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जीवन एक संघर्ष हैं,

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में।
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले।।

जिंदगी में कई मुकाम पर कड़वे अनुभव होंगे, ठोकरें लगेंगी और इन्हीं से भविष्य के लिए नई सीख भी मिलेगी। बदकिस्मत होते हैं वे जो बिना ठोकर खाए मंजिल तक पहुंच जाते हैं, क्योंकि उनके हाथ अनुभव से खाली ही रह जाते हैं।

संघर्ष जीवन को निखारते हैं, संवारते व तराशते हैं और गढ़कर ऐसा बना देते हैं, जिसकी प्रशंसा करते जबान थकती नहीं, संघर्ष हमें जीवन का अनुभव कराते हैं, सतत सक्रिय बनाते हैं और हमें जीना सिखाते हैं, संघर्ष का दामन थामकर न केवल हम आगे बढ़ते हैं, बल्कि जीवन जीने के सही अंदाज़ का आनंद भी अनुभव कर पाते हैं।

जिस जीवन में संघर्ष नहीं, वहाँ प्रसन्नता व आनंद भी नहीं टिक पाता, जिस तरह नदी के प्रवाह के सतत संपर्क में रहने से पत्थर के आकार में धीरे-धीरे परिवर्तन हो जाता है, और वह कभी इतनी सुंदर आकृति प्राप्त कर लेता है कि पूजनीय हो जाता है, इसी तरह हमारा जीवन भी संघर्ष की तपिश से निखरता है, ऊँचा उठता है, मनोवांछित लक्ष्य को प्राप्त करता है।

संघर्ष हमारे जीवन का सबसे बड़ा वरदान है, वह हमें यह भी सिखाता है कि भले ही यह संसार दुखों से भरा हुआ है, लेकिन उन दुखों पर काबू पाने के तरीके भी यहाँ अनेकों है, संघर्ष की चाबी जीवन के सभी बंद दरवाज़े खोल देती है और आगे बढ़ने के नए रास्ते भी प्रशस्त करती है, इस दौरान व्यक्ति के अंदर का हौसला उसे हारने नहीं देता और संघर्ष की लगन सतत बनारें रखता है, इस तरह संघर्ष की तपन मनुष्य के जीवन को चमकाती है।

वैसे तो हमारे जीवन में कुछ भी सरल नहीं है, सरलता व आसानी से ऐसा कुछ नहीं मिलता जो कीमती है, महत्वपूर्ण है, हर किसी व्यक्ति को अपने जीवन में अपनी मंज़िल व लक्ष्य पाने के लिए खुद ही संघर्ष करना ही पड़ता है, यह ज़रुर है कि जब जीवन में बुनियादी समस्यायें हों, ऐसी स्थिति में संघर्ष करने की इच्छाशक्ति को बनाए रखना थोड़ा कठिन हो जाता है।

क्योंकि ऐसे में लक्ष्य की प्राप्ति के साथ बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, इस तरह जीवन का संघर्ष दोगुना हो जाता है, ऐसे में यदि व्यक्ति के अंदर आतंरिक बल है, पर्याप्त शारीरिक व मानसिक क्षमता है तो दोगुना संघर्ष में भी कोई दिक्कत नहीं आती, केवल इसके लिए जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया और लक्ष्य को पाने की मन में ललक होनी चाहिये।

सफलता का कोई शोर्टकट नहीं होता, यही वजह है कि चाहे कितना भी समय बदला हो, युग बदला हो, परिस्थितियां बदल गई हों, फिर भी कड़ी मेहनत व लगन से सफलता के लिये किया गया प्रयास अपना सुफल देने में, चमत्कार दिखाने में पल भर की देरी नहीं करता, और यही कारण है कि अभावों के बीच रहकर भी सफलता पाने के इतिहास युगों से लिखे गए हैं, रचे गए हैं।

वर्तमान में भी ऐसा ही कुछ इतिहास रचा जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि सफलता किन्हीं साधन-सुविधाओं की मोहताज नहीं होती, सफलता के लिए संसाधनों का अंबार होना ज़रुरी नहीं, सफलता उन अभावग्रस्त व्यक्तियों के भी हिस्से में आ सकती है, जो कड़ा संघर्ष करते हैं, और प्रबल इच्छाशक्ति व लगन के सहारे निरंतर-सतत आगे बढ़ते हैं।

अभावों का जीवन जीते हुए संघर्ष करके भी अपनी पहचान बनाई जा सकती है, इस बात को आज की नई युवा पीढ़ी प्रमाणित कर रही है, इन दिनों प्रतियोगी परीक्षाओं में हमारे समाज के ऐसे विधार्थी अव्वल आ रहे हैं, जिनके जीवन में संसाधनों का अभाव था, और उनका जीवन भी कई तरह की समस्याओं से घिरा हुआ था।

सफलता की इस कड़ी में देश की ऐसी कई बेटियाँ भी अव्वल आईं, जिनके पिता मजदूरी करते थे, और ऐसे बेटे-बेटीयां भी चमके, जिनकी परवरिश झुग्गी-झोंपड़ियों में अभावों के बीच हुई, जिनकी माँ घर-घर चौका-बरतन करके, मेहनत मजदूरी करके पैसे जमा करतीं, और पिता रिक्शाचालक बनकर या नौकरी कर आर्थिक रूप से सहयोग करते।

इस तरह संघर्ष पूरे परिवार ने एक साथ किया, और अपने बच्चों का भाग्य को चमकाया, हर साल हमारे देश के युवा यह साबित करते हैं कि प्रतिभा सुविधा और संसाधनों के बीच नहीं पनपती, बल्कि अभावों के बीच में व संघर्ष के मध्य पनपती है, और अपना प्रभाव दिखाती है, यदि ऐसा न होता तो कबीरदास, रैदास, दादू और वर्तमान में डाक्टर अभिषेक रावल जैसों को छोड़ प्रतिभा पैसे वालों के घर का रुख करती, परंतु ऐसा होता नहीं है।

हर साल भारत देश के नौजवान यह बतलाते हैं कि संघर्ष की तापिश जीवन को सुखाती नहीं, बल्कि उसे निखार देती है, संघर्ष की लगन ही व्यक्ति की लक्ष्य की और गति को थमने नहीं देती, आशा की किरण को टूटने नहीं देती, बल्कि उत्साह, उमंग को निरंतर बढ़ाती है, और यही कारण है कि आज देश में अभावों के अंधेरों के बीच भी सफलता की रोशन राहें निकल रही हैं।

जो यह भी बताती हैं कि सहूलियतों के बीच जीवन जीकर सफलता पाना और मुकाम बनाना ही सब कुछ नहीं है, बल्कि जीवन की सही समझ के लिए अभावों के बीच जीवन जीना भी ज़रुरी है, तभी जीवन के सही मर्म व अंदाज़ का पता चलता है, जीवन में अगर संघर्ष न हों, चुनौतियाँ न हों तो मनुष्य के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता।

बिना कड़ी मेहनत के जो सफलता पाई जाती है, वह महत्वहीन होती है, असंतोष देती है, परिस्थितियों से जूझते हुए, कठिनाइयों से लड़ते हुए यदि हिम्मत न हारी जाये तो सफलतारुपी मंज़िल ज़रुर मिलती है, चुनौतियों से लड़ते हुए, संघर्ष करते हुए ही व्यक्ति की जीवात्मा के उपर छाया हुआ अंधेरा छँटता है और जीवन प्रकाशित होता है।

इसलिए यह कहा जाता है कि प्रखर और प्रतिभाशाली बनने के लिए संघर्ष और चुनौतियों को हर कदम पर स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना चाहिये, प्रतिभाएँ अपनी पहचान स्वयं बना लेती हैं, उनका हौसला और इच्छाशक्ति उन्हें शून्य से शिखर तक ले जाने का कार्य करते हैं और कई तरह के संघर्षों व अड़चनों के बावजूद जब वे सफलता प्राप्त करते हैं, तो पूरे समाज के लिए एक उदाहरण बन जाते हैं।

साधारण से दिखने वाले व्यक्ति जब असाधारण सफलता पाते हैं तो कोई सोच भी नहीं सकता, कि वे अपने जीवन में कितना खपे हैं, उन्होंने कितना संघर्ष किया है, उनके सपनों की बुनियाद के पीछे कितनी मेहनत है, फिर भी अपने हौसलों के दम पर वे निरंतर आगे बढ़ने रहते हैं, प्रयास करते हैं और इस तरह एक दिन वे सफलता के शिखर को छू ही लेते हैं।

जीवन में जब कोई कुछ करने की ठान लेता है और ईमानदारी से उसके लिए प्रयास करता है, तो उसे देर-सबेर सफलता अवश्य मिलती है, हालांकि इस यात्रा में उसे बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, कई तरह के भटकावे सामने आते हैं, जो उसे लक्ष्य से भटकाते हैं, विचलित करते हैं, कई तरह के विकल्प दीखते हैं, वे भी राह में एक तरह की बाधा होते हैं।

लेकिन दृढ़तापूर्वक और ईमानदार कोशिश करने वाले लोग इन विकल्पों व शोर्टकट मार्गो को नहीं अपनाते, और अपनी लगन का सहारा लेते हुए संघर्ष व मेहनत का उचित रास्ता चुनते हैं, अपनी क्षमता-योग्यता व दक्षता को निरंतर निखारने का प्रयास करते हैं, ये ढर्रे पर चलने वाले रास्तों के बजाय अपने लिए नए रास्ते बनाते हैं, और इस तरह समाज के लिए एक आदर्श उदाहरण बन जाते हैं, सफलता की इमारत संघर्ष की नींव पर ही खड़ी होती है

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संसार में अनेक समस्याएं हैं। उनमें से सबसे बड़ी समस्या है कि मन नियंत्रण में नहीं रहता.
प्रायः सभी लोग यह शिकायत करते हैं कि, क्या करें, यह मन बड़ा चंचल है, हमको भटकाता रहता है।
इस प्रकार से लोग सुबह से रात तक सारा दिन इस मन से परेशान रहते हैं। परंतु सत्य तो यह है कि इसमें उन लोगों की अपनी ही अविद्या कारण है। वे मन के बारे में ठीक से जानते नहीं , इसलिए मन से परेशान रहते हैं। जैसे कोई व्यक्ति नया नया कार चलाना सीख रहा हो, तब कार उसके नियंत्रण में नहीं रहती और वह कष्ट का अनुभव करता है। परंतु कार चलाना सीख लेने पर, तथा 6 माह या 1 वर्ष अभ्यास कर लेने के बाद फिर उसे कार चलाना कष्टदायक नहीं लगता। तब वह इस बात को समझ जाता है कि कार जड़ पदार्थ है, मैं इसे जैसा चलाऊंगा, यह वैसे चलेगी. ठीक यही नियम मन पर भी लागू होता है। मन भी कार की तरह से जड़ पदार्थ है. लोग मन को चलाना नहीं जानते, रोकना नहीं जानते, मोड़ना नहीं जानते, इसलिए मन से परेशान रहते हैं।
जब व्यक्ति कार पर नियंत्रण करना सीख लेता है, तो वह कार उसके लिए बहुत सुखदायक होती है। इसी प्रकार से जो व्यक्ति मन का नियंत्रण करना सीख लेता है, तो मन भी उसके लिए बहुत अधिक सुखदायक होता है। वह अपनी इच्छा अनुसार मन से जो चाहे वही कार्य लेता है, और सदा आनंद में रहता है।
आप भी मन का संचालन करना सीखें और उसका अभ्यास करें । आप भी निश्चित रूप से सुखी हो जाएंगे।

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