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बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥

भावार्थ:-ब्राह्मण, गो, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया। वे (अज्ञानमयी, मलिना) माया और उसके गुण (सत्‌, रज, तम) और (बाहरी तथा भीतरी) इन्द्रियों से परे हैं। उनका (दिव्य) शरीर अपनी इच्छा से ही बना है (किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा नहीं)॥

मित्रों, हमारे शास्त्र कहते हैं कि गाय और ब्राह्मण की रक्षा करों, उन्हें कभी मत सताओं, गाय और ब्राह्मण तो अवध्या है, गाय और ब्राह्मण तो सबके लिए वंदनीय है, उसका आदर करों, सम्मान करों, कोई उन्हें दुःखी कर के भी क्या हासिल कर देंगे? सज्जनों! आज संसार में सभी दुखी हैं, उसका मूल कारण है, लोग कर्म नहीं करते।

कर्म करेंगे तब अनुकूल फल मिलेगा, कई बार लोग प्रश्न किया करते हैं कि कर्म बड़ा होता है या भाग्य बड़ा होता है? ये आज के जनमानस के अन्तर्मन में एक आम प्रश्न बन गया है, आप ये बात बिल्कुल स्पष्ट समझले कि भाग्य नाम की कोई चीज अलग से नहीं होती, जीव का जन्म कर्म से होता है, मृत्यु भी कर्म से होती है, सुख और दुःख जो कुछ भी मिलता है, केवल कर्म से मिलता है।

कर्मणा जायते जन्तुः कर्मणैव विलीयते।
सुखं-दुःखं भयं क्षेमं कर्मणैवाभिपधते।।

यदि ईश्वर नाम की कोई चीज है सज्जनों! तो वो भी फल उसी को देती है जो कर्म करता है, जो कर्म नहीं करता उसको फल ईश्वर कभी नहीं देता, शास्त्र कहते है- जैसा कर्म करेंगे वैसा फल मिलेगा, सज्जनों माना कि आपके पास बहुत कुछ है लेकिन कर्म तो आप शास्त्रों के विरुद्ध कर रहे हैं, तो यह समझ लेना की अब जो उपभोग कर रहे हो वह पूर्व जन्म का कर्म फल है, लेकिन इस जन्म का कर्म फल आपको आगे मिलेगा।

अस्ति चेदीश्वरः कश्चित् फलरूप्यन्त कर्मणाम्।
कर्तारं भजते सोऽपि न ह्मकर्तुः प्रभुहि सः।।

आज हमने बुरा कर्म किया तो कल बुरा भाग्य बनेगा, आज अच्छा कर्म किया तो कल अच्छा भाग्य बनेगा, “बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय” इसलिये कर्म प्रधान है, भाग्य नाम की चीज अलग से नहीं होती, जो व्यक्ति ये कहता है कि भाग्य में होगा तो मिलेगा, ये तो आलसीयों का लक्षण है, व्यक्ति को उधम करना चाहिये, कर्म करना चाहिये।

नाभुक्तं क्षीयते कर्म जन्मकोटिशतैरपि।
अवश्यमेव भौक्तव्यं कुतं कर्म शुभाशुभम्।।

अच्छा, भाग्य में है वो चीज मिलेगी- इसके लिए आप अपने ऊपर आजमा कर देखें- आप बिना कुछ खाये-पीये अपने कमरे का दरवाजा बंद करके ताला लगाकर चाबी खिड़की से नीचे फेंक दीजिये, ए सी चलाकर डबल बेड पर बढिय़ा मखमल का तकिया लगाकर झीनी चदरिया ओढ़कर सो जाइये, अब सोते समय कहना, मेरे भाग्य में होगा तो रामजी मुझे भोजन यहीं दे जायेंगे और सो जाईये।

अब देखो, रामजी भोजन लाते हैं कि नहीं, भूख के मारे प्राण भले ही निकल जाये, लेकिन रामजी भोजन कभी नहीं लेकर आयेंगे, बल्कि रामजी तो नाराज हो जायेंगे, इस नासमझ को देखो, मैंने शरीर दिया, बुद्धि दी है, हाथ-पैर दिये है, विचार दिये है, शक्ति दी है, कर्म तो करता नहीं मेरे ऊपर आश्रित है, परमात्मा भी सहायता उसी की करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करना चाहता है, जो मनुष्य स्वयं अपनी सहायता नहीं करता, उसकी सहायता परमात्मा भी नहीं करता।

सज्जनों! लोग कर्म तो करते हैं, परन्तु परमात्मा का चिन्तन भी होना चाहिये, हमारे शास्त्र कहते हैं- परमात्मा के अपने वचन हैं, “तस्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्धय च” (गीता) प्रत्येक काल में मेरा स्मरण भी करो और कर्म भी करो, हम केवल कर्म करेंगे और भगवान् को भूल जायेंगे तो कर्म सफल नहीं होगा, और केवल भगवान् की माला लेकर बैठ जायेंगे और कर्म नहीं करेंगे तो भी कर्म सफल नहीं होगा, इसलिये दोनों ही कार्य होने आवश्यक हैं।

सज्जनों! मैं एक खुशी की बात कहूँ- विगत आठ-दस वर्षों से हिन्दू धर्म में बड़ा भारी परिवर्तन हुआ है, आपको जानकर आश्चर्य और खुशी होगी कि इस परिवर्तन में युवा लोग जैसे एक दशक पहले बिगड़ने में आगे हुये थे, वैसे युवावर्ग आजकल सत्संग में भी अग्रसर हो रहा है, हम देखते है कि जिस पांडालों या मैदानों में कथा चलती है, वहाँ सत्तर प्रतिशत श्रोता युवावर्ग होता है।

और बड़े प्रेम से सुनते है, देखकर प्रसन्नता होती है मन में, सत्संग के प्रति रूझान जब बढ़ेगा, जीवन में आमूल परिवर्तन आयेगा, सज्जनों! एक बात आप सभी से और कहना चाहता हूँ कि यह दुनियाँ अगर नरक है तो केवल उनके लिये जो भगवान् को भूले हुये हैं, यह दुनियाँ स्वर्ग अवश्य है मगर वो भी केवल उनके लिए जिनका प्रभु से प्रेम रुपी सम्बन्ध बन चुका है, जिसे प्रभु की सत्ता पर जितना कम विश्वास होगा वह उतना ही दुखी होगा।

हमारा सुख इस बात पर निर्भर नही करता कि हमारे पास कितनी सम्पत्ति है, अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे पास कितनी सन्मति है, स्वर्ग का अर्थ वह स्थान नही जहाँ सब सुख हों अपितु वह स्थान है जहाँ सभी खुश रहते हों, भक्ति हमें सम्पत्ति तो नहीं देती पर प्रसन्नता जरुर देती है, प्रसन्नता से बढकर कोई स्वर्ग नही और निराशा से बढकर दूसरा कोई नरक भी नही है, इसलिये भाई-बहनों भगवान् भक्ति के साथ पुरूषार्थ भी करेंगे तो इस मानव जीवन के साथ भगवत् प्राप्ति की भी गारंटी है, आज के पावन दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हों।

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