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अङ्गणवेदी वसुधा कुल्या जलधिः स्थली च पातालम्। वल्मीकश्च सुमेरुः कृत प्रतिज्ञस्य धीरस्य॥ अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहने वाले धीर व्यक्ति के लिए यह वसुधा पृथ्वी एक बगिया के समान होता है। जब चाहे घूम कर जी बहला लो। समुद्र एक नहर के समान होता है।। जब चाहे तैर कर पार कर लो। पाताल लोक एक मनोरंजन स्थल पिकनिक स्पॉट के समान होता है।। जब जाहे जाकर पिकनिक मना लो। और सुमेरु पर्वत एक चींटी के घर के समान होता है।। जब चाहे चोटी पर चढ़ जाओ। अतः मनुष्य को दृढ़ प्रतिज्ञ एवं धीर-गम्भीर होना चाहिए।।

🔥 सत्य को सुनना ही पर्याप्त नहीं होता अपितु सत्य को चुनना भी जरुरी है। सत्य की चर्चा करना एक बात है और सत्य का चर्या बन जाना एक बात है। आदर्शों का वाणी का आभूषण मात्र बनने से कल्याण नहीं होता, आदर्श आचरण के रूप में घटित हों, तव कल्याण निश्चित है।
🔥 क्या मिश्री का स्मरण करने मात्र से मुँह में मिठास घुल जायेगी ? मिश्री का आस्वादन करना पड़ेगा। प्यास तो तभी बुझती है जब कंठ में शीतल जल उतर जाए। यद्यपि परमात्मा के नाम की ऐसी दिव्य महिमा है कि वह स्मरण मात्र से भी कल्याण करने में समर्थ है।
🔥 भगवान राम और कृष्ण इसलिए आज तक हर घर में और ह्रदय में विराजमान हैं क्योंकि उन्होने आदर्शों को, मूल्यों को अपने जीवन में उतारा। दुनिया का सबसे प्रभावी उपदेश वही होता है जो जीभ से नहीं जीवन से दिया जाता है। सत्य से प्रेम मत करो, मै तो कहूँगा कि प्रेम ही आपके जीवन का सत्य बन जाए।
[ संसार-कटु – वृक्षस्य अमृत-उपमे द्वे फले, सुभाषित-रस-आस्वादः। सुजने जने संगतिः।।
संसार रूपी कड़ुवे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं।। एक है, मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है, सज्जनों की संगति।। यह संसार कष्टों का भंडार है। पग -पग पर निराशा प्रद स्थितियों का सामना करना पड़ता है।। ऐसे संसार में दूसरों से कुछ एक मधुर बोल सुनने को मिल जाएं, और सद् व्यवहार के धनी लोगों का सान्निध्य मिल जाए, तो आदमी को तसल्ली हो जाती है। मीठे बोल और सद्व्यवहार की कोई कीमत नहीं होती है।। परंतु ये अन्य लोगों को अपने कष्ट भूलने में मदद करती हैं। कष्टमय संसार में इतना ही बहुत है।।

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