इन अस्त्र-शस्त्रोंमें इतनी अधिक शक्ति होती है कि ये पहाड़ों को भी गड्ढों में और समुद्रों को टापुओं में और टापुओं और देशोंको समुद्रमें परिवर्तित करने की भी छमता रखते हैं। ऐसे अस्त्र-शस्त्रोंका प्रयोग भी प्रत्येक युग में होता ही आया है।
जैसे सत्युगमें देवासुर संग्राममें, त्रेतामें राम-रावण युद्ध में, द्वापर में महाभारत के युद्ध में हुआ है। ये अस्त्र-शस्त्र सारी दुनियाँ का नक्सा और कई पीढ़ियों तक की सकलें व पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं के आकार भी बदलकर रख देते हैं।
इस ओर अविवेकी लोगों का ध्यान ही नहीं जाता है और कहीं समुद्र आदि की दूरी दिखाकर और कहीं पुराणों में वर्णित आकारों को सुन-सुनाकर और ज्ञानकी बातें समझमें न आने के कारण ये अविवेकी लोग हमारे वेद-पुराणों एवं शास्त्रों का मजाक उड़ाते हैं।
इसलिये सभी लोग अपने-अपने विवेक और अनुभव का ही प्रयोग करें, अन्धविश्वासी बनकर न जियें, अन्धविश्वासी बनना ही गुलाम बनना और स्वतन्त्रता को खो देना है। हमारे महापुरुषों ने इन वेद-पुराण एवं शास्त्रों की रचनाएं हमें निर्भय बनाने के लिये और आजादी व स्वतन्त्रता पूर्वक जीवन बिताने के लिये ही की हैं। हम अब लगभग सभी लोग शिक्षित हो गये हैं, तो अब किसी की भी बातों पर विश्वास न करके स्वयं ही इन वेद-पुराण एवं शास्त्रों को अपनी-अपनी रुचि अनुसार पढ़कर अपने ही विवेक और अनुभव से समझना चाहिये, और समझमें न आनेपर पढ़ लेने के बाद ही किसी से भी चर्चा करके पूछ लेना चाहिये!
ऐसा करने से हम यह निर्णय करने में भी सक्षम हो जाते हैं कि कौन सत्य कह रहा है और कौन झूठ बोल रहा है, जब हम ऐसा निर्णय करने में सक्षम हो जाते हैं तभी हम इन पाखण्डियों के पाखण्ड से बच सकते हैं, अन्यथा अन्धविश्वासी, गुलाम और पराधीन होकर ही जीवन बिताते हैं और पराधीन के लिये तो स्वप्न भी सुख नहीं होता है, ऐसा कहा है –
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं।।
जय जय श्री राम
जय जय श्री राम