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🙏💧विधाता ने इस विश्व को गुण- दोषमय रचा है💧🙏

इस संसार में दो तरह के मनुष्य होते है एक तो अच्छे विचार वाले और दुसरे बुरी विचार धरा वाले । बुरे संग से हानी और अच्छे संग से लाभ होता है ,यह बात लोक और वेदों में भी है और यह सब जानते है । जैसे पवन के संग से धुल आकाश पर चढ़ जाती है और वही नीचे की ओर बहने वाले जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है । साधु के घर के तोता – मैना राम – राम सुमिरते है और असाधु के घर के तोता – मैना गिन- गिनकर गालिया देते है । कुसंग – सुसंग का प्रभाव केवल मनुष्यों पर ही नहीं पड़ता बल्कि यह तो ग्रह, ओषधि , जल, वायु पर भी पड़ता है ।जब मनुष्य कुसंग में पड़ जाता है तो उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है और उसे जन्मो – जन्मो तक कष्ट सहने पड़ते है इसी के विपरीत जो मनुष्य सुसंग में रहता है उसका जीवन सदा ही सुखमय होता है कियोंकि अच्छी संगत में रहकर वह परमपिता परमात्मा को प्राप्त कर लेता है । अच्छी संगत के मनुष्यों को परम पिता परमात्मा को प्राप्त करने के सब साधनों व मार्ग का ज्ञान होता है इसी ज्ञान के करण वह साधु संतो की छत्र छाया में आकर इस लोक से तर जाता है । इसीलिए कहते है कि ज्ञानी के पास जाने से ज्ञान बढ़ जाता है और साधु संत तो गुणों व ज्ञान की खान होते है क्यो कि संत दोषमय रूपी जल को न पीकर गुण रूपी दूध को ग्रहण करते है। बुरा वेष बना लेने पर भी अच्छे विचार वाले मनुष्य का सम्मान ही होता है कियोंकि वह उस परमात्मा का गुण गन करता रहता है। यदि मनुष्य अपना कल्याण कहता है तो उसे सदैव सुसंग ही अपनाना चहिये!

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