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लोग एक दूसरे से लाभ उठाते हैं । परंतु यह नहीं जानते कि हम तभी एक दूसरे से लाभ उठा पाएंगे, जब हमारा संबंध परस्पर प्रेमपूर्ण हो। संबंध को स्वस्थ या प्रेमपूर्ण बनाए रखने के लिए यह नियम आवश्यक है, कि जिस के साथ आप संबंध रखते हैं, वह व्यक्ति आपसे प्रसन्न हो, तभी वह आपके साथ संबंध रखना चाहेगा,
और मधुर संबंध बना भी रहेगा ।
अब संबंध प्रेमपूर्ण हो, इसके लिए आवश्यक है कि आप उसके गुणों की चर्चा करें । उसकी यथा योग्य प्रशंसा करें । झूठी प्रशंसा न करें , पर जितने गुण उस व्यक्ति में वास्तव में हों, उतनी तो न्याय पूर्वक अवश्य करें ।
ऐसा करने से आपका प्रेम बढ़ता है और बना रहता है। इसलिए संबंध को स्वस्थ एवं प्रेमपूर्ण बनाए रखने के लिए आवश्यक है, कि दूसरे व्यक्ति के गुणों की चर्चा की जाए । वह भी प्रसंग के अनुसार की जाए, उचित अवसर पर की जाए। चापलूसी भी ना हो।

और मनोविज्ञान की दूसरी बात यह है कि यदि आप दूसरे व्यक्ति के दोषों की चर्चा करेंगे , तो उसे कष्ट होगा , नाराजगी होगी । इससे आपका संबंध कमजोर हो जाएगा। इसलिए जहां तक संभव हो दूसरों के दोषों की चर्चा ना करें । यदि करनी ही पड़े, तो उसी से करें जिसका दोष हो । उसकी पीठ पीछे , दूसरों को दोष न बताएं । इससे अधिक हानि होती है ।
सीधा उसी व्यक्ति को दोष बताने से कम हानि होती है।
तो कोशिश करें , कि दोषों की चर्चा कम से कम हो। वह भी सुधार के उद्देश्य से हो। झगड़ा करने या अपमानित करने के उद्देश्य से ना हो ।
गुणों की चर्चा अधिक हो, तो आपका संबंध प्रेमपूर्ण बना रहेगा । आप एक दूसरे को लाभ देते लेते रहेंगे

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