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प्रत्येक व्यक्ति को अपना कार्य पूर्ण करने से ही लाभ होगा। तुम्हारा कार्य देखने में चाहे लघु हो फिर भी उत्साह और सच्ची भावना से करोगे तो फल उतना ही प्राप्त होगा जितना श्रेष्ठ कार्य करनेवाले को अपना कार्य पूर्ण करने पर उपलब्ध होगा।। तुम सदैव स्वयं को व्यवस्थित ढंग से रखो। यदि अपने बड्डपन का लाभ ग्रहण कर मनमति पर चलोगे तो छोटों के ह्रदय में तुम्हारे लिए वह भावना नहीं रहेगी–वे श्रद्धाहीन हो जाएंगे। तुम्हारे वचन उन्हें प्रभावित नहीं करेंगे। उनमें सुधार कैसे होगा और इसमें बाधक तुम्हीं कहे जाओगे।। अत्यंत खेद है उनकी बुद्धि पर जो अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाते हैं और उनके बन्धन में स्वयं को बांधते हैं तथा यह समझते हैं कि हम बुद्धिमानी कर रहे हैं तथा श्रेष्ठ भाग्य वाले हैं।जितनी बहिर्मुखी वृति बनाओगे उतनी आत्मिक शक्ति क्षीण होती जायेगी। लोगों के शोर से किनारा करके एकान्त में मालिक का ध्यान करो।। लोगों के समाचार लेने से अपने भीतर खोजते रहो। मन को इधर-उधर लगा खंडों में विभाजित करने की अपेक्षा गुरु-चरणों में लगाओ तो तुममें अथाह शक्ति प्रकट होगी।। हमें जो आन्तरिक अखण्ड आनन्द नहीं आ सका है उसमें दोष हमारा ही है। क्योंकि जब तक हम सांसारिक सुखों की आशाएँ, हँसी-मजाक और बहिर्मुखता का त्याग नहीं करेंगे तथा एकान्त में बैठकर पश्चाताप के दो आँसू नहीं बहाएंगे, आँचल पसार कृपा की याचना नहीं करेंगे, तब तक अविनाशी आनन्द के दाता से आनन्द कैसे प्राप्त करेंगे।।
[अगर हम अपेक्षा छोड़ दें, कोई मांग न रहे, किसी से और जो कर सकते हैं, वो करते रहे, और मिली हुई वस्तु ,व्यक्ति, परिस्थिति को सत्कार पूर्वक स्वीकार करें तो हमे क्या कोई दुख दे सकेगा जितनी भी उलझने है दुःख है सबकी वजह तो हमारी अपेक्षा ही है, जो अपेक्षा हम दुसरो से कर रहे है। हमारी कामना है की काम मेरे अनुसार होवे यही तो दुःख की बड़ी जड़ है। इस बात पे विचार करना है।। अगर हम होश में आ जाए जाग जाए कि इस जग में मिलना किसी से कुछ भी नहीं है बस जो मिला है उसका सत्कार करना है उसका सिर्फ सदुपयोग करना है उसे अपना बनाने की व्यर्थ कोशिस नही करना है तो हम अनुभव करेंगे की जीवन से दुख चला गया अब कोई दुख दे नही सकता है । सुख की चाहना ही तो दुःख का कारण है।।
[लक्ष्य जितना बड़ा होगा मार्ग भी उतना बड़ा होगा और बाधायें भी अधिक आएँगी। सामान्य आत्म विश्वास नहीं बहुत उच्च स्तर का आत्म विश्वास इसके लिए चाहिए। एक क्षण के लिए भी निराशा आयी वहीँ लक्ष्य मुश्किल और दूर होता चला जायेगा।। मनुष्य का सच्चा साथी और हर स्थिति में उसे संभालने वाला अगर कोई है तो वह आत्म विश्वास ही है। आत्म विश्वास हमारी बिखरी हुई समस्त चेतना और ऊर्जा को इकठ्ठा करके लक्ष्य की दिशा में लगाता है।। दूसरों के ऊपर ज्यादा निर्भर रहने से आत्मिक दुर्बलता तो आती है। साथ ही छोटी छोटी ऐसी बाधायें आती हैं जो पल में तुम्हें विचलित कर जाती हैं। स्वयं पर ही भरोसा रखें। दुनिया में ऐसा कुछ नहीं जो तुम्हारे संकल्प से बड़ा हो।।

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