Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

काली

:दस महाविद्या में काली प्रथम रूप है। माता का यह रूप साक्षात और जाग्रत है। काली के रूप में माता का किसी भी प्रकार से अपमान करना अर्थात खुद के जीवन को संकट में डालने के समान है। महा दैत्यों का वध करने के लिए माता ने ये रूप धरा था। सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता की वीरभाव में पूजा की जाती है। काली माता तत्काल प्रसन्न होने वाली और तत्काल ही रूठने वाली देवी है। अत: इनकी साधना या इनका भक्त बनने के पूर्व एकनिष्ठ और कर्मों से पवित्र होना जरूरी होता है।
यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट होने वाली काली माता को नमस्कार। यह काली एक प्रबल शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली शिव प्रिया चामुंडा का साक्षात स्वरूप है, जिसने देव-दानव युद्ध में देवताओं को विजय दिलवाई थी। इनका क्रोध तभी शांत हुआ था जब शिव इनके चरणों में लेट गए थे।
*नाम : माता कालिका
*शस्त्र : त्रिशूल और तलवार
*वार : शुक्रवार
*दिन : अमावस्या
*ग्रंथ : कालिका पुराण
*मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा
*दुर्गा का एक रूप : माता कालिका 10 महाविद्याओं में से एक
*मां काली के 4 रूप हैं:- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली।
*राक्षस वध : रक्तबीज।
*कालीका के प्रमुख तीन स्थान है:- कोलकाता में कालीघाट पर जो एक शक्तिपीठ भी है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भैरवगढ़ में गढ़कालिका मंदिर इसे भी शक्तिपीठ में शामिल किया गया है और गुजरात में पावागढ़ की पहाड़ी पर स्थित महाकाली का जाग्रत मंदिर चमत्कारिक रूप से मनोकामना पूर्ण करने वाला है।
*काली माता का मंत्र: हकीक की माला से नौ माला ‘क्रीं ह्नीं ह्नुं दक्षिणे कालिके स्वाहा:।’ मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

       

[ देवी काली की आराधना, पूजा इत्यादि भारत के पूर्वी प्रांतो में अधिकतर होती हैं। देवी काली समाज के प्रत्येक वर्ग द्वारा पूजित हैं, जनजातीय तथा युद्ध कौशल से सम्बंधित समाज की देवी अधिष्ठात्री हैं। चांडाल जो की हिन्दू धर्म के अनुसार, श्मशान में शव के दाह का कार्य करते हैं तथा अन्य शूद्र जातियों की देवी अधिष्ठात्री हैं। डकैती जैसे अमानवीय कृत्य करने वाले भी देवी की पूजा करते हैं, आदि काल में डकैत, डकैती करने हेतु जाने से पहले देवी काली की विशेष पूजा अराधना करते थे। देवी का सम्बन्ध क्रूर कृत्यों से भी हैं, परन्तु ये क्रूर कृत्य दुष्ट प्रवृति के जातको हेतु ही हैं। इस निमित्त वे देवी के भव्य मंदिरों का भी निर्माण करवाते थे तथा विधिवत पूजा अराधना की संपूर्ण व्यवस्था करते थे। आज भी भारत वर्ष के विभिन्न प्रांतो में ऐसे मंदिर विद्यमान हैं, जहा डकैत, देवी की अराधना, पूजा इत्यादि करते थे। हुगली जिले में डकैत काली बाड़ी, जलपाईगुड़ी जिले की देवी चौधरानी (डकैत) काली बाड़ी इत्यादि, प्रमुख डकैत देवी मंदिर विद्यमान हैं। स्कन्द (कार्तिक) पुराण, के अनुसार देवी की उत्पत्ति, आश्विन मास की कृष्णा चतुर्दशी तिथि, मध्य रात्रि के घोर में अंधकार से हुआ। परिणामस्वरूप अगले दिन कार्तिक अमावस्या को उन की पूजा, अराधना तीनो लोको में की जाती हैं, ये पर्व दीपावली या दिवाली नाम से विख्यात हैं तथा समस्त हिन्दू समाजों द्वारा मनाई जाती हैं। शक्ति तथा शैव समुदाय के अनुसरण करने वाले इस दिन देवी काली की पूजा करते हैं तथा वैष्णव समुदाय महा लक्ष्मी जी की, वास्तव में महा काली और महा लक्ष्मी दोनों एक ही हैं। देवी काली की अराधना भारत के पूर्वी भाग मैं अधिक होती हैं। वहाँ जहा तहा देवी काली के मंदिर देखे जा सकते हैं, प्रत्येक श्मशान घाटो में देवी, मंदिर विद्यमान हैं तथा विशेष तिथिओं में पूजा, अर्चना भी होती हैं।
दसो महाविद्याये, देवी आद्या काली के ही उग्र तथा सौम्य रूप में विद्यमान हैं, देवी काली अपने अनेक अन्य नमो से प्रसिद्ध हैं, जो की भिन्न भिन्न स्वरूप तथा गुणों वाली हैं।
देवी काली मुख्यतः आठ नमो से जानी जाती हैं और ‘अष्ट काली’, समूह का निर्माण करती हैं।
१. चिंता मणि काली
२. स्पर्श मणि काली
३. संतति प्रदा काली
४. सिद्धि काली
५. दक्षिणा काली
६. कामकला काली
७. हंस काली
८. गुह्य काली
देवी काली ‘दक्षिणा काली’ के नाम तथा स्वरूप से सर्व सदाहरण में, सर्वाधिक पूजित हैं।
देवी काली के दक्षिणा काली नाम पड़ने के विभिन्न कारण।
सर्वप्रथम दक्षिणा मूर्ति भैरव ने इन की उपासना की, परिणामस्वरूप देवी दक्षिणा काली के नाम से जाने जाने लगी।
दक्षिण दिशा की ओर रहने वाले यम राज या धर्म राज, देवी का नाम सुनते ही भाग जाते है, परिणामस्वरूप देवी दक्षिणा काली के नाम से जानी जाती हैं। तात्पर्य है, मृत्यु के देवता यम, जिनका राज्य या याम लोक दक्षिण दिशा में विद्यमान है, ( मृत्यु पश्चात् जीव आत्मा यम दूतों द्वारा इसी लोक में लाई जाती हैं ) देवी काली के भक्तों से दूर रहते है, मृत्यु पश्चात् यम दूत उन्हें यम लोक नहीं ले जाते हैं।
समस्त प्रकार के साधनाओ का सम्पूर्ण फल दक्षिणा से ही प्राप्त होता हैं, जैसे गुरु दीक्षा तभी सफल हैं जब गुरु दक्षिणा दी गई हो। देवी काली, मनुष्य को अपने समस्त कर्मों का फल प्रदान करती हैं या सिद्धि प्रदान करती हैं, तभी देवी को दक्षिणा काली के नाम से भी जाना जाता हैं।
देवी काली वार प्रदान करने में अत्यंत चतुर हैं, यहाँ भी एक कारण हैं।
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, पुरुष को दक्षिण तथा स्त्री को बामा कहा जाता हैं। वही बामा दक्षिण पर विजय पा, मोक्ष प्रदान करने वाली होती हैं। तभी देवी अपने भैरव के ऊपर खड़ी हैं।
देवी काली ही दो मुख्य स्वरूपों प्रथम रक्त तथा तथा कृष्ण वर्ण में अधिष्ठित हैं, कृष्ण या काले स्वरूप वाली ‘दक्षिणा’ नाम से तथा रक्त या लाल वर्ण वाली ‘सुंदरी’ नाम से जानी जाती हैं। देवी काली, काले वर्ण युक्त दक्षिणा नाम से जानी जाती हैं। मुख्यतः विध्वंसक प्रवृति धारण करने वाले समस्त देवियाँ कृष्ण या दक्षिणा कुल से सम्बंधित हैं। जैसे, देवी काली का घनिष्ठ सम्बन्ध विध्वंसक प्रवृति तथा तत्वों से हैं, जैसे देवी श्मशान वासी हैं, मानव शव तथा हड्डियों से सम्बद्ध हैं, भूत-प्रेत इत्यादि या प्रेत योनि को प्राप्त हुए, विध्वंसक सूक्ष्म तत्व देवी के संगी साथी, सहचरी हैं। यहाँ देवी नियंत्रक भी हैं तथा स्वामी भी, समस्त भूत-प्रेत इत्यादि इनकी आज्ञा का उलंघन कभी नहीं कर सकते। समस्त वेद इन्हीं की भद्र काली रूप में स्तुति करते हैं। वे निष्काम या निःस्वार्थ भक्तों के माया रूपी पाश को ज्ञान रूपी तलवार से काट कर मुक्त करती हैं।
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी कालाष्टमी कहलाती हैं, इस दिन सामान्यतः देवी काली की पूजा, अराधना की जाती हैं या कहे तो पौराणिक काली की अराधना होती हैं, जो दुर्गा जी के नाना रूपों में से एक हैं। परन्तु तांत्रिक मतानुसार, दक्षिणा काली या आद्या काली की साधना कार्तिक अमावस्या या दीपावली के दिन होती हैं, शक्ति तथा शैव समुदाय इस दिन आद्या शक्ति काली के भिन्न भिन्न स्वरूपों की आराधना करता हैं। जबकि वैष्णव समुदाय का अनुसरण करने वाले इस दिन, धनदात्री महा लक्ष्मी की अराधना करते हैं।

  

Recommended Articles

Leave A Comment