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चाहे संसार हो या कुछ और आप हर काम अपने हिसाब से करते हैं, यहाँ तक कि आप परमात्मा का ध्यान या प्रार्थना भी सुविधा के अनुसार करते हैं।। परमात्मा आपके लिए दिव्य उपलब्धि नहीं केवल एक खेल का विषय है। मात्र एक इच्छा पूर्ति का साधन है। अपनी जड़ता को छोड़ परमात्मा के हिसाब से चलें आपका हर कार्य अच्छा होगा आप परम शान्ति को उपलब्ध होंगे। जीवन में आनंद ही आनंद होगा।।
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जीवन बहुत कुछ उस शीतल कुँए की तरह है, जिसके आगे झुक जाना ही कुछ प्राप्त करने की शर्त है। कुँए के सामने आप चाहे जितनी देर खड़े हो जाएँ मगर झुके वगैर वह आपकी सेवा में समर्थ नहीं हो पायेगा, भले ही वह आपको तृप्त करने की पूर्ण क्षमता रखता हो। जीवन के पास भी आपको देने को बहुत कुछ है।। मगर वहाँ भी शर्त यही है। बिना झुके श्रेष्ठ को पाना संभव नहीं है। झुककर चलना जीवन पथ में लक्ष्य प्राप्ति की अनिवार्यता है।। यहाँ अकड़कर चलने वाले रावण के दस सिर भी कट गए और झुककर रहने वाले विभीषण को अनायास ही लंका का राज्य प्राप्त हो गया। सहज जीवन जीने वाले को बहुत कुछ सहज में ही प्राप्त हो जाता है।।
[॥ भगवद् चिंतन॥
केवल मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है, जिसका व्यक्तित्व निर्माण प्रकृत्ति से ज्यादा उसकी स्वयं की प्रवृत्ति पर निर्भर होता। मनुष्य अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, वह जैसा सोचता है वैसा बन जाता है। मनुष्य और अन्य प्राणियों के बीच का जो प्रमुख भेद है, वह ये कि मनुष्य के सिवा कोई और प्राणी श्रेष्ठ विचारों द्वारा एक श्रेष्ठ जीवन का निर्माण नहीं कर पाता है। वो अच्छा सोचकर, अच्छे विचारों के आश्रय से अपने जीवन को अच्छा नहीं बना सकता है। प्रकृति ने जैसा उसका निर्माण कर दिया, कर दिया। अब उसमें सुधरने की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रह जाती है।। मगर एक मनुष्य में जीवन के अंतिम क्षणों तक जीवन परिवर्तन के द्वार सदा खुले रहते हैं। वह अपने जीवन को अपने हिसाब से उत्कृष्ट या निकृष्ट बना सकने में समर्थ होता है। पशु के जीवन में पशु से पशुपतिनाथ बनने की संभावना नहीं होती मगर एक मनुष्य के जीवन में नर से नारायण बनने की प्रबल संभावना होती है। मनुष्य जैसा खाता है, जैसा देखता है, जैसा सुनता है, जैसा बोलता है और जैसा सोचता है, फिर उसी के अनुरूप वो अपने व्यक्तित्व का निर्माण भी कर लेता है। अगर उस प्रभु ने कृपा करके आपको मनुष्य बनाया है तो फिर क्यों न श्रेष्ठ को सोचकर, श्रेष्ठ को चुनकर, श्रेष्ठ पथ का अनुगमन करके श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करते हुए अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाया जाए।।
*जय श्री राधेकृष्णा*