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: कल्याण का मार्ग …

कल्याण के लिए, मोक्ष के लिए किसी जाति विशेष का होना आवश्यक नहीं है। सद्गति सबों की हुई जो भी प्रपन्न भाव को अपना सका। वेद, स्मृति, पुराण, आगम आदि के विरुद्ध गए बिना, अपने कर्तव्य का पालन और अधिकारों का उपभोग करके कर्मयोग का आश्रय लेकर भी ब्रह्म की सिद्धि हो सकती है।

मंदोदरी च शबरी च मतंगशिष्या-
स्तारा तथात्रिवनिता निपुणा त्वहल्या ॥
कुन्ती तथा द्रुपदराजसुता सुभक्ता
एताः परं परमहंससमाः प्रसिद्धाः ॥
(गर्ग संहिता)

मंदोदरी (राक्षस की पुत्री और पत्नी),
शबरी (भील जाति की निरक्षर सीधी साधी महिला)
तारा (वानर साम्राज्ञी)
अहल्या (ऋषि पत्नी)
अनुसूया (परम उच्चस्तरीय साध्वी पतिव्रता)
कुंती (परम विदुषी राजमाता)
द्रौपदी (अग्निकुंड से उत्पन्न काली का अवतार)

जानते हैं इन सब की क्या गति हुई ? परमहंस जैसी सद्गति .. परमहंस संन्यास की सबसे बड़ी स्थिति है। आजकल तो कोई भी यह उपाधि लगा ले रहा है। लेकिन वास्तविक परमहंस और भगवान में इतना ही भेद है कि भगवान चमड़े की आंखों से नहीं दिखते और परमहंस दिखते हैं।

परमहंस के उदाहरण अष्टावक्र जी, शुकदेव जी, गोरक्षनाथ जी, लोमश मुनि, दत्तात्रेय भगवान आदि हुए हैं। इन बड़े बड़े अवतारी योगियों को जो मोक्षदायिनी सद्गति मिली, वही इन महिलाएं के लिए भी दी गयी। इतना ही नहीं, धर्मव्याध नामक कसाई, कणप्प नामक भील और तुलाधार नामक बनिया का भी उद्धार हुआ। रैदास जैसे चमार से लेकर नरसी मेहता जैसे व्यापारी का भी हुआ।

क्यों हुआ ? क्योंकि भगवान का केवल एक ही कहना है :-

स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।
स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु॥

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः॥

अपने अपने वर्णाश्रम के अनुसार कर्म करके ही मनुष्य कल्याण को प्राप्त करता है और वो कैसे होता है, ये सुनें !!
जहाँ से सम्पूर्ण ब्रह्मांड का जन्म हुआ है और जो इस ब्रह्मांड के प्रत्येक कण में व्याप्त है, उस परब्रह्म की पूजा करके ही मनुष्य कल्याण को प्राप्त करता है।

और कैसे करनी है पूजा ? स्वकर्मणा। अपने कर्म से। आपका कर्म क्या है ? दया, परोपकार, त्याग, सहनशीलता, धर्मरक्षा, असहायों की सेवा और सम्मान जैसे मानव धर्मों के साथ साथ अपनी जाति, वर्ण, आश्रम के द्वारा बताए गए कर्म को ही ईश्वर की सेवा मानकर करने कहा। इसी से मुक्ति है। यदि ये कर रहे हैं, तो बाकी देवालय आदि की पूजा भी सार्थक है अन्यथा नहीं। लेकिन कर्म करने की एक विशेष विधि भी बताई। वह विधि क्या है ?

यह कि भगवान का स्मरण बना रहे। जैसे हम जो भी कर रहे हैं, वह नर रूप में नारायण सेवा है, यह मानकर। मामनुस्मर युद्ध्य च। अपने लिए विहित हर कर्म करो किन्तु स्मरण ब्रह्म का बना रहे। इसके अलावा जो भी कमाओ, खाओ, दान करो, सेवा करो, सब के लिए भगवान को धन्यवाद देते हुए उसका फल, उसका श्रेय, उसका आभार भगवान के प्रति समर्पित करते रहो।

यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥

हे अर्जुन ! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान करता है और जो तप करता है, वह सब मुझे अर्पण कर।

इतना ही करना है इस कलिकाल में। ये करना है मात्र। और क्या नहीं करना है ? दवा तो बता दी, अब परहेज सुनें।

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।
कामः क्रोधः तथा लोभ स्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥

काम, क्रोध, तथा लोभ – ये तीन नर्क के द्वार, आत्मा की अधोगति करनेवाले हैं; इस लिए इनका त्याग करना चाहिए ।

एतैर्विमुक्त: कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नर: |
आचरत्यात्मन: श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ||

इनसे मुक्त होकर , पतन के तीनों द्वारों से बचकर आचरण करने से ही मोक्ष रूपी परम गति मिलती है। यह मानवमात्र के लिए है, कोई बंधन नहीं। हां, जहां शिक्षा देनी हो, धर्मरक्षा करनी हो, वहां दुष्टों के दमन हेतु, ज्ञान की प्राप्ति हेतु, सन्तुलित रूप से क्रोध, लोभ आदि का प्रदर्शन अनुचित नहीं, लेकिन वे आपके नियन्त्रण में रहें, आपको वे नियंत्रित न करने लगें। ॐ ॐ ॐ …
[👏1.खुद की कमाई से कम
खर्च हो ऐसी जिन्दगी
बनाओ..!
👏2. दिन मेँ कम से कम
3 लोगो की प्रशंसा करो..!
👏3. खुद की भुल स्वीकारने
मेँ कभी भी संकोच मत
करो..!
👏4. किसी के सपनो पर हँसो
मत..!
👏5. आपके पीछे खडे व्यक्ति
को भी कभी कभी आगे
जाने का मौका दो..!
👏6. रोज हो सके तो सुरज को
उगता हुए देखे..!
👏7. खुब जरुरी हो तभी कोई
चीज उधार लो..!
👏8. किसी के पास से कुछ
जानना हो तो विवेक से
दो बार…पुछो..!
👏9. कर्ज और शत्रु को कभी
बडा मत होने दो..!
👏10. स्वयं पर पुरा भरोसा
रखो..!
👏11. प्रार्थना करना कभी
मत भुलो,प्रार्थना मेँ
अपार शक्ति होती है..!
👏12. अपने काम से मतलब
रखो..!
👏13. समय सबसे ज्यादा
कीमती है, इसको फालतु
कामो मेँ खर्च मत करो..
👏14. जो आपके पास है, उसी
मेँ खुश रहना सिखो..!
👏15. बुराई कभी भी किसी कि
भी मत करो,
क्योकिँ बुराई नाव मेँ
छेद समान है,बुराई
छोटी हो बडी नाव तो
डुबो ही देती है..!
👏16. हमेशा सकारात्मक सोच
रखो..!
👏17. हर व्यक्ति एक हुनर
लेकर पैदा होता है बस
उस हुनर को दुनिया के
सामने लाओ..!
👏18. कोई काम छोटा नही
होता हर काम बडा होता
है जैसे कि सोचो जो
काम आप कर रहे हो
अगर वह काम
आप नही करते हो तो
दुनिया पर क्या असर
होता..?
👏19. सफलता उनको ही
मिलती है जो कुछ
करते है
👏20. कुछ पाने के लिए कुछ
खोना नही बल्कि कुछ
करना पडता है….!
[अध्यात्म क्या है??????

अध्यात्म एक दर्शन है, चिंतन-धारा है, विद्या है, हमारी संस्कृति की परंपरागत विरासत है, ऋषियों, मनीषियों के चिंतन का निचोड़ है, उपनिषदों का दिव्य प्रसाद है। आत्मा, परमात्मा, जीव, माया, जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, सृजन-प्रलय की अबूझ पहेलियों को सुलझाने का प्रयत्न है अध्यात्म।

अध्यात्म का अर्थ है अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना, और दर्शन करना अर्थात अपने आप के बारे में जानना या आत्मप्रज्ञ होना, गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरुप अर्थात जीवात्मा को अध्यात्म कहा गया है, “परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ” आत्मा परमात्मा का अंश है यह तो सर्वविदित है।

जब इस सम्बन्ध में शंका या संशय,अविश्वास की स्थिति अधिक क्रियमान होती है तभी हमारी दूरी बढती जाती है, और हम विभिन्न रूपों से अपने को सफल बनाने का निरर्थक प्रयास करते रहते हैं जिसका परिणाम नाकारात्मक ही होता है, ये तो असंभव सा जान पड़ता है-मिटटी के बर्तन मिटटी से अलग पहचान बनाने की कोशिश करें तो कोई क्या कहे ? यह विषय विचारणीय है।

अध्यात्म की अनुभूति सभी प्राणियों में सामान रूप से निरंतर होती रहती है, स्वयं की खोज तो सभी कर रहे ह…
[ (प्रश्न) ईश्वर अपने भक्तों के पाप क्षमा करता है वा नहीं ?

(उत्तर) नहीं। क्योंकि जो पाप क्षमा करे तो उस का न्याय नष्ट हो जाये और सब मनुष्य महापापी हो जायें। क्योंकि क्षमा की बात सुन ही के उन को पाप करने में निर्भयता और उत्साह हो जाये। जैसे राजा अपराधियों के अपराध को क्षमा कर दे तो वे उत्साहपूर्वक अधिक-अधिक बड़े-बड़े पाप करें। क्योंकि राजा अपना अपराध क्षमा कर देगा और उन को भी भरोसा हो जाय कि राजा से हम हाथ जोड़ने आदि चेष्टा कर अपने अपराध छुड़ा लेंगे और जो अपराध नहीं करते वे भी अपराध करने से न डर कर पाप करने में प्रवृत्त हो जायेंगे। इसलिये सब कर्मों का फल यथावत् देना ही ईश्वर का काम है क्षमा करना नहीं।

(प्रश्न) जीव स्वतन्त्र है वा परतन्त्र ?

(उत्तर) अपने कर्त्तव्य कर्मों में स्वतन्त्र और ईश्वर की व्यवस्था में परतन्त्र है। ‘स्वतन्त्रः कर्त्ता’ यह पाणिनीय व्याकरण का सूत्र है। जो स्वतन्त्र अर्थात् स्वाधीन है वही कर्त्ता है।

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