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मान्यवर

गेहूं की फसल जब कटती है तब उस खेत मे सैकडों सांप बिच्छू व अन्य मरे पाए जाते हैं ( ये मेने खुद देखा है) क्योंकि फसल पर कीटनाशक छिडका गया था जिस दिन छिडका गया उस दिन के बाद भी जो जीवजंतु वहा आए वे भी मर गये। दवा कि मात्रा अधिक डाली जाती है।

अब जब तक गेहूं पीसने से पहले धोया नहीं जायगा तब तक कीटनाशक का असर खत्म होना मुश्किल है। वो भी पुरा निकलेगा या नहीं भगवान् भरोसे। आजकल धोने की परम्परा ही नहीं रही।

होल सेल दुकानदार गेहूं मे दवा की गोली भी डालते हैं ताकी घुन न लगे। गेहूं को बिन कर गोली को अलग करने का टाईम नहीं है किसी के पास। अगर दवा की गोली नहीं डाली जाती है तो कुछ दानो को माइक्रोस्कोप से देखने पर हजारों कीटाणु दिखाई देगे क्यो की खेत मे ही मोइसचर की हवा लग गयी है।
उसे बिनना चाहिए। पर आजकल तो पिसा पिसाया ही आटा खरीदा जा रहा है।

आटे की चक्की मे पत्थर सफेद रंग का हे जो artificial हे। इसको ऐसिड, white cement जेसे chemical से ढाल कर बनाया जाता है। जिसको टाकना नहीं पडता। 95% चक्कीयो का एलाइनमेनट बिगडा हुआ ही रहता है क्योंकि चक्की चलाने वाला मजदूर शिक्षित नहीं है उसे तो अलानमेनट का मतलब भी मालुम नहीं है। पत्थर ओर शाफ्ट के बिच प्ले होना जरूरी समझा जाता है ताकी पत्थर जल्दी ओर आसानी से फिट हो जाए।पत्थर ओर शाफ्ट मे एक चाबी का खींचा रहता है उसमे भी गेप रहता है ताकी पत्थर को ठोकना ना पडे। इस हिसाब से पत्थर जल्दी ही घिसेगा। बारिक आटा पिसना हो तो ओर जल्दी घिसेगा। पत्थर जब जल्दी घिसेगा तो उसका घिसा हुआ पावडर सफेद रंग का होता है ओर वो आटे मे मिल जाएगा। अब आप आटे मे से सीमेंट को अलग केसे करोगे। अब यही सीमेंट शरीर मे टाकसिन बनाएगा। शरीर मे बिमारीयो को बढ़ाएगा।

गेहूं पिसते समय आटा गर्म निकलता है जो गलत हे। गर्मी की वजह से उसके विटामिन कम ही होगे।।
गर्म आटे को लोग प्लास्टिक के बोरे मे भर कर घर ले जाते हैं ये भी गलत है।

रात मे ओर रविवार को चक्की बन्द रहती है उस समय लाखो कीटाणु जन्म ले लेते हे क्या वह चक्की खोल कर सफाई करता है। नही करता।

होटल व ढाबों मे सब जगह प्लास्टिक के बोरों मे ही आटा पडा रहता है। यह बहुत गलत है।

चक्की से निकल कर रोटी बनाने तक अगर 15 दिन निकल गये तो आटे मे हजारो जरमस / कीटाणु पैदा हो जाते हैं। माइक्रोस्कोप से देख ले।
इसी बिच सफेद सीमेंट जो आटे मे मिक्स हुआ था उसका भी केमिकल रिएक्शन शुरु हो जाता है।

आटे मे गलुटिन होता है इसमे अगर सीमेंट मिक्स हो गया तो वो ओर ज्यादा मजबूती से आतो मे चिपकेगा।
( इस हिसाब से पनीर मक्खन खा कर भी विटामिन शरीर को नहीं लगेगे।)

रोटी के एक ग्रास ( टुकड़े) को 32 बार चबाना चाहिए। ताकि मुह की लार के साथ मिक्स हो कर शरीर की पाचन क्रिया को मजबूत करे पर कोइ भी नहीं कर पाता है ओर उसमे सीमेंट भी मिला है। अब ये फायदा केसे देगी।

सीमेंट वाला आटा खा कर लोग 12 घंटे तक कम्प्यूटर पर ही बैठे रहते हैं क्या होगा।
आटा ओसनते वक्त पानी को उबाल कर ठंडा कर के आटे मे डालना चाहिए। ताकि पानी के कीटाणु निकल जाए।
आटे की रोटी जब तवे पर सिकती हे तब भी गर्मी की वजह से सीमेंट का केमिकल रिएक्शन होता है।

इस तरह की ओर भी बाते हैं जो ये सवाल खड़ा करती है कि आटे की रोटी हमे खानी चाहिए या नहीं।
धन्यवाद

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