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प्रार्थना प्रेम का निचोड़ है, जैसे फूलों को निचोड़ो, इत्र बने ऐसे प्रेम के सारे रूपों को निचोड़ो तो प्रार्थना बने। जैसे फूलों में सुगंध है, ऐसे ही प्रेम की सुगंध प्रार्थना है।। प्रार्थना का कोई धर्म नहीं होता। और अगर है तो समझना कि प्रार्थना नहीं है।। कुछ और है, आत्मवंचना है। प्रार्थना न हिन्दू होती है, और न मुसलमान प्रार्थना केवल हार्दिक होती है।। और हृदय का कोई संबंध संप्रदायों से या शास्त्रों से नहीं है। हृदय का संबंध उत्सव से है, आनंद से है, संगीत से है, नृत्य से है। और इसी का नाम प्रार्थना है।।

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स्वाभिमान अभिमान नहीं भिन्नता ही नहीं है, विरोध है। अभिमान अपने को दूसरे से अपने को श्रेष्ठ समझना है।। अभिमान एक खतरनाक रोग है। किस-किस से अपने को श्रेष्ठ समझोगे अभिमानी जीवन भर दुख झेलता है। स्वाभिमान अत्यंत विनम्र है।। दूसरे से श्रेष्ठ होने का कोई सवाल नहीं है। सब अपनी-अपनी जगह अनूठे हैं।। कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है, कोई किसी प्रकार की कोई महत्वा कांक्षा नहीं है। संसार की कोई शक्ति स्वाभिमानी नीचा नहीं दिखा सकती।।

    

[ जिस कउ बिसरै प्रानपति दाता सोई गनहु अभागा॥ चरन कमल जा का मनु रागिओ अमिअ सरोवर पागा॥ तेरा जनु राम नाम रंगि जागा॥ आलसु छीजि गइआ सभु तन ते प्रीतम सिउ मनु लागा॥ रहाउ॥ जह जह पेखउ तह नाराइण सगल घटा महि तागा॥ नाम उदकु पीवत जन नानक तिआगे सभि अनुरागा।।

हे भाई उस मनुष्य को बद-किस्मत समझो, जिस को जिंद का मालिक-प्रभू विसर जाता है। जिस मनुष्य का मन परमात्मा के कोमल चरणों का प्रेमी हो जाता है, वह मनुष्य आत्मिक जीवन देने वाले नाम-जल का सरोवर खोज लेता है।। हे प्रभू तेरा सेवक तेरे नाम-रंग में टिक कर माया के मोह की तरफ से सदा सुचेत रहता है। उस के शरीर में से सारा आलस खत्म हो जाता है, उस का मन, हे भाई प्रीतम-प्रभू के साथ जुड़ा रहता है। रहाउ।। हे भाई उस के सिमरन की बरकत के साथ मैं भी जिस जिस तरफ देखता हूँ, वहाँ वहाँ परमात्मा ही सभी शरीरों में मौजूद दिखता है।। जैसे धागा सभी मोतियों में पिरोया होता है। हे नानक जी प्रभू के दास उस का नाम-जल पीते हुए ही अन्य सभी मोह-प्यार छोड़ देते है।।
[: बोलने और लिखने में बहुत अंतर होता है, यूं तो लोग सुबह से रात तक बोलते ही रहते हैं। बोले हुए शब्द लोग सुनते हैं और भूल जाते हैं।। इस कारण से बोले हुए शब्द इतने अधिक प्रामाणिक नहीं होते परंतु जो शब्द कागज पर लिखे जाते हैं, वे स्थिर होते हैं। जब तक कागज रहेगा, तब तक वे शब्द भी उस पर बने रहेंगे।। लिखित शब्दों की प्रमाणता भी बोले हुए शब्दों से इसीलिए अधिक होती है कि बोले हुए शब्द तो, जो व्यक्ति सामने उपस्थित है, वही सुन सकता है। दूर वाले लोग बोले हुए शब्दों को नहीं जान पाते। परंतु लिखे हुए शब्दों को तो कोई भी कभी भी पढ़ सकता है। इसलिए लिखे हुए शब्दों की प्रमाणिकता अधिक मानी जाती है।। इस कारण से बोलते समय भी सावधानी का प्रयोग तो करें ही अपशब्द न बोलें, कठोर शब्द न बोले, व्यंग्यात्मक शब्द न बोलें परंतु लिखते समय तो और भी अधिक सावधान रहें। जो शब्द आपने लिख दिए और उन पर हस्ताक्षर भी कर दिए, तो वह एक प्रकार से आपका बंधन हो जाएगा। उन शब्दों की प्रमाणता के कारण आपको बहुत से हानि लाभ हो सकते हैं।। गलत शब्द लिखने पर डिप्रेशन या आर्थिक हानि जेल आदि का दंड भी भोगना पड़ सकता है। इसलिए सावधानी से लिखें अच्छे सही एवं प्रमाणिक शब्द ही लिखें, जिससे कि आपको भविष्य में हानि न हो।।

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