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सफल जीवन के लिए उपयोगी बाते
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विधाता ने मृत्यु से बचने का कोई उपाय ही नहीं बताया है, इसलिए जब आखिर एक दिन मरना ही है, तो ऐसे ढंग से मरो कि संसार में यश भी हो और परमात्मा की प्राप्ति भी हो।

जिस प्रकार बहती हुई नदी के बैग से बालू के कण एक दूसरे से मिलते और बिछड़ते हैं उसी प्रकार इस संसार रूपी नदी में समय के प्रवाह से प्राणियों का मिलना और बिछड़ना होता है।
संसार के जितने भी प्राणी वर्तमान में हमारे साथ हैं , वे सब जन्म के पहले हमारे साथ नहीं थे और मृत्यु के बाद भी साथ नहीं रहेंगे , जीवात्मा अपने कर्म के अनुसार कभी इस घर से उस घर में कभी इस योनि से उस योनि में घूमता रहता है । तो यह सारे रिश्ते शरीर तक ही सीमित हैं। जीवात्मा का इनका कोई संबंध नहीं है।

जैसे नदी में बहते हुए जिनके सदा एक साथ और एक स्थान पर नहीं रह सकते । वैसे ही सगे संबंधी और प्रेमी जन एक स्थान पर साथ साथ नहीं रह सकते । क्योंकि सबके प्रारब्ध कर्म अलग अलग होते हैं।

इस संसार में कभी भी , कहीं भी, कोई भी , किसी के साथ हमेशा नहीं रह सकता । जितने भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं , उन्हें उनसे एक ना एक दिन अवश्य बिछड़ना पड़ेगा । चाहे स्त्री हो, चाहे पुत्र हो , चाहे धन हो , चाहे मकान हो , और चाहे अपना शरीर ही हो , इन सब को छोड़कर जाना ही पड़ेगा । अतः यह जीव अकेला ही पैदा होता है और अकेला ही मर कर जाता है। करनी धरनी , पाप पुण्य का फल भी अकेला ही भोक्ता है । इसलिए अधर्म की कमाई से कभी भी अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण नहीं करना चाहिये। नहीं तो पापों की गठरी अकेले ही सिर पर लादकर घोर नलको में गिरना पड़ेगा।

वास्तव में परमात्मा ही समस्त प्राणियों का भरण पोषण करते हैं। पर जीवात्मा संसार से अपना संबंध मान लेने के कारण सांसारिक व्यक्तियों को अपना मान लेता है ।और उस के भरण-पोषण का भार अपने ऊपर ले लेता है । जिससे वह व्यर्थ ही दुख भोगता है।
✍✍कल्याण पत्रिका क्रमश (73)
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