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स्वतंत्रता-एक संवाद🌻🌷🌻

एक शिष्य अपने गुरु से पूछता है कि बड़ा विवाद है सदा से कि मनुष्य स्वतंत्र है अपने कृत्य में या परतंत्र!
बंधा है कि मुक्त! मैं जो करना चाहता हूं वह कर सकता हूं या नहीं कर सकता हूं ?

गुरु ने कहा,प्यारे एक पैर उठा कर खड़ा हो जा!

शिष्य ने कहा कि हम पूछते हैं कि कर्म करने में आदमी स्वतंत्र है कि परतंत्र!

गुरु ने कहा, तू पहले एक पैर उठा!
शिष्य बेचारा एक पैर–बायां पैर–उठा कर खड़ा हो गया।

गुरु ने कहा, अब तू दायां भी उठा ले।
शिष्य ने कहा, आप क्या बातें करते हैं!

तो गुरु ने कहा कि अगर तू चाहता पहले तो दायां भी उठा सकता था। मगर अब नहीं उठा सकता।

गुरु जी ने कहा कि एक पैर उठाने को आदमी सदा स्वतंत्र है। लेकिन एक पैर उठाते ही तत्काल दूसरा पैर बंध जाता है।

वह जो un necessary हिस्सा है हमारी जिंदगी का, जो गैर-जरूरी हिस्सा है, उसमें हम पूरी तरह पैर उठाने को स्वतंत्र व तत्पर हो जाते हैं। लेकिन ध्यान रखना, यदि हम गैर-जरूरी बातों में पैर उठाते है, तो जरूरी बातों को निश्चित रूप से नही कर पाएगे और फंस जाएगे ।

कौन क्या कर रहा है, कैसे कर रहा है, क्यो कर रहा है???, इससे हम जितना दूर रहेंगे, उतना ही सुखी रहेंगे

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