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जीवन चेष्टा नहीं.. समर्पण है। और यही जीवन का रहस्य है।। कि जिस दिन कोई व्यक्ति परमात्मा में इस प्रकार समर्पित हो जाता है। सभी दुर्गुण सद्गुण के लिए समर्पित हो जाते हैं।। अंधकार प्रकाश की पृष्ठभूमि बन जाता है। क्रोध करुणा में रूपांतरित हो जाता है।। काम वासना उर्ध्वगमन करती है। ब्रह्मचर्य हो जाती है।। मोह ढंग बदल कर प्रेम हो जाता है। समर्पण करते ही, अहंकार हटते ही सब बदल जाता है।। सागर में गिरते ही सब शुध्द हो जाता है। सागर से परम शुध्द होकर फिर मेघ उठने लगते हैं।।

          
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह अकेला नहीं जी सकता उसे बहुत लोगों की सहायता लेनी पड़ती है। देश में करोड़ों व्यक्ति दिन रात मेहनत करते हैं, तब कहीं जाकर आपको रेल विमान टैक्सी बस ट्रक भोजन कार स्कूटर मोटरसाइकिल फोन इत्यादि सुविधाएं प्राप्त होती हैं।। कोई बिजली बनाता है, कोई सड़क बनाता है, कोई कपड़े बनाता है, कोई मिठाई बनाता है इत्यादि इन सब का सहयोग तो लेना ही पड़ता है। इसके बिना इतनी सारी सुविधाएं मिलना संभव नहीं है।। परंतु कुछ लोगों से हमारा सीधा संबंध होता है। जैसे माता पिता भाई बहन पति पत्नी सास बहू इत्यादि इन सब के साथ सीधा संबंध होने से इनसे प्रतिदिन व्यवहार में कहीं-कहीं कुछ विचारों का टकराव भी होता है। जहां विचारों में एकरूपता होती है।। वहां आपस में प्रेम संगठन सुख शांति आनंद होता है। और जहां जहां विचारों में टकराव होता है। वहां वहां परस्पर प्रेम संगठन कमजोर होता जाता है , और अंत में टूट भी जाता है।। तो आप यदि शांति से आनंद से निर्भय होकर जीना चाहें , तो आपको अपने परिवार वाले लोगों, मित्रों संबंधियों आदि के साथ मजबूत रिश्ते बनाए रखने होंगे। और यदि विचारों के टकराव के कारण आपस में लड़ाई झगड़े कलह आदि होता हो, तो कभी-कभी संबंध तोड़ने की नौबत भी आ सकती है।। संबंध तोड़ने से पहले इतना अवश्य विचार कर लें , क्या आप उस व्यक्ति के बिना ठीक तरह से आनंद पूर्वक जी पाएंगे यदि हां। तो संबंध तोड़ सकते हैं।। यदि उसके बिना ठीक से नहीं जी पाएंगे तो संबंध ना तोड़ें, और जैसे तैसे सहन करते हुए जीवन को आगे चलाएं। तथा उन समस्याओं का समाधान भी ढूंढते रहें जिनके कारण आपस में अनबन होती है।।
दुनियां से सारी बात करने के लिये, मोबाइल फोन की जरूरत होती है। और प्रभु से मन की बात करने के लिये, मौन रहकर मनन की जरूरत होती है।। फोन से बात करने पर बिल देना पड़ता है। ईश्वर से बात करने पर दिल देना पड़ता है।। माया को चाहने वाले,ऐ बिखर जाते है। भगवान को चाहने वाले निखर जाते है।।
[ धर्मो रक्षति रक्षितः एक बड़ा सुंदर सा चिंतन मन मे आता है, कि जो एक छोटा सा नियम आप नित्य निर्वाह करते हैं जिसे आप नित्य नेम कहते हैं। वो बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ करना चाहिए। वो नियम ही एक दिन श्रद्धा और विश्वास का संग पाकर धर्म बनता हैं।। धर्म ही आपकी एक दिन आपकी रक्षा करेगा। आपका नियम ही आपका धर्म बनेगा। एक दिन वो नियम ही आपका धर्म बन जायेगा। स्वधर्म बन जायेगा फिर उसे नियम को किये बिना आप रह नहीं पाएंगे।। वो आपका स्वभाव बन जाये। ये नियम ही आपकी आध्यात्मिक यात्रा का साफल्य हैं। कि धर्म आपका स्वभाव बन जाये। सदाचार, सद्विचार आपका स्वभाव बन जाये। आपका विचार ही आपका अस्तित्व है, आपका विचार ही आपका व्यक्तित्व हैं।।
राधे-राधे ॥आज का भगवद् चिंतन॥

   

क्या आपने कभी ये विचार किया कि इस दुनिया में आपकी तकदीर कौन और कैसे बदल सकता है। कौन है, जो आपके चेहरे पर मुस्कुराहट ला सकता है।। कौन है जो आपके जीवन को सुखी और आनंदमय बना सकता है। और कौन है, वो जो आपकी हर समस्या का हल ढूँढ सकता है एवं आपके जीवन को एक आदर्श जीवन बना सकता है।। कभी आपके सामने ये समस्त प्रश्न उपस्थित हो जायें तो धीरे से उठकर आइने के सामने चले जाना आपको स्वतः इन सभी प्रश्नों का उत्तर प्राप्त हो जायेगा। इस पूरी दुनिया में केवल एक ही इन्सान आपकी तकदीर बदल सकता है। इस पूरी दुनियाँ में केवल एक शख्स ही आपके हर प्रश्न का उत्तर और हर समस्या का समाधान हल निकाल सकता है।। और वो है केवल और केवल आप आपके जीवन में बतौर मार्गदर्शक बहुत सारे मील के पत्थर खड़े मिल जायेंगे मगर लक्ष्य तक गति आपको स्वयं ही करनी पड़ेगी। नीति शास्त्रों का वचन है कि दूसरों पर भरोसा करके हजारों योजन की दूरी तय करने की क्षमता रखने वाला गरुड़ भी बैठ जाने पर एक मील भी गति नहीं कर सकता मगर स्वयं पर भरोसा रखकर निरंतर गतिमान चींटी भी बड़ी लम्बी दूरी तय कर लेती है।। आलसी गरूड़ बनने से कई गुना श्रेष्ठ है, निरंतर गतिमान चींटी बनना। जो देर से सही मगर एक दिन अपने लक्ष्य तक पहुँच अवश्य जाती है।।

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