।

रह-रहकर सोचता हूं कि प्रार्थनाकार के वरीयता क्रम में जो धन-द्रविणं सबसे पीछे है, हमारे आचरण में सबसे ऊपर क्यों आ जाता है? इतना कि उसे ऊपर लाने के लिए माता से पिता तक, बंधु से सखा तक सब नीचे चले जाते हैं, पीछे छूट जाते हैं।

वह कीमती है, पर उससे ज्यादा कीमती और भी हैं। उससे बहुत ऊँचे आपके अपने।

अनगिनत प्यारी से प्यारी प्रार्थनाओं में न जाने क्यों अनजाने ही एक अद्भुत वरीयता क्रम दर्शाती यह प्रार्थना मुझे जीवन के सूत्र और रिश्तों के मर्म सिखाती रहती है।

बार-बार ख्याल आता है, द्रविणं सबसे पीछे बाकी रिश्ते ऊपर। बाकी लगातार ऊपर से ऊपर, धन क्रमश: नीचे से नीचे!

जब गुरूजनों से जाना इस अनूठी प्रार्थना का यह पारिवारिक पक्ष’ और ‘द्रविणं’ की औकात पर मित्रों से सत्संग होता है, एक बात कहना नहीं भूलता!

याद रखिये दुनिया में झगड़ा रोटी का नहीं थाली का है! वरना वह रोटी तो सबको देता ही है!

चांदी की थाली यदि कभी आपके वरीयता क्रम को पलटने लगे, तो इस प्रार्थना को जरूर याद कर लीजिये।

हमेशा ख्याल रहे कि क्रम माता च पिता, बंधु च सखा है!
[: यज्ञ वैदिक धर्म कर्मकाण्ड का महत्वपूर्ण अङ्ग है। यज्ञ को श्रेष्ठ कर्म कहा गया है। अग्निहोत्र करना प्रत्येक गृहस्थ का कर्तव्य है। हमारा यज्ञ उचित रीति से हो तथा उसका यथोचित लाभ हमें प्राप्त हो उसके लिए आवश्यक है कि यज्ञ करना विद्वान व्यक्ति से सीख कर करें अन्यथा इसके निष्पादन में हुई त्रुटि से लाभ के स्थान पर हानि प्राप्त होती है। यज्ञ, होम या अग्निहोत्र करने के लिए उचित आकार के हवन कुंड की आवश्यकता प्रथम है। हवन कुंड के साथ हमें विभिन्न पात्रों की आवश्यकता भी होती है।
यहाँ हवन कुंड के पात्र के आकार के विषय में भी विचार करना आवश्यक होता है जो प्रायः उपेक्षित रह जाता है। हवन कुंड का उपयुक्त आकार न होने पर हवन भली प्रकार होना संभव नहीं। स्वामी दयानन्द जी हवन पात्र के विषय में कहते हैं कि किसी धातु या मिट्टी की ऊपर 12 वा 16 अंगुल चौकोर उतना ही गहिरा और नीचे 3 वा 4 अंगुल परिमाण से वेदी इस प्रकार बनावें अर्थात् ऊपर जितनी चौड़ी हो उसकी चतुर्थांश नीचे चौड़ी रहे।
हमने प्रयास किया है कि एक उचित आकार का हवन कुंड जो गृहस्थों के प्रतिदिन होम करने के लिए उपयुक्त हो तथा साथ ही आवश्यक सभी पात्र एक साथ उपलब्ध कराए जावें जिससे जो व्यक्ति कई दिनों से घर पर हवन करने का विचार मन में लिए बैठे थे उन्हें बस एक स्थान से सभी वस्तुएँ एक साथ मँगवाने की आवश्यकता ही शेष रह जावे।
हवन पद्धति को भली-भाँति समझने के लिए एक हवन चलचित्र की सीडी भी संलग्न है। लघु रूपेण हवन पद्धति समझने के लिए हवन पत्रक का समावेश किया गया है तथा पूर्ण विधि जानने के लिए एक यज्ञ पुस्तक भी साथ दी गयी है।
इसे मँगवाने पर आपको निम्नलिखित वस्तुओं का समुच्चय आपको प्राप्त होगा।

https://www.vedrishi.com/book/hawan-kund/

​चम्मच (श्रुवा)
. आचमन पात्र
सामग्री पात्र
हवन कुंड
दीपक
​​यज्ञ पुस्तक.

ओ३म्🚩🚩🚩🙏🏻🙏🏻

क्या पशुओं को नहीं खाने से उनकी जनसंख्या बहुत बढ़ सकती है और मनुष्य का जीना मुश्किल हो सकता है ???
उत्तर :सृष्टि में जो व्यवस्था है उसको देखने से स्पष्ट है कि वह व्यवस्था स्वत: ना बनकर किसी सर्वज्ञ -चेतन शक्ति द्वारा रचित है । सर्वज्ञ उसे कहते है जिस को सब कुछ ज्ञात हो और ऐसा सिर्फ परमेश्वर है।जो अल्पज्ञ है अर्थात जिसका ज्ञान कम है जैसे कि मनुष्य ,और ज्ञान भी जिसका सदा घटता बढ़ता रहता है ,उसके काम में भूल चूक हो जाने से उसमें संशोधन परिवर्तन होता रहता है ,परन्तु जिसे असंख्य बार सृष्टि को बनाने और बिगाड़ने का अनुभव हो वह सब पदार्थो ,जीव -जंतुओं ,पशु- पक्षियों (,जानवरो) का ठीक ठीक संतुलन बनाए रखता है ।ईश्वर ही ठीक ठीक विधान , संयोजन तथा नियमन करता है अर्थात नियम में (ही) सब पदार्थो और पशु पक्षियों की संख्या को रखता है ।परमेश्वर के पूर्ण तथा भ्रांति रहित होने से उसके सभी कार्य निर्दोष हैं।इसलिए सृष्टि में मौजूद प्रत्येक जीव -जंतुओं ,पशु -पक्षियों का कोई ना कोई प्रयोजन और जरूरत जरूर है।प्रकृति में संतुलन बनाए रखना ईश्वर का काम है ,हमारा नहीं है ।अर्थात प्रकृति में मौजूद सभी जीवो और पशु पक्षियों की जनसंख्या में संतुलन लाना परम पिता परमेश्वर का काम है ,हमारा बिल्कुल भी नहीं।जिसने पशुओं को पैदा किया है और अब भी कर रहा है ,उनकी संख्या को नियंत्रित करना भी उसी का का काम है ।एक बात तो निश्चित है कि पशुओं के बिना मनुष्य एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकता।मानव का अस्तित्व ही पशु पक्षियों के बिना एक पल में समाप्त हो सकता है।परन्तु मनुष्य के बिना पशु पाखी रह सकता है।इसलिए सृष्टि क्रम में पहले पशु को ईश्वर ने बनाया , तत पश्चात मनुष्य को बनाया।यह भी प्रत्यक्ष आंखो से दिखाई पड़ता है कि अन्यथा प्रयास करने के बावजूद भी संसार भर में स्त्री -पुरुषों की संख्या लगभग बराबर रहती हैं,क्युकी जाने अंजाने हमारी जनसंख्या प्रकृति और परमेश्वर के द्वारा नियंत्रित और संचालित है।ऋषि दयानन्द सरस्वती जी ने ठीक ही कहा है कि मनुष्य और गिद्ध,कुत्ते, शेर, चीता आदि पशु पक्षियों का मांस कोई नहीं खाता तब भी उनकी संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि नहीं होती हैं ।इसलिए पशुओं की संख्या यथा गाय , भैंस ,बकरी ,मुर्गी आदि की संख्या में वृद्धि के भय से मांसाहार को उचित या आवश्यक नहीं ठहराया जा सकता।
जब मनुष्य को जीने का अधिकार है तब उसके साथ पालतू पशुओं प्राणियों और पक्षियों को भी जीने का अधिकार क्यों नहीं है???क्या हमने इस समस्या पर मानवीय दृष्टि से विचार किया है कि किसी के प्राण लेना किसी व्यक्ति का मूल अधिकार कैसे हो सकता है ??किसी उपकारी पशु के मांस को खाना किसी मनुष्य के लिए उसका व्यक्तिगत अधिकार और पसंद कैसे हो सकता है भला ???यदि पशुओं का कोई उच्चतम न्यायालय होता और वे अपना मामला उसके सामने रखते तो क्या वह समानता के नाम पर पशुओं को भी मनुष्यो को मारने का अधिकार ना दे देता ???या ऋषि दयानन्द सरस्वती जी के शब्दों में ,उन्हें फांसी पर चढ़ाने का हुक्म ना सुना देता???भारत की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं ने हमे प्रेम ,करुणा, मानवता और अहिंसा का संदेश दिया है ।हमे हमारी वैदिक धर्म की शिक्षा ने सभी जीवो पशुओं और पक्षियों को प्रेम करने को सिखाया है।भारत की प्राचीन संस्कृति ने हमें सब जीवो और पशु पक्षियों के प्रति करुणा,दया और अहिंसा की विरासत दी है,ना कि क्रूरता ,हिंसा और पशु पक्षियों के विनाश की।क्या हमने कभी यह सोचा की हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे संविधान में प्रदत्त पशुओं और पक्षियों को मारने के मूल अधिकार का कितना गलत उपयोग करेगी??? क्या उसमे हिंसा और क्रूरता के जो संस्कार पनपेंगे वे पूरी मानवता के लिए अभिशाप सिद्ध नहीं होंगे??क्या इससे युद्ध संस्कृति को बढ़ावा मिलकर कालांतर में हम विश्व को सर्वनाश की ऐसी दयनीय स्तिथि में नहीं पहुंचा देगे जहां से लौटने के लिए फिर हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं रहेगा ???और तब तक इतनी देर हो चुकी होगी कि मनुष्य फिर अपने ही बनाए दुष्चक्र से बाहर नहीं आ पाएगा। मै यह बता देना चाहता हूं कि पशुओं पक्षियों को भी जीने का उतना ही अधिकार है जितना कि मनुष्य को।जब हम किसी को प्राण दे नहीं सकते ,तो हमे किसी की जान लेने का भी कोई हक नहीं है।मेरी राय में गौ हत्या और नर हत्या में कोई भेद नहीं है ।जैसा खाए अन्न , वैसा होवे मन।मांस क्रूरता से प्राप्त होता है ।इसलिए मांसाहारी मनुष्य भी क्रूर बन जाता है।उसमे दया आदि उत्तम गुण नहीं होते।क्युकी भोजन और मन का गहरा संबंध है।हम जैसा भोजन करते हैं ।हमारा मन भी वैसा ही बनता चला जाता है।
ओ३म्
🌹नीम पत्ते का औषधीय प्रयोग

🌻स्वप्न दोष: 10 मि:ली नीम पत्तों का रस यानी अर्क में 2 ग्राम रसायन चूर्ण मिला लें और पी लें ।

🌻रक्त शुद्धि गर्मी शमन हेतु: सुबह खाली पेट 15-20 नीम पत्तों का रस सेवन करें।

🌻नीम तेल : चर्म रोग व पुराने घाव में नीम का तेल लगाएं व इसकी 5-10 बूंद गुनगुने पानी से दिन में 2 बार लें।

🌻गठिया व सिरदर्द में : प्रभावित अंगों पर नीम तेल की मालिश करें ।

🌻जलने पर: आग से जलने से हुए घाव पर नीम तेल लगाने से धाव शीघ्र भर जाता है ।

https://t.me/AshramSwasthyaSeva

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🌹 (Chickenpox)के कारण लक्षण घरेलू उपचार

🌹रोग के परिचय

🌻चिकनपॉक्स के रोग में बुखार के बाद शरीर पर लाल दाने निकलते हैं। ये दाने 2 से 3 दिन के बाद फफोले का रूप ले लेते हैं। 4 से 5 दिन में इन दानों में से पपड़ी जमकर नीचे गिरने लगती है। चेचक में बुखार और प्रदाह (जलन) के कारण रोगी को काफी बैचेनी होती है। इस रोग को ठीक होने में कम से कम 7 से 10 दिन तक लग जाते हैं।

🌹चिकनपॉक्स रोग के कारण

🌻चिकनपॉक्‍स एक वायरल इंफेक्‍शन है। यह रोग हवा के माध्यम से या एक संक्रमित व्यक्ति के छाले से लार, बलगम या तरल पदार्थ के संपर्क में आने से फैल सकता है।

🌹चिकनपॉक्स के लक्षण

🌻शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यह बुखार 104 डिग्री फारेनहाइट हो जाता है। रोगी को बेचैनी होने लगती है। उसे बहुत ज्यादा प्यास लगती है और पूरे शरीर में दर्द होने लगता है। दिल की धड़कन तेज हो जाती है और साथ में जुकाम भी हो जाता है। 2-3 दिन के बाद बुखार तेज होने लगता है। शरीर पर लाल-लाल दाने निकलने लगते हैं। दानों में पानी जैसी मवाद पैदा हो जाती है और 7 दिनों में दाने पकने लगते हैं (साबधान उसे नाखून से फोड़े नही इसे बीमार फैलता है ) जोकि धीरे-धीरे सूख जाते हैं। दानों पर खुरण्ड (पपड़ी) सी जम जाती है। कुछ दिनों के बाद खुरण्ड (पपड़ी) तो निकल जाती है लेकिन उसके निशान रह जाते हैं।

🌹भोजन और परहेज :

🌻छोटे बच्चों को चेचक(chicken pox)होने पर दूध, मूंग की दाल, रोटी और हरी सब्जियां तथा मौसमी फल खिलाने चाहिए या उनका जूस पिलाना चाहिए।

🌻चेचक के रोग से ग्रस्त रोगी के घर वालों को खाना बनाते समय सब्जी में छोंका नहीं लगाना चाहिए।

🌻रोगी को तली हुई चीजें, मिर्चमसाले वाला भोजन और ज्यादा ठंड़ी या ज्यादा गर्म चीजें नहीं देनी चाहिए।

दरवाजे पर नीम के पत्तों की टहनी लटका देनी चाहिए।

🌻चिकन पाक्स होने पर बाहर और भीड वाली जगह पर जाने से परहेज करें। हो सके तो इस दौरान लोगों से दूर रहें।

🌹आयुर्वेदिक उपचार

🌻नीम की पत्तियों को पानी में उबाल उस पानी से नहाने से चर्म रोग दूर होते हैं और ये खासतौर से चेचक के उपचार में सहायक होता है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक होता है।

🌻एक मुट्ठी नीम की पत्तियां लेकर उनका पेस्‍ट बना लें। नीम के पानी से नहाने के बाद चिकनपॉक्‍स वाले हिस्‍से पर इस पेस्ट को लगा लें। हालांकि इससे त्वचा में खुजली हो सकती है, लेकिन त्वचा के इलाज के लिए बहुत अच्छा उपाय है।

🌻नीम के तेल में आक के पत्तों का रस मिलाकर चेचक के दानों पर लगाने से लाभ होता है।

🌹चेचक के रोगी का बिस्तर बिल्कुल साफ-सुथरा रखें और उसके बिस्तर पर नीम की पत्तियां रख दें। फिर नीम के मुलायम पत्तों को पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इस 1-1 गोली को सुबह और शाम दूध के साथ रोगी को खिलायें। गर्मी का मौसम हो तो नीम की टहनी से हवा करने से चेचक के दानों में मौजूद जीवाणु जल्द ही समाप्त हो जाते हैं। तवे पर मुनक्का को भूनकर रोगी को खिलाना चाहिए।

🌻नीम के 7 से 8 मुलायम पत्तों (कोपले) और 7 कालीमिर्च को 1 महीने तक लगातार सुबह खाली पेट खाने से चेचक जैसा भयंकर रोग 1 साल तक नहीं होता।

🌻यदि चेचक के रोगी को अधिक प्यास लगती हो तो 1 किलो पानी में 10 ग्राम कोमल पत्तियों को उबालकर जब आधा पानी शेष रह जायें, तब इसे छानकर रोगी को पिला दें। इस पानी को पीने से प्यास के साथ-साथ चेचक के दाने भी सूख जाते हैं।

🌹5 नीम की कोंपल (नई पत्तियां) 2 कालीमिर्च और थोड़ी सी मिश्री लेकर सुबह-सुबह चबाने से या पीसकर पानी के साथ खाने से चेचक के रोग में लाभ होता है।

🌹जब चेचक फैल रही हो तो उस समय प्रतिदिन सुबह तुलसी के पत्तों का रस पीने से चेचक के संक्रमण से सुरक्षा बनी रहती है।

🌻सुबह के समय रोगी को तुलसी के पत्तों का आधा चम्मच रस पिलाने से चेचक के रोग में लाभ होता है।

🌻बुखार को कम करने के लिये तुलसी के बीज और धुली हुई अजवाइन को पीसकर रोगी को पानी के साथ दें।

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🔴 ।।नवमांश कुंडली ।। 🔴

जब नवमांश मे मंगल और शुक्र की युति हो, तो स्त्री कन्या को जन्म देने वाली, स्वयं मृग नेत्री, अभिसारिक (प्रेमी से निश्चित स्थान पर मिलने वाली) काम से व्याकुल होकर दूसरे के घर जाने वाली होती है।

जब नवांश मे मंगल और शनि का राशि परिवर्तन योग हो या मंगल शनि पापग्रह से युक्त हो या दृष्ट हो, तो ऐसी स्त्री कन्या संतति प्रधान (अधिक पुत्रिया) होती है, ऐसी स्त्री विवाहेतर प्रेम सम्बन्ध रखती है और कोई-कोई स्त्री निज पति को त्याग देती है।

नवांश मे सप्तम भाव मे 1, 8 मंगल की राशि होने पर पति उग्र, दुराचारी; 2, 7 शुक्र की राशि होने पर पति निष्ठावान, भाग्यशाली; 3, 6 बुध की राशि होने पर पति बुद्धिमान, सुदक्ष, चतुर; 9, 12 गुरु की राशि होने पर पति गुणवान, पवित्र, साहसी; 10, 11 शनि की राशि होने पर पति मुर्ख, प्रौढ़ या वृद्ध, 4 चंद्र की राशि होने पर पति सौम्य, कामुक; 5 सूर्य की राशि होने पर पति परिश्रमी दयालु होता है।

यदि नवांश के सप्तम भाव से मगल व शुक्र का राशि परिवर्तन हो, तो महिला के विवाहेतर प्रणय सम्बन्ध होते है। यदि इस योग मे सप्तम मे चंद्र हो, तो अवैध सम्बन्ध पति की सहमति से होते है। यदि नवांश के सप्तम भाव मे शुभ ग्रह (चं, बु, गु, शु) की राशि हो, तो स्त्री भाग्यशाली, पति का प्यार पाने वाली, संततिवान होती है।

नवांश मे चंद्र शुक्र की युति हो, तो महिला सुखी, ईर्ष्यालु; चन्द्र बुध की युति हो, तो महिला, गुणी, सम्पन्न, सुखी, निपुण; शुक्र बुध की युति हो तो, महिला कलात्मक, पति प्रिय, आकर्षक; चंद्र, शुक्र, बुध की युति हो, तो महिला धनी, प्रतिभासम्पन्न, सुखी होती है।

यदि नवांश का अष्टम भाव पापयुक्त हो, तो वैधव्य हो सकता है, यदि ऐसा ही योग जन्मांग मे भी हो, तो सम्भावना प्रबल होती है, ऐसा अष्टमेश की दशा या भुक्ति मे हो सकता है। यदि अष्टमेश द्वितीय भाव मे हो और द्वितीयेश मे अष्टमेश की भुक्ति पहले आय तो महिला की मृत्यु पति से पहले यानि सधवा (सुहागन) ही होती है।

यदि नवांश लग्न मे वृष, सिंह, वृश्चिक राशि हो, तो संतान कम होती है। यदि नवांश का सप्तम भाव पापग्रह से युत या दृष्ट हो, तो वैधव्य होता है। किन्तु नवांश का सप्तम भाव शुभ अशुभ दोनो प्रकार के ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, तो पुनर्विवाह होता है। यदि नवांश के सप्तम भाव मे पापग्रह शुभग्रह से दृष्ट या शुभक्षेत्री हो, तो पति से दूर या अलगाव या तलाक होता है।

यदि नवांश लग्नेश केंद्र 1, 4, 7, 10 मे हो, तो विवाह शीघ्र (16 से 18 वर्ष), त्रिकोण 5, 9 में हो, तो सामान्य (18 से 24 वर्ष) दुःस्थान 6, 8, 12 मे पापग्रह से युत या दृष्ट हो, तो विवाह विलम्ब (24 से 30 वर्ष) से होता है। यदि नवांश लग्न पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो तथा जन्म कुंडली का सप्तमेश नवांश मे पापग्रहो से पीड़ित अथवा बलहीन हो, तो विवाह नहीं होता है।

ब्रह्मांड-मानव शरीर और ज्योतिष

मानव शरीर और ब्रह्मांड की समानता पर पुराणों तथा धर्मग्रंथों में व्यापक विचार हुआ है। जो ब्रह्मांड में है, वह मानव शरीर में भी है। ब्रह्मांड को समझने का श्रेष्ठ साधन मानव शरीर ही है। समाज वैज्ञानिकों ने भी सावययी-सादृश्यता के सिद्धांत को इसी आधार पर निर्मित किया है। मानव शरीर व संपूर्ण समाज को एक-दूसरे का प्रतिबिंब माना है।

शरीर व समाज की समानता को ‘सावययी-सादृश्यता’ का नाम दिया है। सौरमंडल को ज्योतिष भली-भाँति जानता है। इसी सौरमंडल में व्याप्त पंचतत्वों को प्रकृति ने मानव निर्माण हेतु पृथ्वी को प्रदान किए हैं। मानव शरीर जल, अग्नि, पृथ्वी, वायु तथा आकाश तत्व से निर्मित हुआ है। ज्योतिष ने सौरमंडल के ग्रहों, राशियों तथा नक्षत्रों में इन तत्वों का साक्षात्कार कर अपने प्राकृतिक सिद्धांतों का निर्माण किया है।

ज्योतिष का फलित भाग इन ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों के मानव शरीर पर प्रभाव का अध्ययन करता है। जो पंचतत्व इन ग्रह-नक्षत्रों व राशियों में हैं, वे ही मानव शरीर में भी हैं, तो निश्चित ही इनका मानव शरीर पर गहरा प्रभाव है। भारतीय ज्योतिष ने सात ग्रहों को प्राथमिकता दी है- रवि, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि। राहु एवं केतु ‘छाया ग्रह’ हैं। पाश्चात्य ज्योतिष जगत में यूरेनस, नेपच्यून तथा प्लूटो का भी महत्व है।

ज्योतिष ने पंचतत्वों में प्रधानता के आधार पर ग्रहों में इन तत्वों को अनुभव किया है- रवि तथा मंगल अग्नि तत्व के ग्रह हैं। अग्नि तत्व शरीर की ऊर्जा तथा जीने की शक्ति का कारक है। अग्नि तत्व की कमी शरीर के विकास को अवरुद्ध कर रोगों से लड़ने की शक्ति कम करती है। शुक्र व चंद्रमा जल तत्व के कारक हैं। शरीर में व्याप्त जल पर चंद्रमा का आधिपत्य है। शरीर में स्थित ‘जल’ शरीर का पोषण करता है। जल तत्व की कमी आलस्य व तनाव उत्पन्न कर शरीर की संचार व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डालती है। जल व मन दोनों चंचल हैं, इसलिए चंद्रमा को मन का कारक तत्व प्रदान किया है। शुक्राणु जल में ही जीवित रहते हैं, जो सृष्टि के विकास व निर्माण में महत्वपूर्ण हैं। ‘शुक्र’ कामजीवन का कारक है। यही कारण है कि शुक्र के अस्त होने पर विवाह के मुहूर्त नहीं निकलते हैं।

बृहस्पति एवं राहू आकाश तत्व से संबंध रखते हैं। ये व्यक्ति के पर्यावरण तथा आध्यात्मिक जीवन से सीधा संबंध रखते हैं। बुध ‘पृथ्वी-तत्व’ का कारक है। यह बुद्धि क्षमता तथा निर्णय लेने की शक्ति शरीर को देता है। इस तत्व की कमी बुद्धिमत्ता तथा निर्णय क्षमता पर विपरीत असर डालती है। शनि वायु तत्व का कारक है। शरीर में व्याप्त वायु पर इसका आधिपत्य है। केतु को मंगलवत माना जाता है।

मानव जीवन में कुछ गुण मूल प्रकृति के रूप में मौजूद होते हैं। प्रत्येक मनुष्य में प्राकृतिक रूप से आत्मा, मन, बल, वाणी, ज्ञान, काम तथा दुःख विद्यमान होते हैं। यह ग्रहों पर निर्भर करता है कि मानव जीवन में इनकी मात्रा कितनी है, विशेष रूप से प्रथम दो तत्वों को छोड़कर, क्योंकि आत्मा से ही शरीर है, यह रवि का अधिकार क्षेत्र है। मन चंद्रमा का है। मंगल- बल, वाणी- बुध, ज्ञान- बृहस्पति, काम- शुक्र तथा दुःख पर शनि का आधिपत्य है।

आधुनिक मनोविज्ञान मानव की चार मूल प्रवृत्तियाँ मानता है- भय, भूख, यौन व सुरक्षा। भय पर शनि व केतु का आधिपत्य है। भूख पर रवि एवं बृहस्पति, यौन पर शुक्र तथा सुरक्षा पर चंद्र, मंगल तथा बुध का आधिपत्य है। मानव शरीर के विभिन्ना धातु तत्वों का भी ब्रह्मांड के ग्रहों से सीधा संबंध है। शरीर की हड्डियों पर रवि, खून पर चंद्रमा, शरीर के मांस पर मंगल, त्वचा पर बुध, चर्बी पर बृहस्पति, वीर्य पर शुक्र तथा स्नायुमंडल शनि से संबंध रखता है।

राहू एवं केतु चेतना से संबंधित हैं। शरीर आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोष से पीड़ित हो सकता है, जो विभिन्ना रोगों के रूप में प्रकट होता है- वात, पित्त एवं कफ। रवि, मंगल- पित्त, चंद्रमा- कफ, शनि- वायु, बुध- त्रिदोष, शुक्र- कफ एवं वात तथा बृहस्पति- कफ और पित्त का अधिपति है। शरीर की आंतरिक स्वास्थ्य रचना इन प्रवृत्तियों तथा ग्रहों के उचित तालमेल पर ही निर्भर है।

आध्यात्मिक व सामाजिक जीवन के मान से सत्व, रज तथा तमो गुण मानव के मौलिक गुण माने गए हैं। बृहस्पति, रवि, चंद्रमा तथा नेपच्यून सतोगुण, शुक्र, बुध तथा प्लूटो रजोगुण तथा शेष तमोगुण के प्रतिनिधि हैं। जहाँ तक राशियों का प्रश्न है मेष, सिंह व धनु अग्नि तत्व, वृषभ, कन्या व मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला व कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक व मीन जल तत्व की राशियाँ हैं। आकाश तत्व इन सभी में 12 प्रतिशत प्राप्त होता है।

नक्षत्रों का भी तत्व के आधार पर विभाजन भारतीय ज्योतिष में किया है- अश्विनी, मृगसर, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा वायु तत्व के नक्षत्र हैं। भरणी, कृत्तिका, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, पूर्वाषाढ़ा तथा दोनों भाद्रपद अग्नि तत्व के नक्षत्र हैं। रोहिणी, अनुराधा, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा पृथ्वी तत्व के तथा शेष जल तत्व के नक्षत्र हैं। आकाश तत्व इन सभी नक्षत्रों में 12 प्रतिशत प्राप्त होता है।

अध्यात्म ज्योतिष जीवात्मा तथा परमात्मा के एकाकार होने को ‘मोक्ष’ कहता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए ब्रह्मांड तथा शरीर के आंतरिक व बाह्य रहस्यों को समझना आवश्यक है। मानव शरीर ब्रह्मांड के पंचतत्वों से निर्मित होता है और इन्हीं तत्वों में विलीन हो जाता है। ग्रहों, राशियों व नक्षत्रों के तत्वों का ज्ञान, इसका प्रभाव मानव के अंतिम लक्ष्य मोक्ष का मार्गदर्शन करता है। भौतिक जगत में परमात्मा मानव जीवन देकर मोक्ष का अवसर प्रदान करता है। यहाँ ग्रह-नक्षत्रों का सकारात्मक प्रभाव सहयोग देता है, नकारात्मक प्रभाव व्यवधान उत्पन्ना करते हैं। शनि एवं केतु मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा जाता है। यह प्रतीकात्मक है। नेत्र व्यक्ति को अच्छा व बुरा देखने तथा समझने का शक्तिशाली माध्यम है। आंतरिक व बाह्य रहस्यों को देखने में नेत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण है। प्राचीन ज्योतिष के सभी सिद्धांत योगियों व ऋषियों ने सिर्फ नेत्र से देखकर तथा योगमार्ग से अनुभव करके बनाए हैं, बिना कोई वैज्ञानिक यंत्रों की सहायता से। यह अपने आप में आंतरिक व बाह्य रहस्यों में ज्योतिष के महत्व को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है।

रवि व चंद्रमा साक्षी हैं अतः ज्योतिष के विज्ञान या सत्य होने में कोई संदेह नहीं है, कहा है- प्रत्यक्षं ज्योतिषंशास्त्रंचंद्राको यत्र साक्षिणो।

आधुनिक वैज्ञानिक चिंतनप्रधान तथा तार्किक ज्योतिष को आडम्बर व भाग्यवादियों की विद्या कह उपहास करते हैं। उनसे इतना ही निवेदन है कि- ‘लोग खुद आते हैं बिगड़े हुए चेहरे लेकर, आईना किससे ये कहता है कि देखो मुझको।’
[सामुद्रिक शास्त्र में शरीर के विभिन्न अंगों पर पाए जाने वाले तिल

१- ललाट पर तिल – ललाट के मध्य भाग में तिल निर्मल प्रेम की निशानी है। ललाट के दाहिने तरफ का तिल किसी विषय विशेष में निपुणता, किंतु बायीं तरफ का तिल फिजूलखर्ची का प्रतीक होता है। ललाट या माथे के तिल के संबंध में एक मत यह भी है कि दायीं ओर का तिल धन वृद्धिकारक और बायीं तरफ का तिल घोर निराशापूर्ण जीवन का सूचक होता है।

२- भौंहों पर तिल – यदि दोनों भौहों पर तिल हो तो जातक अकसर यात्रा करता रहता है। दाहिनी पर तिल सुखमय और बायीं पर तिल दुखमय दांपत्य जीवन का संकेत देता है।

३- आंख की पुतली पर तिल – दायीं पुतली पर तिल हो तो व्यक्ति के विचार उच्च होते हैं। बायीं पुतली पर तिल वालों के विचार कुत्सित होते हैं। पुतली पर तिल वाले लोग सामान्यत: भावुक होते हैं।

४- पलकों पर तिल – आंख की पलकों पर तिल हो तो जातक संवेदनशील होता है। दायीं पलक पर तिल वाले बायीं वालों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होते हैं।

५- आंख पर तिल – दायीं आंख पर तिल स्त्री से मेल होने का एवं बायीं आंख पर तिल स्त्री से अनबन होने का आभास देता है।

६- कान पर तिल – कान पर तिल व्यक्ति के अल्पायु होने का संकेत देता है।

७- नाक पर तिल – नाक पर तिल हो तो व्यक्ति प्रतिभासंपन्न और सुखी होता है। महिलाओं की नाक पर तिल उनके सौभाग्यशाली होने का सूचक है।

८- होंठ पर तिल – होंठ पर तिल वाले व्यक्ति बहुत प्रेमी हृदय होते हैं। यदि तिल होंठ के नीचे हो तो गरीबी छाई रहती है।

९- मुंह पर तिल – मुखमंडल के आसपास का तिल स्त्री तथा पुरुष दोनों के सुखी संपन्न एवं सज्जन होने के सूचक होते हैं। मुंह पर तिल व्यक्ति को भाग्य का धनी बनाता है। उसका जीवनसाथी सज्जन होता है।

१०- गाल पर तिल – गाल पर लाल तिल शुभ फल देता है। बाएं गाल पर कृष्ण वर्ण तिल व्यक्ति को निर्धन, किंतु दाएं गाल पर धनी बनाता है।

११- जबड़े पर तिल – जबड़े पर तिल हो तो स्वास्थ्य की अनुकूलता और प्रतिकूलता निरंतर बनी रहती है।
ठोड़ी पर तिल – जिस स्त्री की ठोड़ी पर तिल होता है, उसमें मिलनसारिता की कमी होती है।

१२- कंधों पर तिल – दाएं कंधे पर तिल का होना दृढ़ता तथा बाएं कंधे पर तिल का होना तुनकमिजाजी का सूचक होता है।

१३- दाहिनी भुजा पर तिल – ऐसे तिल वाला जातक प्रतिष्ठित व बुद्धिमान होता है। लोग उसका आदर करते हैं।

१४- बायीं भुजा पर तिल – बायीं भुजा पर तिल हो तो व्यक्ति झगड़ालू होता है। उसका सर्वत्र निरादर होता है। उसकी बुद्धि कुत्सित होती है।

१५- कोहनी पर तिल – कोहनी पर तिल का पाया जाना विद्वता का सूचक है।

१६- हाथों पर तिल – जिसके हाथों पर तिल होते हैं वह चालाक होता है। गुरु क्षेत्र में तिल हो तो सन्मार्गी होता है। दायीं हथेली पर तिल हो तो बलवान और दायीं हथेली के पृष्ठ भाग में हो तो धनवान होता है। बायीं हथेली पर तिल हो तो जातक खर्चीला तथा बायीं हथेली के पृष्ठ भाग पर तिल हो तो कंजूस होता है।

१७- अंगूठे पर तिल – अंगूठे पर तिल हो तो व्यक्ति कार्यकुशल, व्यवहार कुशल तथा न्यायप्रिय होता है।

१८- तर्जनी पर तिल – जिसकी तर्जनी पर तिल हो, वह विद्यावान, गुणवान और धनवान किंतु शत्रुओं से पीड़ित होता है।

१९- मध्यमा पर तिल – मध्यमा पर तिल उत्तम फलदायी होता है। व्यक्ति सुखी होता है। उसका जीवन शांतिपूर्ण होता है।

२०- अनामिका पर तिल – जिसकी अनामिका पर तिल हो तो वह ज्ञानी, यशस्वी, धनी और पराक्रमी होता है।
कनिष्ठा पर तिल – कनिष्ठा पर तिल हो तो वह व्यक्ति संपत्तिवान होता है, किंतु उसका जीवन दुखमय होता है।

२१- जिसकी हथेली में तिल मुठ्ठी में बंद होता है वह बहुत भाग्यशाली होता है लेकिन यह सिर्फ एक भ्रांति है। हथेली में होने वाला हर तिल शुभ नहीं होता कुछ अशुभ फल देने वाले भी होते हैं।

२२- सूर्य पर्वत मतलब रिंग फिंगर के नीचे के क्षेत्र पर तिल हो तो व्यक्ति समाज में कलंकित होता है। किसी की गवाही की जमानत उल्टी अपने पर नुकसान देती है। नौकरी में पद से हटाया जाना और व्यापार में घाटा होता है। मान- सम्मान पर प्रभावित होता है और नेत्र संबंधित रोग तंग करते हैं।

२३- बुध पर्वत यानी लिटिल फिंगर के नीचे के क्षेत्र पर तिल हो तो व्यक्ति को व्यापार में हानि उठानी पड़ती है। ऐसा व्यक्ति हिसाब-किताब व गणित में धोखा खाता है और दिमागी रूप से कमजोर होता है।

२४- लिटिल फिंगर के नीचे वाला क्षेत्र जो हथेली के अंतिम छोर पर यानी मणिबंध से ऊपर का क्षेत्र जो चंद्र क्षेत्र कहलाता है, इस क्षेत्र पर यदि तिल हो तो ऐसे व्यक्ति के विवाह में देरी होती है। प्रेम में लगातार असफलता मिलती है। माता का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है।

२५- गले पर तिल – गले पर तिल वाला जातक आरामतलब होता है। गले पर सामने की ओर तिल हो तो जातक के घर मित्रों का जमावड़ा लगा रहता है। मित्र सच्चे होते हैं। गले के पृष्ठ भाग पर तिल होने पर जातक कर्मठ होता है।

२६- छाती पर तिल – छाती पर दाहिनी ओर तिल का होना शुभ होता है। ऐसी स्त्री पूर्ण अनुरागिनी होती है। पुरुष भाग्यशाली होते हैं। शिथिलता छाई रहती है। छाती पर बायीं ओर तिल रहने से भार्या पक्ष की ओर से असहयोग की संभावना बनी रहती है। छाती के मध्य का तिल सुखी जीवन दर्शाता है। यदि किसी स्त्री के हृदय पर तिल हो तो वह सौभाग्यवती होती है।

२७- कमर पर तिल – यदि किसी व्यक्ति की कमर पर तिल होता है तो उस व्यक्ति की जिंदगी सदा परेशानियों से घिरी रहती है।

२८- पीठ पर तिल – पीठ पर तिल हो तो जातक भौतिकवादी, महत्वाकांक्षी एवं रोमांटिक हो सकता है। वह भ्रमणशील भी हो सकता है। ऐसे लोग धनोपार्जन भी खूब करते हैं और खर्च भी खुलकर करते हैं। वायु तत्व के होने के कारण ये धन संचय नहीं कर पाते।

२९- पेट पर तिल – पेट पर तिल हो तो व्यक्ति चटोरा होता है। ऐसा व्यक्ति भोजन का शौकीन व मिष्ठान्न प्रेमी होता है। उसे दूसरों को खिलाने की इच्छा कम रहती है।

३०- घुटनों पर तिल – दाहिने घुटने पर तिल होने से गृहस्थ जीवन सुखमय और बायें पर होने से दांपत्य जीवन दुखमय होता है।

३१- पैरों पर तिल – पैरों पर तिल हो तो जीवन में भटकाव रहता है। ऐसा व्यक्ति यात्राओं का शौकीन होता है। दाएं पैर पर तिल हो तो यात्राएं सोद्देश्य और बाएं पर हो तो निरुद्देश्य होती हैं।
समुद्र विज्ञान के अनुसार जिनके पांवों में तिल का चिन्ह होता है उन्हें अपने जीवन में अधिक यात्रा करनी पड़ती है। दाएं पांव की एड़ी अथवा अंगूठे पर तिल होने का एक शुभ फल यह माना जाता है कि व्यक्ति विदेश यात्रा करेगा। लेकिन तिल अगर बायें पांव में हो तो ऐसे व्यक्ति बिना उद्देश्य जहां-तहां भटकते रहते हैं।

त्रिषडाय व उपचय भाव।

कुंड‌‌ली में 12 भाव , 12 राशियां, 9 ग्रह व 27 नक्षत्र होते हैं । यह ज्योतिष की परिधि है । यह फलित ज्योतिष का आधार है। जब हम जन्म कुंडली की बात करते हैं तो सर्वप्रथम इन्ही विषयों पर पहले ध्यान केंद्रित करते हैं।

यह जन्म कुंडली हमारे वर्तमान जन्म के अतिरिक्त पूर्व जन्म के विषय में भी संकेत देती है तथा हमारे कर्मों के
अनुसार हमारे प्रारब्ध को भी बताती है । कहने का अर्थ है कि कुंडली का लग्न व लग्नेश हम स्वयं हैं इसलिये जब
भी किसी भाव/ भावेश से लग्न / लग्नेश का सम्बंध बन जाता है तो जातक स्वयं उस भाव/ भावेश से जुड जाता है।

जन्म कुंड्ली में कुछ भाव शुभ माने जाते हैं तथा कुछ भाव अशुभ माने जाते हैं । जैसे कुंडली का लग्न तथा बाकी तीनों केंद्र तथा त्रिकोण भाव व लाभ भाव शुभ माने जाते है तथा इनके भावेश भी अत्यंत शुभ माने जाते हैं ।

इसके विपरीत कुंडली के त्रिषडाय भाव , उपचय भाव तथा त्रिक भाव अशुभ माने जाते हैं । परंतु क्या यह सच में अशुभ भाव हैं ? क्या यह भाव और सम्बंधित भावेश जातक को अशुभ फल ही देते हैं ?

हम बात करते हैं त्रिषडाय भाव की…….

कुंडली में त्रिषडाय भाव कौन –कौन से हैं ?

जन्म कुंडली का तृतीय भाव, छटा भाव तथा एकादश भाव त्रिषडाय भाव होते हैं ।

तृतीय भाव से हम छोटे भाई – बहन , शौक , संचार , लेखन कार्य , छोटी यात्रायें , पराक्रम आदि देखते हैं । इससे दायां कंधा, बाजु , नौकर भी देखे जाते हैं । तृतीये भाव का कारक ग्रह मंगल है ।

षष्टम भाव रोग ,शत्रु तथा ऋण का भाव है । इस भाव से हम कोर्ट – कचहरी , लडाई –झगडा , लोन ,हिंसा , चोर, संघर्ष, प्रतियोगिता , नौकर – चाकर ,ईर्ष्या , कमर से नीचे बस्ति, मामा ,मौसी आदि देखते हैं । षष्टम भाव के कारक ग्रह शनि और मंगल हैं ।

इसी प्रकार एकादश भाव लाभ भाव होता है । इसी भाव से जातक को प्राप्ती होती है चाहे वह लाभ की प्राप्ती हो या ज्येष्ठ भ्राता , मनोकामना पूर्ति , मान- सम्मान की प्राप्ती , बायां कंधा, बायां कान, मित्रता , अपने बच्चों के
जीवन साथी , सुख – समृधि आदि इसी भाव से विचार किये जाते हैं । एकादश भाव में स्थित सभी ग्रह जातक
को लाभ देते हैं । यहां तक के इस भाव में वक्री ग्रह भी शुभ फल देते हैं । गुरु इस भाव के लिये कारक ग्रह है ।

त्रिषडाय भाव का प्रथम त्रिषडाय भाव तृतीय भाव है ।यह प्रथम काम भाव भी है । काम अर्थात इच्छा पूर्ति की
चेष्टा तथा इसका कारक मंगल जैसा कि बताया जा चुका है । तृतीय भाव का सम्बंध जातक में प्राप्ती की चेष्टा
उत्पन्न करताहै । मंगल जातक में साहस देता है कि वह इस पथ पर आगे बढे । शायद इसी कारण से तृतीय भाव
का कारक ग्रह मंगल जैसा तीव्र तथा पापी ग्रह है तथा इसीलिय यह कहा जाता है कि तृतीय भाव में पापी ग्रह
स्थित हो तो जातक में ऊर्जा और साहस का संचार करते हैं।

षष्टम भाव अर्थ त्रिकोण का दूसरा त्रिकोण है । जहां प्रतिस्पर्धा भी है , लडाई –झगडा भी है, शत्रु भी है । कहने का अर्थ यह है कि षष्टम भाव तथा षष्ठेश भी धन से सम्बंध रखता है परंतु लडाई ‌झगडे से प्राप्त धन, लोन या ऋण से प्राप्त धन । शायद इसी कारण इसके कारक ग्रह मंगल अर्थात लडाई –झगडा व शनि अर्थात कोर्ट –
कचहरी है । यदि षष्टम भाव / षष्ठेश का सम्बंध दशम भाव / दशमेश से हो जाये तो जातक दूसरों के लडाई-
झगडे से फायदा उठाता है क्योकि छटा भाव दशम भाव से नवम है तथा दशम भाव छटे भाव से पंचम भाव है।

इसी प्रकार यदि तृतीय भाव / भावेश का सम्बन्ध छटे भाव से हो जाता है तो जातक की ऊर्जा , हिम्मत , पराक्रम, जातक की संघर्ष शक्ति , प्रतियोगिता क्षमता से साथ जुड जातीहै तो जातक अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत से काम लेता है। उसमें लक्ष्य तक पहुंचने की लगन होती है । जिसके लिये वह सदैव प्रयासरत रहता है ।

एकादश भाव काम त्रिकोण का अंतिम त्रिकोण भाव है । अत: इस भाव में इच्छायें हैं मनोकामनायें हैं। इस त्रिकोण
के साथ जिस भी त्रिकोण अर्थात धर्म ,अर्थ , काम या मोक्ष का सम्बंध बनता है उससे सम्बंधित लाभ , हानि,
इच्छापूर्ति होती है । इसलिये इस अंतिम काम त्रिकोण मे सभी ग्रह प्राप्ति तक पहुचाते हैं ।

त्रिषडाय भावों को शुभ नहीं माना जाता इसका कारण है ! शायद इसमें दो काम त्रिकोण भाव हैं तथा एक अर्थ
त्रिकोण भाव है । इन तीनों का सम्बंध जातक को लाभ प्राप्ति के लिये प्रेरित करता है ! फिर चाहे वो जैसे भी
प्राप्त हो । व्यक्ति में प्रतिस्पर्धा होती है ,दूसरों को पीछे छोड कर आगे पडने की प्रवृति होती है । उसके लिये वो
नैतिक अनैतिक कैसे भी कदम उठा सकता है। उसमें ऊर्जा होती है परंतु उसमें कर्म नहीं होता । जातक को बिना मेहनत के , चोरी से , दूसरों से लडाई – झगडे से, लोन से तथा ऋण आदि से लाभ की प्राप्ति होती है ।

त्रिषडाय भाव में यदि दशम भाव भी जोड दिया जाये तो यह उपचय भाव बन जाता है । दशम भाव जातक का कर्म स्थान होता है । इससे हम नौकरी / व्यवसाय, उच्च पद, अधिकार आदि देखते हैं । त्रिषडाय भाव में दशम भाव जुडने से अब यह उतना अशुभ नहीं रह जाता । इसमें जातक का पुरूषार्थ जुड गया । यदि किसी जातक की जन्म कुंड्ली में उपचय भावों अर्थात तृतीय भाव,षष्टम भाव , दशम भाव तथा एकादश भाव का सम्बंध आ जाता है तो ऐसा जातक “ फर्श से अर्श तक ” पहुंच जाता है । वह ना खुद आराम से बैठता है और ना ही किसी को बैठने देता है । जातक जब अपने संघर्ष में , प्रतिस्पर्धा मे अपने कर्मों को साहसपूर्ण व ऊर्जापूर्ण रूप से जोडता है तो उसको श्रेष्ठ की प्राप्ति होती है ।
🌻दूर्वा घास (दूब ) के प्रकार :

🌸1. हरी दूर्वा: यह दस्त, वमन (उल्टी), बुखार और रक्त (खून) के विभिन्न रोगों को शान्त करती है।
🌾2. नीली दूर्वा : नीली दूब वात, पित्त, बुखार, भ्रम, शंका, प्यास को मिटाती है और लोहे को गलाती है।
🌷3. सफेद दूर्वा : सफेद दूब रुचि को बढ़ाती है। यह कड़वी, शीतल, कषैली और मधुर होती है तथा कफ-पित्त, जलन और खांसी को नष्ट करती है। सफेद दूब फुंसी, रक्तविकार, कफ एवं जलन नाशक होती है।

🌺प्रकृति : दूब (घास) प्रकृति शीतल है।

🌺सेवन की मात्रा : दूब का रस 10-20 मिलीलीटर। काढ़ा 40-80 मिलीलीटर। पत्तियों का चूर्ण 1-3 ग्राम। जड़ का चूर्ण 3-6 ग्राम।

🌻दूर्वा घास (दूब )के औषधीय गुण : Durva ke Aushadhiya Gun

🍃★ दूर्वा कुष्ठ (कोढ़), मुंह के छाले, दांतों का दर्द, पित्त की गर्मी तथा हैजे के लिए लाभदायक है।
🍃★ इसका लेप लगाने से खुजली शान्त होती है।
★🍃 दूर्वा का लेप मस्तक पर लगाने से नकसीर ठीक होती है।
🍃★ आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के अनुसार दूर्वा रस में मधुर, तीखी, कषैली, छोटी, चिकनी, प्रकृति में शीतल तथा कफ-पित्त नाशक होती है।
🍃★ यह रक्तस्तम्भन, मूत्रवर्द्धक है तथा एण्टीसैप्टिक होने के कारण रक्तविकार, रक्तस्राव (खून का बहना), खांसी, वमन (उल्टी), अतिसार (दस्त), दाद, पेशाब में जलन, बुखार तथा रक्तप्रदर में गुणकारी है।
★🍃 यूनानी चिकित्सा प्रणाली के अनुसार दूर्वा की तासीर सर्द होती है।
★🍃 सफेद दूब में कामशक्ति घटाने के गुण के कारण साधु, संन्यासी इसको सेवन करते हैं। इससे वीर्य की कमी होती है।
🌾★ इसके सेवन से प्यास मिटती है, पेशाब खुलकर आता है, खुजली दूर होती है तथा मुंह के छाले ठीक होते हैं।

🌷विभिन्न रोगों के उपचार में दूर्वा घास (दूब )के फायदे : स्नेहा आयुर्वेद ग्रुप

🌾1) नाक से खून निकलना : नाक से खून निकले तो ताजी व हरी दूर्वा का रस 2-2 बूंद नाक के नथुनों में टपकाने से नाक से खून आना बंद हो जायेगा।

🌸2) मुंह के छाले : दूब के काढ़े से दिन में 3-4 बार गरारे करने से मुंह के छालों में लाभ पहुंचता है।

30 त्वचा के रोग: दूब के रस और सरसों के तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर गर्म करें जब पानी उड़ जाए तो इस तेल को चर्म विकारों (चमड़ी के रोगों) पर दिन में 2-3 बार लगाने से लाभ होता है।

🌼4) दाद, खाज-खुजली : हल्दी के साथ बराबर मात्रा में दूब पीसकर बने लेप को नियमित रूप से 3 बार लगाने से दाद, खाज-खुजली और फुंसियां ठीक हो जाती हैं।

🌸5) खूनी बवासीर:
• तालाब के नजदीक की हरी दूब को मिट्टी के बर्तन में थोड़े पानी के साथ आंच पर चढ़ाकर उबालने से खूनी बवासीर का दर्द शान्त होता है।
• दूब के पत्तों, तनों, टहनियां और जड़ों को दही में पीसकर मस्सों व गुदा में लगायें और सुबह-शाम 1 कप की मात्रा में सेवन करें। इससे खूनी बवासीर में लाभ मिलेगा।

🌼6) चोट से रक्तस्राव:
• चोट से खून निकलने पर दूब का लेप बनाकर लगाने से और पट्टी बांधने से रक्तस्राव (खून बहना) रुक जाता ह
• कटने या चोट लगने से यदि रक्तस्राव (खून बहना) हो तो दूब को कूटकर उसका रस निकालकर उसमें कपड़े को भिगोकर चोट पर उस कपड़े को बांधने से खून का बहना बंद हो जाता है।

,🌼7) मानसिक रोग: शरीर में ज्यादा गर्मी, जलन, महसूस होने पर दूब का रस सारे शरीर पर लगाने से मानसिक रोग के कष्ट में आराम मिलता है।

🌸8) सिर दर्द: जौ को 3 चम्मच दूब के रस में घोटकर सिर पर मलने से सिर दर्द दूर होता है।

🌸9) मलेरिया बुखार: मलेरिया के बुखार में दूध के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में 2-3 बार चटाने से, बारी से चढ़ने वाला मलेरिया बुखार में अत्यधिक लाभ मिलता है।

10🌷) कामशक्ति की कमी: सफेद दूर्वा वीर्य को कम करती है और कामशक्ति को घटाती है।

1🌺1) बच्चों के रोग: बड़ी-बड़ी शाखाओं वाली दूब जो अक्सर कुंओं पर होती है। उसे छानकर उसमें 2-3 ग्राम बारीक पिसे हुए नागकेशर और छोटी इलायची के दाने मिलाकर, सुबह सूरज उगने से पहले उस बच्चे को जिसका तालू बैठ गया हो उसकी नाक में डालकर सुंघाने से तालू ऊपर को चढ़ जाती है। इसके सेवन से ताकत बढ़ती है। बच्चे दूध निकालना बंद कर देते हैं तथा बच्चों का दुबलापन (कमजोरी) समाप्त हो जाती है।

12🌺) हिचकी: दूब का रस और 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से हिचकी आना बंद होती है।

1🍁3) पेशाब में जलन: 4 चम्मच दूब के रस को 1 कप दूध के साथ सेवन करने से पेशाब के जलन में लाभ मिलता है।

🍂14) पेशाब उतरने में कष्ट: 10 ग्राम दूब की जड़ को 1 कप दही में पीसकर सेवन करने से पेशाब करते समय का दर्द दूर हो जाता है।

15🍃) प्यास की अधिकता: हरी दूब का 2 चम्मच रस 3-4 बार सेवन करने से किसी भी रोग में प्यास दूर हो जाती है।

🍂16) पथरी: दूब को जड़ सहित उखाड़कर उसकी पत्तियों को तोड़कर अलग कर लेते हैं फिर इसे पीसकर, इसमें स्वादानुसार मिश्री डालकर, पानी के साथ छान लेते हैं। इसे 1 गिलास की मात्रा में रोजाना पीने से पथरी गल जाती है और पेशाब खुलकर आता है।

1🍁7) फोड़ा: पके फोड़े पर रोजाना दूब को पीसकर लेप करने से फोड़ा फूट जाता है।

🍂18) आंखों की जलन: ताजी दूब को बारीक पीसकर 2 चपटी गोलियां बना लेते हैं। इन गोलियों को आंखों की पलकों पर रखने से आंखों का जलन और दर्द समाप्त हो जाता है।

🌻19) आंख की रोशनी: सुबह के समय हरी दूब में नंगे पैर चलने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।

2🌼0) मूत्रकृच्छ: दूर्वा (Durva /Doob) की जड़ को पीसकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब मे जलन) का रोग नष्ट हो जाता है।

🍂21) मासिक धर्म की रुकावट: सफेद दूब और अनार की कली को रात को जले राख में भीगे चावलों के साथ पीसकर 1 सप्ताह तक सेवन करने से ऋतुस्राव (माहवारी) की रूकावट में लाभ मिलता है।

🌻22) सूजन: दूब के रस में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से विभिन्न सूजनों में लाभ मिलता है।

2🍂3) अतिसार: दूब का ताजा रस संकोचक होता है। इसलिए यह पुराने अतिसार और पतले दस्तों में उपयोगी होता है।

🌼24) गर्भपात से रक्षा : प्रदर रोग में तथा रक्तस्राव (खून आना), गर्भपात आदि योनि रोगों में दूब का उपयोग करते हैं। इससे खून रुक जाता है, गर्भाशय को शक्ति मिलती है तथा गर्भ को पोषण करता है।

2🌷5) मूत्रविकार:
• दूब की जड़ का काढ़ा दर्दनाशक (दर्द को दूर करने वाला) और मूत्रवर्द्धक (पेशाब लाने वाला) होता है। इसलिए वस्तिशोथ, सूजाक और पेशाब की जलन में यह बहुत ही उपयोगी होता है।
• दूब को मिश्री के साथ घोट छानकर पिलाने से पेशाब के साथ खून आना बंद हो जाता है।
• दूब को पीसकर दूध में छानकर पिलाने से पेशाब की जलन मिट जाती है।

🌸26) आंखों का दर्द: हरी दूब (घास) का रस पलकों पर लेप करने या उसको पीसकर लुगदी बनाकर रात में सोते समय आंखों पर बांधने से आंखों के दर्द और जलन दूर हो जाती है। आंखों का धुंधलापन दूर हो जाता है। कुछ दिनो तक लगातार इसका प्रयोग करना चाहिए।

🌸27) आंखों का इलाज: सुबह-सुबह नंगे पैर पार्क मे हरी दूर्वा (घास) पर घूमने से आंखों की रोशनी तेज होती है।स्नेहा आयुर्वेद ग्रुप

🌻28) बादी का बुखार: दूब के रस मे अतीस का चूर्ण मिलाकर चाटने से बादी का बुखार उतर जाता हैं।

2🌷9) एलर्जिक का बुखार: दूब और हल्दी को पीसकर पूरे शरीर पर लेप करने से शीत-पित्त का रोग मिट जाता हैं।

🌻30) जीभ और मुंख का सूखापन: पित्त की वृद्धि से होने वाले जीभ या मुंह का सूखापन के रोग में 10 से 20 ग्राम सफेद दूब या हरी दूब के रस को मिश्री के साथ मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से लाभ होता है।

🌼31) वमन (उल्टी):
• अगर उल्टी आने का रोग पुराना हो तो दूब के रस में मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह और शाम पीने से यह रोग दूर हो जाता है।
• सफेद दूर्वा (Durva /Doob) के रस को चावलों के पानी के साथ पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
• दूब का 1 चम्मच रस में काली मिर्च पीसकर सेवन करने से वमन (उल्टी) बंद हो जाती है।

💐32) आंव (आंव अतिसार) होने पर:
• दूब, सोंठ और सौंफ को पानी में उबालकर पीने से पेट में आंव (एक प्रकार का चिकना पदार्थ जो मल के साथ बाहर निकल जाता हैं) दस्त को बंद कर देता है।
• दूब घास और आम को मिलाकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से आंव (एक प्रकार का चिकना पदार्थ जो मल के साथ बाहर निकल जाता हैं) दस्त समाप्त हो जाता हैं।

🥀33) दस्त के लिए: हरी दूब का रस लगभग 10 ग्राम की मात्रा में रोगी को पिलाने से दस्त का आना बंद हो जाता हैं।

💐34) बहरापन: धोली दूब को घी में डालकर आग पर पकाकर जला लें। फिर इसे आग पर से उतार कर ठण्डा कर लें। इस तेल को चम्मच मे हल्का सा गर्म करके 2-2 बूंदे दोनों कानों में डालने से बहरेपन का रोग दूर हो जाता है।

🌸35) कान का बहना: हरी दूब के रस को छानकर 2 से 3 बूंद रोजाना 3 से 4 बार कान में डालने से कान से पानी आना, मवाद बहना और बहरापन ठीक हो जाता है।

🍂36) बवासीर: 50 मिलीलीटर दूब का रस लेकर उसमें चीनी मिलाकर पीने से बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।

💐37) घाव:
• ताजा कटे-फटे घाव में हरी दूब की पत्तियों को पीसकर लेप करें तथा उन पत्तियों को घाव पर बांधते भी हैं। इससे खून का बहना रुकता है और घाव जल्दी भर जाता है।
• घाव से बहते हुए खून को रोकने के लिए दूब को घाव पर पीसकर लगाने से लाभ होता है।

🥀38) पथरी:
• दूब की जड़ तथा तने को पानी में अच्छी तरह से धोकर बारीक लेप बना लें। 5 ग्राम लेप को 1 गिलास पानी में मिलाकर 15 से 20 दिन पीने से पथरी ठीक हो जाती है।
• दूर्वा (Durva /Doob) की जड़ और तने को अच्छी तरह से धोकर पीस लें तथा पानी में मिलाकर शर्बत बनाकर छान लें। इस शर्बत में मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीयें। इससे पथरी गल जाती है तथा पेशाब खुलकर आता है।

3💐9) जलोदर (पेट में पानी का भरना): 10 ग्राम हरी दूब (दूर्वा) के रस को खुराक के रूप में सुबह और शाम लेने से जलोदर (पेट में पानी का भरना) के रोग में लाभ होता है।

🌹40) पित्त बढ़ने पर: पित्त के बढ़ने पर हरी दूब का 10 ग्राम रस सुबह-शाम मिश्री के साथ रोगी को देने से फायदा होता है। पित्त के बढ़ने पर हरी दूब के अलावा अगर सफेद दूब का उपयोग किया जाये तो ज्यादा लाभ मिलता है।

41🥀) रक्तप्रदर:
• 2 चम्मच दूब के रस में आधा चम्मच चन्दन और मिश्री का चूर्ण मिलाकर 2-3 बार सेवन करने से रक्तप्रदर नष्ट होता है।
• हरीदूब (दूर्वा) का रस 10 ग्राम रोजाना शहद के साथ सुबह, दोपहर और शाम सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।
• मासिक-स्राव में अधिक रक्त स्राव (खून बहने) होने पर दूब का रस आधा कप मिश्री मिलाकर सुबह-शाम को देना चाहिए। इससे रक्तप्रदर में बहुत अधिक लाभ मिलता है। इसके साथ ही चावल का पानी मिला दिया जाए तो इस रोग में लाभ और अच्छा मिलता है।

💐42) शीतपित्त: दूब और हल्दी को एक साथ पीसकर लेप करने से शीतपित्त जल्दी ही खत्म हो जाती है।

🌸43) रक्तपित्त:
• रक्तपित्त के रोग में दूब का रस, अनार के फूलों का रस, गोबर और घोड़े की लीद का रस मिलाकर पीने से खून का बहना बंद हो जाता है।
• दूब का 30 मिलीलीटर रस लेने से रक्तपित्त में आराम आता है। इसके साथ ही यह खूनी बवासीर और टी.बी के रोगी का बहने वाला खून भी रोक देती है।

4🌸4) नाक के रोग:
• 40 ग्राम रोहित घास का काढ़ा सुबह और शाम पीने से जुकाम ठीक हो जाता है और कफ (बलगम) का रोग भी ठीक हो जाता है।
• दूब (घास) को किसी पत्थर पर पीसकर कपड़े में रखकर निचोड़कर लगभग 1 किलो के करीब इसका रस निकाल लें। इसके बाद इसे कड़ाही में डालकर इसमें लगभग साढ़े 4 किलोग्राम तेल डालकर पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद जब तेल बाकी रह जाये तो इसे उतारकर छान लें। इस तेल को रोजाना नाक में डालने से मुंह और नाक से गन्दी हवा निकलने का रोग ठीक हो जाता है।

🌸45) शिश्न चर्म रोग: लिंग की त्वचा को खीचकर उस पर हरी घास, हल्दी और नीम के पत्तों से बने रस की मालिश करने से लिंग की आगे की खाल हट जाती है।

🍂46) नकसीर:
• हरी दूब का ताजा रस निकालकर नाक में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।
• हरी ताजी दूब (घास) को जमीन पर से उखाड़कर पानी से धो लें। फिर उस घास को पीसकर उसका रस निकाल लें। इस रस की 2-2 बूंदे नाक के दोनों छेदों में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।
• 2 चम्मच चीनी को दूब के रस में मिलाकर नाक में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।

4🌼7) उपदंश (सिफलिस): दूब की जड़ का काढ़ा पीने से उपदंश के घाव और दाग मिट जाते हैं।

🌷48) गठिया (घुटने का दर्द): गठिया के रोगी का उपचार करने के लिए रोहितघास के पत्तों से बने तेल को लेकर मालिश करने से रोगी को लाभ मिलता है।

4🥀9) खाज-खुजली: 2 चम्मच दूब के रस को तिल्ली के 100 मिलीलीटर तेल में मिलाकर खुजली वाले स्थान पर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।

🌹50) हैजा: बराबर मात्रा में 10-10 ग्राम दूब और अरबा चावल (कच्चा चावल) लेकर पीसकर रोगी को पिला देने से हैजा में लाभ होता है।

🏵️51) मिर्गी (अपस्मार): 10 ग्राम हरीदूब के रस का सेवन सुबह और शाम को करने से मिर्गी रोग दूर हो जाता है।

5🌸2) फोड़े-फुंसियां: दूर्वा (Durva /Doob) को पीसकर पके हुए फोड़े पर लगाने से फोड़ा तुरन्त फूट जाता है।

🌸53) चेहरे की झांइया: 40 ग्राम हरीदूब (दूर्वा) की जड़ का काढ़ा सुबह और शाम पिलाने से चेहरे की झांइयों के साथ-साथ त्वचा के सारे रोग मिट जाते हैं।

🍂54) कुष्ठ (कोढ़): दूब की ओस (पानी की बूंदे) को कुछ समय तक लगाते रहने से सफेद कोढ़ समाप्त हो जाता है।

🍃55) चेहरे के दाग और धब्बे: हरी दूब को हल्दी के साथ मिलाकर पीस लें और घोल बनाकर पूरे शरीर पर लगाने से खाज-खुजली, दाद और त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।

💐56) बिवाई (एंड़ी का फटना):
• हरी दूब (घास) को पीसकर बिवाई (फटी एड़ियों) पर लगाने से आराम आता है।
• दूब का लेप बिवाइयों (फटी एड़ियों) पर लगाने से आराम मिलता है।
• यदि शरीर की त्वचा कहीं-कहीं से फट गई हो और उसमें से खून भी निकल रहा हो तो हरी दूब (घास) को थोड़ी सी हल्दी के साथ पीसकर पानी में मिला लें और साफ कपड़े से छान लें। इसमें थोड़ा-सा नारियल का तेल मिलाकर सारे शरीर की मालिश करने से धीरे-धीरे त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।

🌸दूर्वा घास(दूब )के नुकसान :

<🌸> दूब का सामान्य से अधिक मात्रा में सेवन करने पर यह आमाशय को नुकसान पहुंचा सकती है और कामशक्ति में कमी ला सकती है।
<🌻> हरी दूब का अधिक मात्रा में सेवन करने से स्त्रियों को उल्टी आने लगती है।

🥀दोषों को दूर करने वाला : कालीमिर्च व इलायची के साथ इसका सेवन करने पर हरी दूब के दोष दूर होते हैं।
[ सांस फूलने की परेशानी से राहत देगे घरेलू इलाज

परिचय-बहुत से लोग गलतफहमी के चलते डिसप्निया (सांस फूलना रोग को दमा रोग ही समझ लेते हैं। लेकिन डिसप्निया (सांस फूलना) और दमा (एस्थमा) रोग में थोड़ा सा फर्क होता है।कई लोगों को गलतफहमी होती है कि मोटा होने की वजह से ही सांस फूलती है पर ऐसा कुछ नही है,पतले लोगो की भी ऐसे ही सांस फूलती है और इसका कारण हमारे शरीर में नही अपितु पर्यावरण में बढ़ रहे प्रदूषण,अस्वच्छ हवा में सांस लेना और गलत कार्यशैली हो सकती है।

कारण-सांस फूलने का रोग 2 प्रमुख कारणों से हो सकता है :1- ज्यादा उम्र के लोगों को बारिश के मौसम में सांस की नली के पुराने जुकाम आदि रोगों के कारण 2- दिल की धड़कन का काफी तेज चलने के कारण

सांस फूलने का प्रभावी और घरेलू इलाज़ :

अंजीर :जिन लोगो की सांस फूलती है, उनके लिए अंजीर अमृत के समान है क्योंकि अंजीर छाती में जमी बलगम और सारी गंदगी को बाहर निकाल देती है। जिससे सांस नली साफ़ हो जाती है और सुचारू रूप से कार्य करती है। इसके लिए आप तीन अंजीर गरम पानी से धोकर रात को एक बर्तन में भिगोकर रख दीजिये और सुबह खाली पेट नाश्ते से पहले उन अंजीरों को खूब चबाकर खा लीजिये। उसके बाद वह पानी भी पी लें | इस का प्रयोग लगातार एक महीने तक कीजिये। इसके प्रयोग से फर्क आपको खुद ही महसूस होने लगेगा।

तुलसी ( Basil )और सौंठ (dry ginger) का काढ़ा :तुलसी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है और श्वसन तंत्र पर बाहरी प्रदूषण और एलर्जी के हमले से रक्षा करने में समर्थ है। इसलिए जिनको भी सांस फूलने की या दमा की शिकायत हो उन लोगो को तुलसी से बने इस काढ़े का इस्तेमाल अवश्य ही करना चाहिए। इसके लिए आधा कप पानी में 5 तुलसी की पत्ती,एक चुटकी सौंठ पाउडर,काला नमक और काली मिर्च डालकर उबाल ले। ठंडा करके जब यह काढ़ा गुनगुना सा रह जाए तब इसका सेवन करे। नित्य प्रति इस काढ़े के सेवन से आपके सांस फूलने की समस्या जड़ से समाप्त हो जाएगी।

अजवायन (Thymes):सांस फूलने की समस्या अक्सर श्वास नली में सूजन या श्वास नली में कचरा आ जाने की वजह से ही उत्पन्न होती है। श्वास नली को साफ़ करने का सबसे प्रभावी तरीका होता है– स्टीम या भाप लेना। भाप लेने से यदि श्वास नली में सूजन है तो उसमे आराम हो जाता है और कचरा भी निकल जाता है तो इसके लिए आपको अजवायन पीसकर पानी में उबलनी है। फिर इस अजवायन वाले पानी की भाप लेनी है व इसे गुनगुना पी भी लें। क्योंकि अजवायन की भाप सूजन को खत्म और दमे और सांस फूलने की समस्या में राहत दिलाती है।

तिल का तेल (Sesame oil) :यदि ठंड की वजह से छाती जाम हो जाए या रात के समय दमे का प्रकोप बढ़ जाए और सांस ज्यादा फूलने लगे तो तिल के तेल को हल्का गर्म करके छाती और कमर पर गरम तेल की सेक करे। इस प्रकार आपकी छाती खुल जायेगी और आपको सांस फूलने की समस्या में राहत मिलेगी।

अंगूर (grapes):सांस फूलने व दमा की समस्या में अंगूर बहुत लाभदायक होता हैं | इस समस्या में आप अंगूर भी खा सकते है या अंगूर का रस का भी सेवन कर सकते हैं | कुछ चिकित्सकों का तो यह दावा है कि दमे के रोगी को अगर अंगूरों के बाग में रखा जाए तो दमा,सांस फूलने या कोई भी श्वसन सम्बन्धी समस्या में शीघ्र लाभ पहुंचता है

चौलाई (Amaranth) के पत्तों का रस :सांस फूलने की या श्वसन सम्बन्धी कोई भी समस्या हो यदि चौलाई के पत्तों का ताजा रस निकालकर और उसमे थोड़ा शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन किया जाए तो अतिशीघ्र लाभ पहुंचता है | चौलाई के पत्तो का प्रयोग आप किसी भी रूप में कर सकते है। चाहे तो चोलाई के पत्तो का साग भी खा सकते है। चोलाई के पत्ते इस समस्या में रामबाण औषधि है।

लहसुन (Garlic) :लहसुन भी सांस फूलने की समस्या में अत्यंत लाभकारी औषधि का कार्य करता है। इसके लिए लहसुन की 3 कलियों को दूध में उबालना है और फिर उस दूध को छानकर सोने से पूर्व पीना है। याद रहे इसके बाद कुछ भी न खाये या पिए। कुछ ही दिनों के निरन्तर प्रयोग से आपको इसके चमत्कारी परिणाम देखने को मिलेंगे।

सौंफ (Fennel) :सांस फूलने की या श्वसन सम्बन्धी कोई भी समस्या हो यदि सौंफ का प्रयोग दैनिक दिनचर्या में हर रोज किया जाए तो आपको कभी सांस फूलने की समस्या आएगी ही नही। क्योंकि सौंफ में बलगम को साफ करने के गुण विद्यमान होते हैं | यदि दमे के रोगी और सांस फूलने वाले रोगी नियमित रूप से इसका काढ़ा इस्तेमाल करते रहें तो निश्चित रूप इस समस्या से निजात मिल जाएगी |

लौंग (Cloves)और शहद(Honey) :लौंग और शहद का काढ़ा पीने से श्वास नली की रुकावट दूर हो जाती है और श्वसन तंत्र मजबूत बनता है। इसके लिए चार-छः लौंग को एक कप पानी में उबाल ले और फिर उसमे शहद मिलाकर दिन में तीन बार थोड़ा-थोड़ा पीने से सांस फूलने की समस्या एकदम ठीक हो जाती है |

दालचीनी और शहद(Honey) : एक चम्मच दालचीनी एक चम्मच शहद मिक्स कर सुबह शाम ले इसे लेने के बाद गुनगुना पानी जरूर पिये

गौमुत्र:- गौमुत्र या गौर्क का सेवन सुबह शाम करें

हींग (Asafoetida):सांस फूलने की या श्वसन सम्बन्धी कोई भी समस्या हो यदि हींग का प्रयोग दैनिक दिनचर्या में हर रोज किया जाए तो आपको कभी सांस फूलने की समस्या आएगी ही नही।बाजरे के दाने जितनी हींग को दो चम्मच शहद में मिला ले। इसको दिन में तीन बार थोड़ा-थोड़ा पीने से सांस फूलने की समस्या एकदम ठीक हो जाती है |

नीबू (lemon)का रस :सांस फूलने या दमा की समस्या में नीबू का रस गरम जल में मिलाकर पीते रहने से यह समस्या धीरे धीरे जड़ से खत्म हो जाती है | सांस फूलने की समस्या में केला अधिक मात्रा में नही खाना चाहिए | पानी हल्का गरम पीना चाहिए |पानी उबालकर और थोड़ा हल्का गरम पीना ही लाभकारी होता है |

सरसो तेल व पुराना गुड़ :- 10 ग्राम सरसो तेल में 10 ग्राम पुराना गुड़ मर्दन(मिक्स) कर सेवन करें

गुनगुना पानी :- हर रोग की सस्ती दवा है गुनगुना पानी नियमित सेवन करें

एसिड बनाने वाले पदार्थ न ले :दमा या सांस फूलने की समस्या होने पर भोजन में कार्बोहाइड्रेट, चिकनाई एवं प्रोटीन जैसे एसिड बनाने वाले पदार्थ कम मात्रा में ही लें क्योंकि इनसे शरीर में एसिड बनता है जिससे श्वसन में बाधा उत्पन्न होती है इसलिए ताज़े फल, हरी सब्जियां तथा अंकुरित चने जैसे क्षारीय खाद्य पदार्थों का सेवन भरपूर मात्रा में करें।

जो भी उपयोग करे नियमित करें 2 से 3 माह अद्भुत परिणाम मिलेगा

वन्देमातरम
[: कोल्डड्रिंक पीने के नुकसान

  1. कोल्डड्रिंक में काफी मात्रा में शुगर होता है जिसके कारण हमारा मोटापा बढ़ता है।
  2. लगातार कोल्डड्रिंक पीने से शरीर में पानी की कमी और हमारे दांत कमजोर होते हैं।
  3. कोल्ड्रिंक में कैफिन होने के कारण वह हमारे शरीर में घुल जाता है जिसके कारण हमारी आंखों की पुतलियां फैलने लगती है।
  4. जो लोग रोजाना कोल्ड्रिंक पीते हैं उन्हें डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता हैं।
  5. कोल्ड ड्रिंक पीने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
  6. कोल्डड्रिंक पीने के पहले 10 मिनट में बॉडी में एक साथ दिनभर की खुराक के बराबर शक्कर चली जाती है।
  7. ज्यादा कोल्ड ड्रिंक पीने से हमारा ब्लड प्रेशर पी हाई हो जाता है।
  8. ज्यादा कोल्ड ड्रिंक पीने से हमारी हड्डियां कमजोर होती हैं, और कैल्शियम की कमी भी होती है।
  9. कोल्ड्रिंग में काफी मात्रा में कैफिन होता है जो हमारी बॉडी को हाइड्रेट करती है, यानी शरीर से नमी कम हो जाती है।
  10. हर रोज कोल्डड्रिंक पीने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
  11. कोल्ड्रिंक में मौजूद फ्रैक्टोज आसानी से फैट में बदल जाते हैं जिसके कारण हमारे लीवर को नुकसान पहुंचता है।
  12. कोल्ड्रिंक में सादे पानी की तुलना में कई गुना ऐसिटिक क्वालिटी होती हैं, जिसके कारण एसिडिटी का खतरा बढ़ जाता है।
  13. कोल्ड ड्रिंक पीने से एसिडिटी बढ़ती है इस वजह से अल्सर की प्रॉब्लम हो सकती है।
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  14. झाग वाली कोल्डड्रिंक पीने से हमारे शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण हमारी हेल्थ को नुकसान पहुंचता है।

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[: 🍊संतरे के छिलके से क्या फायदे हो सकते हैन 🍊

  1. संतरे के छिलकों को पीसकर बालों में लगाकर कुछ देर रखें और फिर बाल धो लें।बाल चमकीले और मुलायम हो जाएंगे।
  2. संतरे के छिलकों को पीस कर उसमे गुलाब जल मिलाकर चहरे पर लगाने से दाग व धब्बे मिटते हैं।
  3. स्किन को ग्लोइंग बनाते हैं- संतरे के छिलके में क्लीजिंग, एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो कि पिंपल और एक्ने से लडऩे में सहायक होते हैं।
  4. संतरे के छिलके को सुखाकर पीसकर उसे दही मिलाकर स्किन पर लगाने से स्किन ग्लोइंग व स्मूथ बनती है।
  5. संतरे के छिलकों को बेसन में मिलाकर लगाना ऑइली स्किन वालों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है और पिंपल्स को खत्म कर देता है।
  6. कोलेस्टॉल के रोगियों के लिए फायदेमंद है
  7. संतरे के छिलको में ऐसा गुण पाया जाता है जिससे उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर है जो मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों को फायदा हो सकता है। साथ ही ये कैंसर व हड्डियों की कमजोरी जैसी समस्याओं में भी विशेष रूप से लाभदायक है।
  8. पाचन शक्ति बढ़ाता है- इसके छिलके में पाचनशक्ति बढ़ाने की क्षमता होती है। यह पाचन में सुधार, गैस, उल्टी, हार्ट बर्न और अम्लीय डकार को दूर करने में मदद करता है।
  9. यह भूख बढाता है और मतली से राहत दिलाने का काम करता है साथ ही संतरे का छिलका कृमि का नाश करने वाला व बुखार को मिटाने वाला भी होता है। इसलिए इन सभी रोगों के रोगियों को संतरे का छिलका पीसकर खिलाने पर फायदा होता है।
  10. अनिद्रा की समस्या को दूर करता है- नारंगी के छिलके में एक विशेष प्रकार की गंध वाला तेल पाया जाता है। इस तेल का उपयोग तंत्रिकाओं को शांत करने व गहरी नींद के लिए किया जाता है। नहाने के पानी में इसका दो से तीन बूंद तेल डालिए और फिर देखिए कितनी मीठी नींद आती है।

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: बालो में जूँ पड़ने पे आयुर्वेदिक इलाज

  1. नीम के पत्तों को पानी में उबालकर , ठंडा करके इस पानी दे सिर धो लें ! इससे जुएँ समाप्त होती हैं !
  2. प्याज का रस सिर में लगाने से जुएँ मरकर निकल जाती हैं !
  3. एक लीटर पानी में 10 ग्राम फिटकरी का चूर्ण मिला लें ! इससे प्रतिदिन बाल धोने से जुएँ नष्ट हो जाती हैं !

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निष्पक्ष दृष्टि होना बहुत ही कठिन बात है। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि जिन लोगों के प्रति आपको और राग है , आसक्ति है, अटैचमेंट है, उनके दोष दिखने ही बंद हो जाते हैं । आसक्ति, किसी व्यक्ति में आपको जितनी अधिक होती है , उतना ही उसके दोष आपको नहीं दिखाई देते । और इसके विपरीत भी उतना ही सत्य है। अगर किसी से आपको द्वेष हो जाए ईर्ष्या हो जाए घृणा हो जाए , तो उसके कितने भी अच्छे गुण हों, वे आपको दिखने बंद हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आप ठीक निर्णय नहीं ले पाएँगे। परिणाम आगे चल कर आपको बहुत दुख भोगने पड़ेंगे। क्योंकि यह सिद्धांत है कि दोष हमेशा दुख ही देते हैं सुख नहीं . और गुण हमेशा सुख ही देते हैं दुख नहीं.
यदि आसक्ति या राग के कारण आप अपनों के दोष नहीं देखेंगे , और उन्हें दूर करने का प्रयास नहीं करेंगे , तो वे दोष आपको भी दुख देंगे और आपके उन प्रियजनों को भी , जिनमें वे दोष हैं ।
इसी प्रकार से यदि आप निष्पक्ष भाव से दूसरों के गुण नहीं देखते , तो आप उनके गुणों से लाभ नहीं उठा पाएंगे।
इसलिए दुख से बचने और सुख की प्राप्ति के लिए यह अनिवार्य है , कि अपनी दृष्टि को निष्पक्ष रखा जाए । चाहे कोई अपना हो , या पराया ; उसके गुणों को अवश्य ध्यान में रखें , और सीखें ।
इसी प्रकार से दोषों को भी निष्पक्ष होकर देखें , और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करते रहें। तभी आप एक संतुलित और सुखदायक जीवन जी पाएंगे –
[
संसार में जो भी व्यक्ति जन्म लेता है , उसे सुख और दुख तो भोगने ही पड़ते हैं। चाहे उसने कोई सीधी सीधी गलती की हो, चाहे न की हो , फिर भी कुछ न कुछ दुख तो भोगना ही पड़ता है।
क्योंकि शास्त्रों में बताया है कि दुख भोगने का कारण संसार में जन्म लेना है । जन्म लेने के बाद आत्मा को कुछ दुख उसकी गलतियों के फलस्वरुप प्राप्त होते हैं , इसे न्याय कहते हैं । और कुछ दुख बिना किसी गलती को किए भी उसे भोगने पड़ते हैं, इसे अन्याय कहते हैं । संसार में न्याय और अन्याय दोनों होते ही रहते हैं ।
जब कोई व्यक्ति समाज सेवा परोपकार आदि कर्म करता है , सबके कल्याण के लिए तन मन धन लगाता है , तब संसार के मूर्ख और स्वार्थी लोग उसे परेशान करते ही हैं । क्योंकि वे लोग अपनी मूर्खता एवं स्वार्थ के कारण इस परोपकार के कार्य को अच्छा नहीं मानते । कहीं कहीं सार्वजनिक परोपकार के कार्यों से उनके स्वार्थ का नाश भी हो जाता है। इसलिए वे मूर्ख एवं स्वार्थी लोग , अच्छे सज्जन परोपकारी लोगों का सदा विरोध करते हैं , तथा उन्हें तरह तरह से अन्याय पूर्वक कष्ट भी देते हैं ।
आपने भी जन्म लिया है । तो कोई न कोई दुख न्याय से या अन्याय से आएगा ही। यदि आप इस सत्य को स्वीकार कर लेंगे , तो दुख आने पर आप नहीं घबराएंगे , तथा उस दुख को सहने के लिए, ईश्वर से शक्ति मांगेंगे। ईश्वर की शक्ति से आपका दुख , आप आसानी से पार कर लेंगे ।
किसी ने पूछा कि ऐसा कोई उपाय बताएं कि संसार में हम पर दुख आए ही नहीं। तो मैंने उत्तर दिया, कि शास्त्रों में इसका समाधान बताया है , कि संसार में जीवित रहते हुए “दुख न आए”, यह तो असंभव है । हां , यदि आप अगला जन्म लेना बंद कर दें, तब तो दुख से पूरी तरह से बच पाएंगे। जब आप अगला जन्म नहीं लेंगे, तब आप पर कोई भी दुख नहीं आएगा। अर्थात मोक्ष प्राप्त कर लेने पर फिर कोई दुख नहीं आता ।
🙏 आजका सदचिंतन 🙏
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व्यक्ति – परिस्थिति नहीं हरा सकेंगी
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हमें प्रत्येक अवसर और समय का बेहतर उपयोग करना चाहिए और हमारे भीतर – बाहर की प्रतिकूलताओं का बहादुरी से सामना करने की क्षमता पैदा करनी होगी। तब न तो कोई व्यक्ति और न ही कोई परिस्थिति हमें हरा सकेगी, न भयभीत कर सकेगी।
हम सबको अपना मानसिक फलक विकसित करना चाहिए, अपनी भावनाओं में व्यापकता की अनुभूति करनी होगी। यदि हमारे प्रयासों की दिशा सही होगी, तो अवसर भी सही परिणाम प्रदान करेगा।

    *विचार क्रांति अभियान*

🙏 सबका जीवन मंगलमय हो 🙏
[बीजाक्षरों का संक्षिप्त कोष
ऊँ—प्रणव, ध्रव, तैजस बीज है।
ऐं—वाग् और तत्त्व बीज है।
क्लीं—काम बीज है।
हों—शासन बीज है।
क्षीं—पृथ्वी बीज है।
—अप् बीज है।
स्वा—वायु बीज है ।
हा:—आकाश बीज है।
ह्रीं—माया और त्रैलोक्य बीज है।
क्रों—अंकुश और निरोध बीज है।
—फास बीज है।
फट्—विसर्जन और चलन बीज है।
वषट्—दहन बीज है।
वोषट्—आकर्षण और पूजा ग्रहण बीज है।
संवौषट्—आकर्षण बीज है।
ब्लूँ—द्रावण बीज है।
ब्लैं—आकर्षण बीज है।
ग्लौं—स्तम्भन बीज है।
क्ष्वीं—विषापहार बीज है।
द्रां द्रीं क्लीं ब्लूँ स:—ये पांच बाण बीज हैं।
हूँ—द्वेष और विद्वेषण बीज है। स्वाहा—हवन और शक्ति बीज है।
स्वधा—पौष्टिक बीज है।
नम:—शोधन बीज है।
श्रीं—लक्ष्मी बीज है।
अर्हं—ज्ञान बीज है।
क्ष: फट्—शस्त्र बीज है।
य:—उच्चाटन और विसर्जन बीज है।
जूँ—विद्वेषण बीज है।
श्लीं—अमृत बीज है।
क्षीं—सोम बीज है।
हंव—विष दूर करने वाला बीज है।
क्ष्म्ल्व्र्यूं— पिंड बीज है।
क्ष—कूटाक्षर बीज है।
क्षिप ऊँ स्वाहा—शत्रु बीज है।
हा:—निरोध बीज है।
ठ:—स्तम्भन बीज है।
ब्लौं—विमल पिंड बीज है।
ग्लैं—स्तम्भन बीज है।
घे घे—वद्य बीज है।
द्रां द्रीं—द्रावण संज्ञक है। ह्रीं ह्रूँ ह्रैं ह्रौ ह्र:—शून्य रूप बीज हैं।

मंत्र की सफलता साधक और साध्य के ऊपर निर्भर है ध्यान के अस्थिर होने से भी मंत्र असफल हो जाता है। मन्त्र तभी सफल होता है, जब श्रद्धा भक्ति तथा संकल्प दृढ़ हो। मनोविज्ञान का सिद्धान्त है कि मनुष्य की अवचेतना में बहुत सी आध्यात्मिक शक्तियां भरी रहती हैं। इन्हीं शक्तियों को मंत्र द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। मंत्र की ध्वनियों के संघर्ष द्वारा आध्यात्मिक शक्ति को उत्तेजित किया जाता है। इस कार्य में अकेली विचार शक्ति काम नहीं करती है। इसकी सहायता के लिये उत्कृट इच्छा शक्ति के द्वारा ध्वनि—संचालन की भी आवश्यकता है। मंत्र शक्ति के प्रयोग की सफलता के लिये नैष्ठिक आचार की आवश्यकता है।

मंत्र निर्माण के लिए ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूँ ह्रौं ह्र: ह्रा ह +स: क्लीं द्रां द्रीं द्रँ द्र: श्रीं क्षीं क्ष्वीं र्हं क्ष्वीं र्हं अं फट् वषट् संवौषट घे घै य: ख ह् पं वं यं झं तं थं दं

इन बीजाक्षरों की उत्पत्ति प्रधानत: णमोकार मंत्र से ही हुई हैं, क्योंकि मातृका ध्वनियां इसी मन्त्र से उद्भूत हैं।

मंत्र साधक बीज मंत्र और उनकी ध्वनियों के घर्षण से अपने भीतर आत्मिक शक्ति का प्रस्फूटन करता है। मंत्र शास्त्र में इसी कारण मंत्रों के कई भेद बताये गये हैं।
मुख्य भेद कुछ इस तरह हैं —
1 स्तम्भन

2 सम्मोहन

3 उच्चाटन

4 वश्याकर्षण

5 विद्वेषण

6 मारण

7 शान्तिक

8 पौष्टिक
साधारण व्यक्ति को ये बीजाक्षर निरर्थक प्रतीत होते हैं, किन्तु हैं ये सार्थक और इनमें ऐसी शक्ति अन्तर्निहित रहती है, जिसमें आत्मशक्ति या देवताओं को उत्तेजित किया जा सकता है। अत: ये बीजाक्षर अन्त:करण और वृत्ति की शुद्ध प्रेरणा के व्यक्त शब्द हैं, जिनसे आत्मिक शक्ति का विकास किया जा सकता है।
[ दुःख और उनका कारण

आकस्मिक सुख दुख हर व्यक्ति के जीवन में आया करते हैं। इनसे सुर मुनि, देव, दानव कोई नहीं बचता। भगवान राम तक इस कर्म गति से छूट न सके। सूरदास ने ठीक कहा है-

कर्मगति टारी नाँहि टरै। गुरु वशिष्ठ पण्डित बड़ ज्ञानि,।। रचि पचि लगन धरै। पिता मरण और हरण सिया को,

वन में विपत्ति परै।।

वशिष्ठ जैसे गुरु के होते हुए भी राम कर्म गति को टाल न सके। उन्हें भी पिता का मरण, सिया का हरण एवं वन की विपत्तियाँ सहन करनी पड़ीं। वह विपत्तियाँ कहीं से अकस्मात टूट पड़ती हैं या ईश्वर नाराज होकर दुख दंड देता है, ऐसा समझना ठीक न होगा। सब प्रकार के दुख अपने ही बुलाने से आते हैं। रामायण का मत भी इस सम्बन्ध में वही है-

काहु न कोउ दुख सुख कर दाता। निज निज कर्म भोग सब भ्राता।।

दूसरा कोई भी प्राणी या पदार्थ किसी को दुख देने की शक्ति नहीं रखता। सब लोग अपने ही कर्मों का फल भोगते हैं और उसी भोग से रोते चिल्लाते रहते हैं। जीव की पूँछ से ऐसी कठोर व्यवस्था बँधी हुई है जो कर्मों का फल तैयार करती है। मछली पानी में तैरती है उसकी पूँछ पानी को काटती हुई पीछे पीछे एक रेखा सी बनाती चलती है। साँप रेंगता जाता है और रेत पर उसकी लकीर बनती जाती है, जो काम हम करते हैं उनके संस्कार बनते जाते हैं। बुरे कर्मों के संस्कार, स्वयं बोई हुई कटीली झाड़ी की तरह अपने लिए ही दुखदायी बन जाते हैं।

दुख तीन प्रकार के होते हैं (1) दैविक (2) दैहिक (3) भौतिक। दैनिक दुख वे कहे जाते हैं जो मन को होते हैं जैसे चिन्ता आशंका क्रोध, अपमान, शत्रुता, विछोह, भय, शोक आदि। दैहिक दुख वे होते हैं जो शरीर को होते हैं जैसे रोग, चोट, आघात, विष आदि के प्रभाव से होने वाले कष्ट। भौतिक दुख वे हैं जो अचानक अदृश्य प्रकार से आते हैं जैसे भूकम्प, दुर्भिक्ष, अतिवृष्टि, महामारी, युद्ध आदि। इन्हीं तीन प्रकार के दुखों की वेदना से मनुष्यों को तड़पता हुआ देखा जाता है। यह तीनों दुख हमारे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कर्मों के फल हैं। मानसिक पापों के परिणाम से दैविक दुख आते हैं, शारीरिक पापों के फलस्वरूप दैहिक और सामाजिक पापों के कारण भौतिक दुख उत्पन्न होते हैं।

दैविक दुख-मानसिक कष्ट, उत्पन्न होने का कारण वे मानसिक पाप हैं जो स्वेच्छापूर्वक, तीव्र भावनाओं से प्रेरित होकर किये जाते हैं जैसे ईर्ष्या, कृतघ्नता, छल, दम्भ, घमण्ड, क्रूरता, स्वार्थपरता आदि इन कुविचारों के कारण जो वातावरण मस्तिष्क में घुटता रहता है उससे अंतःचेतना पर उसी प्रकार का प्रभाव पड़ता है जिस प्रकार धुँए के कारण दीवाल काली पड़ जाती है या तेल से भीगने पर कपड़ा गन्दा हो जाता है। आत्मा कुविचारों प्रभावों को जमा हुआ नहीं रहने देना चाहती, वह इस फिक्र में रहती है कि किस प्रकार इस गन्दगी को साफ करूं? पेट में हानिकारक वस्तुएं जमा हो जाने पर पेट उसे कै या दस्त के रूप में निकाल बाहर करता है। इसी प्रकार तीव्र इच्छा से, जानबूझ कर किये गए पापों को निकाल देने के लिए आत्मा आतुर हो उठती है। हम उसे जरा भी जान नहीं पाते किन्तु आत्मा भीतर ही भीतर उस पाप भार को हटाने के लिए अत्यन्त व्याकुल हो जाती है। बाहरी मन स्थूल बुद्धि को उस अदृश्य प्रक्रिया का कुछ भी पता नहीं लगता, पर अंतर्मन चुपके ही चुपके ऐसे अवसर एकत्रित करने में लगा रहता है जिससे वह मार हट जाय। अपमान, असफलता, विछोह, शोक, दुख आदि प्राप्ति हो ऐसे अवसरों को वह कहीं से एक न एक दिन, किसी प्रकार खींच ही लाता है ताकि उन दुर्वासनाओं का, पाप संस्कारों का-इन अप्रिय परिस्थितियों में समाधान हो जाय।

शरीर द्वारा किये हुए चोरी, डकैती, व्यभिचार, अपहरण हिंसा आदि में मन ही प्रमुख है, हत्या करने में हाथ का कोई स्वार्थ नहीं है, वरन् मन के आवेश की पूर्ति है, इसलिए इस प्रकार के कार्य जिनके करते समय इन्द्रियों को सुख न पहुँचता हो, मानसिक पाप कहलाते हैं, ऐसे पापों का फल मानसिक दुख होता है। स्त्री पुत्र आदि प्रिय जनों की मृत्यु, धन नाश, लोक निन्दा, अपमान, पराजय, असफलता, दरिद्रता आदि मानसिक दुख हैं, उनसे मनुष्य की मानसिक वेदना उखड़ पड़ती है, शोक सन्ताप उत्पन्न होता है, दुखी होकर रोता चिल्लाता है, आँसू बहाता है, सिर धुनता है। इससे वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं और भविष्य में अधर्म न करने एवं धर्म में प्रवृत्त रहने की प्रवृत्ति बढ़ती है। देखा गया है कि मरघट में स्वजनों की चिंता रचते हुए ऐसे भाव उत्पन्न होते हैं कि जीवन का सदुपयोग करना चाहिए। धन नाश होने पर मनुष्य भगवान को पुकारता है। पराजित और असफल व्यक्ति का घमण्ड चूर हो जाता है। नशा उतर जाने पर वह होश की बात करता है, मानसिक दुखों का एक मात्र उद्देश्य मन में जमे हुए ईर्ष्या, कृतघ्नता, स्वार्थपरता, क्रूरता, निर्दयता, छल, दम्भ, घमण्ड की सफाई करना होता है। दुख इसलिए आते हैं कि आत्मा के ऊपर जमा हुआ प्रारब्ध कर्मों का पाप संस्कार निकल जाय। पीड़ा और वेदना की धारा उन पूर्व कृत प्रारब्ध कर्मों के निकृष्ट संस्कारों को धोने के लिए प्रकट होती है।

दैविक-मानसिक कष्टों का कारण समझ लेने के उपरान्त अब दैहिक-शारीरिक-कष्टों का कारण समझना चाहिये। जन्मजात अपूर्णतः एवं पैतृक रोगों का कारण पूर्व जन्म में उन अंगों का दुरुपयोग करना है। मरने के बाद सूक्ष्म शरीर रह जाता है। नवीन शरीर की रचना इस सूक्ष्म शरीर द्वारा होती है। इस जन्म में जिस अंग का दुरुपयोग किया जा रहा है, वह अंग सूक्ष्म शरीर में अत्यन्त निर्बल हो जाता है, जैसे कोई व्यक्ति अति मैथुन करता हो तो सूक्ष्म की वह इन्द्रिय निर्बल होने लगेगी, फल स्वरूप संभव है कि वह अगले जन्म में नपुंसक हो जाय। यह नपुँसकता केवल कठोर दंड नहीं है, वरन् सुधार का एक उत्तम तरीका भी है। कुछ समय तक सूक्ष्म शरीर के उस अंग को विश्राम मिलने से आगे के लिए वह फिर सचेत और सक्षम हो जायगा। शरीर के अन्य अंगों का शारीरिक लाभ पाप पूर्ण, अमर्यादित, अपव्यय करने पर आगे के जन्म में वे अंग जन्म से ही निर्बल या नष्ट प्रायः होते हैं। शरीर और मन के सम्मिलित पापों के शोधन के लिए जन्म जात रोग मिलते हैं या बालक अंग भंग उत्पन्न होते हैं। अंग भंग या निर्बल होने से उस अंग को अधिक काम नहीं करना पड़ता इसलिए सूक्ष्म शरीर का वह अंग विश्राम पाकर अगले जन्म के लिए फिर तरोताजा हो जाता है साथ ही मानसिक दुख मिलने से वह मन का पाप भार भी धुल जाता है।

मानसिक पाप भी जिस शारीरिक पाप के साथ घुला मिला होता है, वह यदि राजदंड, समाज दण्ड या प्रायश्चित द्वारा इस जन्म के लिये जाता शोधित न हुआ तो अगले जन्म के लिये जाता है। परन्तु यदि पाप केवल शारीरिक है या उसमें मानसिक पाप का मिश्रण अल्प मात्रा में है, तो उसका शोधन शीघ्र ही शारीरिक प्रकृति द्वारा हो जाता है, जैसे नशा किया-उन्माद आया। विष खाया मृत्यु हुई। आहार बिहार में गड़बड़ी की बीमार पड़े। इस तरह शरीर अपने साधारण दोषों की सफाई जल्दी कर लेता है और इस जन्म का भुगतान इसी जन्म में कर जाता है। परन्तु गम्भीर शारीरिक दुर्गुण, जिनमें मानसिक जुड़ाव भी होता है, अगले जन्म में फल प्राप्त करने के लिए सूक्ष्म शरीर के साथ जाते हैं।

भौतिक कष्टों के कारण हमारे सामाजिक पाप हैं। सम्पूर्ण हमारे सामाजिक पाप हैं। सम्पूर्ण जाति एक ही सूत्र में बँधी हुई है। विश्व व्यापी जीव तत्व एक है। आत्मा सर्वव्यापी है। जैसे एक स्थान पर यज्ञ करने से अन्य स्थानों का भी वायुमंडल शुद्ध होता है और एक स्थान पर दुर्गन्ध फैलने से उसका प्रभाव अन्य स्थानों पर भी पड़ता है। इसी प्रकार एक मनुष्य के कुत्सित कर्मों के लिए दूसरा भी जिम्मेदार है। एक दुष्ट व्यक्ति अपने माता पिता को लज्जित करता है, अपने घर कुटुम्ब को शर्मिन्दा करता है। वे इसलिए शर्मिन्दा होते हैं कि उस व्यक्ति के कामों से उनका कर्तव्य भी बँधा हुआ है। अपने पुत्र, कुटुम्बी, या घर वाले को सुशिक्षित, सदाचारी न बना कर दुष्ट क्यों हो जाने दिया? इसकी आध्यात्मिक जिम्मेदारी कुटुम्बियों की भी है। कानून द्वारा अपराधी को ही सजा मिलेगी, परन्तु कुटुम्बियों की आत्मा स्वयमेव शर्मिन्दा होगी, क्योंकि उनकी शक्ति यह स्वीकार करती है कि हम भी किसी हद तक इस मामले में अपराधी हैं। सारा मनुष्य समाज एक सूत्र में बँधा होने के कारण आपस में एक दूसरे की हीनता के लिए जिम्मेदार है। पड़ोसी खड़ा 2 तमाशा देखे, तो कुछ देर बाद उसका भी घर जल सकता है। मुहल्ले के एक घर में हैजा फैले और दूसरे लोग उसे रोकने की चिंता न करे, तो उन्हें भी हैजा का शिकार होना पड़ेगा। कोई व्यक्ति किसी की चोरी, बलात्कार, हत्या, लूट आदि होती हुई देखता रहे और समर्थ होते हुए भी उसे रोकने का प्रयत्न न करे, तो समाज उससे घृणा करेगा एवं कानून के अनुसार वह भी दंडनीय समझा जायगा।

ईश्वरीय नियम है कि हर मनुष्य स्वयं सदाचारी जीवन बितावे और दूसरों को अनीति पर न चलने देने के लिये भरसक प्रयत्न करे। यदि कोई देश या जाति अपने तुच्छ स्वार्थों में संलग्न होकर दूसरों के कुकर्मों को रोकने और सदाचार बढ़ाने का प्रयत्न नहीं करती तो उसे भी दूसरों का पाप लगता है। उसी स्वार्थपरता के सामूहिक पाप से सामूहिक दण्ड मिलता है। भूकम्प, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, दुर्भिक्ष, महामारी, महायुद्ध के मूल कारण इस प्रकार के ही सामूहिक दुष्कर्म होते हैं जिनमें स्वार्थ परता को प्रधानता दी जाती है और परोपकार की उपेक्षा की जाती है।

देखा जाता है कि अन्याय करने वाली अमीरों की अपेक्षा मूक पशु की तरह जीवन बिताने वाले भोले भाले लोगों पर दैवी प्रकोप अधिक होते हैं। अतिवृष्टि का कष्ट गरीब किसानों को ही अधिक सहन करना पड़ता है। इसका कारण यह है कि अन्याय करने वाले से अन्याय सहने वाला अधिक बड़ा पापी होता है। कहते है कि “बुज़दिल जालिम का बाप होता है।” कायरता में यह गुण है कि वह अपने ऊपर जुल्म करने के लिये किसी न किसी को न्योत ही बुलाता है। भेड़ की ऊन एक गड़रिया छोड़ देगा तो दूसरा कोई न कोई उसे काट लेगा। कायरता, कमजोरी, अविद्या स्वयं बड़े भारी पातक हैं। ऐसे पातकियों पर यदि भौतिक कोप अधिक हो तो कुछ आश्चर्य नहीं? सम्भवतः उनकी कायरता को दूर करने एवं स्वाभाविक सतेजता जगा कर निष्पाप बना देने के लिये अदृश्य सत्ता द्वारा यह घटनाएं उपस्थित होती हैं। यह भौतिक दुर्घटनायें सृष्टि के दोष नहीं है वरन् अपने ही दोष हैं। अग्नि में तपा कर सोने की तरह हमें शुद्ध करने के लिये यह कष्ट बार-2 कृपा पूर्वक आया करते हैं।

अखण्ड ज्योति सितम्बर 1948

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योग योग का स्वामी योग का फ़लादेश

विषकुम्भ राहु
जातक देखने मे बहुत खूबशूरत होता है लेकिन मन के अन्दर चालाकी और छलकपट का भरा होना पाया जाता है,अक्सर इस योग मे जन्म लेने वाले जातक डाक्टर सर्जन दवाई बनाने वाले लोगो की पीडा को हरण करने के लिये अपने प्रकार से सहायता देने वाले होते है। इस योग मे जन्म लेने वाला जातक अगर किसी के प्रति सहायता करता है तो जातक के प्रति जिसकी सहायता की गयी है भूल नही पाता है और क्यों ही नही जातक सहायता करने वाले व्यक्ति के प्रति छल कपट या धोखा देने वाले काम किये हों,फ़िर भी जातक के प्रति लोग समर्पित भावना से ही काम करने के लिये अपनी गुहार लगाते है। जातक के पास जो भी जमा पूंजी होती है वह जातक के आगे की सन्तान के लिये दिक्कत वाला काम ही करती है जातक की सन्तान अधिक पूंजी या ग्यान की वजह से साथ ही अधिक दिमाग का प्रयोग नही कर पाने की बजह से परेशान होती रहती है। अक्सर जातक को फ़ोडा फ़ुंसी खून की बीमारी शुगर आदि की बीमारी उम्र की आखिरी मे मिलती है

प्रीति चन्द्रमा
जातक के अन्दर दया भाव अधिक होता है और जातक को बिना सोचे समझे लोगो से प्रेम करने का मानस बना रहता है जातक जिस किसी से सलाह लेता है अक्सर ठगा ही जाता है,जातक का मन आहत होता है लोगो के लिये वह दया के प्रति भावना रखता है लेकिन स्वार्थी लोग उसकी दया का अनुचित फ़ायदा उठाते रहते है रास्ते चलते लोगो की आफ़त को गले बांधना भी एक आदत होती है और कभी कभी इस प्रकार के लोग बहुत अधिक चिन्ता मे जाने के कारण सिर दर्द के मरीज बन जाते है शरीर कमजोर हो जाता है पुरुष है तो स्त्रियों के द्वारा और स्त्री है तो पुरुषो के द्वारा भावनात्मक रूप से प्रताणित किया जाता है जब भी राहु का प्रभाव जीवन मे आता है इस प्रकार के जातक अपने को अपने ही कार्यों से इतना बांध लेते है कि जब बन्धन नही खुल पाते है तो खुद को समाप्त करने की भी ठान लेते है

आयुष्मान गुरु
जातक माता पिता के द्वारा सन्तो और महापुरुषो के आशीर्वाद से पैदा होना माना जाता है जातक के जन्म के पहले जातक के माता पिता के द्वारा बहुत ही धार्मिक काम और पूजा पाठ तथा अपने धर्म के अनुसार महान कृत्य किये गये होते है।जातक सम्पूर्ण जीवन को जीने वाला होता है कभी कभी के अलावा उसे कोई कष्ट नही होता है जीवन साथी की तरफ़ से कष्ट मिलने की बात मिलती है कोई भी चाहे जातक का भला नही चाहे फ़िर भी जातक अपनी मौज मे मस्त रहता है।जातक किसी को भूल से भी आशीर्वाद देता है तो वह आशीर्वाद सफ़ल हो जाता है किसी के प्रति दुर्भावना से सोची गयी बात कभी भी पूरी नही होती है

सौभाग्य बुध
जातक जन्म से ही अपने माता पिता तथा परिवार के लिये अपने अनुसार भाग्य वर्धक फ़ल देने वाला होता है जातक के अन्य स्थान पर भी जाने के बाद जहां वह रात भर भी विश्राम कर लेता है वहां के लोग सुखी होने लगते है। जातक की तेरह साल की उम्र के बाद जातक को भटकाव मिलता है लेकिन वह भटकाव जातक को पढने से अधिक करने से शिक्षा का देने वाला होता है उसकी रुचि बहिन बुआ के पास रहने की अधिक मिलती है वह अपने पिता से दूर ही रहता है साथ ही माता का साथ आजीवन रहता है लेकिन वह माता के प्रति आश्वस्त होने के कारण माता को समझ नही पाता है माता के मरने के बाद भी माता का आशीर्वाद उसके साथ हमेशा रहता है जातक के सन्तान की कमी मानी जाती है लेकिन अल्प सन्तान होने के कारण तथा सन्तान का हर बात मे अनुगामी होने के कारण जातक को जीवन पर्यन्त धन यश सम्मान और पारिवारिक जीवन मे दिक्कत नही आती है जातक को बुरे लोगो के द्वारा प्रताणित जरूर किया जाता है लेकिन कोई भी शत्रु की चाल जातक के लिये सफ़ल नही हो पाती है जातक का पतन तभी शुरु होता जब जातक के अन्दर बुरी भावनाये भर जाती है जातक तामसी कारणो मे चला जाता है या जीवन साथी के द्वारा अधिक लोभ के कारण जातक को बुरे रास्ते पर भेजने के लिये देखा जाता है। अगर जातक के मन मे व्यभिचार नही भरे तो जातक अपनी पूरी उम्र को जीता है और अपने कुटुम्ब के हाथ ही मोक्ष को प्राप्त होता है

शोभन शुक्र
जातक की छवि अतुलनीय होती है जिसके सामने भी जाता है जातक के प्रति सभी को मोह होता है माता के प्रति भी जातक का अधिक लगाव रहता है उसे पत्नी या पति की तरफ़ से भी भौतिक सुख अधिक मिलते है लेकिन धन सम्पत्ति के अलावा मानसिक रूप से जातक को कष्ट मिलने की बात अधिक मिलती है जातक की सन्तान अधिक भोग मे जाने के कारण और तकनीकी रूप से मन को नही प्रयोग करने के कारण एक प्रकार से अयोग्य ही मानी जाती है जातक के प्रति सजावटी कामो के करने के लिये साथ ही लोगो के अन्दर अधिक प्रसिद्ध होने और विरोधी यौन सम्बन्धो के कारण जातक के शरीर मे कोई आन्तरिक रोग हमेशा के लिये लग जाता है जो जातक के जीवन को तबाह करने के लिये माना जाता है

अतिगंड केतु
जातक के जन्म लेने के बाद ही सातवे दिन सातवे महिने सातवी साल तक पिता के लिये कष्ट का समय माना जाता है अगर पिता बच जाता है तो जातक के प्रति भी अस्पताली कारण बने रहते है जिस दिन से जातक पैदा होता है परिवार पर आफ़तो का पहाड ही किसी न किसी रूप मे टूटता रहता है जातक की बीमारी या पिता का कार्य आदि से मुक्त होना अथवा मामा परिवार के प्रति अक्समात ही आफ़ते आना भी माना जाता है,जातक को पेट के रोग अधिक होते है अक्समात ही आंतो की खराबी चमडी के रोग ऊंचे स्थान से नीचे गिरने के कारण लोगो के द्वारा पहले सामाजिक रूप से बढावा देने और बाद मे अक्समात ही अपमान करने से जातक को मान हानि की आशंका बनी रहती है अक्सर जातक का धन किसी न किसी प्रकार से चोर डकैत आदि लोगो से लूटा जाता है या उसके साथ बडी ठगी के लिये भी कई कारण बनते है जातक के सिर के आगे के बाद जवानी मे ही उडने लगते है और जातक के पैर के अंगूठे के साथ वाली गांठ अक्सर उभरने लगती है जिससे पैरो की बनावट बेहूदी हो जाती है,जातक का ध्यान बाहरी लोगो की तरफ़ अधिक होता है उसकी माता से कभी नही बनती है वह माता को प्रताणित करना जानता है पिता से केवल स्वार्थ तक ही साथ रहता है जातक के नाना नानी की मौत बहुत ही बुरी बीमारी मे होती है जातक के मामा आदि के अन्दर कोई न कोई अपंगता जरूर मिलती है

सुकर्मा सूर्य
जातक का लगाव राजनीति और सामाजिक कामो की तरफ़ अधिक होता है जातक घर बाहर देश राज्य आदि के बारे मे राजनीति करना जानता है अक्सर सरकारी सेवा मे जाना होता है तकनीकी कामो को जानने के कारण जातक का नाम और यश भी होता है अच्छा इंजीनियर या वास्तुविद भी होना माना जाता है जातक का चेहरा चौकोर होता है जातक धन आदि के बारे मे कमाने और खर्च करने मे माहिर होता है जातक को कभी भी धन की कमी महसूस नही होती है जब भी धन की कमी होती है ईश्वरीय कृपा जातक को धन और सुख को प्रदान करने वाली होती है लोग उसके द्वारा बताये गये साधनो से ही काम लेने वाले होते है कभी कभी जातक के सामने अजीब से प्रतिद्वंदी सामने आते है लेकिन जातक अपनी तकनीकी सूझ बूझ और कार्य की चतुरता से किसी भी दिक्कत का सामना आराम से कर लेता है जातक के हाथो की उंगलिया पतली और कलाकारी से पूर्ण होती है जातक को भूख अधिक लगती है साथ ही जातक विरोधी यौन सम्बन्धो की तरफ़ भी अधिक आकर्षित होता है जातक अपने जीवन साथी को किसी भी मामले मे सन्तुष्ट रखना जानता है

धृति शनि
जातक के जन्म के बाद ही सर्दी आदि की बीमारियां परेशान करती रहती है नाक का बहना सांस मे आवाज आना शरीर का पतला होना सूखा जैसे रोगो से पीडित होना आदि भी माना जाता है जातक अपनी उम्र के दूसरे भाग मे कार्य के लिये परेशान होता है दूसरो की सेवा करने के बाद ही उसे जीविका का साधन मिल पाता है और बहुत मेहनत करने के बाद ही उसे जीविका से जीवन चलाने मे माना जाता है जातक का जीवन साथी बहुत तेज बोलने वाला और क्रोध करने वाला होता है जातक का परिवार मेहनत वाले कामो मे ही संलग्न रहता है जातक की माता को भी तरह तरह की बीमारिया होती है और जातक की माता की मृत्यु लम्बी बीमारी या गठिया जैसे रोगो से होनी मानी जाती है जातक की घूमने की बहुत इच्छा होती है लेकिन कभी कभी जातक के दिमाग मे एक दौरा सा पडता है और जातक सभी काम धन्धे छोड कर बैठ जाता है जातक को भी पेट की बीमारी और झूठ बोलने की आदत भी होती है जातक को नीच संगति मे बैठने का कारण होता है अक्सर नीचे लोगो की संगति के कारण जातक को तामसी चीजे खाने पीने का शौक भी होता है,जातक को काला रंग पसन्द होता है जातक के रहने वाले स्थान का निर्माण अधिकतर पिता के द्वारा ही करवाया जाता है नही होने पर जातक को किराये आदि के मकान मे ही संकुचित जगह मे रहने का ही फ़ल मिलता है

शूल राहु
जातक का शरीर दुबला पतला होता है माथा चौडा और थोडी पतली होती है जातक शुरु से ही माता के लिये कष्ट का कारक होता है पिता के द्वारा पैदा होने के बाद तामसी कारणो मे जाने से तथा ननिहाल खानदान के द्वारा पिता और पिता परिवार के लिये बुरा सोचने के कारण अक्सर पारिवारिक क्लेश का कारण बना रहना होता है। जातक के परिवार वाले शुरु मे तो पास मे रहते है लेकिन माता की हठधर्मी के कारण पिता एक साथ जातक को दूर जाकर अभाव मे रहना पडता है। जातक के दादा और पिता मे आपसी सामजस्य पिता की आदतो से नही बैठ पाता है जातक को ऊंचे स्थान से कूदने पेडो पर चढने या ऊंचे स्थान पर जाने तथा रोमांच आदि के काम करने से शरीर हानि की आशंका भी रहती है जहां पर जातक रहता है उसके प्रति लोग आशंकित ही रहते है वह परिवार मे रहता है तो परिवार वाले और कार्य स्थान मे रहता है तो कार्य स्थान वाले लोग उससे डरते ही रहते है कब कैसे और क्या कर बैठे किसी को पता नही होता है।झूठी बात सोचने या कहने के पहले जातक को नाक या कान सहलाने की आदत से भी परखा जा सकता है।

वृद्धि बुध
जातक के पैदा होने के बाद परिवार कुल सम्पदा और नाम धन आदि की बढोत्तरी होने लगती है पिता और परिवार दिन दूना रात चौगुना बढने लगता है,जातक का पालन बहिन या बुआ के द्वारा शुरु मे होता है और जातक घर की बहिन बुआ बेटी का दुलारा होता है,जातक के अन्दर शुरु से ही व्यापारिक और लोगो से सम्पर्क बनाने के गुण होते है जातक के अन्दर मीठा बोलने की आदत भी होती है और सेवा भावना भी होती है। जातक के पैदा होने के बाद पिता को राजयोग जैसी बात मिलती है माता को सुखी रहने के लिये भूमि भवन और सम्पत्ति की प्राप्ति होती रहती है माता का आकर्षण अधिकतर गहनो और धन को इकट्ठा करने के प्रति होता है साथ ही माता कंजूस प्रकृति की भी होती है जातक शिक्षा मे अपने को आगे बढाता जाता है और धन तथा बैंक आदि की शिक्षा मे निपुण होता है अक्सर जातक के पैदा होने के बाद जातक की कोई बुआ या बहिन अपने परिवार से विमुक्त हो जाती है,जातक का जीवन साथी कर्कश स्वभाव का होता है लेकिन उसके इस स्वभाव से परिवार मे सुरक्षा की सीमा बढ जाती है जातक के परिवार के साथ जातक के रहने के समय मे कोई अपघात नही होती है जातक अपनी बुद्धि से सभी आफ़तो को एक किनारे करता रहता है

ध्रुव सूर्य
जातक पैदा होने के बाद साम दाम दण्ड भेद आदि की नीतियों वाली शिक्षा मे निपुण होता है वह अपने नाम के आगे धन को महत्ता नही देता है जातक के पिता के प्रति संदेह किया जाता है लेकिन माता को बचपन से ही अभावो मे जीने की आदत होती है और वह बुद्धि से बहुत चतुर होती है साथ ही धन की महत्ता माता के अन्दर भी नही होती है वह अपने परिवार को कम साधनो मे भी चलाने की हिम्मत रखती है माता को कपडो जेवरो और धन सम्पत्ति से कोई लगाव अधिक नही होता है वह संतोषी स्वभाव की होती है पिता के अन्दर अधिक चतुरता के कारण या तो दूसरी माता का होना होता है या पिता का लगाव जातक के प्रति कम ही होता है जातक अपने प्रयासो से आगे बढने वाला होता है जातक अपने शौर्य से अपने काम और नाम को उन्नति देने वाला होता है

व्याघात मंगल
जातक का स्वभाव खरा होता है वह किसी भी बात को कटु रूप मे कहने वाला होता है उसके कई प्रकार के दुश्मन बन जाते है और जातक के प्रति मानसिक दुश्मनी पालने लगते है जातक का शुरु का जीवन अभावो मे ही बीतता है उसे कठिन परिस्थिति मे शुरु का जीवन निकालना होता है लेकिन जवानी मे उसे सुख मिलने शुरु हो जाते है वह अपने को इतना कठोर बना लेता है कि किसी भी हालत मे अपने को रख सकता है उसे सुख की चिन्ता नही रहती है जंगल पहाड दुर्गम स्थान खतरो से खेलने के लिये वह अपने को अभ्यस्त कर लेता है,अक्सर उसकी कमजोरी का फ़ायदा उठाकर उसके अपने ही लोग उसके साथ घात करते है और जीवन को समाप्त करने की कोशिश करते है लेकिन बहुत ही ग्रह स्थिति कमजोर होने पर ही उसके साथ घात हो सकती है अन्यथा उसके अन्दर चीते जैसी फ़ुर्ती होने के कारण वह किसी भी घात से बच जाता है जातक के अन्दर दया भाव की कमी होती है और वह हिंसक रूप से अधिक प्रसिद्ध होता है

हर्षण केतु
जातक का काम संचार के साधनो मे अधिक होता है वह चुगली करने का कारक भी होता है मीडिया या इसी प्रकार के क्षेत्र मे उसे सफ़लता मिलती है रोजाना के कामो मे संचार टेलीफ़ोन या मीडिया आदि के कामो मे वह अपने को व्यस्त रखता है,धागे का काम भी जातक के लिये फ़ल दायी होता है माता के परिवार से प्रेम होता है नाना के संस्कार उसके अन्दर होते है वह आदेश का पालन करने वाला होता है लोगो की सहायता के काम करने की आदत होती है अपने को जनता के कामो मे अग्रणी रखता है और राजनीति मे जाने के बाद लोगो की सहायता भी संचार के साधनो से करता है कद छोटा होता है लेकिन बुद्धि मे बहुत तेज होता है खुद कोई बुरा काम नही करने के बाद दूसरो से प्रतिस्पर्धा मे प्रतिद्वंदी को पछाडने की आदत होती है,भीड के साथ रहना और एक साथ हमला करने की भी आदत होती है हथियार आदि चलाने की विशेष योग्यता होती है शुरु का जीवन किसी बडे आदमी की सहायता मे बीतता है जिससे लोगो मे उठने बैठने और बात करने का लहजा भी आजाता है धन के मामले मे अनिश्चितता रहती है कभी बहुत होता है और कभी बिलकुल नही होता है तंत्र मंत्र और इसी प्रकार के कामो मे बहुत लगाव होता है जादुई बाते और उन पर अमल करना भी देखा जाता है

बज्र मंगल
जातक शरीर से बलवान होता है कुस्ती शरीर से किये जाने वाले काम सिक्योरिटी वाले काम लडाई झगडा मे शरीर को प्रयोग करने वाले काम रीकवरी आदि के काम करने तथा लोगो से शरीर बल से जूझने की कला होती है अक्सर इस योग मे पैदा होने वाले जातक अपने शरीर की आहुति लोगो के लिये देते है और सुरक्षा आदि के कारको मे अपनी जान गंवाते देखे जाते है,इस योग मे जन्म लेने वाले जातक अक्सर अपने से बहुत ही कम उम्र के लोगो के साथ जैसे पुरुष स्त्री के लिये और स्त्री पुरुष के लिये अपनी कामेक्षा को जाहिर करते देखे जाते है अप्राकृतिक रूप से मैथुन करना और मैथुन मे शरीर को प्रताणित करना भी देखा जाता है अक्सर इस योग मे पैदा होने वाले जातक दूषित विचारधारा के अन्दर फ़ंस जाते है साथ ही अपनी घरेलू मान मर्यादा को भूल कर दूसरे लोगो की संगति मे आकर बडे से बडे कुकर्म भी कर बैठते है

सिद्धि गणेश
जातक के अन्दर जन्म से ही एक प्रकार की ईश्वरीय शक्तियों का निवास होना माना जाता है जातक वेद पुराण ग्यान बैराग्य की तरफ़ बढता जाता है अधिक भाषाओ की जानकारी जातक को हो जाती है वह किसी भी प्रकार की सभा आदि मे अपने वचनो से प्रसिद्ध होता है लेकिन धन की कमी अधिकतर खुद के लिये देखी जाती है लेकिन भोजन वस्त्र और रहने के स्थान की कमी नही होती है जातक की सन्तान आगे जाकर धन और लाभ के प्रति अग्रसर होती है अक्सर द्वि पति या द्वि पत्नी योग देखा जाता है,लेकिन सामजस्य बिठाने मे जातक को कोई कठिनाई नही होती है,लोगो के द्वारा पूज्य भी होता है और ऊंची शिक्षा को प्राप्त करने मे तथा बडे लोगो की संगति मे भी जाने से जातक को आशीतीत फ़ायदा होता देखा जाता है अक्सर इस योग मे पैदा होने वाले जातक सलाहकार की सेवा मे अधिक काम करते है और जीवन भर लोगो को सलाह देने की बात करते है,यही सलाह देने के काम से ही उन्हे आजीविका की प्राप्ति होती है

व्यतीपात यम
जातक का स्वभाव सेना मे जाने पुलिस मे जाने या जासूसी क्षेत्र मे जाने का होता है वह रक्षा वाले कारको मे सबसे आगे देखा जाता है बुराइयों को समाप्त करने मे उसे हत्या जैसे काम करने से भी परहेज नही होता है कानूनी कामो मे उसे विशेष सफ़लता मिलती है राजनीति मे जाने और राजनीति मे फ़ैली कुरीतियों को समाप्त करने मे वह अपने शरीर का भी ख्याल नही रखता है जीव हिंसा केवल मारक जीवो के लिये ही देखी जाती है जातक कभी भी मांस मदिरा आदि का सेवन नही करता है और किसी प्रकार की संगति मे करने लगता है तो फ़ौरन उसके शरीर मे कोई बीमारी या आफ़त होनी शुरु हो जाती है पिता के स्वभाव से विपरीत स्वभाव होता है बिजली के काम करना शक्ति से पूर्ण काम करना आदि धन की आवक के मुख्य स्तोत्र होते है

वरीयान शुक्र
इस योग मे पैदा होने वाला जातक अक्सर शिक्षा के क्षेत्र को चुनता है और किसी भी प्रकार की शिक्षा को देने और उसके द्वारा लोगो के जीवन को सुधारने का कारण उसके पास होता है भले ही वह गरीब परिवार मे पैदा हुआ हो लेकिन उसके पास शिक्षा के द्वारा लोगो को धनी बनाने की कला होती है वह कारणो को अपने लिये प्रयोग नही कर सकता है लेकिन दूसरो के लिये साधना का रूप बताना उसकी आदत मे होता है। रोजाना जी जिन्दगी बहुत ही समय से चलने वाली होती है समय से जगना समय से सोना और सभी शरीर परिवार और समाज के कामो को समय से करने की आद्त होती है रोजाना जी जिन्दगी से जातक की पहिचान की जाती है जातक न तो अधिक बोलता है और न ही अधिक हंसता है केवल मनोधारणा से जातक की पहिचान होती है वही बात करता है जो बात लोगो के लिये कल्याणकारी होती है।

शिव शंकर जी
इस योग मे पैदा होने वाला जातक शुरु से मनमर्जी का अधिकारी होता है उसे शरीर की कोई चिन्ता नही होती है अघोरी बातो मे उसे अधिक देखा जाता है वह सभी प्रकार के भोजन करने नशे वाले कारक प्रयोग करने जहरीले जीव जन्तुओं की पालना करने खुद के अन्दर अपने को मस्त रखने तथा लोगो के लिये कल्याणकारी कारक पैदा करने के लिये माना जाता है। जातक को समय कब अच्छा है कब बुरा है का कोई पता नही होता है कपडो रहने के स्थान तथा पारिवारिक रूप जातक के लिये कोई मायना नही रखता है अक्सर इस योग मे पैदा होने वाले जातक जवानी के बाद या तो साधु संतो की श्रेणी मे आजाते है या अज्ञात जीवन जीना शुरु कर देते है।

सुवृद्धि लक्ष्मी
जातक धनी परिवार मे जन्म लेता है और अपने समय मे धन की वृद्धि का कारण बनता है सन्तान से हमेशा दुखी रहता है माता पिता के अनुसार चलने मे जीवन साथी से अनबन रहती है,धन ही मुख्य सोच होती है रोजाना की जिन्दगी के अन्दर केवल वही कारण देखे जाते है जो धन से सम्बन्धित होते है।

साध्य सरस्वती
इस योग मे पैदा होने वाला जातक ऊंची शिक्षाओं के प्रति समर्पित रहता है,कई प्रकार की डिग्री डिप्लोमा आदि लेकर बडे पद पर आसीन होता है उसे किसी प्रकार के धन आधि का लोभ नही होता है वह केवल जगत कल्याण वाले काम करने के लिये अपनी योग्यता को प्रस्तुत करता है कभी कभी झूठे लोगो के चक्कर मे अपमान सहना पडता है और इस अपमान के कारण अक्सर जातक के शरीर मे कई प्रकार की बीमारिया भी लग जाती है जातक जहां भी रहता है वहां के माहौल मे उसकी पहिचान मानी जाती है अक्सर इस योग मे पैदा होने वाले जातक अविवाहित ही रहते है अगर शादी किसी प्रकार से हो भी जाती है तो वैधय्व जैसे योग देखने पडते है या पति या पत्नी से आजीवन किसी न किसी बात पर अनबन का कारण ही बना रहता है

शुभ रिद्धि
जातक का मन हमेशा अच्छे और न्याय के कार्यों मे लगता है उसके द्वारा किसी भी प्रकार के अनैतिक काम मे जाने का योग नही बनता है माता खानदान धनी होता है तथा नाना खानदान के द्वारा जातक को सहायता मिलती रहती पिता का जगत कल्याणकारी होने के कारण समय कम मिल पाता है और पिता की तरफ़ जातक को उपेक्षा ही मिलती है। रोजाना की जिन्दगी उसके सभी प्रकार के साधन होने के बावजूद भी वह लोगो के लिये अपने शरीर को कष्ट देने के लिये अपने समय को प्रयोग मे लेता है रसायन शास्त्र और गणित ज्योतिष आदि मे उसकी अच्छी जानकारी होती है

शुक्ल चन्द्रमा
शुक्ल योग मे जन्मा व्यक्ति जीवन की ऊंचाइयो को सहज ही प्राप्त कर लेता है उसके जन्म के बाद पिता से और माता से आपसी मतभेद पैदा हो जाते है माता के द्वारा ही जातक का पालन पोषण किया जाता है माता के द्वारा कष्टमय जीवन जीने के कारण जातक की बहुत सी इच्छाये पूरी नही हो पाती है,शादी के बाद जातक अपने जीवन साथी के साथ जीवन की सभी अपूर्ण इच्छाओ की पूर्ति चाहता है अक्सर इसी कारण से जातक का जीवन साथी के परिवार से तनाव हो जाता है और यही तनाव आजीवन बना रहने से जातक की भी अपनी माता की तरह से हालत हो जाती है अगर जातक पुरुष जातक है तो जातक आजीवन संघर्षों से घिरा रहने के बावजूद भी अपनी इच्छाओ की पूर्ति नही कर पाता है,जातक के लिये बुरा समय जीवन के शुरुआत से ही शुरु होना माना जाता है लेकिन उम्र की अधेड अवस्था से जातक के लिये अच्छा समय शुरु हो जाता है.

ब्रहम ब्रह्मा
इस योग मे पैदा होने वाला जातक सभी प्रकार की विद्याओ मे प्रवीण हो जाता है शुरु मे पिता के द्वारा पालन पोषण किया जाता है माता का कम साथ मिलता है बडे होने पर उसकी परवरिस उसके पुत्रो के द्वारा की जाती है पत्नी का या पति का साथ कम मिलता है कन्या सन्तान की अधिकता हो जाती है और जातक इन्ही कारणो से या तो बहुत ही भ्रमित रहता है या फ़िर किसी प्रकार से पूज्यनीय होकर जीवन को जीता है। शिक्षा का क्षेत्र लोगो के लिये उपदेश देने का क्षेत्र धर्म गुरु का क्षेत्र आदि क्षेत्रो मे जातक प्रसिद्धि लेता है

एन्द्र इन्द्र
इस योग मे पैदा होने वाला जातक सभी सुख सुविधाओ से युक्त होता है और राजनीति आदि मे जाकर ऐश्वर्य का जीवन जीता है,सवारी रहन सहन आदि की सुविधा जातक को जन्म से ही मिल जाती है जनता की सेवा करने का अवसर भी खूब प्राप्त होता है अक्सर लोगो के लिये अपने कार्यों से गणमान्य व्यक्तियों मे गिना जाता है

वैधृति धूमावती
इस योग मे पैदा होने वाला जातक अक्सर पिता से हीन होकर ही पैदा होता है इसका कारण या तो जातक का पिता स्वर्ग सिधार गया होता है या माता पिता से विलग होकर रहती है.अगर नही तो जातक जीवन मे जब भी शादी करता है वह अपने जीवन मे वैवाहिक सुख को प्राप्त नही कर पाता है। जातक को जीभ की बीमारिया होती है जातक असत्य वचनो के प्रति अधिक अग्रसर रहता है,जब भी कोई बाधा जीवन को परेशान करती है जातक घर द्वार छोड कर दूर चला जाता है या एकान्त वास करने लगता है,जातक के जीवन मे धन का हमेशा अभाव रहता है जल्दी से धन कमाने के साधनो की तरफ़ जाने से कर्जाई होना भी देखा जाता है कोई न कोई असाध्य बीमारी जीवन के अन्त मे लग जाती है
🙏 आजका सदचिंतन 🙏
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प्रतिकूलता का सामना बहादुरी से
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हमें प्रत्येक अवसर और समय का बेहतर उपयोग करना चाहिए और हमारे भीतर – बाहर की प्रतिकूलताओं का बहादुरी से सामना करने की क्षमता पैदा करनी होगी। तब न तो कोई व्यक्ति और न ही कोई परिस्थिति हमें हरा सकेगी, न भयभीत कर सकेगी।
हम सबको अपना मानसिक फलक विकसित करना चाहिए, अपनी भावनाओं में व्यापकता की अनुभूति करनी होगी। यदि हमारे प्रयासों की दिशा सही होगी, तो अवसर भी सही परिणाम प्रदान करेगा।

    *विचार क्रांति अभियान*

🙏 सबका जीवन मंगलमय हो 🙏
[: हिन्दुओं के पवित्र पांच सरोवर, जानिए कौन से हैं????????

‘सरोवर’ का अर्थ तालाब, कुंड या ताल नहीं होता। सरोवर को आप झील कह सकते हैं। भारत में सैकड़ों झीलें हैं लेकिन उनमें से सिर्फ 5 का ही धार्मिक महत्व है, बाकी में से कुछ का आध्यात्मिक और बाकी का पर्यटनीय महत्व है। श्रीमद् भागवत और पुराणों में प्राचीनकालीन 5 पवित्र ऐतिहासिक सरोवरों का वर्णन मिलता है।

जिस तरह 4 पवित्र वटवृक्ष (प्रयाग में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट-बौद्धवट और उज्जैन में सिद्धवट हैं) हैं, जिस तरह 7 पुरी (काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, माया, कांची और अवंति (उज्जैन)) हैं, जिस तरह पंच तीर्थ (पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार एवं प्रयाग) हैं और जिस तरह अष्ट वृक्ष (पीपल, बढ़, नीम, इमली, कैथ, बेल, आंवला और आम) हैं, जिस तरह 9 पवित्र नदियां (गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा, ब्रह्मपु‍त्र, विस्ता) हैं उसी तरह 5 पवित्र सरोवर भी हैं।

हिन्दुओं ने अपने पवित्र स्थानों को परंपरा के नाम पर अपवित्र कर रखा है। उन्होंने इन पवित्र स्थानों को मनोरंजन और पर्यटन का केंद्र तो बना ही रखा है, साथ ही वे उन स्थलों को गंदा करने के सबसे बड़े अपराधी हैं। गंगा किनारे अपने मृतकों का दाह-संस्कार करना किसी शास्त्र में नहीं लिखा है। गंगा में पूजा का सामान फेंकना और जले हुए दीपक छोड़ना किसी भी हिन्दू शास्त्र में नहीं लिखा है। फिर भी ऐसा कोई हिन्दू करता है तो वह गंगा और सरोवरों का अपराधी और पापी है। खैर… आओ जानते हैं हम उन 5 सरोवरों के बारे में जिसमें से एक को छोड़कर बाकी सभी की हिन्दुओं ने मिलकर हत्या कर दी है।

पहला सरोवर कैलाश मानसरोवर : – बस यही एक मानसरोवर है, जो अपनी पवित्र अवस्था में आज भी मौजूद है, क्योंकि यह चीन के अधीन है। कैलाश मानसरोवर को सरोवरों में प्रथम पायदान पर रखा जाता है। इसे देवताओं की झील कहा जाता है। यह हिमालय के केंद्र में है। इसे शिव का धाम माना जाता है। मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। यह हिन्दुओं के लिए प्रमुख तीर्थस्थल है। संस्कृत शब्द ‘मानसरोवर’, मानस तथा सरोवर को मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- ‘मन का सरोवर’। हजारों रहस्यों से भरे इस सरोवर के बारे में जितना कहा जाए, कम होगा।

हिमालय क्षेत्र में ऐसी कई प्राकृतिक झीलें हैं उनमें मानसरोवर सबसे बड़ा और केंद्र में है। लद्दाख की एक निर्मल झील।

मानसरोवर लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में राक्षसताल है। इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। यह समुद्र तल से लगभग 4,556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर टेथिस सागर का अवशेष है। जो कभी एक महासागर हुआ करता था, वह आज 14,900 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित है। इन हजारों सालों के दौरान इसका पानी मीठा हो गया है, लेकिन जो कुछ चीजें यहां पाई जाती हैं, उनसे जाहिर है कि अब भी इसमें महासागर वाले गुण हैं।

कहते हैं कि इस सरोवर में ही माता पार्वती स्नान करती थीं। यहां देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। यह स्थान पूर्व में भगवान विष्णु का स्थान भी था। हिन्दू पुराणों के अनुसार यह सरोवर सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। बौद्ध धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि रानी माया को भगवान बुद्ध की पहचान यहीं हुई थी। जैन धर्म तथा तिब्बत के स्थानीय बोनपा लोग भी इसे पवित्र मानते हैं।

दूसरा सरोवर नारायण सरोवर : – नारायण सरोवर का संबंध भगवान विष्णु से है। ‘नारायण सरोवर’ का अर्थ है- ‘विष्णु का सरोवर’। यहां सिंधु नदी का सागर से संगम होता है। इसी संगम के तट पर पवित्र नारायण सरोवर है। पवित्र नारायण सरोवर के तट पर भगवान आदिनारायण का प्राचीन और भव्य मंदिर है। नारायण सरोवर से 4 किमी दूर कोटेश्वर शिव मंदिर है।

इस पवित्र नारायण सरोवर की चर्चा श्रीमद् भागवत में मिलती है। इस पवित्र सरोवर में प्राचीनकालीन अनेक ऋषियों के आने के प्रसंग मिलते हैं। आद्य शंकराचार्य भी यहां आए थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस सरोवर की चर्चा अपनी पुस्तक ‘सीयूकी’ में की है।

नारायण सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन का भव्य मेला आयोजित होता है। इसमें उत्तर भारत के सभी संप्रदायों के साधु-संन्यासी और अन्य भक्त शामिल होते हैं। नारायण सरोवर में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी करते हैं।

गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तहसील में स्थित है नारायण सरोवर। नारायण सरोवर पहुंचने के लिए सबसे पहले भुज पहुंचें। दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद से भुज तक रेलमार्ग से आ सकते हैं। प्राचीन कोटेश्वर मंदिर यहां से 4 किमी की दूरी पर है।

तीसरा सरोवर पुष्कर सरोवर : – राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। इस झील का संबंध भगवान ब्रह्मा से है। यहां ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर बना है। पुराणों में इसके बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह कई प्राचीन ऋषियों की तपोभूमि भी रहा है। यहां विश्व का प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है, जहां देश-विदेश से लोग आते हैं। पुष्कर की गणना पंच तीर्थों में भी की गई है।

पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहां आकर यज्ञ किया था। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। विश्वामित्र के यहां तप करने की बात कही गई है। अप्सरा व मेनका यहां के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। सांची स्तूप दानलेखों में इसका ‍वर्णन मिलता है। पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् 125 का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर 3,000 गायों एवं एक गांव का दान किया था। महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। जैन धर्म की मातेश्वरी पद्मावती का पद्मावतीपुरम यहां जमींदोज हो चुका है जिसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं।

पुष्कर सरोवर 3 हैं- ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर, मध्य (बूढ़ा) पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं।

ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है। आद्य शंकराचार्य ने संवत्‌ 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई. में बनवाया था।

तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में 5 तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। अर्द्धचंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है।

झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है।

चौथा सरोवर पंपा सरोवर : – मैसूर के पास स्थित पंपा सरोवर एक ऐतिहासिक स्थल है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में पंपा सरोवर स्थित है।

पंपा सरोवर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। यहीं पर एक पर्वत है, जहां एक गुफा है जिससे शबरी की गुफा कहा जाता है। माना जाता है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपा सरोवर यही है, जो आजकल हास्पेट नामक कस्बे में स्थित है।

कर्नाटक में बैल्‍लारी जिले के हास्‍पेट से हम्‍पी जाकर जब आप तुंगभद्रा नदी पार करते हैं तो हनुमनहल्‍ली गांव की ओर जाते हुए आप पाते हैं शबरी की गुफा, पंपा सरोवर और वह स्‍थान जहां शबरी राम को बेर खिला रही है। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध ‘मतंगवन’ था।

पांचवां सरोवर बिंदु सरोवर : – बिंदु सरोवर 5 पवित्र सरोवरों में से एक है, जो कपिलजी के पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और इस स्थान पर कर्मद ऋषि ने 10,000 वर्ष तक तप किया था। कपिलजी का आश्रम सरस्वती नदी के तट पर बिंदु सरोवर पर था, जो द्वापर का तीर्थ तो था ही आज भी तीर्थ है। कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रणेता और भगवान विष्णु के अवतार हैं।

अहमदाबाद (गुजरात) से 130 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित ऐतिहासिक सिद्धपुर में स्थित है विन्दु सरोवर। इस स्थल का वर्णन ऋग्वेद की ऋचाओं में मिलता है जिसमें इसे सरस्वती और गंगा के मध्य अवस्थित बताया गया है। संभवतः सरस्वती और गंगा की अन्य छोटी धाराएं पश्चिम की ओर निकल गई होंगी। इस सरोवर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है।

महान ऋषि परशुराम ने भी अपनी माता का श्राद्ध यहां सिद्धपुर में बिंदु सरोवर के तट पर किया था। वर्तमान गुजरात सरकार ने इस बिंदु सरोवर का संपूर्ण पुनरुद्धार कर दिया है जिसके लिए वह बधाई की पात्र है। इस स्थल को गया की तरह दर्जा प्राप्त है। इसे मातृ मोक्ष स्थल भी कहा जाता है।

*अन्य सरोवर – इसके अलावा अमृत सरोवर (कर्नाटक के नंदी हिल्स पर), कपिल सरोवर (राजस्थान- बीकानेर), कुसुम सरोवर (मथुरा- गोवर्धन), नल सरोवर (गुजरात- अहमदाबाद अभयारण्य में), लोणास सरोवर (महाराष्‍ट्र- बुलढाणा जिला), कृष्ण सरोवर, राम सरोवर, शुद्ध सरोवर आदि अनेक सरोवर हैं जिनका पुराणों में ‍उल्लेख मिलता है।

*अमृत सरोवर – कर्नाटक के नंदी हिल्स पर स्थित पर्यटकों को नंदी हिल्‍स की सैर के दौरान अमृत सरोवर की यात्रा की सलाह दी जाती है जिसका विकास बारहमासी झरने से हुआ है। इसी कारण इसे ‘अमृत का तालाब’ या ‘अमृत की झील’ भी कहा जाता है। अमृत सरोवर एक खूबसूरत जलस्रोत है, जो इस इलाके का सबसे सुंदर स्‍थल है।

अमृत सरोवर सालभर पानी से भरा रहता है। यह स्‍थान रात के दौरान पानी से भरा और चांद की रोशनी में बेहद सुंदर दिखता है। पर्यटक, बेंगलुरु के रास्‍ते से अमृत सरोवर तक आसानी से पहुंच सकते हैं, जो 58 किमी की दूरी पर स्थित है। योगी नंदीदेश्‍वर मंदिर, चबूतरा और श्री उर्ग नरसिम्‍हा मंदिर यहां के कुछ प्रमुख आकर्षणों में से एक है, जो अमृत सरोवर के पास स्थित हैं।

लोणार सरोवर : महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में लोणार सरोवर विश्वप्रसिद्ध है। माना जाता है कि यहां पर लवणासुर का वध किया गया था जिसके कारण इसका नाम लवणासुर सरोवर पड़ा। बाद में यह बिगड़कर ‘लोणार’ हो गया। लोणार गांव में ही यह सरोवर स्थित है। इस सरोवर को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल कर रखा है।
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[: ज्योतिष में मंगल ग्रह को मुख्य तौर पर एक सेनापती के रुप में दर्शाया गया है. यह ताकत, साहस और पौरुष का कारक है. मंगल ग्रह शारीरिक तथा मानसिक शक्ति और ताकत का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल के प्रबल प्रभाव से व्यक्ति में साहस , लड़ने की क्षमता और मिड़रता का भाव आता है. मंगल के प्रभावस्वरुप जातक सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नहीं झुकता. मंगल के द्वारा साहस, शारीरिक बल, मानसिक क्षमता प्राप्त होती है. पुलिस, सेना, अग्नि-शमन सेवाओं के क्षेत्र में मंगल का अधिकार है खेल कूद इत्यादि में जोश और उत्साह मंगल के प्रभाव से ही प्राप्त होता है.

मंगल को ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के साहस, छोटे भाई-बहन, आन्तरिक बल, अचल सम्पति, रोग, शत्रुता, रक्त शल्य चिकित्सा, विज्ञान, तर्क, भूमि, अग्नि, रक्षा, सौतेली माता, तीव्र काम भावना, क्रोध, घृ्णा, हिंसा, पाप, प्रतिरोधिता, आकस्मिक मृत्यु, हत्या, दुर्घटना, बहादुरी, विरोधियों, नैतिकता की हानि का कारक ग्रह है.

मंगल ग्रह से संबंधित अन्य तथ्य | Other important facts related to Mars
मंगल के मित्र ग्रह सूर्य, चन्द्र और गुरु है. मंगल से शत्रु संम्बन्ध रखने वाला ग्रह बुध है. मंगल के साथ शनि और शुक्र सम सम्बन्ध रखते है. मंगल मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी है. मंगल की मूलत्रिकोण राशि मेष राशि है, इस राशि में मंगल 0 अंश से 12 अंशों के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है. मंगल मकर राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है.

मंगल कर्क राशि में स्थित होने पर नीचस्थ होता है. मंगल पुरुष प्रधान ग्रह है. मंगल दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल के सभी शुभ फल प्राप्त करने के लिए मूंगा, रक्तमणी जिसे तामडा भी कहा जाता है, इनमें से किसी एक रत्न को धारण किया जा सकता है. मंगल के लिए लाल रंग धारण किया जाता है. मंगल का भाग्य अंक 9 है. मंगल के लिए गणपति, हनुमान, सुब्रह्मामन्यम, कार्तिकेय आदि देवताओं की उपासना करनी चाहिए.

मंगल के कारण व्यक्ति को कौन से रोग हो सकते है | Diseases caused by the influence of Mars
मंगल के खराब होने या पिडी़त होने से व्यक्ति को शरीर के किसी भाग का कटना, घाव, दु:खती आंखें, पित्त, रक्तचाप. बवासीर, जख्म, खुजली, हड्डियों का टूटना. पेशाब संबन्धित शिकायतें, पीलिया, खून गिरना, ट्यूमर, मिरगी जैसे रोग प्रभावित कर सकते हैं. मंगल व्यक्ति को यौद्धाओं का गुण देता है, निरंकुश, तानाशाही प्रकृति का है.

मंगल के लिए दान की जाने वाली वस्तुएं कौन सी है | What are the things that can be donated for Mars
मंगल के दुष्प्रभावों से बचने के लिए तथा शुभ फलों की प्राप्ति के लिए मंगल से संबंधित वस्तुओं का दान किया जा सकता है. तांबा, गेहूं, घी, लाल वस्त्र, लाल फूल, चन्दन की लकडी, मसूर की दाल. मंगलवार को सूर्य अस्त होने से 48 मिनट पहलें और सूर्यास्त के मध्य अवधि में ये दान किये जाते है.

मंगल के बीज मंत्र कौन सा है | Mars’s Beej Mantra
” ॐ क्रां क्रौं क्रौं स: भौमाय नम:

मंगल का वैदिक मंत्र कौन सा है | Mars’s Vedic Mantra
“ॐ घरणीगर्भसंभूतं विद्युत कन्ति सम प्रभम।

कुमार भक्तिहस्तं च मंगल प्रणामाभ्यहम।। “

मंगल का रंग-रुप कैसा है | Physical features of a person with Mars sign
मंगल लग्न भाव में अपनी उच्च राशि में हो या लग्न में मंगल की राशि हो, अथवा किसी व्यक्ति की जन्म राशि मंगल की राशियों में से कोई एक हो, तो व्यक्ति के रंग रुप पर मंगल का प्रभाव रहता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति मध्यम कदकाठी, क्रोधी, पतला-दुबला, क्रूर, चंचल बुद्धि, पित्तीय प्रकृ्ति का होता है. मंगल शरीर में पित्त, हाथ, आंखें, गुदा और रक्त का प्रतिनिधित्व करता है

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