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संसार में प्रायः देखा जाता है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसका कोई न कोई शत्रु न हो। अर्थात सभी के कोई न कोई शत्रु होते ही हैं। और वे लोग दूसरों के दोष हमेशा देखते रहते हैं। उनके साथ प्रतियोगिता मतलब कंपिटीशन करते ही रहते हैं। वे दूसरों की कमियां ढूंढते रहते हैं। उन पर अनेक प्रकार के दोषारोपण भी करते रहते हैं। और सदा दूसरों को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं। ऐसे लोग अपना जीवन तो दुखमय बना ही लेते हैं, साथ साथ दूसरों को भी दुख देते रहते हैं।
परंतु बुद्धिमान लोग ऐसे मूर्ख और शत्रुओं की परवाह नहीं करते। वे अपने काम में लगे रहते हैं। अपने पुरुषार्थ में इतने मस्त होते हैं, कि वे, दूसरों की ऐसी घटिया हरकतों की कोई चिंता ही नहीं करते। इसलिए यदि बुद्धिमान लोग पुरुषार्थ में ही लगे रहें, और अपने आचरण एवं योग्यता को समुद्र के समान विशाल बना लेवें, तो उनके शत्रु उनकी योग्यता की परख करते-करते थक जाएंगे, उनके पसीने छूट जाएंगे, परंतु वे समझ नहीं पाएंगे कि इन बुद्धिमान लोगों की कितनी बड़ी योग्यता है। और हो सकता है कि बहुत से लोग ऐसी शत्रुता मूर्खता करना छोड़ भी देवें।
चलिए वे लोग मूर्खता और शत्रुता छोड़ें, या न छोड़ें। कम से कम बुद्धिमान लोग तो अपने कार्य में व्यस्त और मस्त रहने से, अपना जीवन तो आनंदित बना ही लेंगे। आशा है, आप भी उन बुद्धिमानों में से एक होंगे

अधिकांश लोग ऐसा समझते हैं कि जिस के पास अधिक संपत्ति है, वह व्यक्ति, वह परिवार अधिक सुखी है। वेदों की दृष्टि में यह बहुत बड़ी भ्रांति है.
संसार में ऐसा देखा जा रहा है, कि जिस व्यक्ति के पास जितनी अधिक संपत्ति है, वह उतना ही अधिक तनावग्रस्त, दुखी और परेशान है। जबकि सामान्य स्तर के लोग, जिनके पास संपत्ति कम भी है, परंतु परिवार में प्रेम संगठन अनुशासन है, वे लोग अधिक सुखी देखे जाते हैं। इससे पता चलता है कि सुख शांति का आधार संपत्ति कम है, और आपस का प्रेम संगठन अनुशासन अधिक है।
जैसे जैसे परिवार में संपत्ति बढ़ती जाती है, वैसे वैसे स्वार्थ, घृणा, अभिमान आदि दोष भी बढ़ते जाते हैं। आजकल तो प्रायः सभी का एक ही लक्ष्य बन गया है। जैसे तैसे करके अपनी संपत्ति बढ़ाओ। अपना स्वार्थ पूरा करो, इसी में जीवन की सफलता है। परंतु यह विचार अशुद्ध है, जिसके कारण व्यक्ति में स्वार्थ बढ़ता जाता है और परिवार टूटते जाते हैं।
धन कमाने के लिए लोग अपने माता-पिता परिवार और देश को भी छोड़कर विदेशों तक चले जाते हैं। परिवार के सदस्यों से दूर हो जाते हैं, और सब अलग-अलग होकर दुख भोगते रहते हैं। एक दूसरे के साथ संगठित नहीं रह पाते। एक दूसरे की सेवा नहीं कर पाते। जिसका परिणाम यह होता है कि वे जीवन का असली सुख नहीं भोग पाते। इसलिए यह विचार अच्छा नहीं है।
अपने ही देश में रहकर, अपने ही परिवार के साथ रहकर भी आप ठीक से जी सकते हैं। हो सकता है ऐसी स्थिति में आपके पास संपत्ति कुछ कम रहे, आय कुछ कम रहे, परंतु भूखे नहीं मरेंगे। पैसे भले ही कम कमाएंगे। फिर भी आपके अंदर, परिवार के प्रति प्रेम संगठन सेवा बड़ों का आदर सम्मान अनुशासन आदि गुणों के कारण, आपके जीवन एवं परिवार में सुख अधिक रहेगा। अपने बच्चों को बचपन से यही संस्कार देवें, कि जीवन रक्षा के लिए धन कमाना आवश्यक है, कमाओ; परंतु वह धन इतना बड़ा नहीं है, जिसके लिए परिवार का संगठन सेवा और आनंद छोड़ दिया जाए।

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