भगवान् की शरणागति के अलावा किसी अन्य मार्ग से माया को नहीं जीता जा सकता है। यह माया बड़ी प्रवल है और दूसरे हमारे साधन में निरंतरता नहीं है। लेकिन अगर गोविन्द की कृपा हो जाये तो काम-क्रोध और विषय- वासना से मुक्त हुआ जा सकता है।तुम भले हो, बुरे हो, सज्जन हो, दुर्जन हो, पापी हो, पुण्यात्मा हो, कुछ मत सोचो। अपनी दुर्वलता का ज्यादा विचार करोगे तो आपके भीतर हीन भाव आ जायेगा। अपने सत्कर्मों और गुणों को ज्यादा सोचोगे तो अहम भाव आ जायेगा।। बस इतना सोचो कि ठाकुर जी के चरण कैसे मिलें, शरण कैसे मिले, नाम जप कैसे बढे, संतों में प्रीति कैसे हो और कथा में अनुराग कैसे बढे, यह सब हो गया तो प्रभु को आते देर ना लगेगी।। सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।।
[जीवन में जब कठिनाईयां आती हैं तो कष्ट होता है, लेकिन जब यही कठिनाईयां जाती हैं। तो प्रसन्नता के साथ-साथ एक आत्म विश्वास को भी जगा जाती हैं। जो कष्ट की तुलना में अधिक मूल्वान है।। नाकामयाबी को सिर्फ सङक का एक स्पीड ब्रेकर समझें जिसके बाद हम पुनः अपनी आत्मशक्ति रूपी ऊर्जा से आगे बढें। आत्म विश्वास रूपी बीज का अंकुरण अवश्य करें उसे अपनी सकारत्मक सोच और मेहनत की खाद से पोषित करें क्योंकि आत्म विश्वास सम्पूर्ण सफलताओं का आधार है।।
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पतित पावन परमात्मा की प्रसन्नता चाहते हो तो उसे प्राप्त करने का केवल एक ही साधन है। कि दिन-रात स्वयं को मन, वचन और कर्म से पावन बनाओ।। तुम ऐसी दृढ़ प्रतिज्ञा कर लो कि गुरु दरबार से अन्त तक निभाऊँगा। स्वयं में ऐसे गुणों का प्रादुर्भाव करो कि मालिक को प्रिय लगो। अपने मन को परिवर्तित करो, स्वयं को मिटाओ, किसी पर अधिकार न जमाओ।। साधु वेश जब सदगुरु प्रदान करते हैं। तो हमें अपने अंदर वे सब गुण धारण कर लेने चाहियें जो कि एक साधु के लिए आवश्यक हैं। मान-बढ़ाई त्याग कर दीनता , नम्रता और सहन शीलता के गुण पैदा करने हैं, अपने ऊपर दुख-सुख सहकर औरों को सुख शान्ति प्रदान करनी है ताकि अपने साथ साथ औरों का भी जीवन सुधरे।। मालिक ने जिन्हें सम्मान दिया है, पहले उन्हें अत्यंत देखा-परखा है, आज्ञा की कसौटी पर चढ़ाया है। यदि तुम उन का हार्दिक सम्मान करोगे और उनकी आज्ञा मानोगे तो आत्मिक उन्नति होगी।। सदगुरु हमेशा अपने प्रेमियों के अंग-संग रहते हैं और समय आने पर उनकी श्रद्धा और विश्वास अनुसार सहायता करते हैं। यद्यपि देखने में वे साधारण पुरुष दिखाई देते हैं जिस से लोग उन पर विश्वास नहीं कर पाते तथा गलती कर बैठते हैं। परन्तु वास्तव में वे ब्रह्म स्वरूप होते हैं।। आओ सभी प्रभु जी से दुआ मांगे। जिंदगी जीने की अदा मांगे।। अपनी खातिर तो बहुत माँगा। आज सबके लिए भला माँगे।।👏🏻
[आज का संदेश
अर्थ कमाओ, अर्थ भी देव है। धर्मपूर्वक कमाया है तो, नहीं तो अर्थ, अनर्थ का कारण बनेगा। आप ताकत है, तो सोने की नगरी बनाओ। उसके मालिक बनो।। सावधानी इतनी बरतो कि वह नगर द्वारिका हो, लंका न हो। हमारा आदर्श द्वारिकाधीश श्री कृष्ण हो, दशानन रावण नहीं। नीति की नींव पर खड़ी द्वारिका जिसमें भगवान का निवास है, अनीति से बनाई हुई लंका ये भोगवादी नगर है।।रामचरितमानस में तीन नगर है जहाँ प्रभु श्री राम पधारते हैं- अयोध्या, मिथिला और लंका। लंका जीव की बध्य दशा का प्रतीक है। अयोध्या साधक दशा का प्रतीक है और मिथिला सिद्ध दशा का प्रतीक है। लंका विषयी बध्य है।।
[: राधे राधे
गुलामी की वजह से हम कमजोर नहीं बनते अपितु कमजोरी हमें गुलाम बना देती है। दूसरों के नियंत्रण में रहने का नाम गुलामी नहीं अपितु स्वनियंत्रित न हो पाना, यही महा गुलामी है।। गुलामी का मतलब यह नहीं कि आप दूसरों की इच्छा से काम कर रहे हैं अपितु यह है कि आप अनिच्छा से काम कर रहे हैं। गुलामी का अर्थ शरीरगत बंधन नहीं अपितु विचारगत पराधीनता है। किसी भी दशा में आपके श्रेष्ठ विचारों का अतिक्रमण न हो इसी का नाम स्वतंत्रता है।। मंजर बदल देती है जीने की अदा, कोई पिंजरे के बाहर भी कैद रहा। कोई पिंजरे के भीतर भी आजाद जिया।