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स्वाद और विवाद में अधिक न उलझें।
*यदि व्यक्ति का शरीर स्वस्थ हो और मन में शांति हो, तो फिर और क्या चाहिए? *जिसका शरीर स्वस्थ है, मन शांत है, वही व्यक्ति सुखी है।*
यूं तो अपने मन में लोग बहुत सी इच्छाएँ रखते हैं, उन का कोई अंत नहीं है। दूसरों से लोग बहुत सी आशाएं रखते हैं, उनका भी कोई अंत नहीं है। इच्छाओं और आशाओं को पूरा करते रहने से, ये दोनों और बढ़ती जाती हैं।
जो व्यक्ति अपनी इच्छाओंं और आशाओं को बढ़ाता जाता है, वह जीवन में कभी सुखी नहीं हो सकता।
सुखी रहना तो सभी चाहते हैं, परंतु अपनी अविद्या के कारण काम तो ऐसे करते हैं, जिससे रोगी और अशांत बनते जाते हैं।
आज पूरा विश्व रोगों और अशांति का घर बना हुआ है। अपवादस्वरूप कुछ ही लोग शरीर से स्वस्थ एवं मन से शांत मिलेंगे। अधिकांश लोग तो किसी न किसी शारीरिक रोग से ग्रस्त एवं मानसिक चिंताओं से परेशान हैं। यदि आप भी अपने शरीर को स्वस्थ रखना, तथा मन को शांत रखना चाहते हैं, तो आपको भी कुछ विशेष कार्य करने होंगे।

शारीरिक रोगों का मूल कारण भोजन माना जाता है। अब भोजन का स्वाद सुख लेने के चक्कर में लोग, मात्रा से अधिक भोजन खाते हैं। बिना भूख के खाते हैं। प्रतिकूल भोजन खाते हैं। इसलिए रोगी पड़ते हैं।
और सहनशक्ति नम्रता सभ्यता आदि सद्गुण कम होते जा रहे हैं। क्रोध ईर्ष्या अभिमान आदि दोष जीवन में बढ़ते जा रहे हैं। जिनका परिणाम यह है कि व्यक्ति शारीरिक स्तर पर रोगी; और मानसिक स्तर पर अशांत होता जा रहा है।
यदि आप शरीर से स्वस्थ रहना चाहते हों, लंबी आयु जीना चाहते हों, तो आपको भोजन में स्वाद पर नियंत्रण करना होगा। भोजन को स्वाद सुख लेने के लिए न खाएं, बल्कि जीवन रक्षा के लिए खाएँ। इसी प्रकार से शांतिपूर्वक जीवन जीने के लिए दूसरों के साथ लड़ाई झगड़ा न करें। अपने अंदर थोड़ी सहनशीलता बढ़ाएँ। झगड़ालू लोगों से बच कर रहें। धार्मिक बुद्धिमान मनुष्यों के साथ मित्रता आदि व्यवहार रखें। आप शारीरिक रोगों और मानसिक तनाव से मुक्त होकर,आनंद से अपना जीवन जी पाएंगे..!!
🙏🏿🙏🏼🙏🏾जय श्री राधे🙏🙏🏽🙏🏻

प्रशंसा सदा ही झूठ है। झूठ है, तभी आप प्रसन्न होते हैं।। अगर सत्य हो तो उसमें प्रशंसा जैसा कुछ राह नहीं जाता अगर आपने गुलाब के फूल से कहा कि आप बहुत सुंदर हैं, आपकी खुशबू लाजवाब है। इसमें कौन सी प्रशंसा हुई प्रशंसा से आप तभी प्रसन्न होते हैं।। जब आपको कुछ ऐसा कह दे, जो आप सदा से चाहते हैं, परंतु हैं, नहीं झठ ही तो सुख देता है। प्रशंसा में और इस प्रशंसा से बढता है।। आपके भीतर का अहंकार, दर्प। आपका अहंकार आपके जीवन के सारे झूठ का निचोड़ है।।

        
              🙏

भगवद् चिंतन
अगर आप दुख पर ध्यान देंगे तो हमेशा दुखी रहेंगे और सुख पर ध्यान देंगे तो हमेशा सुखी रहेंगे क्योंकि यह जीवन का शाश्वत नियम है कि आप जिस पर ध्यान देंगे वही चीज सक्रिय हो जाती है।। यदि दो पेड़ों को एक साथ लगाया जाए मगर देख रेख एक ही पेड़ की की जाए, एक ही पेड़ का ध्यान रखा जाए और समय – समय पर खाद पानी भी उसी एक पेड़ को दिया जाए तो सीधी सी बात है कि जिस पेड़ पर ध्यान दिया जाएगा वही अच्छे से पुष्पित और फलित हो पायेगा। ठीक ऐसे ही सुख पर ध्यान केंद्रित करोगे तो जीवन में सुख की ही वृद्धि पाओगे और दुख पर ध्यान केंद्रित करोगे तो जीवन में दुख ही दुख प्राप्त होंगे। विज्ञान ने भी इस बात को सिद्ध किया है।। कि जीवन में जिस वस्तु की हम उपेक्षा करने लगते हैं। वो वस्तु धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खोना शुरू कर देती हैं। भले ही वो प्रेम हो, करुणा हो,जीवन का उल्लास हो अथवा सुख ही क्यों न हो।। जहाँ सकारात्मक दृष्टि जीवन में सुख की जननी होती है वहीं नकारात्मक दृष्टि जीवन को दुख और विषाद से भी भर देती है। इसलिए जीवन में सदा सकारात्मक दृष्टि ही रखी जानी चाहिए ताकि व्यक्ति के दुख और विषाद जैसे काल्पनिक शत्रुओं का समूल नाश हो सके।।

    *जय श्री राधे कृष्णा*

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