Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

: जब किसी तालाब में मोटी काई लग जाती है। तब पानी दिखाई नहीं देता है।। किन्तु चारों तरफ हरी-हरी काई दिखाई देती है। हाथ से हटाओ तो वहाँ से हाथ हटाते ही फिर से ढंक लेता है।। वही दशा मन की है। मन में दुनिया के प्रंपच, कलह-कल्पना और भ्रम जनित नाना विकारों की काई छाई हुई है।। जब सत् संगति हो तब लगता है मन की काई साफ हो गयी है। जैसे ही वहाँ से अलग हुए फिर प्रपंच एवं विकारों काई मन में छा जाती है।। बड़ी विकट है यह काई बारंबर हटाओ फिर भी मन पर छा जाती है। बस मन में छाई हुई काई को हटाते रहें, हटाते रहें और दिन-रात निरंतर सावधानी रखें मन में फिर से काई छाने न पाये।। संसार में जो मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के प्रति करता है। दूसरे भी उसी प्रकार का व्यवहार उसके साथ करते है।।

🚩🚩🚩
[ जहाँ पर स्वभाव में मधुरता न हो वहाँ पर पद-प्रतिष्ठा कोई मायने नहीं रखती और जिसका स्वभाव मीठा है।। उसे मान-सम्मान के लिए किसी पद-प्रतिष्ठा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। स्वभाव ही किसी आदमी की व्यक्ति गत पहचान है। प्रभाव से आप किसी को नहीं जीत सकते, अच्छे स्वभाव से सबको जीता जा सकता है।। यहाँ पर अच्छे आदमी की संज्ञा सिर्फ उसे दी जाती है, जिसका स्वभाव अच्छा हो। बड़ों से सम्मान के साथ और छोटों से प्रेम पूर्वक बात करना यह श्रेष्ठ स्वभाव के दो प्रमुख गुण हैं। अपने स्वभाव को इतना कोमल बनाओ कि किसी भी आदमी को आपसे बात करने में संकोच न हो।। कठोर व्यवहार जीवन के प्रगति पथ पर एक बाधा है। छोटी-छोटी बातों को लेकर दूसरों पर कटाक्ष करते रहना यह भी अच्छी बात नहीं है।। आज का आदमी अपने हाव-भाव की बड़ी परवाह करता है। मगर अपने स्वभाव की नहीं।। अत: अपने स्वभाव को अच्छा रखो ताकि आप सबके प्रिय बन सकें। चेहरा कितना भी सुन्दर क्यों ना हो स्वभाव ही प्रभाव डालता है।।
[मन में किसी भी प्रकार की इच्छा व कामना को रखकर मनुष्य को शांति प्राप्त नहीं हो सकती। इसलिए शांति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मनुष्य को अपने मन से इच्छाओं को मिटाना होगा। हम जो भी कर्म करते हैं, उसके साथ अपने अपेक्षित परिणाम को साथ में चिपका देते हैं। अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा हमें कमजोर कर देती है। वो ना हो तो व्यक्ति का मन और ज्यादा अशांत हो जाता है। मन से ममता अथवा अहंकार आदि भावों को मिटाकर तन्मयता से अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा। तभी मनुष्य को शांति प्राप्त होगी।।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
जय श्री कृष्ण
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
दिन और रात रूपी चूहे इस शरीर रूपी वृक्ष को प्रति क्षण काट रहे हैं । समय रूपी हाथी इस शरीर रूपी वृक्ष को प्रति क्षण हिलाये जा रहा है । काल रूपी सर्प इस जीव की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि यह वृक्ष के ऊपर से गिरे मैं इसको डस लू । लेकिन जीव सुख रूपी शहद की एक बूंद पीने के इंतजार में बैठा है कि एक बूंद शहद गिरे मैं उसे पीकर सुखी हो जाऊंगा , सुख की कामना लिए मनुष्य भूल गया है ,, कि काल प्रति क्षण उसकी प्रतीक्षा कर रहा है । जिसका परिणाम शरीर की मृत्यु है । सम्बन्धों की मृत्यु है । काल , मृत्यु कही दूर नहीं है ,,वह प्रति क्षण आपको घसीटते हुए , अपने तरफ लेकर चला जा रहा है ,, यदि आप इसी प्रकार माया के चक्कर में भूले रहे , तो वह अपने आगोश में आपको एक दिन ले लेगा ,, जितने लोगों के लिए आप परेशान हो रहे हैं ,कोइ भी आपकी सहायता करने में सक्षम नहीं है —-

मृत्यु शत्रु मधोस्ठोसि ,त्रातारम किम न पश्यति,,,

जो इस मृत्यु से रक्षा कर सकता है , हे मनुष्य( जीव) तुम उस परमात्मा के तरफ क्यों नहीं देखता है ,, परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं है ,जो इस मृत्यु से तेरी रक्षा कर सके ,, यह विचार कर प्रति क्षण भगवत्प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए ,,
हित अनहित पशु पक्षीउ जाना ,, मानुष तन गुण ग्यान निधाना ।।

अपना हित और अनहित पशु पक्षी भी जानते हैं ,, आप तो मनुष्य हैं यह शरीर तो गुण और ज्ञान भक्ति वैराग्य को प्रदान कराने वाली है , इसी शरीर से आत्मसाक्षात्कार तथा भगवत्प्राप्ति किया जा सकता है । ऐसे उत्तम शरीर को प्राप्त कर भी , जो अपने आप को , इस जन्म मृत्यु के बंधन से , मुक्त होने के लिए प्रयास नहीं कर रहा है , वह हाथ में आये हुए अमृत को छोड़कर , विषय वासना तृष्णा रूपी विष का ही पान कर रहा है , जो उसे नर्कगामी ही करने वाले हैं , अथवा जन्म मृत्यु के अनवरत बंधन में ही डालने वाले हैं,, स्वतः विचार करें कि हमारा कल्याण किसमें है । हमारे कर्म हमें किस तरफ ले जा रहे हैं । इसीलिए मनुष्य अपने आप का भाग्य विधाता कहा जाता है।। 🙏🏻🌹 हरि ॐ नारायण🌹🙏🏻
[जरा को जरूर जानों। जरा माने मिटना, छीजना, ह्रास होना। कोई भोर ऐसी नहीं जो शाम ना हो, कोई शाम ऐसी नहीं जो भोर ना हो। कोई रात ऐसी नहीं जो प्रभात पैदा ना करे। परिवर्तन यहाँ का नियम है। हम उन चीजों को सँभालने की कोशिश में लगे हैं जो सदा एक जैसी नहीं रह सकती।। अवस्था भी हमारी नित्य बदल रही है। जैसे हम कल थे वैसे आज नहीं है और जैसे आज हैं वैसे कल नहीं रहेंगे। शरीर का कोई भरोसा नहीं इसलिए जो श्रेष्ठ कर्म करना चाहो वो तुरंत कर लेना समय कभी भी किसी का इंतजार नहीं करता।। विचारों की भी अराजकता हमारे भीतर चल रही है। रोज नए विचार, नए उद्देश्य, नई दौड़।। तुम स्वयं भी तो अपने भीतर हो रहे परिवर्तन को देख रहे हो। तुम भी तो नित बदल रहे हो फिर दूसरों के बदल जाने पर क्रोध क्यूँ करते हो।।

Recommended Articles

Leave A Comment