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प्रतिकूलताओं से बच कर भाग जाने से हम कभी भी सुखी नहीं रह सकते इनका सामना करके ही जीवन उच्चता को प्राप्त होता है मानव से देव और नर से नारायण कैसे बना जाता है इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण के जीवन को समझना होगा

श्रीकृष्ण के जीवन में भी बड़ी विषमताएं प्रतिकूल स्थितियाँ आईं पर वो हताश नहीं हुए दृढ़ता से उनका सामना कर विजय प्राप्त की उनकी इसी अद्भुत सामर्थ्य ने एक दिन उन्हें परम वन्दनीय बना दिया

आज हम विषमता रुपी विष से बचने का प्रयास करते हैं यही नाहक प्रयास हमारे चेहरे की उदासी का कारण बन जाते हैं भागो मत सामना करो ताकि हमारा जीवन श्री कृष्ण जैसा ना सही श्रीकृष्ण भक्त कहलाने के लायक तो बन सके

सफलता का जश्न मनाना ठीक है लेकिन असफलता के सबक लेना ज्यादा महत्व पूर्ण है !!!!!!!!!

       *🙏🏻 जय श्रीकृष्ण 🙏🏻*


🔔शरीर नित्य परिवर्तनशील है मनुष्य शरीर से अपनी मिथ्या पहचान करता है जो एक पिंजरे के समान है | पिंजरे की देखभाल में व्यस्त होकर अन्दर बैठे पंछी के प्रति लापरवाह हो जाता है | पिंजरे को चमकाता है लेकिन आत्मा को उसका भोजन नहीं देता | आत्मा तथा शरीर दोनों का भोजन उसी तरह अलग है, जिस प्रकार एक कार व उसके ड्राईवर का भोजन अलग है | आत्मा का भोजन है कृष्ण की भक्ति व शरीर का भोजन है भगवान को अर्पित किया गया प्रसाद | आत्मा का धर्म है श्री कृष्ण की प्रेममयी सेवा | जब शरीर से आत्मा चला जाता है तो उसे शव कहते हैं, उसे हम छोड़ दें तो चील, गीध, कव्वे, जंगली जानवर तथा कीड़े आदि उसे चट कर जाते हैं | उसी तरह हृदय में वास करने वाले परमात्मा (भगवान) को जब हम भूल जाते हैं, उनसे अपना सम्बन्ध तोड़ देते हैं तो काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ आदि हम पर कब्ज़ा कर लेते हैं | हमारा शाश्वत ज्ञान चट कर जाते हैं तथा विषय वासना में लिप्त कर के हमें अविद्या का शिकार बना देते हैं..!!
🙏🏼🙏🙏🏾जय जय श्री राधे🙏🏽🙏🏿🙏🏻
[ एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-
*माधव.. ये ‘सफल जीवन’ क्या होता है ?

कृष्ण अर्जुन को पतंग उड़ाने ले गए।
अर्जुन कृष्ण को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था.

थोड़ी देर बाद अर्जुन बोला-

माधव.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें ? ये और ऊपर चली जाएगी|

कृष्ण ने धागा तोड़ दिया ..

पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई, और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई…

तब कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का दर्शन समझाया…
धनुर्धर पार्थ.*
जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..*
*हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं; जैसे 😗
*-घर-*
-परिवार-
-अनुशासन-
-माता-पिता-
-गुरू-और-
-समाज-

और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं…

वास्तव में यही वो धागे होते हैं – जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..

इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ…’

अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना..”

धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही ‘सफल जीवन कहते हैं..”
🙏जय अंबे🙏
[: प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कुछ का व्यक्तित्त्व उन बाधाओं से और निखर जाता है तो कुछ बाधाओं से घबड़ाकर उनके आगे घुटने टेक देते हैं। बाधाओं का रोना रोने वालों की कोई कमीं नहीं है। अब जीवन है तो समस्याएं तो जरूर आएँगी।
जितनी बड़ी बाधा होती है उससे कहीं अधिक संघर्ष हमें करना पड़ता है। दुनिया का कोई भी लक्ष्य व्यक्ति के संकल्प से बड़ा नहीं होता है। बाधाएं तो कुछ नहीं करती, करने बाले तो हम होते हैं।
समस्या उपस्थित होने से पहले ही कई लोग अपने दिमाग में उसे इतना हावी कर लेते हैं कि उसका समाधान निकालने के लिए उनके पास पर्याप्त विवेक और सोच बचती ही नहीं है। निर्णय लेने की उनकी क्षमता प्रभावित हो जाती है। मुस्कुराकर हर स्थिति का सामना करो।

संघर्ष – संग हर्ष। हर्ष के साथ, शांत चित्त से, प्रभु पर भरोसा रखकर हर बाधा का सामना करो, समाधान तुम्हारे पास है, बस हिम्मत हार रहे हो।

राधे राधे 🙏🏻
॥ आज का भगवद चिंतन ॥

हमारी जिह्वा में सत्यता हो, चेहरे में प्रसन्नता हो और हृदय में पवित्रता हो तो इससे बढ़कर सुखद जीवन का और कोई अन्य सूत्र नहीं हो सकता।

निश्चित समझिए असत्य हमें भीतर से कमजोर बना देता है। जो लोग असत्य भाषित करते हैं उनका आत्मबल बड़ा ही कमजोर होता है। जो लोग अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं वही सबसे अधिक असत्य का भाषण करते हैं। हमें सत्य का आश्रय लेकर एक जिम्मेदार व्यक्ति बनने का सतत प्रयास करना चाहिए।

उदासी में किये गये प्रत्येक कर्म में पूर्णता का अभाव पाया जाता है। हमें प्रयास करना चाहिए कि प्रत्येक कर्म को प्रसन्नता के साथ किया जाना चाहिए। जीवन हमें उदासी और प्रसन्नता दोनों विकल्प प्रस्तुत करता है। अब ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हमें क्या पसंद है। हम क्या चुनना चाहते हैं…?

निष्कपट और निर्बैर भाव ही हृदय की पवित्रता है। जीवन में अगर कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है तो वह पवित्र हृदय की प्राप्ति है। पवित्र हृदय से किये गये कार्य भी पवित्र ही होते हैं।

                 प्रभु स्वयं कहते हैं,
          निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
         मोहि कपट छल छिद्र ना भावा।

🙏 *जय श्री राधे कृष्ण* 🙏

: दोस्तों हमारे और जिनालय से का क्या संबंध है।

मंदिर और उसमें स्थापित भगवान की मूर्ति हमारे लिए आस्था के केंद्र हैं।
मंदिर हमारे धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं और हमारे भीतर आस्था जगाते हैं।
किसी भी मंदिर को देखते ही हम श्रद्धा के साथ सिर झुकाकर भगवान के प्रति नतमस्तक हो जाते हैं। आमतौर पर हम मंदिर भगवान के दर्शन और इच्छाओं की पूर्ति के लिए जाते हैं
लेकिन मंदिर जाने के और कई लाभ भी हैं।
मंदिर वह स्थान है जहां जाकर मन को शांति का अनुभव होता है।
वहां हम अपने भीतर नई शक्ति का अहसास करते हैं। हमारा मन-मस्तिष्क प्रफुल्लित हो जाता है। शरीर उत्साह और उमंग से भर जाता है।
मंत्रों के स्वर, घंटे-घडिय़ाल, शंख और नगाड़े की ध्वनियां सुनना मन को अच्छा लगता है। इन सभी के पीछे है, ऐसे वैज्ञानिक कारण जो हमें प्रभावित करते हैं।
मंदिरों का निर्माण पूर्ण वैज्ञानिक विधि है।
मंदिर का वास्तुशिल्प ऐसा बनाया जाता है, जिससे वहां शांति और दिव्यता उत्पन्न होती है। मंदिर की वह छत जिसके नीचे मूर्ति की स्थापना की जाती है।
ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, जिसे गुंबद कहा जाता है। गुंबद के शिखर के केंद्र बिंदु के ठीक नीचे मूर्ति स्थापित होती है।
गुंबद तथा मूर्ति का मध्य केंद्र एक रखा जाता है। गुंबद के कारण मंदिर में किए जाने वाले मंत्रोच्चारण के स्वर और अन्य ध्वनियां गूंजती है तथा वहां उपस्थित व्यक्ति को प्रभावित करती है।
गुंबद और मूर्ति का मध्य केंद्र एक ही होने से मूर्ति में निरंतर ऊर्जा प्रवाहित होती है।
जब हम उस मूर्ति को स्पर्श करते हैं, उसके आगे सिर टिकाते हैं, तो हमारे अंदर भी ऊर्जा प्रवाहित हो जाती है।
इस ऊर्जा से हमारे अंदर शक्ति, उत्साह, प्रफुल्लता का संचार होता है।
मंदिर की पवित्रता हमें प्रभावित करती है।
हमें अपने अंदर और बाहर इसी तरह की शुद्धता रखने की प्रेरणा मिलती है। मंदिर में बजने वाले शंख और घंटों की ध्वनियां वहां के वातावरण में कीटाणुओं को नष्ट करते रहती हैं।
घंटा बजाकर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करना हमें शिष्टाचार सिखाता है कि जब हम किसी के घर में प्रवेश करें तो पूर्व में सूचना दें।
घंटे का स्वर देवमूर्ति को जाग्रत करता है, ताकि आपकी प्रार्थना सुनी जा सके।
शंख और घंटे-घडिय़ाल की ध्वनि दूर-दूर तक सुनाई देती है, जिससे आसपास से आने-जाने वाले अंजान व्यक्ति को पता चल जाता है कि आसपास कहीं मंदिर है।
मंदिर में स्थापित देव प्रतिमा में हमारी आस्था और विश्वास होता है।
मूर्ति के सामने बैठने से हम एकाग्र होते हैं।
यही एकाग्रता धीरे-धीरे हमें भगवान के साथ एकाकार करती है, तब हम अपने अंदर ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करने लगते हैं।
एकाग्र होकर चिंतन-मनन से हमें अपनी समस्याओं का समाधान जल्दी मिल जाता है।
मंदिर में स्थापित देव प्रतिमाओं के सामने नतमस्तक होने की प्रक्रिया से हम अनजाने ही योग और व्यायाम की सामान्य विधियां पूरी कर लेते हैं। इससे हमारे मानसिक तनाव, शारीरिक थकावट, आलस्य दूर हो जाते हैं।
मंदिर में परिक्रमा भी की जाती है, जिसमें पैदल चलना होता है।
मंदिर परिसर में हम नंगे पैर पैदल ही घूमते हैं।
यह भी एक व्यायाम है।
नए शोध में साबित हुआ है नंगे पैर मंदिर जाने से पगतलों में एक्यूपे्रशर होता है।
इससे पगतलों में शरीर के कई भीतरी संवेदनशील बिंदुओं पर अनुकूल दबाव पड़ता है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
इस तरह हम देखते हैं कि मंदिर जाने से हमे बहुत लाभ है।
मंदिर को वैज्ञानिक शाला के रूप में विकसित करने के पीछे हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों का यही लक्ष्य था कि सुबह जब हम अपने काम पर जाएं उससे पहले मंदिर से ऊर्जा लेकर जाएं, ताकि अपने कर्तव्यों का पालन सफलता के साथ कर सकें और जब शाम को थककर वापस आएं तो नई ऊर्जा प्राप्त करें।
इसलिए दिन में कम से कम एक या दो बार मंदिर अवश्य जाना चाहिए।
*इससे हमारी आध्यात्मिक उन्नति तो होती है, साथ ही हमें निरंतर ऊर्जा मिलती है *और शरीर स्वस्थ रहता है_*
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