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आयुर्वेदिक औषधियों की जानकारी के क्रम में आपका परिचय विभिन्न प्रकार के पाक, घृत व अवलेह से कराया जा रहा है।

यहां दी गई सभी प्रकार की दवाएं चाटकर सेवन की जाने वाली हैं।
• च्यवनप्राश अवलेह (अष्टवर्गयुक्त) : सप्त धातुओं को बढ़ाकर शरीर का काया कल्प करने की प्रसिद्ध औषधि। फेफेड़े के विकार, पुराना श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, पुराना बुखार, खून की कमी, कैल्शियम की कमी, क्षय, रक्तपित्त, रक्त क्षय, मंदाग्नि, धातु क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध औषधि। इसमें स्वाभाविक रूप से विटामिन ‘सी’ पर्याप्त मात्रा में होता है। बल, वीर्यवर्धक है। मात्रा 10 से 25 ग्राम (2-4 चम्मच) दूध के साथ सुबह-शाम
• कुष्मांड (खंड) अवलेह : रक्तपित्त, कांस, श्वास, उल्टी, प्यास व ज्वर, नाशक, मुंह, नाक, गुदा इन्द्रियों आदि से खून आने पर लाभकारी। नेत्रों को हितकारी, बल, वीर्यवर्धक एवं पौष्टिक। स्वर शुद्ध करता है। मात्रा 15 ग्राम सुबह-शाम चाटना चाहिए।
• बादाम पाक (केशर व भस्मयुक्त) : दिल और दिमाग को ताकत देता है। नेत्रों को हितकारी तथा शिरा रोग में लाभकारी। शरीर को पुष्ट करता है और वजन बढ़ाता है। सर्दियों में सेवन करने योग्य उत्तम पुष्टि दायक है। सभी आयु वालों के लिए पौष्टिक आहार। मात्रा 10 से 20 ग्राम प्रातः-सायं दूध से।
• चित्रक हरीतिकी : पुराने और बार-बार होने वाले सर्दी-जुकाम (नजला) की अनुभूत दवा है। पीनस, श्वास, कास तथा उदर रोगों में गुणकारी एवं अग्निवर्धक। मात्रा 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम।
• वासावलेह : सभी प्रकार की खांसी, श्वास, दमा, क्षय, रक्तपित्त, पुरानी खांसी के साथ खून आना, फेफेड़ों की कमजोरी आदि रोगों को नष्ट करता है। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह-शाम दूध के साथ।
• मूसली पाक (केशरयुक्त) : अत्यंत पौष्टिक है। असंयमजनित रोगों को दूर कर शरीर को पुष्ट बनाता है। बल, वीर्यवर्धक, बाजीकारक एवं शक्तिदायक। शरद ऋतु में शक्ति संचय हेतु उपयुक्त। मात्रा 10 से 15 ग्राम प्रातः-सायं दूध से।
• ब्रह्म रसायन : शारीरिक व मानसिक दुर्बलता दूर कर नवशक्ति का संचार करने वाला अपूर्व रसायन। श्वास, कास में लाभप्रद तथा दिमागी कार्य करने वालों के लिए उपयुक्त। मात्रा 3 से 10 ग्राम गर्म दूध के साथ सुबह-शाम लेना चाहिए।

       

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