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✨हर हर हर महादेव

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धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य। धर्म के नाम पर हम अक्सर सिर्फ कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों तक सीमित रह जाते हैं। हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म कहा है। भगवान कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ का विचार नहीं करना चाहिए। बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य यानी धर्म पर टिकाकर काम करना चाहिए। इससे परिणाम बेहतर मिलेंगे और मन में शांति का वास होगा। मन में शांति होगी तो परमात्मा से आपका योग आसानी से होगा। आज का युवा अपने कर्तव्यों में फायदे और नुकसान का नापतौल पहले करता है, फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में सोचता है। उस काम से तात्कालिक नुकसान देखने पर कई बार उसे टाल देते हैं और बाद में उससे ज्यादा हानि उठाते हैं।

🌷🌷आपका दिन मंगलमय हो🌷🌷
✨जय महाकाल✨
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राधे राधे ॥ आज का भगवद चिन्तन ॥

एक ही फर्क है जो इंसान और पशु में अंतर पैदा करता है वो है विवेक। देखा जाये तो विवेक ही व्यक्ति को पशु बनने से रोकता है। विवेकवान व्यक्ति ही जीवन की प्रत्येक परिस्थिति, वस्तु, व्यक्ति, अवस्था इन सबको अपने अनुकूल कर सकता है।
जिस प्रकार बाढ़ जब आती है तो वह सब कुछ बहा ले जाती है। लेकिन एक कुशल तैराक अपनी तैरने की कला से बाढ़ को भी मात देकर स्वयं तो बचता ही है अपितु कई औरों के जीवन को भी बचाने में सहायक होता है।
तुम संसार की भीड़ का हिस्सा मत बनो। परिस्थिति और अभावों का रोना तो सब रो रहे हैं। तुम कुछ अलग करो, अच्छा करो, प्रसन्न होकर करो। विवेक इसीलिए तो है तुम गिरने से बच सको। ये जरूर ध्यान रखना विवेकयुक्त होकर काम करते हो तभी तक तुम इंसान हो।

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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” मन से मिलती है कार्य की प्रेरणा……………………. “

  💐हम सभी जानते हैं कि हमारे जीवन के तीन स्तर हैं- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। तीनों स्तरों पर हम सभी को संतुलन बनाए रखना होता है। कभी-कभी लोग सोचते हैं- हम भौतिक स्तर पर बिल्कुल ठीक हैं तो फिर यह मानसिक स्तर क्या है ? यह सोचना ठीक नहीं है।
आत्मा अलग है और परमात्मा अलग है। दोनों के गुण भी अलग है कुछ समान भी है फिर भी दोनो का मिलन नहीं हो सकता है।
मन ही हमें दिन-प्रतिदिन के कार्य करने या नहीं करने को प्रेरित करता है। इसलिए मन के बिना हम कोई काम नहीं कर सकते। व्यावहारिक जीवन में हम इस बात का अनुभव खुद करते हैं। मान लो हमारा मन किसी कारण से किसी काम को करने में नही लग रहा, क्या ऐसी हालत में कोई काम किया जा सकता है ? बिल्कुल नहीं। यदि बिना मन का कोई काम करने जाएंगे तो उसका परिणाम अच्छा नहीं निकलेगा।
   सम्भव है , कुछ अंश तक सफलता मिले, किंतु शत-प्रतिशत सफलता तो संभव नहीं है। इसी तरह हम शारीरिक रूप से भी स्वस्थ नही हैं, तो भी कोई काम करने में सफल नहीं होंगे। आध्यात्मिक स्तर पाने की तो बात ही अलग है। तीनों स्तर पर संतुलन कैसे लाया जाए, इसके लिए तीन आवश्यक तत्वों को व्यावहारिक जीवन में उतारना आवश्यक है- आहार, आसन और साधना।
आहार ऐसा हो, जो शरीर के लिए सुपाच्य और लाभदायक हो। विषेषकर सात्विक आहार आध्यात्मिक स्तर के लोगों के लिए लाभकर है। जहां तक आसन की बात है- यह एक शांत, सहज और सुखदायक शारीरिक क्रिया है जो सांस की लय के साथ विधिवत की जाती है। आसन करने से शरीर को सहजता और मन को शांति मिलती है। यह शरीर और मन को संतुलित रखने में मदद करता है।
    आध्यात्मिक साधना, यानी योग का किसी धर्म या संप्रदाय से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसका व्यावहारिक ज्ञान कोई भी पा सकता है। यह शरीर की ग्रंथि, मन और श्वास-प्रश्वास क्रिया से जुड़ा हुआ है। वैसे योग के बारे में तरह-तरह की व्याख्याएं दी गई हैं।प्रायः लोग योग शब्द का संबंध जोड़ने से लगाते हैं। आध्यात्मिक योग का इस साधारण योग के साथ कोई मेल नहीं है।
   आध्यात्मिक योग का अर्थ एकीकरण यानी मिलन से है। जैसे चीनी और पानी को मिलाने से दोनों एकाकार हो जाते हैं, उसी तरह आध्यात्मिक योग में आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रयास किया  जाता है। योग साधना की प्रक्रिया द्वारा मन के अंदर मंदिर में जो आत्मा है, उसे परमात्मा के साथ मिलाया जा सकता है। इस मिलन से उपजे असीम आनंद का अनुभव ही शांति है।💐

🌷🌷🌷स्वस्ति🌷🌷🌷
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