: यह कितने आश्चर्य की बात है, कि जब व्यक्ति सो जाता है। तो उसे अपने आसपास की कुछ भी खबर नहीं रहती।। सोए हुए तथा मरे हुए व्यक्ति में बहुत कम ही अंतर होता है। मरा हुआ व्यक्ति फिर नहीं उठता, जबकि सोया हुआ व्यक्ति, नींद पूरी करने के बाद फिर से उठ जाता है।। उठने पर वह फिर से पूर्ववत होश में आ जाता है।बहुत से लोग रात्रि को सोते हैं, और सुबह उठ नहीं पाते।। रात्रि को सोते-सोते ही उनका जीवन समाप्त हो जाता है।भाग्य शाली हैं, वे लोग, जो नींद पूरी हो जाने के बाद वापस होश में आ जाते हैं। और ऐसा अनुभव करते हैं। कि जैसे उनका नया जन्म सा हुआ हो।। यह सब ईश्वर की ही कृपा और व्यवस्था है कि आप और हम सोने के बाद फिर से जागकर होश में आ जाते हैं। इसलिये प्रतिदिन सुबह जागने पर सबसे पहले ईश्वर का धन्यवाद अवश्य ही करें, कि उसने आपको एक नया जीवन जीने का तथा संसार के सुख भोगने का एक और अवसर दिया।।
[💐💐💐💐💐💐💐: हमारे शास्त्रों ने लोभ को ही समस्त पाप वृत्तियों का कारण कहा है। महापुरुषों ने तो यहाँ तक कह दिया है कि, कामी तरे क्रोधी तरे, लोभी की गति नाहीं अर्थात कामी के जीवन में भी बदलाव सम्भव है, क्रोधी व्यक्ति भी एक दिन परम शांत अवस्था को प्राप्त कर सकता है मगर लोभी व्यक्ति कभी अपनी वृत्तियों का हनन कर इस संसार सागर से तर जाए यह थोड़ा मुश्किल है।जिस व्यक्ति की लोभ और मोह वृत्तियाँ असीम हैं उस व्यक्ति को कहीं भी शांति नहीं मिल सकती। बहुत कुछ होने के बाद भी वह खिन्न, रुग्ण और परेशान ही रहता है। लोभी अर्थात वो मनुष्य जिसे वहुत कुछ पाने की ख़ुशी नहीं अपितु थोडा कुछ खोने का दुःख है।। अपनी उपलब्धियों और प्राप्तियों पर प्रसन्न रहो और किसी के साथ अकारण तुलना करके उनके होने के आनंद को कम मत करो। दुनिया में बहुत लोगों के पास वो भी नहीं है, जो तुम्हारे पास है। बहुत लोभ से बचो यह आपको बहुत पापों से बचा लेगा।।
💐💐💐💐💐💐💐मायावी प्रेम धोखा देने वाला और दुःखी करने वाला है, सद्गुरु का प्रेम स्थिर और सुखदायक है।। सद्गुरु को ध्याने वाला धनियों में धनी और विद्वानों में विद्वान है। क्योंकि कई धनी और विद्वान उसके द्वार के दास हैं।। जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं वैसे ही एक दिल में दो उल्फतें नहीं आ सकतीं। यदि जीव की आसक्ति संसार में अधिक है तो यह कुदरती बात है।। कि उसका झुकाव सद्गुरु की ओर कम होगा। परिणाम यह हुआ कि वह सद्गुरु-प्रेम से वंचित रह गया तथा संसार का प्रेम भी स्थायी न होने से उसके हाथों से निकल गया अपनी ही गलती से इन्सान दोनों से वंचित हो गया।। अकेले यात्रा में अच्छा सहयोगी होना चाहिए, पर सोचो तो सही इस मार्ग में सद्गुरु के अतिरिक्त अन्य कोई सहयोगी हो सकता है। सद्गुरु के द्वार से सबका भला माँगो और यही प्रार्थना करो कि सुमति दो और ऐसी आँखे प्रदान करो कि वे तुम्हें पहचान सकें।।
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श्रवण का जीवन में कितना प्रभाव पड़ता है, यह माँ रुक्मिणी के जीवन से सीख लेनी चाहिए। माँ रुक्मिणी भगवान को पत्र के माध्यम से कहती हैं,कि हे प्रभु मैंने आपके गुणों को सुना और आपकी होकर रह गयी। मेरा मन अब केवल आप में रम गया है क्योंकि मैंने आपकी कृपालुता, दयालुता और महानता का वर्णन संतों के श्रीमुख से सुना है।। जिस प्रकार माँ रूक्मिणी ने प्रभु की कथा को सुना और प्रभु की होकर रह गयी। अन्ततोगत्वा उस प्रभु को स्वयं माँ रूक्मिणी का वरण करने को जाना ही पड़ा। ठीक उसी प्रकार अगर कोई मनुष्य प्रभु कथा का आश्रय लेता है। तो निश्चित ही उस कृपा निधान प्रभु द्वारा उसका वरण किया जाता है।। जो जैसा सुनता है, वैसा करता है फिर वैसा ही बन आता है। इसलिए अगर अच्छा बनना हो तो फिर अच्छा ही सुनना भी पड़ेगा। गलत सुनने से मन अपवित्र हो जाता है।। मन की अपवित्रता हमारी बुद्धि को भी अपवित्र कर देती है व अपवित्र बुद्धि से हमारा आचरण भी दूषित हो जाता है। और दूषित आचरण निश्चित ही हमें पतन की तरफ लेकर जाता है।। इसलिए सदा भद्र का ही श्रवण करें ताकि आपका जीवन कल्याणमय बन सके। एक बात और प्रभु कथा के रसिक बनोगे तो प्रभु द्वारा चुन लिए जाओगे।।
*जय श्री राधे कृष्णा।।*
[ वैसे तो आजकल लोग एक दूसरे के घर पर कम ही जाते हैं, क्योंकि कंप्यूटर मोबाइल फोन व्हाट्सएप फेसबुक आदि से ही अपना काम चला लेते हैं। बहुत कम अवसर ऐसे होते हैं, जब वे साक्षात् मिलने के लिए दूसरों के घर जाते हैं। और ऐसे अवसरों पर भी औपचारिकताएं बहुत होती हैं।। कितने ही लोग तो सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए ही दूसरों के घर जाते हैं, कोई त्यौहार पर्व इत्यादि के अवसर पर फिर भी जो लोग भी जाते हैं। जितनी मात्रा में भी जाते हैं।। वहां जाकर जब उन मित्रों संबंधियों से मिलते हैं, तो उनमें से कई मित्र संबंधी ऐसा अनुभव करते हैं, कि यह व्यक्ति सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए आया है। तो उस यजमान मित्र को भी कोई विशेष सुख उस आने वाले अतिथि से नहीं मिलता, कोई विशेष सहयोग नहीं मिलता। वह यजमान मित्र भी उसी प्रकार से औपचारिकता निभा देता है, और बात आई गई हो जाती है।। परंतु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो दिखावे के लिए नहीं जाते, वास्तव में दूसरों से प्रेम भाव रखते हैं, और उनकी परिस्थिति को समझने का प्रयास करते हैं। आवश्यकता पड़ने पर उनके दुखों को दूर भी करते हैं। ऐसी भावना वाले लोग जब घर पर आते हैं, तो यजमान मित्र भी अच्छी प्रकार से उनको पहचानते हैं।। उनके आने से यजमान के बहुत से दुख दूर हो जाते हैं, उन्हें वास्तविक आनंद होता है। बस ऐसे ही लोग अपना जीवन सार्थक कर रहे हैं, जो वास्तव में दूसरों की सहायता करते हैं। उनके जीवन में आनंद की लहरें उत्पन्न करते हैं।। ऐसे ही लोग वास्तविक जीवन जी रहे हैं। इनको वास्तविक व्यक्ति नाम देना चाहिए।। बाकी तो संसार औपचारिकताओं में चलता ही रहता है, और आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा। आप भी वास्तविक व्यक्ति बनें, दूसरों के जीवन में आनंद की लहरें उत्पन्न करें, तो आपका जीवन भी सार्थक एवं सफल होगा।।