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मित्रों, आज का मनुष्य मानसिक तनावों से जर्जर होता हुआ संतोष और आनन्द की तलाश में इधर-उधर भटक रहा है, शांति का अहसास महसूस करने के लिए उतावला हो रहा है, वह अपनी जीवन बगिया के आसपास से स्वार्थ, क्रोध, कटुता, इर्षा, घृणा के काँटों को दूर कर देना चाहता है, उसे अपने इस जीवन रूपी उद्यान में सुगंध लानी है।

उसे उस मार्ग की तलाश है जो उसे शरीर से दृढ़ और बलवान बनाये, बुध्दि से प्रखर और पुरुषार्थी बनाये, भौतिक लक्ष्यों की पूर्ति करते हुए उसे आत्मवान बनाये, निश्चित रूप से ऐसा मार्ग है, इसे भारत के एक महर्षि पतंजली ने योगदर्शन का नाम दिया है, योगदर्शन एक मानवतावादी सार्वभौम संपूर्ण जीवन दर्शन है, भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र है।

इस भौतिकवादी , क्लेशमय जीवन में योग की सबसे अधिक आवश्कता है, थोड़ा-सा नियमित आसन और प्राणायाम हमें निरोगी तथा स्वस्थ रख सकता है, यम-नियमों के पालन से हमारा जीवन अनुशासन से प्रेरित हो चरित्र में अकल्पनीय परिवर्तन आ सकता है, धारणा एवं ध्यान के अभ्यास से वह न केवल तनावरहित होगा वरन कार्य-कुशलता में पारंगत भी हो पायेगा।

हम अपने उत्थान के साथ-साथ समाज तथा राष्ट्र के उत्थान में भी सहभागी हो सकेंगे, सज्जनों! बाबा रामदेवजी का कहना कितना सही है, ”जो रोज करेगा योग, उसे नहीं होगा कोई रोग“ योग न केवल शारीरिक क्रियाओं को सही करता है, वरन् आपके आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होता है, जिसके चलते हम किसी भी बात पर अपना ध्यान केन्द्रित करना सिख जाते हैं, इस कारण हमारी साँस लेने की प्रक्रिया भी सही हो जाती है।

हमारे जीवन में काफ़ी स्थिरता, ठहराव तथा समज-शक्ति का अनायश ही उद्भव होता दिखाई देता है, हमारा शरीर दिन-प्रतिदिन सुडौल और स्फूर्तिदायी बनता जाता है, आलस हम से कोसों दूर भाग जाता है, एक नई उमंग, नया जोश हमारे अंदर उभरने लगता है, ये ही वजह रही होगी इस महामुल्य वाक्यों की जो स्वामी विवेकानंदजी ने कहे थे।

स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था- मानव जाती को विनाश से बचाने के लिए और विश्वास की और अग्रसर करने के लिए यह अत्यावश्यक है, कि प्राचीन संस्कृति भारत में फिर से स्थापित की जाये जो अनायास ही फिर सारी दुनिया में प्रचलित होगी, यह उपनिषद और वेदांत पर आधारित संस्कृति ही आंतर-राष्ट्रिय स्तर पर एक मजबूत नींव बनकर उभरेगी

आज हम देख भी रहे हैं कि दूरदर्शन एवं शिबिर-केन्द्रों के माध्यमों से सारी दुनिया योग की दिवानी बनी दिखाई दे रही है, योग ही तो है जिसने हमे भीतरी और बाहरी प्रकृति को वश में करना सिखाया, आज हम जान गये हैं कि खुद हृष्ट-पृष्ट रहना है तथा दूसरों को भी हृष्ट-पृष्ट बने रहना सिखाना है, यों देखा जाये तो हमारी भगवत-गीता भी तो अपने आप में योग की एक परम पाठ्य पुस्तक ही तो है।

मुल्त: भगवान् श्री कृष्णा द्वारा अर्जुन को सांख्ययोग तथा कर्मयोग के बारे में ज्ञान देना क्या योग नहीं है? भगवत-गीता का हर आध्याय कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, त्यागयोग, ध्यानयोग का ही तो परिचायक रहा है, इन्हीं सिध्धान्तिक योगों के माध्यम से ही तो अर्जुन अपने शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, भावनात्मक एवम् आध्यात्मिक पहलुओं को पहचान पाये थे, सफलता और विफलता का पथ देख पाये थे, विषम मन: स्तिथि में अपना संतुलन बना पाये थे।

सुबह सूर्यनमस्कार करने का जो हमारे शास्त्रों में कहा गया है, वह सभी आसनों का पर्याय ही तो है, हर धर्म पुस्तक में मन की शांति के लिए योग का कहीं न कहीं उपयोग देखा ही जाता है, आधुनिक युग में योग का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि? हमारी व्यस्तता और भागदौड़ भरी ज़िदगी ने हमे रोगों से घेर दिया है, आज हम देख रहें हैं कि मधुमेह, रक्तचाप, सिर-दर्द, छोटी उम्र में बालों का सफेद होना जैसे आम रोग देखे जा सकते हैं।

अत्यधिक तनाव, प्रदुषण, कमाने की चिंता इत्यादि ने इन्सान को रोगग्रस्त बना दिया है, आज युवाओं में कम महेनत में ज्यादा पाने की होड़ ने उन्हें अविवेकी बना दिया है और इसी के चलते नौकरी प्रतिस्पर्धा का दूषण बन कर रह गई है जो बेवजह ही युवाओं में एक कुंठा को जन्म दे रही है, उन्हें कम उम्र में ही तनावग्रस्त कर रही है, हर व्यक्ति आगे बढ़ना चाहता है, ऊँचाइयों को छुना चाहता है, वैभवी बनना चाहता है

ये सब पाने के लिए उसे आंतरिक उर्जा चाहिए और इसका एक ही सशक्त मार्ग है योग, योग व्यायम नहीं है, योग सम्पूर्ण विज्ञान है, हमारे पूर्वजों ने शरीर को एक मन्दिर मानकर उसकी नियमित पूजा कैसे की जाये उसका पूरा-पूरा विधान बताया है, योग का अर्थ ही जोड़ना होता है, हमारा शरीर पाँच इन्द्रियों के समन्वय से ही कार्य करता है, कान, त्वचा, आँख, जीभ व नाक क्रमश: एक दूजे के पूरक हैं।

अगर नाक द्वारा शुध्ध हवा को सही तरीके से ली जाये तो शरीर की और सारी इन्द्रियां जुड़ कर अपना-अपना कार्य व्यवस्थित करने लगती है, शरीर को पूर्ण मात्र में उर्जा प्रदान करती है; कितना सरल उपाय है, ये जो साँस की रिधम है, उसी को “प्राणायाम” कहते हैं, प्राणायाम योग की एक बहुत महत्वपूर्ण कड़ी है, जिसको आपना कर हम बिना पैसे खर्च किये अपने आप को निरोगी रख सकते हैं।

“हिंग लगे न फटकरी, रंग चढ़े चौखा” बस अपने आप को इसके लिए तैयार करने भर की जरूरत है, ये नियम आप को रोगों से तो बचाएगा ही पर आप के आत्म-विश्वास को भी बढ़ाएगा, भाई-बहनों, आखिर में मैं यह कहना चाहूंगा कि योग एक ऐसी अमूल्य औषधि है जो बिना मूल्य आप को स्वस्थता प्रदान कर सकती है, आप को शक्तिवर्धक बना सकती है, आप का आत्म-विश्वास बढ़ा सकती है।

प्रातः जल्दी उठें और योग करें, योग के महत्व को समझे, और जीवन में उसे अपनाइये, योग से आपको कभी डाॅक्टर के पास नहीं जाना पड़ेगा, योग और प्राणायाम करने से आपको कभी दवाई नहीं खानी पड़ेगी, इसलिये प्रतिदिन प्रातः एक घंटे तक नियमित योग करों और फिर पूरे दिन कर्म योग करों, आज के पावन दिवस की मंगल अपराह्न आप सभी को मंगलमय् हों।

         

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