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आपका शत्रु या मित्र कौन है?????

  • सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
    जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥

भावार्थ:-हे नाथ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख की स्थिति) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ परिणाम में विपत्ति (दुःख) रहती है॥

मित्रों, अगर हम जीवन को खेल समझते हैं तो खेल रूपी जीवन में वहीं जितना है जिसके ज्यादा मित्र हो, और दुश्मनों की संख्या कम हो, यह खेल विचारों का हैं, यह विचार ही है जो एक व्यक्ति को देश भक्त बनाता है, और यही विचार किसी व्यक्ति को आतंकवादी बना सकता है, जिवन के उद्देश्य को जिस विचार से पोषित करते हो, वैसे बन जाते हो।

इस स्थिति में मनुष्य निरंतर इस खेल को जीतता जाता है, मनुष्य जब जीतता है तो वह अच्छे कार्य करने लगता है, और सफलता उसके कदम चूमती है, सभी उसकी तारीफ करते है और वह खुश रहता है, लेकिन जब मनुष्य के दुश्मन, मनुष्य के मित्रो से मजबूत हो जाते है, तो मनुष्य हर पल इस खेल को हारता जाता है, और हारा हुआ व्यक्ति निराश एवम क्रोधित रहने लगता है।

मनुष्य का दुश्मन और दोस्त कोई और नहीं केवल व्यक्ति का विचार ही है, मनुष्य को विचारों के चयन में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है, क्योंकि मनुष्य के दुश्मन मनुष्य को ललचाते है, और मनुष्य को लगता है कि वही उसके दोस्त है, जो लोग इस खेल को खेलना सीख जाते है वे सफल हो जाते है, और जो लोग इस खेल को समझ नहीं पाते वे असफल हो जाते है, इसलिये जीवन के खेल को अच्छे विचारों से पोषित करें।

इस खेल में ज्यादातर लोगों कि समस्या यह नहीं है कि वे अपने दोंस्तों और दुश्मनों को पहचानते नहीं, बल्कि समस्या यह है कि वे दुश्मनों को पहचानते हुये भी उन्हें चुन लेते है, ईश्वर की अनुकम्पा या सकारात्मक शक्तियाँ मनुष्य को समय-समय पर कई तरीकों से समझने के संकेत भी देती हैं, कि इस खेल को कैसे खेलना है, लेकिन यह खेल मनुष्य को ही खेलना पड़ता है।

मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र विचार है, और उसका सबसे बड़ा दुश्मन भी विचार ही है, भाई-बहनों ध्यान रहें मनुष्य के मित्रों को सकारात्मक विचार कहते है, और मनुष्य के दुश्मनों को नकारात्मक विचार कहा जाता है, मनुष्य दिन में हजारों विचारों के साथ रहता है, यानि हर पल मनुष्य एक नए दोस्त या दुश्मन का सामना करता है, मनुष्य का जीवन विचारों के चयन का एक खेल है।

इस खेल में मनुष्य को यह पहचानना होता है कि कौनसा विचार उसका दुश्मन है और कौनसा उसका दोस्त, और फिर मनुष्य को अपने दोस्त को चुनना होता है, हर एक दोस्त अपने साथ कई अन्य दोस्तों को लाता है, और हर एक दुश्मन अपने साथ अनेक दुश्मनों को लाता है, इस खेल का मूल मंत्र यही है कि मनुष्य जब निरंतर दुश्मनों को चुनता है तो उसे इसकी आदत पड़ जाती है, और अगर वह निरंतर दोस्तों को चुनता है, तो उसे इसकी आदत पड़ जाती है|

जब भी मनुष्य कोई गलती करता है और कुछ दुश्मनों को चुन लेता है तो वह दुश्मन, मनुष्य को भ्रमित कर देते है, और फिर मनुष्य का स्वंय पर काबू नहीं रहता और मनुष्य निरंतर अपने दुश्मनों को चुनता रहता है, मनुष्य के पास जब ज्यादा मित्र रहते है और उसके दुश्मनों की संख्या कम रहती है तो मनुष्य निरंतर, इस खेल को जीतता जाता है, अपने विचार को दिव्य बनाओ, आप का जीवन दिव्य बन जायेंगा।

याद रहे कि जब हमारा जन्म हुआ था, तब हम रोये थे जबकि पूरी दुनिया ने जश्न मनाया था, अपने विचारों से जीवन का उद्देश्य को इतना विराट बना दो और अपना जीवन ऐसे जियो कि हमारी मौत पर पूरी दुनिया रोये और हम जश्न मनायें, जश्न मनाने का तात्पर्य है कि हम जिस उद्देश्य के लिये मनुष्य जन्म लिया, वो उद्देश्य पूरा हुआ।

शास्त्रों का कथन है कि जीवन में किसी की निंदा मत कीजिये, निंदा से पलभर की तो संतुष्टि पाई जा सकती है, लेकिन जीवन के उद्देश्य से भटक जाते हैं, अगर आप किसी की मदद कर सकते है, तो उसकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाइये, अगर आप किसी की मदद नहीं कर सकते तो अपने हाथ जोड़िये, शुभकामनाएं दीजिये और उन्हें अपने लक्ष्य पर जाने दीजियें।

भाई-बहनों, जब जिंदगी आपको दुखी होने के सौ कारण बतायें, तो आप जिंदगी को बताओ कि आपके पास मुस्कुराने के हजार कारण है, आदमी सुखी और दुखी अपने विचारों से होता है, व्यक्ति को क्या चाहियें, दो वक्त का खाना, तन ढकने को कपड़ा और रहने को दो गज जमीन, बाकी सब अतिरिक्त है, यह अतिरिक्त ही व्यक्ति को रिश्वतखोर बनाता है, लालची बनाता हैं, गलत आचरण वाला बनाता है, कल जीवन के कुछ और उद्देश्य और आध्यात्मिक चिंतन को लेकर आपके सामने हाजिर होने की कोशिश करूँगा, आज मंगलवार के मंगल दिवस की मंगल संध्या आप सभी को मंगलमय् हो।

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