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दुख और निराशा में क्या अंतर है

निराशा के क्षणों को कभी भी जीवन पर हावी न होने दें बल्कि जीवन के हताशा भरे क्षणों से कुछ सीखने का प्रयास करें इन लम्हों से उभर कर आगे बढ़ना और खुद को बेहतर बनाने की कोशिश ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए चाहे कामकाजी जीवन हो सकते हैं व्यक्तिगत संबंधों के स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां इन सभी कारणों से हमारे जीवन में निराशा ही बढ़ती हैं कुछ ऐसे क्षण जब हम अपनी शक्ति और सामर्थ्य को कम महसूस करने लगते हैं खुद को असमर्थ और असहाय पाते हैं तभी हम निराश होते हैं और हमें दुख होता है लगने लगता है कि हम जीवन को आगे ले जाने में खुद को समझ नहीं पा रहे हैं हर छड़ हमेशा दुख की देते हैं लेकिन निराशा को जीवन पर हावी होने दिया जाए तो जीवन की स्वाभाविक गति प्रभावित होने लगती है इसलिए उसे बाहर जाने का अर्थ ही जीवन है कई बार पूर्व को अपने कब्जे में कर लेते हैं और हम खुद को उनसे मुक्त कर पाने में कठिनाई अनुभव करते हैं आगे बढ़ने की राह में वे सबसे बड़ी बाधा है हर असफलता और तकलीफों से उपजी निराशा को पीछे छोड़कर ही जीवन को अच्छे से जिया जा सकता है अपनी निगाहों से उबरने के लिए कुछ छोटे प्रयास कारगर सिद्ध हो सकते हैं यह निराशा है अब निराशा से ही हमें दुख मिलता है जब हम निराश नहीं होंगे तो हमें दुख नहीं मिलेगा और जब भी हम निराश होंगे तब हमें दुख का सामना करना पड़ेगा दुख से मुक्ति पाना है तो निराश ना हो। । धन्यवाद
🙏🙏

दोस्तो ,

दो व्यक्तियों में यदि कोई अच्छा संबंध बनता और चलता है, तो इसके लिए आवश्यक है कि वे दोनों एक दूसरे पर विश्वास करें। एक दूसरे के साथ सत्य बोलें , एवं सत्य व्यवहार ही करें। यदि वे दोनों ऐसा करें , तब तो उनका संबंध सुखदायक होगा और लंबा चलेगा।

यदि उन दोनों को एक दूसरे पर विश्वास न हो, तो वे परस्पर सत्य भी नहीं बोलेंगे। और जब सत्य नहीं बोलेंगे, तो उनका झूठ कभी तो पकड़ा जाएगा। जब झूठ पकड़ा जाएगा, तब एक दूसरे पर विश्वास भी नहीं रहेगा। और जब एक दूसरे पर विश्वास नहीं रहेगा, तो उनका संबंध भी कमजोर हो जाएगा। तब यह अविश्वास धीरे-धीरे उनके संबंध को पूरी तरह से एक दिन नष्ट कर देगा।

इसलिए यदि आप दूसरों के साथ उत्तम संबंध बनाए रखना चाहते हैं, एक दूसरे से सुख व सहयोग लेना देना चाहते हैं, तो आपको ये दोनों चीजें (विश्वास तथा सत्य बोलना) अपने जीवन में लानी ही होंगी। जिनमें से पहले एक दूसरे पर विश्वास करना होगा। और फिर विश्वास करके सत्य बोलना, सत्य व्यवहार करना होगा।
तभी जीवन में संबंध टिकेगा, और जीवन आनंदमय बनेगा।


[लोगों की चापलूसी या प्रेम देखकर प्रसन्न न होवो। हो सकता है कि जो आज तुमसे प्यार करते हैं कल तुमसे मुँह फेर लें इसलिए हमेशा स्वयं भी प्रभु में मग्न हो जाओ और दूसरों को भी इस शुभ मार्ग पर लगाओ। यह सच्चा प्रेम दिन प्रतिदिन बढ़ता ही रहेगा।। जैसे अंधेरा और सूर्य एकत्र नहीं रह सकते वैसे ही विकारों वाले ह्रदय में निर्विकार प्रभु कैसे आयेंगे। यदि चाहते हो कि मालिक ह्रदय में निवास करें तो विकारों को ह्रदय से बहिष्कृत कर दो।। जिसका ह्रदय शुद्ध है वहाँ प्रभु स्वयं निवास करते हैं और उसके सब कार्य स्वयं करते हैं तथा वह स्वतन्त्र हो जाता है।। यदि तुम्हारी प्रसन्न्ता सांसारिक वस्तुओं पर व मित्र सम्बन्धियों पर आश्रित है, तो कच्ची नींव पर मकान बनाना है। वह आज नहीं तो कल अवश्य गिर जाएगा।। श्री गुरु महाराज जी पल-पल जीवों के कल्याण के लिए अपने ऊपर कष्ट सहन करते हैं फिर तुम क्यों भयभीत हो रहे हो उन्होंने समस्त संसार का भार वहन कर तुम पर कृपा की है। यदि तुम थोड़ा सा कष्ट भी सहन नहीं करोगे तो उन तक कैसे पहुँच पाओगे, सुख व शान्ति कैसे प्राप्त करोगे।। जो फूलों की सुगंधि लेना चाहता है। उसे पहले कांटों का कष्ट सहना पड़ता है।।
[ मनुष्य का जब मन अंधा हो तो, आँखें किसी काम की नही रहतीं।। इसलिए मन को नेत्र हीन न होने दे, भावना जैसे मन में उत्पन्न होती हैं, वैसे ही आंखे देखती हैं। निर्भर मनुष्य पर करता है कि वह क्या सुनना चाहता है।। कान को झूठी प्रशंशा सुनने की आदत पड़ गई है। संसार की विषय वासनाओं से सनी हुइ बातें ही सुनने के लिए लालायित रहता है।। जो कान को अच्छा लगता है। यदि आप वह सुनेंगे तो मानव तन निरर्थक समाप्त हो जायेगा।। इसलिए कान के द्वारा भगवान की कथाओं को सुने कीर्तन भजन करें, तथा सुने जिससे आप का कल्याण होगा। जिह्वा स्वाद लेने के लिए लालायित है।। मन संसार के विषय वस्तुओं से लिपटा हुआ है। संसार की बातें ही अच्छी लगती हैं।। मन को भगवान के चरणों में लगाने का प्रयत्न कीजिए, शरीर आत्मा पर विचार करते रहना चाहिए, संसार को परमात्मा मय देखने का अभ्यास करते रहना चाहिए।। यह मुक्ति का मार्ग है। समस्त दुःखो से जन्म मृत्यु के बंधन से यदि छूटना चाहते हैं तो सतत अभ्यास करते रहना चाहिए।।

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