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जीवन को सुखी बनाने के लिए चरित्र का बड़ा महत्व है। सच्चरित्रता मानवता की प्रतीक हैं।। चरित्र की प्रौढ़ता मन को संबल देती हैं, चरित्र धन हैं, चरित्र पर दृढ़ रहने से मबोबल बढ़ता हैं। कठिन से कठिन परिस्थितियों में हिम्मत न हारकर आगे बढ़ने का साहस बना रहता हैं।। मनुष्य का जीवन अनेक संस्कारो से लिपटा बंधा होता है। ये अच्छे भी होते हैं।। और बुरे भी शुभ कर्मों से ही शुभ संस्कारो का सृजन होता है व बुरे सँस्कार कटते हैं। निरन्तर अभ्यास के द्वारा जो अपने मन को अनुशाषित रखने में सफल होते हैं, वे सहज ही सुखी रहते हैं।। क्रोध सुख का सबसे बड़ा शत्रु हैं। क्रोध मनुष्य को विचार शून्य एवं शक्तिहीन कर देता है। जिस तरह तूफान का प्रबल वेग बाग-बगीचा को झक झोर कर उनका सौंदर्य नष्ट कर देता है, उसी तरह क्रोध का तीव्र तम आवेग ब्यक्ति के तन-मन मे तूफान पैदा कर उससे कई अनर्थ करवा डालता है। क्रोध की अवस्था में मनुष्य के भीतर एक प्रचण्ड आवेग समाहित हो जाता हैं। परंतु क्रोध उतरने पर आवेग की अवस्था मे किये गए कर्मो पर पश्चात्ताप कर वह लंबे समय तक दुखी होता रहता है।।

आनन्द साधन से नहीं साधना से प्राप्त होता है। आंनद भीतर का विषय है, तृप्ति आत्मा का विषय है। मन को तो कितना भी मिल जाए , यह अपूर्णता का बार – बार अनुभव कराता रहेगा। जो अपने भीतर तृप्त हो गया उसे बाहर के अभाव कभी परेशान नहीं करते।। केवल मानव जन्म मिल जाना ही पर्याप्त नहीं है अपितु हमें जीवन जीने की कला भी आना जरुरी है। पशु- पक्षी तो बिलकुल भी संग्रह नहीं करते फिर भी भी उन्हें जीवनोपयोगी सब कुछ प्राप्त होता है।। जीवन तो बड़ा आनंदमय है लेकिन हम अपनी इच्छाओं के कारण, वासनाओं के कारण इसे कष्टप्रद और क्लेशमय बनाते हैं। प्रारब्ध में जितना लिखा है और जब मिलना लिखा है, उतना ही मिलेगा और उसी समय पर मिलेगा। कर्म जरूर करते रहें पर चिन्तित कदापि ना हों। जीवन के लिए जो जरुरी है उतना प्रकृति कारण से नहीं, करुणा से अपने आप दे देती है।।

   

🌹प्रार्थना कब सफल होगी ? 🌹

👉 ईश्वर से की गई “प्रार्थना” का तभी उत्तर मिलता है, जब हम अपनी शक्तियों को काम में लाएँ । आलस्य, प्रमाद, अकर्मण्यता और अज्ञान ये सब अवगुण यदि मिल जाएँ, तो मनुष्य की दशा वह हो जाती है जैसे किसी कागज़ के थैले के अंदर तेज़ाब भर दिया जाए । ऐसा थैला अधिक समय तक न ठहर सकेगा और बहुत जल्द गलकर नष्ट हो जाएगा । ईश्वरीय नियम बुद्धिमान माली के समान हैं जो निकम्मे घास-कूड़े को उखाड़कर फेंक देता है और योग्य पौधों की भरपूर साज-संभाल रखकर उन्हें उन्नत बनाता है । जिसके खेत में निकम्मे खर-पतवार उग पड़ें, उसमें अन्न की फसल मारी जाएगी । ऐसे किसान की कौन प्रशंसा करेगा, जो अपने खेत की दुर्दशा करता है ! निश्चय ही ईश्वरीय नियम निकम्मे पदार्थों की गंदगी हटाते रहते हैं, ताकि सृष्टि का सौंदर्य नष्ट न होने पाए ।
👉 ” “प्रार्थना” का सच्चा उत्तर पाने का सबसे प्रथम मार्ग “आत्म-विश्वास” है । “कर्तव्यपरायणता” द्वारा ही सच्ची प्रार्थना होनी संभव है । ईश्वर नामक सर्वव्यापी सत्ता में प्रवेश करने का द्वार आत्मा में होकर है । वही इस खाई का पुल है । अविश्वासीऔर आत्मघाती लोग निश्चय ही विपत्ति में पड़े रहते हैं और सही मार्ग की तलाश करते फिरते हैं । आत्मतिरस्कार करने वालों को यहाँ भी तिरस्कार मिलता है और उनकी प्रार्थना भी निष्फल चली जाती है

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