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स्नेहसिक्त हृदय की अनंत गहराईयों से आज की स्वर्णाभ भोर में आप सभी का स्वागत है ! अभिनन्दन है!! स्नेहसिक्त अभिवंदन है !!! और साथ ही अपार शुभ मंगल कामनाये भी !!!

दोस्तो ,

परमात्मा रचित संसार में प्रायः सभी कुछ अपरिवर्तित ही है….शेर की गर्जना सदियों पहले जैसी बनी हुई है…भैंसा आज भी हजार वर्ष पहले जैसा है ,, गुस्सा आता है तो वह किसी को भी मार डालता है…सांप पहले जैसे फुफकारता और डंसता था, आज भी उसी तरह करता है… इन सबके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया….

केवल मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो अपने व्यवहार में परिवर्तन कर सकता है…मनुष्य भटका हुआ देवता है…अगर उसे एक सच्चा मार्गदर्शक मिल जाए तो वह अपनी असाधारण ऊंचाई और सामर्थ्य से हर किसी को चमत्कृत कर सकता है…लेकिन अक्सर हम अपने सुखों और छोटे स्वार्थों की दौड़ में विचलित हो जाते हैं… जीवन के सबसे महत्वपूर्ण कार्य, अपने आचरण यानी चरित्र निर्माण को भुला बैठते हैं…और चार अरब छत्तीस करोड़ वर्ष बाद मिली दुर्लभ मनुष्य योनि को व्यर्थ ही गवां देते..

स्वयं विचार करें​

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