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👉 जीव के चार प्रकार

जीव चार प्रकार के कहे गए हैं – बद्ध, मुमुक्षु, मुक्त और नित्य। संसार मानो जाल है और जीव मछली। ईश्वर, यह संसार जिनकी माया है, मछुए हैं। जब मछुए के जाल में मछलियाँ पड़ती हैं, तब कुछ मछलियाँ जाल चीरकर भागने की अर्थात् मुक्त होने की कोशिश करती हैं। उन्हें मुमुक्षु जीव कहना चाहिए।

जो भागने की चेष्टा करती हैं, उनमें से सभी नहीं भाग सकतीं। दो-चार मछलियाँ ही धड़ाम से कूदकर भाग जाती हैं। तब लोग कहते हैं, वह बड़ी मछली निकल गयी। ऐसे ही दो-चार मनुष्य मुक्त जीव हैं। कुछ मछलियाँ स्वभावत: ऐसी सावधानी से रहती हैं कि कभी जाल-सहित इधर से उधर भागती हैं, और सीधे कीच में घुसकर देह छिपाना चाहती हैं। भागने की कोई चेष्टा नहीं, बल्कि कीच में और गड़ जाती हैं। ये ही बद्ध जीव हैं। बद्ध जीव संसार में अर्थात् कामिनी कांचन में फँसे हुए हैं, कलंकसागर में मग्न हैं, पर सोचते हैं कि बड़े आनन्द में हैं !

जो मुमुक्षु या मुक्त हैं, संसार उन्हें कूप जान पड़ता है, अच्छा नहीं लगता। इसीलिए कोई-कोई ज्ञान-लाभ, ईश्वरलाभ हो जाने पर शरीर छोड़ देते हैं, परन्तु इस तरह का शरीरत्याग बड़ी दूर की बात है।

‘‘बद्ध जीवों – संसारी जीवों को किसी तरह होश नहीं होता। कितना दुख पाते हैं, कितना धोखा खाते हैं, कितनी विपदाएँ झेलते हैं, फिर भी बुद्धि ठिकाने नहीं आती। ऊँट कटीली घास को बहुत चाव से खाता है। परन्तु जितना ही खाता है उतना ही मुँह से धर-धर खून गिरता है, फिर भी कँटीली घास को खाना नहीं छोड़ता! संसारी मनुष्यों को इतना शोकताप मिलता है, किन्तु कुछ दिन बीते कि सब भूल गए।
: 👉 Gita Sutra
👉 गीता के ये सूत्र याद रखें, जीवन में कभी असफलता नहीं मिलेगी

श्लोक-
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वत्र्मानुवर्तन्ते मनुष्या पार्थ सर्वश:।।

अर्थ-
हे अर्जुन। जो मनुष्य मुझे जिस प्रकार भजता है यानी जिस इच्छा से मेरा स्मरण करता है, उसी के अनुरूप मैं उसे फल प्रदान करता हूं। सभी लोग सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।

सूत्र-
इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण बता रहे हैं कि संसार में जो मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के प्रति करता है, दूसरे भी उसी प्रकार का व्यवहार उसके साथ करते हैं। उदाहरण के तौर पर जो लोग भगवान का स्मरण मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो किसी अन्य इच्छा से प्रभु का स्मरण करते हैं, उनकी वह इच्छाएं भी प्रभु कृपा से पूर्ण हो जाती है। कंस ने सदैव भगवान को मृत्यु के रूप में स्मरण किया। इसलिए भगवान ने उसे मृत्यु प्रदान की। हमें परमात्मा को वैसे ही याद करना चाहिए जिस रुप में हम उसे पाना चाहते हैं।

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