Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

{{{ॐ}}}

                                         .              #क्या_मन_की_मृत्यु_है

मनुष्य मूलतः आत्म स्वरूप है प्रकृति के साथ उसका संयोग भी अनादि है इस संयोग से ही सर्वप्रथम मन का निर्माण होता है। यही मन अहंकार एवं वासनायुक्त होकर प्रकृति तत्त्वों का संग्रह कर अपनी वासना पुर्ति हेतु विभिन्न शरीरो का निर्माण कर लेता है जिसका अन्तिम रूप यह स्थूल शरीर है यह आत्मा ऐसे सात शरीरों से आबद्ध है जो सुक्ष्म से सुक्ष्मतर होते चले गये है।ये सभी आवरण आत्मा के वस्त्र की भांति हैं ।
जिनक। उतार फेकने पर ही आत्मा का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है आवरण युक्त होने से मनुष्य आत्मा को न देखकर इन सात शरीरो को ही अपना वास्तविक स्वरूप समझने लगता है । इस भ्रान्ति को मिटाना ही आत्मदर्शन का मार्ग है
ये सभी आवरण मन की कल्पना से ही रचित है इसलिए इनके छुट जाने पर भी मन जीवित रहता है जो अपनी वासनापुर्ति हेतु पुनः नये शरीरो का निर्माण कर लेता है यह क्रम कई जन्मो तक चलता रहता है। ज्ञान की अंतिम अवस्था मे भी मन मरता नही है बल्कि वह आत्मा का ही अंग होने से उसमे विलीन हो जाता है। तथा इच्छा शक्ति के जाग्रत होने पर पुनः प्रकट हो जाता है यह प्रतिक्रिया कई कल्पों तक चलती रहती है । इसलिए सृष्टि का भी कभी अन्त नही होता जिसे हम मनुष्य का जीवन एवं मृत्यु कहते है वह एक भ्रान्त धारणा है जिसका सम्बन्ध केवल भौतिक शरीर से है। भौतिक शरीर के छुटने पर आत्मा अपने शेष छःआवरणो से युक्त रहता है जिसमे मन अपने पूर्ण भाव से जीवित रहता है । स्थूल लोक को छोड कर यह जीव चेतना सूक्ष्म लोक मे प्रवेश कर जाती है जहॉ यह अपने पूरे परिवार मन, बुद्धि ,चित्त , अहंकार ,आदि के साथ जीवित रहती है। जिससे स्थूल शरीर के अलावा समस्तअनुभूतियॉ उसे होती रहती है। मन के स्तर के समस्त कार्य वह बिना शरीर के ही सम्पादित करती रहती है। केवल स्थूल शरीर के कर्म बन्द होते है
मनुष्य के सुक्ष्म शरीर मे सात चक्र हैं जिनका सम्बन्ध स्थूल शरीर की सात मुख्य ग्रन्थियों से है । यही आध्यात्मिक, प्रगति इन्ही से सम्भवहै।
१–सहस्त्रार चक्र जिसका सम्बन्ध पीनियल ग्रन्थि से है आध्यात्मिक प्रगति इसका कार्य है
२–आज्ञाचक्र जिसका सम्बन्ध पिटयूटरी ग्रन्थि से है जो अन्तः प्रेरणा व इच्छाओं का केन्द्र है।
३–विशुद्धचक्र जिसका सम्बन्ध थाईरॉइड ग्रन्थि से हैजिसका कार्यक्षेत्र अभिव्यक्ति व बातचीत से है इसका तत्त्व आकाश है इसके खराब होने से पित्त, वात, कफ, की शिकायत होती है
४–अनाहतचक्र जिसका सम्बन्ध थाइमस ग्रन्थि से है
यह ह्रदय , फेफडे, लीवर,और संचार पद्धति को नियंत्रित करता है यह प्रेम और भावनाओ का केन्द्र है इसका तत्त्व वायु है । इस तत्त्व के खराब होने से शरारिक पीडा व निराशा होती है।
५–मणिपुरचक्र जिसजि सम्बन्ध एड्रीनल ग्रन्थि से है यह पेट लीवर व पित्ताशय को नियंत्रित करता है इसका तत्त्व अग्नि है यह शक्ति व समझदारी का केन्द्र है आनन्द ईर्ष्या व द्वेष इसी की उपज है इस तत्त्व क् बिगड़ने से चमडी के रोग, रक्त सम्बन्धी बीमारियॉ, अतिसार , संग्रहणी, ऐसिडिटी, आदि रोग होते है।
६–स्वाधिष्ठानचक्र जिसका सम्बन्ध गोनेड ग्रन्थि से है यह जनन अवयवो को नियंत्रित करता है यह जातीय शक्तियों व भावनाओं का केन्द्र है यह जल तत्त्व है । इस केन्द्र के बिगडने से कफ, सम्बन्धी रोग बहुमूत्र, अल्पमूत्र, व यौन रोग होते है।
७–मूलाधार चक्र जिसका सम्बन्ध सुपरारनेल ग्रन्थि के साथ है इसका तत्त्व पृथ्वी है यह गुर्दे, ब्लेडर व रीढ की हड्डी, को नियंत्रित करता है इसका कार्यक्षेत्र शारारिक शक्ति सर्जन शक्ति व कुण्डलिनी शक्ति है इसके खराब होने से जड़ता, सुस्ती, उदासी, शरीर मे भारीपन हड्डियो सम्बन्धी रोग तथा गुप्तांगो की तकलीफ होती है।
इस पद्धति के अनुसार किन्ही कारणों से जब ये चक्र अवरूद्ध हो जाते हैं तो प्राण उर्जा का प्रवाह रूक जाता है जिससे ये ग्रन्थिया अपना कार्य करना बन्द कर देती है जिससे विभिन्न बीमारियाँ होती है।

Recommended Articles

Leave A Comment