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मौसम पत्तियों का तो आइये जाने किन किन पत्तियों का उपयोग किस हेतु उत्तम है

सृष्टि में यदि खाद्य पदार्थों की बात करें तो ईश्वर ने सर्वप्रथम पत्तियों का सृजन किया मानो ईश्वर मनुष्य को संकेत दे रहा हो कि मैंने तुम्हारे भोजन की पहली खुराक तुम्हें दे दी है ।

वास्तविकता है कि हमारे भोजन में यदि पहली खुराक पत्तियों की हो सके तो स्वास्थ्य की ओर उठने वाला यह पहला कदम साबित हो सकता है ।

विचारणीय है कि हमारे सभी देवताओं का पुजन भी पत्तियों से किया जाता है । क्यों ? क्योंकि यही उचित है । देवताओं में प्रथम पूज्य गणपति जी महाराज का पूजन दूर्वा से किया जाता है , दूर्वा के बिना गणेश जी मोदक का भोग स्वीकार नहीं करते ।

इसी प्रकार विष्णु भगवान का भोग तुलसी पत्र तथा शिव जी का भोग बेल पत्र के बिना सम्भव नहीं है । ऐसा इसीलिए विधान बनाया गया जिससे मनुष्य भी इससे सीख ले और अपने भोजन में पत्तियों को प्रथम स्थान दे ।

पत्तियों में क्लोरोफिल नामक तत्व पाया जाता है जो शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करता है ।

यदि आपके शरीर में यह तत्व रहेगा तो कोई भी संक्रामक रोग आप पर आसानी से आक्रमण नहीं कर सकेगा ।

बात चाहे क्लोरोफिल की हो आयोडिन की अथवा अन्य खनिज लवणों की , ये सारे तत्व आग पर चढ़ने से नष्ट हो जाते हैं । अतः उत्तम है कि इसका उपयोग आग पर चढ़ाए बिना ही करना चाहिए ।

व्यवहार में पहली खुराक के रूप में आसानी से उपलब्ध कुछ हरी पत्तियां जैसे – धनिया , पोदीना , पालक , मूली के पत्ते , कढ़ी पत्ता , बेल पत्र , तुलसी , दूर्वा आदि को धोकर , पानी मिलाकर सिलबट्टे या मिक्सी में पीसकर छान लें । इसी के साथ कुछ हरा आंवला , खीरा , लौकी आदि भी डाल लें । स्वाद के लिए मौसम के अनुसार कोई मीठा फल जैसे सेब या गाजर या टमाटर न उपलब्ध हो तो गुड़ या शहद या मिश्री आदि भी मिला स्वादिष्ट जूस सर्वोत्तम है । यह शोधक भी है और अनेक आवश्यक तत्वों की पूर्ति करता है ।

मौसम होने के पर सस्ता भी होता हैं । दोपहर के अल्पाहार के साथ भी उपरोक्त वर्णित 3 – 4 तरह की पत्तियों को मिलाकर स्वादिष्ट चटनी का सेवन अति लाभकारी है ।

जाड़ों सर्दी के मौसम में विशेष रूप से मूली, पालक , धनिया , मेथी , बथुआ आदि को पीसकर आटे के साथ मिलने का रिवाज भी इसीलिए बनाया गया है ताकि पत्तियों का पूरा लाभ मिल सके ।

डाक्टर शरीर में कैल्शियम की पूर्ति हेतु दूध का सेवन करने की सलाह देते हैं । यह सत्य है कि दूध में कैल्शियम तो है किंतु दूध में यूरिक एसिड तथा कोलेस्ट्रॉल शरीर को रोगी बनाते हैं । दूध की शुद्धता भी आज के युग में पूर्ण रूप से संदिग्ध ही है । जिस जानवर का दूध हम पीते हैं उसकी शारीरिक रुग्णता का प्रभाव भी उसके दूध के माध्यम से हमारे शरीर पर पड़ता है । यदि शरीर में कैल्शियम की कमी है तो हम आपको बताना चाहेंगे कि वैज्ञानिक शोधों में आश्चर्यजनक सत्य उजागर हुए हैं । जहां एक ओर मां के दूध में 28 कैल्शियम , गाय के दूध में 120 , भैंस के दूध में 210कैल्शियम पाया जाता है , वहीं शलजम की पत्ती में 710 , इमली की पत्ती 1485 तथा सरसों के पत्तों में 3095 कैल्शियम पाया जाता है । यदि हम कुछ पत्तियों का सेवन करने लगे तो कैल्शियम की पूर्ति भी हो जाएगी और यूरिक एसिड व कोलेस्ट्राल के दुष्प्रभावों से हम बच जाएंगे ।

पत्तियों में शोधन का गुण होने के कारण यह अंदर संचित मल को साफ करने में मददगार हैं । पत्तियों के इसी गुण के कारण इनका सेवन करने से शरीर में मल का संचय रुक जाता है । शरीर के अंदर मल की सड़न के कारण बनने वाली गैस तथा एसिड्स से मुक्ति मिलने लगती है ।

इसी कारण पत्तियों का सेवन करने वाले सभी जानवरों के मल में भी बदबू नहीं होती जैरो पत्तियों का सेवन करने वाला हाथी , बकरी , गाय , भैस , घोड़ा आदि । इन पशुओं से किसी प्रकार का संक्रामक रोग भी नहीं फैलता जबकि प्लेग जो चूहों से फैलता है , बर्ड फ्लू जो मुर्गियों से फैलता है तथा स्वाइन फ्लू जो सुअर से फैलता है , ये सभी जानवर पत्तियों का सेवन नहीं करते हैं । बिल्लियां और कुत्ते मांसाहारी होते हैं तथा दूध के शौकीन होते हैं । इनका मल अत्यंत दुर्गंधयुक्त तथा चिपकने वाला होता है । आश्चर्य की बात है सर्वश्रेष्ठ कहलाने का अधिकारी मनुष्य का मल सबसे अधिक दुर्गंध युक्त होता है क्योंकि यह अनाज , पक्वाहार , मांसाहार तथा दूध का सबसे अधिक शौकीन होता है ।

यदि शरीर को रोगमुक्त बनाना है तथा साधना में प्रगति करनी है तो भोजन को भी सूक्ष्म बनाना अति आवश्यक है । भोजन के चार तत्व हैं वायु तत्व ( पत्तिया ) , अग्नि तत्व ( फल ) , जल तत्व ( सब्जियां ) , पृथ्वी तत्व ( अनाज ) । इनमें सबसे सूक्ष्म वायु तत्व ही है जो पत्तेदार शाक भाजी में पाया जाता है । ये पत्तियां क्षारीय प्रकृति की होने के कारण रक्त में अम्लता को कम करती है ।

कुछ पत्तियां जैसे – चाय , तम्बाकू आदि की पत्ती भयंकर अम्लीय होती हैं । जानवर भी इन पत्तियों को खाना पसंद नहीं करते इसी कारण जहां इन पत्तियों की खेती होती है वहां जानवरों से सुरक्षा हेतु कोई बाड़ा नहीं बनाना पड़ता ।

अतः इन पशुओं से सीख लें और इन पत्तियों का त्याग कर देने में ही भलाई है । सामान्य रूप से सभी शाक भाजी की पत्तियां शरीर के लिए उत्तम है फिर भी किसी रोग विशेष की अवस्था में अनेक प्रकार की अलग – अलग पत्तियों का अपना विशेष महत्व है ।

दूर्वा ( दूब घास ) की पत्ती आंतरिक अथवा वाह्य रक्तस्राव को रोकने व उदर रोगों में विशेष सहायक

तुलसी – सभी प्रकार के संक्रमण व दर्द में उपयोगी कढ़ी पत्ता – हाई बी . पी . रक्ताल्पता में प्रभावी ।

पत्तागोभी – मूत्रल एवं किडनी रोग में विशेष उपयोगी , अल्सर , नपुसंकता , एलर्जी , दुर्बलता में लाभकारी ।

धनिया पत्ती – नेत्र रोग वाले विटामिन बी का अभाव व रक्ताल्पता में उपयोगी ।

नीम की पत्ती – अस्थमा , मधुमेह , चर्मरोग , खून की अशुद्धता में उपयोगी एवं प्रभावशाली एंटिबायटिक ।

पपीते का पत्ता – रक्त में प्लेटलेट्स बढ़ाने में विशेष ।

शरीफा ( सीताफल ) का पत्ता – म गुमेह में विशेष उपयोगी ।

बेलपत्र – संक्रमण , टी . बी . कब्ज , बी . पी . , बुखार , हृदय रोग व अस्थमा में लाभकारी ।

आम के पत्ते – कब्ज , एसिडिटी में लाभकारी

ज्वारे की पत्ती – कैंसर , रक्तस्राव , रक्ताल्पता , रक्त शोधन कोलाइटिस में सहायक

पीपल के पत्ते – पाइल्स , फिशर , फिश्च्युला , स्त्री रोग मासिक धर्म में बहु उपयोगी ।

जामुन के पत्ते – चर्म रोग , थेलिसिमिया , आयरन , विटामिन सी , कैल्शियम में आवश्यक ।

अमलतास के पत्ते – पीलिया , लीवर रोग , एक्जीमा , पेट कृमि , सोराइसिस , अपच व कब्ज में लाभकारी ।

नींबू पत्ते – अतिरिक्त गर्मी , रोग प्रति रोधकता बढ़ाने , कफ रोकने , सिर दर्द , गठिया , रुसी में सहायक ।

अमरूद के पत्ते – खांसी , दंत रोग , कफ में लाभकारी ।

मूली के पत्ते – लीवर के रोगों में लाभकारी ।

पालक – रक्ताल्पता को दूर कर खून बढ़ाने वाला आयरन का भंडारा ।

एलोविरा – गुर्दे के रोगों को दूर कर नव यौवन देने वाला ।

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें

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