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ध्यान एक ऐसी विधि है जो हमको परमात्मा से साक्षात्कार कराने में सहायक होती है !!!!
जब हम ध्यान की गहराइयों में जाने लगते है हमारा रोम रोम किसी अदृश्य शक्ति और प्रवाह को महसूस करता है, ये स्तोत्र हमे उर्जा और जीवन जीने की नयी उमंग देते है।
जब हम ध्यन में होते है तो हमे अपना सारा मन एक जगह बांधने का प्रयास करना होता है हम अपने मन को एक ही जगह स्थिर करने का प्रयास करते है।
ठीक उसी तरह जैसे एक बच्चा किसी चीज़ को एकटक देखता रहता है ठीक उसी तरह जिस तरह छोटे बच्चे खेल में व्यस्त हो जाते है।
जब हम लोग वो करते है जो हमे पसंद है तब हमे समय का आभास नहीं रहता हम बस उसी में हो कर रह जाते है।
हमारा मन तब स्थिर हो जाता है न हम उससे बोर होते है न हमे अपने आस पास होने वाली घटनाये ज्ञात होती है… एसा क्यों?
क्योकि हमारे मन को वो मिल गया जो उसको पसंद है इस लिए जब हम सामान्यत ध्यान में बैठते है या विचार करते है ध्यान करने का तो हमारा मन हमे ढेर सरे बहाने बताता है और हमे ध्यान या स्वाध्याय करने से रोकता है।
उसे आज़ादी पसन्द है बंधन नहीं पर विश्वास मानिये एक बार अगर ध्यान का सही स्वाद चख किया जाये तो फिर कुछ शेष नहीं रहता।
जब एक बार ये मन को आप स्थिर करना सिख लेते है तो बस फिर वो इतना विचलित और परेशान नहीं रहता जितना की पहले था…
ध्यान के ही सम्बन्ध में आपको एक और रोचक बात बताना चाहता हूँ, ध्यान ही एक ऐसी विधि है जिससे हम अपने प्राण अपने शरीर में जाते हुए महसूस कर सकते है।
ऐसा माना जाता है के हमारे जीवन में हम जो श्वास अन्दर लेते है उससे हमारे प्राण हमारे शरीर में आते है जबकि बहार जाने वाली श्वास खाली जाती है ये क्रम के सहारे जीवन चलता है।
पर मृत्यु के 6 महीने पहले श्वास प्राण को अन्दर लेना कम कर देती है और बहार की और छोड़ना आरम्भ कर देती है।
इसका एक आसान सा उदाहरण मैं आपके सामने रखना चाहता हूँ – हम सब गौतम बुद्ध को अच्छी तरह जानते है।
गौतम बुद्ध ने उनके बुद्ध जन्म से पहले वाले जन्म में ही ये घोषित कर दिया था के वे आने वाले समय में अगला जन्म कब होगा यहाँ तक की उन्होंने ये भी बता दिया था की उनकी माता जब वृक्ष के निचे होंगी तब उनका जन्म होगा।
और जन्म होते ही वो 7 कदम चलेंगे, और हुआ वैसा ही जैसा उन्होंने ने कहा था।
ठीक ऐसे ही जैन धर्म के तिरथंकर भी भविष्यवाणी करते थे की कब और किन परिस्थियों में उनका अगला जन्म होगा।
अगर आप ध्यान की, श्वास की और तंत्र की कुछ विधियों को ठीक से समझ लें तो ये कोई अचम्भे वाली बात नहीं रह जाएगी-पर उसके लिए आपको ध्यान के उस चरम तक पहुचना आवश्यक है।
ध्यान में कई आसन होते है जिनके अलग अलग प्रकार और अनुभव होते है ध्यान करने के लिए भोजन और आचरण का शुद्ध होना भी बहूत जरूरी है।
ठीक ढंग से किये आसन जरूर लाभ देते है पर समय लगता है, कुछ लोगो के तो शरीर के चक्र भी चैतन्य होने लगते है ध्यान के द्वारा कुछ की कुण्डलिया जाग्रत होने लगती है।
इसीलिए मेरा ये मानना है के चाहे थोड़े समय के ही लिए हमे कुछ समय ध्यान जरूर करना चाहिए।
अपने व्यस्तता भरे जीवन में से कुछ समय ध्यान को अवश्य देना चाहिए ताकि मन शांत और प्रसन्न रहे और अगर गुरूजी से सही मार्गदर्शन मिल जाये, ध्यान की सही विधि पता चल जाये तो फिर तो बहूत अच्छा।
वैसे तो ध्यान के विषय में कहने के लिए काफी कुछ है पर फ़िलहाल इतना ही !!!!!

      

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