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: MIND POWER

सकारात्मक सोचिए मत बल्कि सकारात्मक बनिए

जब भी हम किसी सफल व्यक्ति के बारे में पढ़ते हैं या टीवी पर देखते हैं तो हमारे मन में भी कहीं ना कहीं ये बात आती है कि काश हमने भी कुछ ऐसा ही किया होता। हम सभी सफल होना चाहते हैं। जब भी हम किसी अनुभवी इंसान से सफलता के सीक्रेट के बारे में पूछते हैं तो एक शब्द सबसे ज्यादा सुनने को मिलता है, वो है – -“Positive Thinking”-यानि सकारात्मक सोच ।हमें किताबों में, कहानियों में सभी जगह यही बताया जाता है कि Positive Thinking से आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं। अगर आप भी यही सोचते हैं कि केवल सकारात्मक सोच के जरिये आप सफल हो सकते हैं तो आप एक बड़ी ग़लतफ़हमी में हैं।
❗मैं कितना भी Positive हो जाऊँ लेकिन मैं किसी के हार्ट का ऑपरेशन नहीं कर सकता क्योंकि मैं ब्लॉगर हूँ भई, कोई डॉक्टर नहीं हूँ।
❗मैं कितना भी Positive हो जाऊँ लेकिन मैं आई.ए.एस. का एग्जाम पास नहीं कर सकता।
❗मैं कितना भी Positive हो जाऊँ लेकिन मैं बिल गेट्स से ज्यादा अमीर नहीं हो सकता।
❗मैं कितना भी Positive हो जाऊँ लेकिन मैं माउन्ट एवरेस्ट नहीं चढ़ सकता।
Positive Thinking + Positive Effort + Positive Action = Success

सकारात्मक सोच + सकारात्मक प्रयास + सकारात्मक कार्य = सफलता

आप कितना भी पॉजिटिव सोच ले लेकिन बिना Positive Action और बिना Positive Effort के आप कुछ नहीं कर सकते।

हममें से ना जाने कितने ही लोग ऐसे होंगे जो प्रेरक कहानियां या प्रेरक प्रसंग या किसी महापुरुष की बातें सुनते हैं तो सोचते हैं कि ये सब फालतू की बातें हैं जो केवल कहानियों में ही अच्छी लगती हैं।दरअसल ये लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों को देखकर सफल होने का प्रयास करते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते क्योंकि ये लोग सोचते हैं कि केवल Positive Thinking रखने से हम सफल हो जायेंगे। जबकि ऐसा सोचने वाले लोग हमेशा विफल ही होते आये हैं।आप जो भी लक्ष्य पाना चाहते हैं उसके प्रति हमेशा सकारात्मक सोचिये, लक्ष्य पाने के लिए सकारात्मक प्रयास कीजिये और लगातार प्रयास करने से आपके प्रयास सकारात्मक कार्य में परिवर्तित होंगे और यही आपकी सफलता की नींव होगी।अगर आप डॉक्टर बनना चाहते हैं तो सिर्फ सकारात्मक सोचिये मत बल्कि सकारात्मक प्रयत्न करने भी शुरू कर दीजिये अगर आई.ए.एस. का एग्जाम निकालना है तो आपको सकारात्मक विश्वास के साथ अपनी पढ़ाई पर सकारात्मक प्रयत्न शुरू कर दीजिये।

Become Friend to Yourself
(खुद के अच्छे मित्र बन जाए)

खुद को खुद से ज्यादा ना कोई जान सकता है और ना ही कोई समझ सकता है ।इसलिए खुद के अच्छे मित्र बन जाए, खुद से बातें करना सीखें, खुद को ही सवाल करे और खुद से ही जवाब मांगे और जब अंदर से जवाब मिलने शुरू हो जायेंगे तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको ना तो नकारात्मक कर पाएगी और नहीं परेशान ।

प्रिय आत्मन , हमारा काम यही तक था की आपके सामने सही और आसान बातें रखे, जो आपकी मुश्किलों को तोड़ कर आपको एक हौसला दे, उम्मीद दे और प्रेरणा दे अब आपकी बारी है की आप इसे अपने जीवन में कैसे अपनाते है और इसका किस तरह का फायदा प्राप्त करते है ।

प्रिय आत्मन, आप यह जरूर खयाल रखे की कोई कितना भी बड़ा शानदार प्लान हो लेकिन जब तक उस परAction नहीं लेते वो बेकार है इसलिए हमने तो अपनी तरफ से एक शानदार लेख आपके सामने रख दिया है अब Action लेने की बारी आपकी है ।

अपने भीतर देखो उसे सम्भालो सफलता निश्चित है!

हमारे जीवन में अंतर्यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे सारे कार्यो के लिए अंदर की सोच व भाव ही जिम्मेदार है। अण्डा अगर बाहर से फूटे तो जीवन समाप्त होता है। यदि अण्डा भीतर से फूटे जो जीवन प्रारम्भ होता है। अर्थात् जीवन में अन्तर्यात्रा जरूरी है। हमारे जीवन का सारा व्यवहार भीतर से तय होता है। हम अन्दर जो है वही बाहर प्रकट करते है। बाहर की सारी क्रान्ति भीतर के परिवर्तन के अभाव में व्यर्थ है। हमारा अन्तर्मन बहुत महत्वपूर्ण है। तभी तो बाहर के सारे परिवर्तन थोड़े समय बाद बेकार हो जाते है। तभी तो बदलने हेतु अन्दर से बदलना जरूरी है।
शान्त मन आपके बाह्य जीवन के उपद्रवों को भी मिटा देता है| अन्तर्यात्रा द्वारा ही स्वयं को जानना होता है। दूसरों को भूलने के लिए अन्दर से अकेले होना पड़ता है। स्वयं का एकान्त मिल जाने पर किसी और की जरूरत नहीं पड़ती। हमारे सारे जीवन की अव्यवस्था के अन्तर्मन की अराजकता जिम्मेदार है। जब हम अन्दर से टूटे हुए होते है तो बाहर कुछ भी अच्छा नहीं लगता।

जब हमें अपने पर भरोसा नहीं होता तो हम किसी और पर भरोसा नहीं कर सकते।इसीलिए किसी ने कहा है कि अपने भीतर देखो,उसे संभालों सब कुछ ठीक हो जाएगा।

[: *बन्दर की सीख

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बंदरों का सरदार अपने बच्चे के साथ किसी बड़े से पेड़ की डाली पर बैठा हुआ था .

बच्चा बोला , ” मुझे भूख लगी है , क्या आप मुझे खाने के लिए कुछ पत्तियां दे सकते हैं ?”

बन्दर मुस्कुराया , ” मैं दे तो सकता हूँ , पर अच्छा होगा तुम खुद ही अपने लिए पत्तियां तोड़ लो. “

” लेकिन मुझे अच्छी पत्तियों की पहचान नहीं है .”, बच्चा उदास होते हुए बोला .

“तुम्हारे पास एक विकल्प है , ” बन्दर बोला , ” इस पेड़ को देखो , तुम चाहो तो नीचे की डालियों से पुरानी – कड़ी पत्तियां चुन सकते हो या ऊपर की पतली डालियों पर उगी ताज़ी -नरम पत्तियां तोड़ कर खा सकते हो .”

बच्चा बोला , ” ये ठीक नहीं है , भला ये अच्छी – अच्छी पत्तियां नीचे क्यों नहीं उग सकतीं , ताकि सभी लोग आसानी से उन्हें खा सकें .?”

“यही तो बात है , अगर वे सबके पहुँच में होतीं तो उनकी उपलब्धता कहाँ हो पाती … उनके बढ़ने से पहले ही उन्हें तोड़ कर खा लिया जाता !”, ” बन्दर ने समझाया .

” लेकिन इन पतली डालियों पर चढ़ना खतरनाक हो सकता है , डाल टूट सकती है , मेरा पाँव फिसल सकता है , मैं नीचे गिर कर चोटिल हो सकता हूँ …”, बच्चे ने अपनी चिंता जताई .

बन्दर बोला , “सुनो बेटा , एक बात हमेशा याद रखो , हम अपने दिमाग में खतरे की जो तस्वीर बनाते हैं अक्सर खतरा उससे कहीं कम होता है .“

“पर ऐसा है तो हर एक बन्दर उन डालियों से ताज़ी पत्तियां तोड़कर क्यों नहीं खाता ?” बच्चे ने पुछा .

बन्दर कुछ सोच कर बोला ” क्योंकि , ज्यादातर बंदरों को डर कर जीने की आदत पड़ चुकी होती है , वे सड़ी -गली पत्तियां खाकर उसकी शिकायत करना पसंद करते हैं पर कभी खतरा उठा कर वो पाने की कोशिश नहीं करते जो वो सचमुच पाना चाहते हैं …. पर तुम ऐसा मत करना , ये जंगल तमाम सम्भावनाओं से भरा हुआ है , अपने डर को जीतो और जाओ ऐसी ज़िन्दगी जियो जो तुम सचमुच जीना चाहते हो !”

बच्चा समझ चुका था कि उसे क्या करना है , उसने तुरंत ही अपने डर को पीछे छोड़ा और ताज़ी- नरम पत्तियों से अपनी भूख मिटाई।

मित्रों, अगर हम अपने जीवन में झांकें तो हमें भी पता चल जायेगा कि हम कैसी पत्तियां खा रहे हैं …. सड़ी-गली या नयी-ताजा … हमें भी इस बात को समझना होगा की हम अपने दिमाग में खतरे की जो तस्वीर बनाते हैं अक्सर खतरा उससे कहीं कम होता है … आप ही सोचिये खुद खतरे को बहुत बड़ा बना; डर कर बैठे रहना कहाँ की समझदारी है ? अगर आपके कुछ सपने हैं , कुछ ऐसा है जो आप करना चाहते हैं तो उसे ज़रूर करिये … आपकी हिम्मत ही आपको अपनी मनचाही ज़िन्दगी दे सकती है , डर कर बैठे रहना नहीं !
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