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व्यक्ति सोचता है कि बस 6 महीने में परिस्थितियां मेरी इच्छा के अनुकुल हो जाएंगी । परंतु 6 महीने बीत गए, फिर भी परिस्थितियां उसकी इच्छा के अनुकूल नहीं हुई। फिर वह सोचता है , चलो और एक साल निभा लेते हैं , उसके बाद परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाएंगी। ऐसे सोचते सोचते पूरा जीवन निकल जाता है , और परिस्थितियाँ कभी भी 100% उसकी इच्छा के अनुकूल नहीं हो पाती।
यह सत्य ही है , कि जैसे जैसे आप अपनी इच्छा पूरी करते जाते हैं , वैसे वैसे आपकी इच्छाएँ बढ़ती जाती हैं । और यह सभी जानते हैं कि सारी इच्छाएँ कभी किसी की पूरी न होती हैं , न हुई हैं। बस आगे से आगे इच्छाएँ बढ़ती जाती हैं। और जीवन में कभी भी पूरा संतोष नहीं हो पाता, कि अब तो सब कुछ ठीक चल रहा है। इसलिए व्यक्ति सारा जीवन यूँ ही दुखी रहता है।
वेद आदि शास्त्रों के आधार पर ऋषि लोग बताते हैं कि जैसी भी परिस्थिति हो, व्यक्ति को उस परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने के लिए पूरी लगन से काम करना चाहिए। मोटी भाषा में एक जुनून=पागलपन सा होना चाहिए, कि मैं इस प्रतिकूल परिस्थिति को भी अपने अनुकूल बनाकर ही रहूंगा। इस प्रकार से यदि व्यक्ति पुरुषार्थ करे, तो बहुत कुछ प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना सकता है । और जहां व्यक्ति उन परिस्थितियों को अपने अनुकूल न बना पाए, वहां स्वयं को परिस्थितियों के अनुकूल बनाकर संतुष्ट रहे, तो ऐसा व्यक्ति जीवन में सुखी हो सकता है।
तो आप भी ऐसा ही करें । या तो परिस्थितियों को अपनी इच्छा के अनुकूल बनाएं , अथवा जो भी परिस्थिति हो उसी में अपने आप को समायोजित कर के संतुष्ट रहें। –
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संसार में दो मार्ग हैं । कठोपनिषद की भाषा में एक मार्ग का नाम है श्रेय मार्ग। और दूसरे का नाम है प्रेय मार्ग. श्रेय मार्ग , मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है, संपूर्ण कल्याण का मार्ग है। इसे अध्यात्मवाद भी कहते हैं। इसमें व्यक्ति ईश्वर के प्रेम में पड़ता है। जिससे उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। मोक्ष प्राप्त होने पर आत्मा सब दुखों से छूट जाता है । ईश्वर के उत्तम आनंद को प्राप्त करता है , तथा पूरे ब्रह्मांड की सैर भी करता है । परंतु दूसरा मार्ग वह है, जिसे भोगवाद या प्रेयमार्ग कहते हैं। प्रेय मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति संसार के भोगों के पीछे जीवन भर पूर्ण सुख की आशा में भागता रहता है । लाखों जन्मों तक भागने के बाद भी उसे पूर्ण सुख नहीं मिलता । बहुत थोड़ा सा सुख मिलता है, क्षणिक सुख मिलता है । इच्छाएं और अधिक बढ़ती जाती हैं , शांत नहीं होती , तृप्ति अनुभव नहीं होती , और अनेक प्रकार के दुख भी भोगने पड़ते हैं। जैसे भोग्य वस्तु न मिलने पर, देर से मिलने पर, घटिया किस्म की मिलने पर, छिन जाने पर, नष्ट हो जाने पर इत्यादि। इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार के अन्याय का दुख भी भोगना पड़ता है।
अब आप स्वयं विचार करें, श्रेय मार्ग = मोक्ष का मार्ग अधिक अच्छा है या प्रेय मार्ग = संसार के भोगों का मार्ग । जो भी अच्छा लगे, उस पर चलें ।

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