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परमेश्वर ने सब मनुष्यों को नियम से सेवन करने योग्य धर्म का उपदेश किया है, जो कि न्याययुक्त, परीक्षा किया हुआ, सत्य लक्षणों से प्रसिद्ध और सब का हितकारी तथा इस लोक अर्थात् संसारी और परलोक अर्थात् मोक्ष सुख का हेतु है, यही सब को आचरण करने योग्य है और उससे विरुद्ध जो कि अधर्म कहाता है, वह किसी को ग्रहण करने योग्य कभी नहीं हो सकता, क्योंकि सर्वत्र उसी का त्याग करना है। इसी प्रकार हमको भी प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि हे परमेश्वर! हम लोग वेदों में आप के प्रकाशित किये सत्यधर्म का ही ग्रहण करें तथा हे परमात्मन्! आप हम पर ऐसी कृपा कीजिये कि जिससे हम लोग उक्त सत्यधर्म का पालन कर के अर्थ, काम और मोक्षरूप फलों को सुगमता से प्राप्त हो सकें। जैसे सत्यव्रत के पालने से आप व्रतपति हैं, वैसे ही हम लोग भी आप की कृपा और अपने पुरुषार्थ से यथाशक्ति सत्यव्रत के पालनेवाले हों तथा धर्म करने की इच्छा से अपने सत्कर्म के द्वारा सब सुखों को प्राप्त होकर सब प्राणियों को सुख पहुंचाने वाले हों, ऐसी इच्छा सब मनुष्यों को करनी चाहिये॥

(स्वामी दयानन्द सरस्वती- यजुर्वेद भाष्य 1/5)

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