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||#चलितकुंडलीक्योंदेखीजातीहै?|| चलित कुंडली इसका पूरा नाम है #भावचलितकुंडली चलित कुंडली लग्न कुंडली के ग्रहो की सही भाव स्थिति बताती है कि आपका कौन ग्रह किस भाव मे बैठा है?लग्न कुंडली मे कोई भी ग्रह गोचर के समय जिस राशि मे होता है उसी राशि मे बेठा दिखता है जिस भाव मे वह राशि होती है, लेकिन जो ग्रह लग्न कुंडली में जिस भाव मे दिख रहा है वह चलित कुंडली में किसी दूसरे भाव मे दिखे तब वह ग्रह उसी भाव के फल देगा जिसमे चलित कुंडली मे बेठा है, लग्न कुंडली मे जिस भाव मे है उसका फल नही देगा, जैसे सूर्य जन्मलग्न कुंडली मे चोथे भाव मे बेठा हो लेकिन चलित कुंडली देखने पर सूर्य पाँचवे भाव मे बेठ जाए तब आपका सूर्य 5वे भाव के ही फल देगा न कि चौथे भाव के।लग्न कुंडली और चलित कुंडली मे ज्यादातर जातको के ग्रह एक जैसी स्थिति में ही एक ही भाव मे दिखते है लेकिन व्यक्तियों के लग्न और चलित कुंडली मे ग्रह अलग-अलग भावों में दिखते है, तब ऐसी स्थिति में आपकी लग्न कुंडली मे दिखने वाला ग्रह चलित कुंडली मे किस भाव मे गया है उस भाव के फल देता है।इस कारण केवल यह अनुमान लगाना की मेरा यह ग्रह इस इस भाव मे है तो बहुत अच्छा फल इस भाव का देगा, ऐसा नही होगा वह भाव चलित में जिस भाव मे होगा उसी भाव के फल देगा।लग्न कुंडली के एक साथ कई ग्रह चलित कुंडली मे भाव बदल लेते है, और उसी भाव का फल देते है जिस भाव मे चलित कुंडली मे गए है, बाकी राशि ग्रह की वही रहेगी जिस राशि मे लग्न कुंडली मे ग्रह होता है, चलित कुंडली से राशि नही देखी जाती।अब उदाहरणों से समझते है।। #उदाहरण:- किसी जातक की मेष लग्न की कुंडली बनती हो,अब यहाँ लग्नेश मंगल 10वे भाव मे मकर राशिका होकर बेठे, लेकिन भाव चलित कुंडली मे यह 11वे भाव मे या 9वे भाव मे बेठा दिखे तब यह भगव चलित कुंडली मे 11वे भाव मे बैठने लर ग्यारहवे भाव के या 9वे भाव मे बैठने पर 9वे भाव के फल देगा।भले ही यह लग्न कुंडली मे दसवे भाव मे उच्च होकर दिग्बली होकर बेठा है लेकिन फल 10वे भाव के नही देगा।यहाँ आप आस लगाए बैठेंगे की मंगल दसवे भाव मे उच्च होमर दिग्बली है साथ ही रूचक हयोग बनाकर कुलदीपक योग बना रहा है लेकिन ऐसा नही है क्योंकि भाव चलित में मंगल ने भाव बदल लिया है, लेकिन हां मंगल मकर राशि मे है उच्च है इस कारण रूचक योग का फल जरूर देगा।। #उदाहरणअनुसार:- अब माना कोई ग्रह मिलकर दो ग्रह मिलकर शुभ या अशुभ योग बना रहे है लेकिन भाव चलित कुंडली मे वह अलग-अलग भावो में है तब योग नही बनेगा।जैसे शुक्र बुध की युति 9वे भाव मे वृष राशि मे हो तब यह लक्ष्मी नारायण योग बना, लेकिन भाव चलित कुंडली मे देखने पर पता चला बुध 9वे भाव मे है और शुक्र 10वे भाव मे तब यह लक्ष्मीनारायण योग, मतलब शुक्र बुध युति योग का कोई शुभ फल नही मिलेगा, लेकिन यही स्थिति विपरीत हो जाये, जैसे लग्न कुंडली मे बुध 9वे भाव मे और शुक्र 9वे भाव मे है लेकिन भाव चलित कुंडली मे शुक्र बुध दोनो एक ही भाव जैसे माना 9वे भाव बुध शुक्र एक साथ भाव चलित कुंडली मे बेठ जाए तब लग्न कुंडली मे भी यह योग न बनने पर भी बन रहा है और लक्ष्मी नारायण योग के फल मिलेंगे क्योंकि भाव चलित में बुध शुक्र एक साथ है।ऐसे ही अशुबब योगो का विचार भाव चलित से होगा।। #अब एक महत्वपूर्ण बात, वह यह कि भाव चलित कुंडली मे ग्रहो ने भाव तो बदले लेकिन ग्रह भाव मध्य है, या भाव के आखरी अंश पर है या क्या? इस स्थिति के अनुसार थोड़ा अंतर आएगा, अंशो के अनुसार, जैसे कोई ग्रह जन्मलग्न कुंडली मे 20अंश का है या 20अंश से भी कम है और लग्न कुण्डली में 10वे भाव मे बेठा है और चलित कुंडली देखने पर पता चला वह ग्रह 11वे भाव मे है तब यह 20अंश के आस पास होने से अभी अंशो में 10वे भाव के ही ज्यादा नजदीक है और चलित कुंडली मे 11वे भाव मे भी है तब ऐसा ग्रह 10वे और 11वे दोनो भाव के फल मिले जुले देगा क्योंकि वह अंश अनुसार अभी अपने लग्न कुंडली भाव के ज्यादा नजदीक है।। #अब दूसरी स्थिति में कोई ग्रह अंशो में बहुत प्रारंभ में हो या अंत मे हो जैसे माना कोई भी ग्रह 4 या 5अंश का हैं या 25 अंश से ऊपर है लगभग तब वह उसी भाव के फल देगा जिस भाव मे भगव चलित कुंडली मे बेठा है।इस तरह से भाव चलित बहुत महत्वपूर्ण कुंडली होती है जन्मकुंडली के फलादेश में, आपके जन्मकुण्डली के ग्रह चलित कुंडली मे किस भाव मे है और कितने अंश पर है, फल चलित कुंडली के अनुसार होगा, बाकी अंशो में ग्रह ज्यादा ही प्रारंभ में या राशि के अंत मे तब चलित कुंडली के अनुसार फल देगा, और अंशो में मध्य में है जैसे 19,22 आदि अंश है लगभग तब लग्न कुंडली+चलित कुंडली दोनो के अनुसार मिले जुले फल देगा।। एक महत्वपूर्ण बात ओर माना आप पर किसी ग्रह की महादशा चल रही है या जिस ग्रह की महादशा-अंतरदशा चल रही हो या आने वाली तो वह उसी भाव के अनुसार फल देगा जिस भाव मे, भाव चलित कुंडली मे है,इस कारण दशानाथ ग्रह भी भाव चलित में भाव बदल चुका है तब लग्न कुंडली अनुसार जिस भाव मे ग्रह है इस भाव अनुसार फल नही होंगे, भाव के नजदीक या आखरी अंशो पर है तब मिले जुले फल लग्न कुंडली+चलित कुंडली भाव दोनो के अनुसार देगा।

         

||#प्रेमविवाहहोपायेगाया_नही|| प्रेम विवाह के लिए कुंडली का 5वा,7वा भाव और 11वा भाव विशेष रूप से जिम्मेदार होता है।5वा भाव प्रेम का है और 7वा भाव विवाह का इस कारण यह दोनो भाव विशेष महत्वपूर्ण है प्रेम विवाह में ,11वा इस कारण क्योंकि 11वा भाव इच्छा का और 5वे से 7वा भाव और 7वे से 5वा भाव है जो शादी और प्रेम को दर्शाता मतलब प्रेम विवाह इच्छा को विवाह तक पहुचाता है।प्रेम विवाह के लिए 5वा भाव, भावेश, 7वा बबाव भावेश और प्रेम और विवाह कारक लड़के की कुंडली मे शुक्र, लड़की की कुंडली मे गुरु/मंगल यह सब अच्छी और बलवान स्थिति में होना जरूरी होता है क्योंकि यह यह भाव और यही ग्रह प्रेम और विवाह के कारक है।अब बात करते है प्रेम विवाह होने के लिए कैसी स्थिति होनी चाहिए कुछ स्थितियों पर बात करते है, 5वे भाव के स्वामी और 7वे भाव के स्वामी दोनो का आपस मे संबंध किसी केंद्र या त्रिकोण भाव प्रेम विवाह कराता है।यह सबसे मजबूत स्थिति प्रेम विवाह की होती है।जैसे, किसी जातक या जातिका की वृष लग्न की कुंडली हो यहाँ पंचमेश बुध होता है और सप्तमेश मंगल अब मंगल बुध दोनो किसी शुभ भाव मे बेठे हो साथ ही लड़का है तब शुक्र बलवान हो और लड़की है तब गुरु मंगल बलवान होने चाहिए तब प्रेम विवाह होगा।। अब 5वे भाव का स्वामी बलवान होकर 7वे भाव मे बैठ जाये और 7वे भाव का स्वामी और विवाह कारक शुक्र/गुरु बलवान है तब प्रेम विवाह हो जाएगा।। अब कम शब्दों में समझे तो 5वे भाव का 7वे भाव से कोई भी संबंध या 7वे भाव का 5वे भाव से कोई भी संबंध साथ ही लड़के की कुंडली मे शुक्र और लड़की की कुंडली मे विवाह कारक गुरु और प्रेम विवाह कारक मंगल/गुरु दोनो बलि हैं तब प्रेम विवाह हो जाएगा।। #जैसे:- किसी जातक या जातिका की वृश्चिक लग्न की कुंडली बने तब यहाँ पंचमेश गुरु और सप्तमेश शुक्र बनता है अब गुरु शुक्र दोनो ही एक साथ 5वे भाव मे बेठे यहाँ गुरु स्वराशि का और शुक्र उच्च होने से सफल प्रेम विवाह होगा और रहेगा।। अब बात करते हैं प्रेम विवाह योग होने पर भी कब नही होता? सबसे पहले तो यह जानना जरूरी है विवाह के योग है या नही यदि विवाह के योग नही है तो 5वे या 7वे भावेश के बीच संबंध होने पर भी कोई प्रेम विवाह नही होगा।अब प्रेम विवाह योग बनने पर भी यदि पंचमेश/ सप्तमेश बहुत पीड़ित है, अस्त ग्रह पंचमेश सप्तमेश से संबंध किये है पंचमेश और सप्तमेश कमजोर है और शनि की दृष्टि से पीड़ित है तब प्रेम विवाह योग होकर भी नही हो पायेगा।पंचमेश और सप्तमेश का बहुत ज्यादा खराब स्थिति में होना, 5वे या 7वे भाव मे पाप ग्रहों का ज्यादातर बैठना प्रेम विवाह नही होने देगा, ऐसी स्थिति में प्रेम विवाह योग होने पर भी नही होगा।। #जैसे:- किसी जातक या जातिका की मेष लग्न की कुंडली बने यहाँ पंचमेश सूर्य और सप्तमेश शुक्र होता है, अब शुक्र सूर्य दोनो 7वे भाव मे एक साथ बेठे तब यह प्रेम विवाह होना दिखा रहे है और होगा भी लेकिन शुक्र यहाँ सूर्य के साथ अस्त हो जाए, सूर्य खुद 7वे भाव मे तुला राशिगत होने से नीच का है तब शुक्र सप्तमेश का अस्त होने, पंचमेश का सप्तम भाव मे नीच राशि का हो जाना प्रेम विवाह नही होने देगा।यहाँ शुक्र के अस्त होने से सूर्य का नीचभंग भी नही होगा।इस तरह कई अन्य अशुभ स्थितिया प्रेम विवाह को रोकती है ,होने नही देती साथ ही ही शुक्र और गुरु के बलवान होने के कारण प्रेम विवाह हो भी गया तब शादी ठीक से चलेगी नही क्योंकि प्रेम विवाह योग ठीक नही है।। अब बात करते है, प्रेम विवाह योग होने पर दिक्कत कब आती है और दिक्कत,परेशानिया आने के बाद भी प्रेम विवाह सफल होता है।इस सबके लिए जरूरी है प्रेम विवाह योग बलवान हो जैसे सप्तमेश और पंचमेश बलवान होकर बेठे हो और इन पर शनि की दृष्टि हो, तब परिवारिक व्यक्तियों के कारण प्रेम विवाह में दिककत आएगा लेकिन विवाह संबंधी ग्रह बलवान हैं तब प्रेम विवाह परेशानिया आने के बाद हो जाएगा, इसी तरह जब पंचमेश/सप्तमेश पर शनि राहु केतु सहित 6वे और 8वे भाव के स्वामी का प्रभाव होगा तब काफी दिक्कते आती है, ऐसी स्थिति में विवाह संबंध सभी ग्रह जैसे पंचमेश-सप्तमेश शुक्र गुरु मंगल और 5-7भाव बलवान है तब परेशानियों के बाद भी प्रेम विवाह होगा लेकिन पंचमेश/सप्तमेश और यह भाव और शुक्र/गुरु/मंगल यह बहुत कमजोर या बहुत पीड़ित है तब प्रेम विवाह नही हो पाता है।इस तरह शुभ पंचमेश और सप्तमेश की स्थिति प्रेम विवाह कराती है और अशुभ स्थिति प्रेम विवाह नही होने देती और कुछ स्थितियां अच्छी है प्रेम विवाह संबंध तब होगा भी तो दिक्कतों का बाद।ग्यारहवा भाव बलि होना दर्शाता है प्रेम विवाह करने की इच्छा प्रेम होना और बलवान पंचमेश/सप्तमेश का शुभ संबंध 11वे भाव या इसके स्वामी से है तब प्रेम विवाह बहुत अच्छे तरह से और रीति रिवाजों से होता है।।

         

[: शनि और चंद्रमा जब एक साथ कुंडली में हो

चंद्रमा हमारा मन है l मन सबसे अधिक चंचल होता है l चंद्रमा ही हमारा कल्पना है l कल्पनाशील आदमी तभी हो सकता है जब चंद्रमा स्वतंत्र हो और चंद्रमा बलवान हो l यह जलकारक ग्रह है l जल से संबंधित सभी चीजों का यह प्रतिनिधित्व करता है जैसे दूध, जल , फल , सब्जी , फूल l अगर किसी पदार्थ में भी द्रव्य मिश्रित है यानी कि जल मिश्रित है l समझ लीजिए कि चंद्रमा का गुण है उसमें चाहे जिस रूप में हो l जैसे समझिए घी इसमें गुरु के साथ-साथ चंद्र का भी योग है क्योंकि इसमें जल का अंश है l इसी प्रकार शराब के साथ है l जल के साथ-साथ जहर भी है यानी चंद्रमा और शनि दोनों का योग है चंद्रमा और राहु भी कह सकते हैं क्योंकि राहु भी जहर है l स्त्री कारक ग्रह है अतः यह स्त्री का भी प्रतिनिधित्व करता है l
आइए शनि की बात करते हैं l कुंडली में अच्छा रहे तो आदमी मेहनती होता है l धैर्यवान होता है l विवेकी होता है l सोच समझ कर कार्य करने वाला होता है l इमानदार होता है l
इसके विपरीत अगर कुंडली में निर्बल हो तो आलसी परवर्ती , हर कार्य को टालने वाला , कंजूस , चापलूस तथा मलेक्ष जैसा रहने वाला होता है l हालांकि ऐसा जातक एकांतप्रिय भी हो जाता है I

जब दोनों एक साथ रहे I तब यह देखें कि दोनों में बलवान कौन है चंद्रमा बलवान है या शनि बलवान है I अगर चंद्रमा बलवान रहेगा तो जातक में मन का आलस्य ज्यादा रहेगा I हर कार्य में लेट लतीफा करेगा I बहाना बहुत बनाएगा I अपनी बुद्धि का उपयोग नहीं करना चाहेगा I खयाली पुलाव बहुत बनाता है l इनके सारी योजनाएं दिमाग में ही रहते हैं l
कभी-कभी दोस्तों के बहकावे में शराब की भी आदत लग जाती है क्योंकि चंद्रमा जल का प्रतिनिधित्व करता है और शनि जहर का जो कि शराब है I
चंद्रमा स्त्री कारक ग्रह होने की वजह से स्त्री को भी परेशानी होती है I पत्नी से उदासीनता रहती है एकांतवास की ओर ले जाता है I नशे की लत के वजह से घर तहस-नहस होता है इसीलिए इसे हम विष योग भी कहते हैं l
लग्न में यह योग अपने वजह से अपना और परिवारिक जीवन दोनों नष्ट कर लेता है I द्वितीय भाव में पारिवारिक संपत्ति नष्ट कर लेता है I द्वादश भाव में हो तो जेल निश्चित जाता है I

अगर चंद्रमा शनि के युक्ति में शनि अगर बलवान हो l जातक मंदबुद्धि का हो जाता है l उसे हर चीज देर से समझ में आता है l मंदबुद्धि के कारण समाज से तथा परिवार से भी अलग-थलग होकर ज़िता है l इसमें अगर राहु का योगदान हो जाए तो और विक्षिप्त हो जाता है l

अगर शुभ ग्रह गुरु की युति हो या दृष्टि हो l उस स्थिति में चंद्रमा बलवान हो जाता है तब ऐसी स्थिति नहीं देखा जाता है l जातक गंभीर और समझदार होता है l हर योजनाओं में सफल होता है l
जबकि मंगल की युति या दृष्टि सनक़ी और जिद्दी बनाता है I अनाप-शनाप हठ पकडे रहता है I
जबकि शुक्र शांत और सौम्य स्वभाव का बनाता है I
सूर्य की युति या दृष्टि कड़े स्वभाव तथा अनुशासन प्रिय बना देता है l इस योग को भी हम अच्छा नहीं मान सकते क्योंकि इतने उच्च विचारधारा के हो जाते हैं कि जिंदगी में कुछ कर नहीं पाते l

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