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मन्त्ररहस्य :-

तंत्र विद्या केवल मारण मोहन विद्वेषण उच्चाटन और वशीकरण तक सीमित नहीं है बल्कि इस प्रकार के अभिसास कर्म तंत्र को निकृष्टतम रूप है ।
यह तंत्र का विकृत रूप है जो भौतिकता से प्रेरित अपरा तंत्र के अंतर्गत आते हैं वास्तव में तंत्र का शाब्दिक अर्थ है शक्ति स्वातंत्र्य या सरल रूप में कहीं तो चेतना का विकास संस्कृत में तंत्र का अर्थ है तंत्र यानी अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाने वाली विद्या तंत्र है।
मन को उर्ध्वमुखी वृत्तियों की तरफ से ले जाने वाली शक्ति मंत्र है। हमारा मन एक सीमित क्षेत्र तक ही काम करता है क्योंकि हम वही तक देख सुन सकते हैं जहां तक हमारी इंद्रियां आंख कान नाक आदि साथ देती है।
ब्रह्मांड की सूक्ष्म वस्तु को न हम देख सकते हैं ना ही सूक्ष्म ध्वनि तरंगों को सुन सकते हैं मन समस्त इंद्रियों को नियंत्रित करता है चेतना के वशीभूत है तंत्र और मंत्र विद्या द्वारा जब शरीर के पंचकोश यानी मनोमयी की शक्ति जागृत होते हैं तो इन इंद्रियों का विस्तार होता है जो वास्तव में चेतना का ही विस्तार है।
मंत्र जाप मनुष्य की चेतना के विकास का नया आयाम देता है सिद्ध मंत्र और तंत्र मन के अंदर अनंत शक्तियों को विकसित करता है विशिष्ट मंत्रों के जप से एक लयबद्ध ध्वनि तरंग पैदा होती है और इन ध्वनि तरंगों में प्रचुर मात्रा में विद्युत चुंबकीय ऊर्जा होती है जो मनुष्य के सूक्ष्म शरीर के साथ-साथ उसके कारण शरीर को सीधे तौर पर प्रभावित करती है।

दरअसल मंत्र जप में लय का विशिष्ट महत्व होता है कौन सा मंत्र किस लय मे जपने पर क्या प्रभाव दिखाएगा इसकी जानकारी आज के आधुनिक लोग जो अपने आप को मंत्रों का जानकार कहते हैं उनके पास भी नहीं है ।
प्रत्येक मंत्र अलग लय से उच्चारण करने पर बिल्कुल अलग व्याख्या रखता है प्राचीन काल में शिष्य अपने अधिकारी गुरु से मंत्रों को अलग-अलग लय के अनुसार सुनकर याद रखते थे।
तांत्रिक सहित साहित्य में वर्णित अक्षरमाला को समझे बिना वर्ण तत्व या नाद तत्व को समझना बिल्कुल मुश्किल है। और बिना नाथ तत्व को समझे किसी विद्या का अधिकारी नहीं बना जा सकता क्योंकि ऐसा कहा गया है कि शब्द से ही जगत की सृष्टि हुई है और अंत काल में शब्द में ही इस जगत का लयभी होगा ।
इतना ही नहीं एक तरफ जहां सृष्टि के समय महान प्रसरण होता है वहीं दूसरी तरफ लय किस समय अति संकुचन होता है। और इन दोनों से ऊपर स्थिति अच्युत ब्रह्मबिंदु मैं पहुंचने के लिए भी आगे मंत्र रूपी शब्द ही सूत्रधार बनता है सारे देवताओं के उर्जा निर्मित शरीर भी इसी मंत्र में ही ज्योति के द्वारा गठित हुए हैं वास्तव में देवता मंत्र रूप ही है।
पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय और देवी ग्रंथों में नवार्ण मंत्र के बारे में जो लिखा है उनसे इन तथ्यों की पुष्टि की जा सकती है। अ से लेकर अक्षय तक के अक्षर समूह में संयुक्त रूप को ही शब्द कहते हैं शास्त्रों में इन्हें मातृका का कहा गया है। वास्तव में मातृका शक्ति ही इस शब्द राशि को अपने गर्भ में केवल स्पंदनात्मक रूप में धारण करने वाली पराशक्ति है।

        

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