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       🍁 *विचार संजीवनी* 🍁

मनुष्यमात्र में ऐसी विचारशक्ति है, जिसको काम में लाने से वह अपना उद्धार कर सकता है:

‘ ज्ञानयोग ‘ का साधक उस विचारशक्ति से जड़-चेतन का अलगाव करके चेतन (अपने स्वरूप) में स्थित हो जाता है और जड़ (शरीर-संसार) से सम्बन्ध विच्छेद कर लेता है।

‘ भक्तियोग ‘ का साधक उसी विचारशक्ति से ‘ मैं भगवान का हूँ और भगवान मेरे हैं ‘ इस प्रकार भगवान से आत्मीयता करके अपना उद्धार कर लेता है।

‘ कर्मयोग ‘ का साधक उसी विचारशक्ति से मिले हुए शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि आदि पदार्थों को संसार का ही मानते हुए संसार की सेवा में लगाकर उन पदार्थों से सम्बन्ध विच्छेद कर लेता है और अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है।
इस दृष्टि से मनुष्य अपनी विचारशक्ति को काम में लेकर किसी भी योग-मार्ग से अपना कल्याण कर सकता है।
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