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व्यक्ति सुबह से रात तक बोलता है । उसमें कुछ बातें सही बोलता है , और कुछ गलत भी बोलता है। जब वह गलत बोल बैठता है, तब वह पछताता है कि “मैंने अच्छा नहीं बोला।” वह पछताना उसे अच्छा नहीं लगता । पर वह गलत बोल चुका है इसलिए पछतावा होता ही है ।
इस पछतावे से बचने के लिए बुद्धिमान लोगों का यह कहना है कि बहुत सोच-समझकर बोलना चाहिए। पहले तोलें और फिर बोलें।
क्योंकि जो शब्द आपने अब तक नहीं बोले, वे आपके अपने हैं । मन में आप जो भी सोचें, इससे दूसरे को पता नहीं चलता, और उसे इससे कोई फ़र्क भी नहीं पड़ता ।
लेकिन जब आप शब्द बोल देते हैं , तब दूसरा व्यक्ति सुनकर उन शब्दों से प्रभावित होता है ।
यदि आप अच्छे शब्द बोलते हैं तो वह सुखी हो जाएगा । यदि आप बुरे शब्द गलत या कठोर शब्द बोलते हैं तो वह दुखी हो जाएगा । और उसका फल आपको भविष्य में भोगना पड़ेगा ।
तो अपना भविष्य अच्छा बनाएं , खराब ना करें । नापतोल कर बोलें , सोच-समझकर बोलें, सत्य बोलें, मीठा बोलें, नम्रता सभ्यता से बोलें, प्रमाण से परीक्षा कर के बोलें , झूठी प्रशंसा ना करें अथवा किसी भी प्रकार का झूठ ना बोलें। तो आपका बोलना सार्थक होगा, और बहुत लाभकारी होगा । – स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

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