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पहले वहाँ जाकर ,स्वयं जाँच कर ले फिर मरीज को लेकर जाएं!!!
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इस मंदिर में जाते ही जड़ से मिट जाती है लकवा की बीमारी, दूसरों के सहारे आने वाले लोग अपने पैरों पर जाते हैं घर।

लकवा के सफल इलाज के लिए यहां मरीज को लगातार 7 दिन तक…
यूं तो विज्ञान के पास हर मर्ज़ की दवा है, लेकिन कई बार विज्ञान किसी रोग का इलाज करने में घुटने टेक देता है। भारत में लकवा से पीड़ित लोगों की संख्या लाखों-करोड़ों में है। जिनमें से कुछ लोग मेडिकल के ज़रिए ठीक हो जाते हैं तो कुछ लोगों पर मेडिकल का भी कोई असर नहीं पड़ता। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां जाने वाला लकवा पीड़ित एकदम ठीक हो जाता है। मंदिर की चमत्कारी शक्तियों को लेकर कहा जाता है कि यहां आने वाले मरीज बेशक किसी के सहारे से आते हैं, लेकिन वे वापस अपने पैरों पर खड़े होकर ही जाते हैं।

ये चमत्कारी मंदिर राजस्थान में स्थित है। नागौर से करीब 40 किलोमीटर दूर अजमेर-नागौर रोड पर कुचेरा नाम का एक कस्बा है। यहां बूटाटी धाम है, जिसे चतुरदास जी महाराज मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। बूटाटी धाम अपनी चमत्कारी शक्तियों के लिए काफी मशहूर है, जहां हर दिन सैकड़ों लोग लकवा का जादूई इलाज कराने आते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां मरीजों के लिए इलाज के लिए किसी भी प्रकार के कोई डॉक्टर, हकीम या वैद्य नहीं हैं। बल्कि लकवा के इलाज के लिए यहां की चमत्कारी शक्तियों का प्रयोग किया जाता है।

लकवा के सफल इलाज के लिए यहां मरीज को लगातार 7 दिन तक मंदिर की परिक्रमा लगानी पड़ती है। परिक्रमा पूरी करने के बाद मरीज को एक हवन में हिस्सा लेना होता है। हवन समाप्त होने के बाद कुंड की भभूती मरीज को लगाई जाती है, जिसके बाद उसके सभी रोग खुद-ब-खुद दूर हो जाते हैं। ये पूरी प्रक्रिया किसी चमत्कार से कम नहीं है। सबसे पहले तो मरीज की बीमारी खत्म होती है और फिर उसके शरीर के बंद पड़े हाथ-पैर अपना-अपना काम करने लग जाते हैं। जो मरीज लकवे की वजह से बोल नहीं पाते, वे बोलने भी लगते हैं।

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आज इस पोस्ट को पढ़कर सारी ज़िन्दगी की टेंशन खत्म हो जायेगी

बस धैर्य ओर शांति से पढ़े

POWER OF POSITIVE THOUGHT

(Vosc- अनछुए पहलू)*✍

एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था जिसके कारण वह काफी चिड़चिड़ा तथा तनाव में रहने लगा था। वह इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी ना किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना जाना लगा ही रहता है,

इन्ही बातों को सोच सोच कर वह काफी परेशान रहता था तथा बच्चों को अक्सर डांट देता था तथा अपनी पत्नी से भी ज्यादातर उसका किसी न किसी बात पर झगड़ा चलता रहता था

एक दिन उसकी बेटी उसके पास आई और बोली पिताजी मेरा स्कूल का होमवर्क करा दीजिये, वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में था तो उसने बिटिया को डांट कर भगा दिया लेकिन जब थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तो वह बेटी के पास गया तो देखा कि बच्ची सोई हुई है और उसके हाथ में उसके होमवर्क की कॉपी है। उसने कॉपी लेकर देखी और जैसे ही उसने कॉपी नीचे रखनी चाही, उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी

होमवर्क का टाइटल था *

वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगतीं लेकिन बाद में वे अच्छी ही होती हैं

इस टाइटल पर बिटिया को एक पैराग्राफ लिखना था जो उसने लिख लिया था। उत्सुकतावश उसने बिटिया का लिखा पढना शुरू किया बिटिया ने लिखा था •••

मैं अपने फाइनल एग्जाम को बहुंत धन्यवाद् देती हूँ क्योंकि शुरू में तो ये बिलकुल अच्छे नहीं लगते लेकिन इनके बाद स्कूल की छुट्टियाँ पड़ जाती हैं

मैं ख़राब स्वाद वाली कड़वी दवाइयों को बहुत धन्यवाद् देती हूँ क्योंकि शुरू में तो ये कड़वी लगती हैं लेकिन ये मुझे बीमारी से ठीक करती हैं

मैं सुबह – सुबह जगाने वाली उस अलार्म घड़ी को बहुत धन्यवाद् देती हूँ जो मुझे हर सुबह बताती है कि मैं जीवित हूँ

मैं ईश्वर को भी बहुत धन्यवाद देती हूँ जिसने मुझे इतने अच्छे पिता दिए क्योंकि उनकी डांट मुझे शुरू में तो बहुत बुरी लगती है लेकिन वो मेरे लिए खिलौने लाते हैं, मुझे घुमाने ले जाते हैं और मुझे अच्छी अच्छी चीजें खिलाते हैं ,, पूरा ध्यान रखते है और मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास पिता हैं क्योंकि मेरी एक सहेली के तो पिता ही नहीं हैं

बिटिया का होमवर्क पढने के बाद वह व्यक्ति जैसे अचानक नींद से जाग गया हो। उसकी सोच बदल सी गयी। बच्ची की लिखी बातें उसके दिमाग में बार बार घूम रही थी। खासकर वह last वाली लाइन। उसकी नींद उड़ गयी थी। फिर वह व्यक्ति थोडा शांत होकर बैठा और उसने अपनी परेशानियों के बारे में सोचना शुरू किया

●● मुझे घर के सारे खर्चे उठाने पड़ते हैं, इसका मतलब है कि मेरे पास घर है और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ जिनके पास घर नहीं है

●● मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, इसका मतलब है कि मेरा परिवार है, बीवी बच्चे हैं और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूँ जिनके पास परिवार नहीं हैं और वो दुनियाँ में बिल्कुल अकेले हैं

●● मेरे यहाँ कोई ना कोई मित्र या रिश्तेदार आता जाता रहता है, इसका मतलब है कि मेरी एक सामाजिक हैसियत है और मेरे पास मेरे सुख दुःख में साथ देने वाले लोग हैं

हे ! मेरे भगवान् ! तेरा बहुंत बहुंत शुक्रिया ••• मुझे माफ़ करना, मैं तेरी कृपा को पहचान नहीं पाया।

इसके बाद उसकी सोच एकदम से बदल गयी, उसकी सारी परेशानी, सारी चिंता एक दम से जैसे ख़त्म हो गयी। वह एकदम से बदल सा गया। वह भागकर अपने बेटी के पास गया और सोते हुए बेटी को गोद में उठाकर उसके माथे को चूमने लगा और अपने बेटी को तथा ईश्वर को धन्यवाद देने लगा।

हमारे सामने जो भी परेशानियाँ हैं, हम जब तक उनको नकारात्मक नज़रिये से देखते रहेंगे तब तक हम परेशानियों से घिरे रहेंगे लेकिन जैसे ही हम उन्हीं चीजों को, उन्ही परिस्तिथियों को सकारात्मक नज़रिये से देखेंगे, हमारी सोच एकदम से बदल जाएगी, हमारी सारी चिंताएं, सारी परेशानियाँ, सारे तनाव एक दम से ख़त्म हो जायेंगे और हमें मुश्किलों से निकलने के नए – नए रास्ते दिखाई देने लगेंगे।
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अगर आपको बात अच्छी लगे तो उसका अनुकरण करके जिन्दगीको खुशहाल बनाइये.
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🌿🌸 अति महत्वपूर्ण बातें 🌸🌿

🌸1. घर में सेवा पूजा करने वाले जन भगवान के एक से अधिक स्वरूप की सेवा पूजा कर सकते हैं ।

🌸2. घर में दो शिवलिंग की पूजा ना करें तथा पूजा स्थान पर तीन गणेश जी नहीं रखें।

🌸3. शालिग्राम जी की बटिया जितनी छोटी हो उतनी ज्यादा फलदायक है।

🌸4. कुशा पवित्री के अभाव में स्वर्ण की अंगूठी धारण करके भी देव कार्य सम्पन्न किया जा सकता है।

🌸5. मंगल कार्यो में कुमकुम का तिलक प्रशस्त माना जाता हैं।

🌸6. पूजा में टूटे हुए अक्षत के टूकड़े नहीं चढ़ाना चाहिए।

🌸7. पानी, दूध, दही, घी आदि में अंगुली नही डालना चाहिए। इन्हें लोटा, चम्मच आदि से लेना चाहिए क्योंकि नख स्पर्श से वस्तु अपवित्र हो जाती है अतः यह वस्तुएँ देव पूजा के योग्य नहीं रहती हैं।

🌸8. तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए क्योंकि वह मदिरा समान हो जाते हैं।

🌸9. आचमन तीन बार करने का विधान हैं। इससे त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रसन्न होते हैं।

🌸10. दाहिने कान का स्पर्श करने पर भी आचमन के तुल्य माना जाता है।

🌸11. कुशा के अग्रभाग से दवताओं पर जल नहीं छिड़के।

🌸12. देवताओं को अंगूठे से नहीं मले।

🌸13. चकले पर से चंदन कभी नहीं लगावें। उसे छोटी कटोरी या बांयी हथेली पर रखकर लगावें।

🌸15. पुष्पों को बाल्टी, लोटा, जल में डालकर फिर निकालकर नहीं चढ़ाना चाहिए।

🌸16. श्री भगवान के चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार या तीन बार आरती उतारकर समस्त अंगों की सात बार आरती उतारें।

🌸17. श्री भगवान की आरती समयानुसार जो घंटा, नगारा, झांझर, थाली, घड़ावल, शंख इत्यादि बजते हैं उनकी ध्वनि से आसपास के वायुमण्डल के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। नाद ब्रह्मा होता हैं। नाद के समय एक स्वर से जो प्रतिध्वनि होती हैं उसमे असीम शक्ति होती हैं।

🌸18. लोहे के पात्र से श्री भगवान को नैवेद्य अपर्ण नहीं करें।

🌸19. हवन में अग्नि प्रज्वलित होने पर ही आहुति दें।

🌸20. समिधा अंगुठे से अधिक मोटी नहीं होनी चाहिए तथा दस अंगुल लम्बी होनी चाहिए।

🌸21. छाल रहित या कीड़े लगी हुई समिधा यज्ञ-कार्य में वर्जित हैं।

🌸22. पंखे आदि से कभी हवन की अग्नि प्रज्वलित नहीं करें।

🌸23. मेरूहीन माला या मेरू का लंघन करके माला नहीं जपनी चाहिए।

🌸24. माला, रूद्राक्ष, तुलसी एवं चंदन की उत्तम मानी गई हैं।

🌸25. माला को अनामिका (तीसरी अंगुली) पर रखकर मध्यमा (दूसरी अंगुली) से चलाना चाहिए।

🌸26.जप करते समय सिर पर हाथ या वस्त्र नहीं रखें।

🌸27. तिलक कराते समय सिर पर हाथ या वस्त्र रखना चाहिए।

🌸28. माला का पूजन करके ही जप करना चाहिए।

🌸29. ब्राह्मण को या द्विजाती को स्नान करके तिलक अवश्य लगाना चाहिए।

🌸30. जप करते हुए जल में स्थित व्यक्ति, दौड़ते हुए, शमशान से लौटते हुए व्यक्ति को नमस्कार करना वर्जित हैं।

🌸31. बिना नमस्कार किए आशीर्वाद देना वर्जित हैं।

🌸32. एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।

🌸33. सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

🌸34. बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।

🌸35. जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

🌸36. जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।

🌸37. जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

🌸38. संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।

🌸39. दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

🌸40. यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।

🌸41. शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है, किन्तु रविवार को परिक्रमा नहीं करनी चाहिए।

🌸42. कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

🌸43. भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

🌸44. देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

🌸45. किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

🌸46. एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

🌸47. बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

🌸48. यदि शिखा नहीं हो तो स्थान को स्पर्श कर लेना चाहिए।

🌸49. शिवजी की जलहारी उत्तराभिमुख रखें ।

🌸50. शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

🌸51. शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंुकुम नहीं चढ़ती।
🌸52. शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

🌸53 .अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावंे।

🌸54. नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

🌸55. विष्णु भगवान को चांवल, गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।

🌸56. पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।

🌸57. किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।

🌸58. पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें।

🌸59. सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।

🌸60. गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं।

🌸61. पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।

🌸62. दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।

🌸63. सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।

🌸64. पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।

🌸65. पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।

🌸66. घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।

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[बातें बिल्व वृक्ष की—-
⚡1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते ।
⚡2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर
गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है ।
⚡3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता
सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है ।
⚡4. चार पांच छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्रक पाने वाला
परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल
मिलता है ।
⚡5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है। और बेल
वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।
⚡6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता
है।
⚡7. बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते है।
⚡8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट
लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
⚡9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि
स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे ।
⚡10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी
शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी उसके सारे पाप मुक्त
हो जाते है ।
⚡11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव
से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।
कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये । बिल्व पत्र के लिए पेड़
को क्षति न पहुचाएं
शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन सी चीज़ चढाने से
मिलता है क्या फल
किसी भी देवी-देवता का पूजन करते वक़्त उनको अनेक चीज़ें
अर्पित की जाती है। प्रायः भगवन को अर्पित की जाने वाली हर
चीज़ का फल अलग होता है। शिव पुराण में इस बात का वर्णन
मिलता है की भगवन शिव को अर्पित करने वाली अलग-अलग
चीज़ों का क्या फल होता है।
शिवपुराण के अनुसार जानिए कौन सा अनाज भगवान शिव को
चढ़ाने से क्या फल मिलता है:

  1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।
  2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।
  3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।
  4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।यह सभी अन्न भगवान
    को अर्पण करने के बाद गरीबों में वितरीत कर देना चाहिए।
    शिवपुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस
    (द्रव्य) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है
  5. ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से
    शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी
    जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।
  6. नपुंसक व्यक्ति अगर शुद्ध घी से भगवान शिव का अभिषेक
    करे, ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो
    उसकी समस्या का निदान संभव है।
  7. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को
    चढ़ाएं।
  8. सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में
    वृद्धि होती है।
  9. शिवलिंग पर ईख (गन्ना) का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों
    की प्राप्ति होती है।
  10. शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति
    होती है।
  11. मधु (शहद) से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा
    (टीबी) रोग में आराम मिलता है।
    शिवपुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन का फूल
    चढ़ाया जाए तो उसका क्या फल मिलता है-
  12. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने
    पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  13. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।
  14. अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान
    विष्णु को प्रिय होता है।
  15. शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।
  16. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती
    है।
  17. जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की
    कमी नहीं होती।
  18. कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।
  19. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि
    होती है।
  20. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र
    प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशनकरता है।
  21. लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।
  22. दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती ह
    जय महादेव
    _
    जिन्दगी में मन लगाना है तो प्रभु में ही लगाना। अन्यथा तुम अपूर्ण और अधूरे ही जियोगे और अधूरे ही जाओगे। ऐसा नहीं है कि आदमी पूर्ण होकर नहीं जी सकता। जी सकता है पर वह पूर्णता प्राप्त तो परमात्मा के संग से ही होगी।
    परमात्मा के संग होने से असंभव भी संभव हो जाता है और संग ना होने से संभव भी असंभव हो जाता है। अर्जुन अकेला था तो उससे युद्ध में खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था। जब श्री कृष्ण के संग होने का अहसास हुआ तो पूरा मैदान जीत लिया।
    संग होने का अर्थ मात्र 24 घंटे राम-राम रटना या मंदिर में जाना नहीं है। यह तो सारी दुनिया कर ही रही है। यद्यपि यह भी आसान और सरल नहीं है। फिर भी राम राम जपने के साथ ही भीतर ह्रदय में यह भाव दृणता के साथ बैठ जाना कि श्री हरि ही मेरे अपने हैं संसार में बस। अर्जुन की तरह सारथि बनालो श्रीकृष्ण को , अपने आप मंजिल तक ले जायेंगे। जय श्री राधेकृष्ण 👏
    [ राम।।🍁 🍁 *विचार संजीवनी* 🍁

रुपयों को तो आप तिजोरी में बंद करके रख सकते हैं, पर समय को बंद करके नहीं रख सकते । समय को सावधानी से अच्छे-से-अच्छे काम में लगाओ तो ठीक है, नहीं तो यह खर्च हो जाएगा । यह बहुत बड़ी पूंजी है । धन जैसी पूंजी नहीं है धन से बहुत ऊंची है। पास में लाखों करोड़ों रुपए रहते हुए भी मर जाओगे पर समय रहते एक मिनट भी पहले नहीं मरोगे। जीना समय के अधीन है। समय खर्च होने पर जी सकोगे नहीं । रुपए आपको जिला नहीं सकते । आपको समय जिलाता है। समय ही आपके जीवन का आधार है। रुपए तो तभी खर्च होते हैं, जब आप खर्च करते हैं परंतु समय तो अपने आप खर्च हो रहा है, बैठे हैं तो भी खर्च हो रहा है, काम करते हैं तो भी खर्च हो रहा है, भजन करते हैं तो भी खर्च हो रहा है। यह खर्चा तो निरंतर हो ही रहा है। मौत निरंतर नजदीक आ रही है जिसमें एक क्षण का भी अंतर नहीं पड़ता। चाहे काम-धंधा कर लो चाहे भजन कर लो, चाहे समाधि लगा लो, समय तो दनादन जा रहा है। समय समाप्त होते ही उसी क्षण मरना पड़ेगा। फिर ऐसा कोई बल नहीं है जिससे हम जी सके । ऐसा अपने जीवन का खास आधार जा रहा है। उसे उत्तम से उत्तम काम में लगाओ। इसके लिए सावधानी के सिवाय और कोई उपाय नहीं है। अतःहरदम सावधान रहो।
हम क्या कर रहे हैं ? इसका नतीजा किसको भोगना पड़ेगा ? इसपर गम्भीरता से विचार करें।

राम ! राम !! राम !!!

परम् श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज
साधन-सुधा-सिंधु, पृ. सं ६७०
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      ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼

       🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴

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                               *इस सृष्टि के सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म ने सम्पूर्ण संसार को नित्य नवीन ज्ञान प्रदान किया है | जीवन क्या है ? जीवन जीने की कला , एवं मृत्यु क्या है यह सब सनातन धर्म के महापुरुषों ने बताने का प्रयास किया है | जीवन का कोई ऐसा अंग नहीं है जिसका दर्शन सनातन वांग्मय में न मिलता हो | देव , दानव , मानव , यक्ष , किन्नर , गन्धर्व , पितर आदि की मान्यतायें सनातन की धुरी रही हैं | सनातन धर्म ने जीवित रहते हुए तो मानव तो मानव से प्रेम करने की शिक्षा तो दी ही है साथ अपने मृत पूर्वजों के प्रति भी श्रद्धा का भाव रखते हुए श्राद्ध आदि की व्यवस्था भी प्रतिपादित की है | सनातन धर्म स्वयं में वैज्ञानिकता को समेटे हुए है | यहाँ प्रत्येक मान्यताओं के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण अवश्य देखने को मिलता है | हमारे समाज में कई ऐसी धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं जिनके पीछे मूल कारण धर्म से अलग है फ़िर भी उन्हें धर्म के नाम पर समाज में स्थापित व प्रचलित किया गया है | इसके पीछे मुख्य उद्देश्य देश-काल-परिस्थितिगत व्यवस्था एवं सामाजिक कल्याण था | जन्म के समय सूतक एवं मृत्यु के पातक की व्यवस्था प्रतिपादित करने के पीछे भी वैज्ञानिकता के दर्शन होते हैं | ऐसे अवसरों पर अनेक प्रकार के कीटाणुओं का जन्म हो जाता है जो कि संक्रमण फैलाकर मानव जाति को रोगी बना सकते हैं इसीलिए इन अवसरों पर शुद्धता एवं किसी को भी न छूने का दिशा - निर्देश सनातन धर्म में प्राप्त होता है | समाज में सकारात्मक एवं नकारात्मक विचारधार के लोग आदिकाल से एक साथ रहते आये हैं कुछ लोगों ने इन मान्यताओं से अलग ही अपना संसार बनाया परंतु ऐसा करने वाले स्वयं को सनातन धर्मी भी नहीं मानते थे |*

आज समाज जिस दोराहे पर खड़ा वहाँ मनुष्य के भीतर एक असमंजस की स्थिति बनी हुई है | आज प्राय: सनातन की प्रत्येक मान्यताओं को अंधविशावास का नाम दिये जाने की प्रतियोगिता सी चल रही है | प्रत्येक दूसरा आदमी सनातन की मान्यताओं को अंधविश्वास बताने पर तुला हुआ है | आश्चर्य तो तब होता है जब स्वयं को सनातनी कहने वाले भी इनके लच्छेदार भाषणों से प्रभावित होकर असमंजस की स्थिति में पहुँच जाते हैं और स्वयं से प्रश्न करने लगते हैं कि क्या हम और हमारा सनातन धर्म सही है या यह एक अंधविश्वासी धर्म है ??? ऐसे भ्रमित हुए सभी सनातनियों से मैं “आज आचार्य अर्जुन तिवारी” सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि संसार में अनेक ऐसे लोग हैं जो अपने माता – पिता को लात मारकर भगा देते हैं चो क्या हम भी ऐसा कर सकते हैं ? कुल मिलाकर आज के सूचना एवं तकनीकी के युग में हमें इन प्रचलित सामाजिक / धार्मिक मान्यताओं के पीछे छिपे मूल कारणों को समझने व अपनी युवा पीढ़ियों को समझाने की आवश्यकता है | जिससे धर्म के प्रति हमारी युवा पीढ़ी का विश्वास बढ़े | वे धर्म को केवल एक रूढ़िवादी विचारधारा ना मानकर सामाजिक व व्यक्तिगत कल्याण के माध्यम के रूप में स्वीकार करें |

सनातन की मान्यताओं ने कभी भी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दिया है | हमें मूल मान्यताओं को समझने की आवश्यकता है |

 🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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कालसर्प दोष के प्रभाव

राहु एवं केतु के एक ओर सभी ग्रह उपस्थित रहने पर बनता है ।
काल = मृत्यु अर्थात समय
सर्प = सांप
वैदिक रूप से राहु का अधिदेवता – ‘काल’ है। प्रति अधिदेवता ‘सर्प‘ है।
केतु का अधिदेवता ‘चित्रगुप्त ‘प्रति अधिदेवता‘ ब्रह्मा है।
सामान्यत : इसका प्रभाव जीवन भर होता है। लेकिन राहु अथवा केतु की दशा व अन्तर्दशा में इसके प्रभाव फलो का प्रादुर्भाव होते देखा जा सकता है ।
कालसर्प योग की गणना हमेशा राहु से लेकर केतु तक ही करना चाहिए, जो याद रखने योग्य है।
कालसर्प बारह प्रकार का होता है

अनन्त कालसर्प दोष (प्रथम से सप्तम भाव)
जीवन में प्रभाव : शारीरिक एवं मानसिक रूप से कष्ट, जीवन में संकट, वैवाहिक परेशानी, बाल्यकाल में या बड़े होने तक पेट में कीड़े होना, शौच संबंधी कष्ट।
कुलिका कालसर्प दोष (दिव्त्य से अटषम भाव)
जीवन में प्रभाव : राहु अशुभ होने पर कुटुम्ब, धन संबंधी परेशानियां, गुप्त रोग होने की संभावना, वाणी पर संयम न रख पाना, मुख, गले, साँस संबंधी रोग। शुभ होने पर अचानक धन की प्राप्ति, गढ़ा धन, लॉटरी, सट्टे इत्यादि से धन मिलने के योग, पारिवारिक खुशहाली, समाज में प्रतिष्ठा।
वासुकी कालसर्प दोष (तीसरे से नवम भाव)
जीवन में प्रभाव : भाई – बन्धुओं के कारण परेशानीयो का सामना, विदेश से लाभ, तीसरे भाव में उच्च का राहु होने पर भाग्य, बुद्धि और कर्म में अधिक लाभ, प्रतिष्ठा का बढ़ना, राजनीति में सफलता, भाई – बहिन का सहयोग। गुरु की युति अथवा द्रष्टि होने पर भाई बहिन का सुख प्राप्त होता है, साहस में वृद्धि, उच्च लोगो से संबंध। शुभ फल स्त्री राशियो में तथा अशुभ फल पुरुष राशियों में।
शंखपाल कालसर्प दोष (चतुर्थ से दशम भाव)
जीवन में प्रभाव : माता, स्थायी संपत्ति, वाहन सुख और पेट प्रभावित होते है चतुर्थ भाव का स्वामी निर्बल और राहु नीच राशि का होने पर जीवन में संघर्ष अधिक और आराम में कमी। मेहनत का फल नही मिलता गुर्दों व पथरी का रोग, माता – पिता व परिवार को परेशानी होती है । राहु उच्च का होने पर या कम होने पर मनुष्य अपने निवास स्थान की अपेक्षा विदेश में सुखी, कुण्डलीं में लग्न, दूसरा,, तृतीय, चतुर्थ व् कन्या राशि में शुभ फल देता है।
पदम् कालसर्प दोष (पंचम से ग्यारहवे भाव)
जीवन में प्रभाव : शिक्षा, संतान, मेहनत का फल, जनता से सम्मान तथा शारीर में लीवर व आंत पर प्रभाव। आर्थिक स्थिति असुन्तुलित, सन्तान का देरी से होना या कन्या संतान का अधिक होना। पंचमेश नीच, वक्री, अस्त या राहु नीच राशि वृश्चिक या शत्रु राशि में होने पर, शुभ ग्रह की द्रष्टि न होने पर जीवन के शुरू के आधे भाग तक दुख भोगना। शुभ होने पर गुप्त विद्याओं का ज्ञान तथा मंगल राहु का योग होने पर कुटनीति का प्रयोग।
महा पदम कालसर्प (छठे से बारहवे भाव)
जीवन में प्रभाव : रोग, शत्रु, मामा, मौसी पर प्रभाव, षष्ठेश निर्बल एवं पापग्रस्त या राहु के नीच होने पर गुप्त रोग या मामा अथवा मौसी की अकाल म्रत्यु, व्यर्थ खर्चे, गुप्त शत्रु भय तथा मातुल – पक्ष की हानि, दाँत एवं नेत्र संबंधी रोग, तरक्की में बाधा। उच्च का राहु होने पर शत्रु का स्वयं ही शत्रुता को मिटाना, दूर हट जाना, विदेश यात्रा, तर्क शक्ति प्रबल, बुद्धि को प्रयोग करने पर शत्रुओं का दमन अर्थात विजय प्राप्त करना।
तक्षक कालसर्प दोष (सप्तम से प्रथम भाव)
जीवन में प्रभाव : वैवाहिक जीवन, सांझेदारी व दादा पर प्रभाव, सप्तमेश का छठे, आठवे या अशुभ भाव में होने पर या राहु नीच होने पर विवाह सुख में कमी, सांझेदारी में कष्ट, अधिक परिश्रम करने पर ही धन प्राप्ति, वैवाहिक जीवन में कलह का वातावरण बनना। शुभ होने पर एक जगह से संबंध टूटने पर दूसरी जगह वैवाहिक सुख प्राप्त होना, विवाह जल्दी होना और स्त्री राशि का राहु शुभ फल देता है।
कर्कोटक कालसर्प दोष (अष्टम से द्वितीय)
जीवन में प्रभाव : मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी, घरेलू उलझने अधिक होना। शुभ होने पर लम्बी आयु, जीवन के आधा बीतने पर भूमि, मकान, वाहन, सुयोग्य संतान सुख की प्राप्ति।
शंखनाद कालसर्प दोष (नवम से तृतीय भाव)
जीवन में प्रभाव : भाग्य उदय देरी से होना, लॉटरी, जुआ, सट्टेबाज़ी, शेयर, रिश्तेदारों से धोखा, धन का अपव्यय और नाश । उच्च का होने पर स्वाभिमानी, जादू, तंत्र – मंत्र – यंत्र ज्योतिष, लॉटरी, शेयर आदि में रूचि, धनवृद्धि जैसी योजनाओ के संचालक।
पातक कालसर्प दोष (दशम से चतुर्थ भाव)
जीवन में प्रभाव : आधा जीवन बीतने के बाद सफलता प्राप्ति, पिता सुख में कमी, झूठे आरोप झेलना। शुभ प्रभाव होने पर उच्च प्रतिष्ठित संस्थान में महत्वपूर्ण पद प्राप्त करना, योग्यता बल पर भूमि, स्त्री आदि सुखो को प्राप्त करना।
विषाक्त कालसर्प दोष (ग्यारहवे से पंचम)
जीवन में प्रभाव : पिता या संतान पक्ष के कारण चिंतित, गुप्त आर्थिक परेशानिया, प्रथम कन्या संतान की संभावना, पारिवारिक सुख व सहयोग में कमी, अधिक मेहनत करने पर भी धन लाभ में कमी। शुभ होने पर लॉटरी, सट्टा, शेयर आदि में और अनेक यात्राओं द्वारा धन लाभ एवं एश्वर्य की प्राप्ति।
शेषनाग कालसर्प दोष (बारहवे से छठा भाव)
जीवन में प्रभाव : सिर, नेत्र आदि अंगो में कष्ट, धन अत्यधिक खर्च होना, कुसंगति के कारण व्यसन आदि का शिकार हो जाना। शुभ होने पर व्ययशेष (बारहवे भाव का स्वामी) शुभ भाव में होने से जातक अपने जन्म स्थान से दूर भाग्योदय करता है। आध्यात्म, धार्मिक, लेखन, ज्योतिष आदि के क्षेत्र में विशेष रूचि।

॥ मन्त्रिकोपनिषद ॥

शुक्ल यजुर्वेद से सम्बन्धित इस उपनिषद में, उपनिषदकार का कहना यह है कि ‘जीवात्मा’ स्वयं को परमात्मा का अंश अनुभव करता हुआ भी उसे सहज रूप से देख नहीं पाता। जब इस शरीर का मोह और अहंकार हटता है, तभी उसे अनुभव कर पाना सम्भव है। प्राय: सामान्य साधक अविनाशी और अविचल माया का ही ध्यान करते हैं। उसमें संव्याप्त परमात्मा का अनुभव करने का प्रयास नहीं करते, जबकि ध्यान उसी का किया जाना चाहिए। उपनिषदों में उसी को द्वैत-अद्वैत, व्यक्त-अव्यक्त, सूक्ष्म और विराट रूपों में गाया गया है। सभी मन्त्रों का मर्म वही ‘ब्रह्म’ है। यहाँ उसे ब्रह्मचारी, स्तम्भ की भांति अडिग, संसार में समस्त श्रीवृद्धि को देने वाला और विश्व-रूपी छकड़े (गाड़ी) को खींचने वाला कहा गया है। इसमें कुल बीस मन्त्र हैं। ~~

यस्मिन्सर्वमिदं प्रोतं ब्रह्म स्थावरजंगमम्।
तस्मिन्नेव लयं यान्ति स्त्रवन्त्य: सागरे यथा॥17॥
यस्मिन्भावा: प्रलीयन्ते लीनाश्चाव्यक्ततां ययु:।
पश्यन्ति व्यक्ततां भूयो जायन्ते बुद्बुदा इव॥18॥

अर्थात् यह सम्पूर्ण जड़-चेतन जगत् उस ‘ब्रह्म’ में ही समाया हुआ है जिस प्रकार बहती हुई नदियां समुद्र में लीन हो जाती हैं, उसी प्रकार यह सम्पूर्ण जगत् भी उस ‘ब्रह्म’ में लय हो जाता है। जिस प्रकार पानी का बुलबुला पानी से उत्पन्न होता है और पानी में ही लय हो जाता है, उसी प्रकार जिससे सम्पूर्ण जीव-पदार्थ जन्म लेते हैं, उसी में लय होकर अदृश्य हो जाते हैं। ज्ञानीजन उसी को ‘ब्रह्म’ कहते हैं। जो विद्वान, अर्थात् ब्रह्मवेत्ता उस ब्रह्म को जानते हैं, वे उसी में लीन हो जाते हैं। उसमें लीन होकर वे अव्यक्त रूप से सुशोभित होते हैं।

राहु ग्रह शांति के उपाय :-

  1. अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन
    की माला भी धारण की जा
    सकती है। प्रतिदिन सुबह चन्दन का
    टीका भी लगाना चाहिए। अगर हो सके तो
    नहाने के पानी में चन्दन का इत्र डाल कर नहाएं।
  2. राहु की शांति के लिए श्रावण मास में रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करना सर्वोत्तम है।
  3. शनिवार को कोयला, तिल, नारियल, कच्चा दूध, हरी
    घास, जौ, तांबा बहती नदी में प्रवाहित
    करें।
  4. बहते पानी में शीशा अथवा नारियल
    प्रवाहित करें।
  5. नारियल में छेद करके उसके अन्दर ताम्बे का पैसा डालकर
    नदी में बहा दें |
  6. बहते पानी में तांबे के 43 टुकड़े प्रवाहित करें।
  7. नदी में लकड़ी का कोयला प्रवाहित
    करें।
  8. नदी में पैसा प्रवाहित करें।
  9. एक नारियल + 11 बादाम (साबुत) काले वस्त्र में बांधकर जल
    में प्रवाहित करें।
  10. हर बुधवार को चार सौ ग्राम धनियां पानी में
    बहाएं।
  11. कुष्ठ रोगी को मूली का दान दें।
  12. काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं।
  13. मोर व सर्प में शत्रुता है अर्थात सर्प, शनि तथा राहू के
    संयोग से बनता है। यदि मोर का पंख घर के पूर्वी और
    उत्तर-पश्चिम दीवार में या अपनी जेब व
    डायरी में रखा हो तो राहू का दोष कभी
    भी नहीं परेशान करता है, मोरपंख
    की पूजा करें या हो सके तो उसे हमेशा अपने पास
    रखें।
  14. रात को सोते समय अपने सिरहाने में जौ रखें जिसे सुबह
    पंक्षियों को दें।
  15. सरसों तथा नीलम का दान किसी
    भंगी या कुष्ठ रोगी को दें।
  16. राहु ग्रह से पीडि़त व्यक्ति को रोजाना कबूतरों को
    बाजरे में काले तिल मिलाकर खिलाना चाहिए।
  17. गिलहरी को दाना डालें।
  18. दो रंग के फूलों को घर में लगाएं और गणेश जी को
    अर्पित भी करें।
  19. कुष्ठ रोगियों को दो रंग वाली वस्तुओं का दान करें।
  20. हर मंगलवार या शनिवार को चीटियों को
    मीठा खिलाएं।
  21. अगर राहू आपकी कुंडली में 12 वे
    घर में बैठा है तो भोजन रसोई घर में करें।
  22. अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
  23. जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
  24. अपने पास ठोस चाँदी से बना वर्गाकार टुकड़ा रखें।
  25. श्री काल हस्ती मंदिर
    की यात्रा।
  26. चाय की कम से कम 200 ग्राम
    पत्ती 18 बुधवार दान करने से रोग कारक
    अनिष्टकारी राहु स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
  27. नेत्रेत्य कोण में पीले फूल लगायें।
  28. अपने घर के वायु कोण (उत्तर-पश्चिम) में एक लाल झंडा
    लगाएं।
  29. यदि क्षय रोग से पीड़ित हों तो गोमूत्र से जौ को धो
    कर एक बोतल में रखें तथा गोमूत्र के साथ उस जौ से अपने दाँत
    साफ करें।
  30. शनिवार के दिन अपना उपयोग किया हुआ कंबल
    किसी गरीब को दान करें।
  31. अमावस्या को पीपल पर रात में 12 बजे
    दीपक जलाएं।
  32. शिवजी पर जल, धतुरा के बीज, चढ़ाएं
    और सोमवार का व्रत करें।
  33. यदि राहु चंद्रमा के साथ हो तो पूर्णिमा के दिन
    नदी की धारा में नारियल, दूध, जौ,
    लकड़ी का कोयला, हरी दूब, यव, तांबा,
    काला तिल प्रवाहित करें।
  34. यदि राहु सूर्य के साथ हो तो सूर्य ग्रहण के समय कोयला
    और सरसों नदी की धारा में प्रवाहित करना
    चाहिए।
  35. अगर आपकी कुंडली में
    भी राहु और शनि एक साथ बैठे है तो यह उपाय
    करे। हर रोज मजदूरों को तम्बाकु की पुडिया दान दे।
    ऐसा 43 दिन करे आपको कभी यह योग बुरा फल
    नहीं देगा।
  36. यदि राहु सूर्य के साथ हो तो जौ को दूध या गौ मूत्र से धोकर
    बहते पानी में बहायें।
  37. शुक्र राहु की युति होने पर दूध एवं हरे नारियल
    का दान करें ।

नवग्रह परिचय

सूर्य ग्रह –
सूर्य सौर परिवार का मुखिया है,जिसके चारो ओर अनेक ग्रह उसकी परिक्रमा करते है|सूर्य सदैव मार्गी एवं उदय रहने वाला ग्रह है| प्रथ्वी के अपनी धुरी पर सदैव घूमते रहने के कारण सूर्य कहीं उदय तो कहीं अस्त होता है| उदयास्त तो भ्रम्पात्र है| वास्तव में सूर्य अस्त होता ही नहीं है, इसीलिए एक स्थान पर सूर्यास्त के कारण संध्या होती है तो दूसरे स्थान पर सवेरा दिखाई पड़ता है|

· वर्ण –नारंगी लाल मतान्तर से ताम्र वर्ण

· स्वरुप-सुन्दर

· आकृति-गोल

· तत्व-अग्नि

· स्वभाव-स्थिर

· प्रकृति-पित्त

· गोत्र-सूर्य

· वार-रविवार

· राज्याधिकार-राजा

· शरीर में प्रभाव-सिर से मुख तक

· उपरत्न-गार्नेट,संग सितारा,रेड स्टार,नारंगी अकीक,गुलाबी ओनेक्स

· संज्ञा-क्रूर

· क्रीड़ास्थल-देवभूमि

· रूचि-राजनीति शास्त्र

· भाग्योदय काल-२२ से २४ वर्ष तक

· जड़ी-बिल्व बेल मूल

· दान का समय-सूर्योदय काल

· मंडल-वर्तुल

· भाग-मध्य

· विचारणीय विषय-आत्मा,पिता,स्वाभाव,लक्ष्मी,सामर्थ्य एवं आरोग्यता

· विद्या-वैद्यक

· दीप्तांश-१५ अंश

· दिशा-पूर्व

· अवस्था-लगभग ५० वर्ष प्रौढ़

· लिंग-पुरुष

· गुण-सत्व

· स्वाद-कड़वा

· धातु-स्वर्ण मतान्तर से तांबा

· जाति-क्षत्रिय

· वाहन-सप्ताश्वरथ

· समिधा-मदार

· ऋतू-ग्रीष्म

· कद-सामान्य

· रत्न-माणिक्य

· निसर्गबल-सभी ग्रहों से अधिक बली

· पराभव-किसी से नहीं

· बलि-दिन में

· स्थान-पशुभूमि अर्थात् गौशाला

· दोष शमन-सभी ग्रहों का

· शुभाशुभ-अशुभ

· दान पदार्थ-माणिक्य,गेहूँ, सवत्सा गौ, कषाय वस्त्र ,गुड ,सोना-तांबा ,रक्तचन्दन ,लाल पुष्प

· देश-कलिंग

· देवता-अग्निदेव

· स्वामी-सिंह राशि का

· रोग-पित्तविकार ,नेत्र रोग ,अस्थि ज्वर ,अस्थिदौर्बल्य ,हड्डी टूटना व कर्ण रोग

· द्रष्टि-उर्ध्व

· शरीर में कारक-अस्थि व पित्त

· शुष्कता-शुष्क

· राशिमोगावधि-एक मास

· कालसमय-अयन

चन्द्र ग्रह-
सूर्य के बाद चन्द्रमा को ही महत्ता दी जाती है क्योंकि प्रथ्वी पर से सूर्य के बाद सबसे बड़ा दिखने वाला ग्रह चन्द्रमा है|पद्मपुराणानुसार ब्रम्हा के पुत्र महर्षि अत्रि ने अपने पिता ब्रम्हा की आज्ञानुसार स्रष्टि उत्पन्न करने के लिए “अनुत्तर” नामक तप किया था| तप पूर्ण होने पर अत्रि के नेत्रों से जल की बूंदे गिरी,उन अश्रु कणों से सारा जगत आलौकिक प्रकाश से जगमगा उठा ,उस समय दिशाओं ने स्त्री रूप में उपस्थित होकर उन अश्रुकणों को पुत्र प्राप्ति की कामाना से स्वयं ग्रहण कर लिया, लेकिन धारण न रख सकने के कारण त्याग दिया, दिशाओं द्वारा परित्यक्त गर्भ को ब्रम्हा जी ने एक युवा पुरुष के रूप में बदल दिया| तदोपरांत उस युवक को ब्रम्ह्लोक में अपने साथ ले गए और उसका नाम चन्द्रमा रख दिया| ब्रम्ह्लोक में देवताओं गन्धर्वों,ऋषिमुनियों व अप्सराओं द्वारा स्तुति किये जाने पर चन्द्रमा के तेज में वृद्धि हो गई| इस तेज के प्रसारित होने पर पृथ्वी पर अनेकानेक प्रकार की दिव्य औषधियों की उत्त्पत्ति हुई| प्रचेताओं के पुत्र प्रजापति दक्ष ने प्रभावित होकर अपनी सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ कर दिया| इसके बाद चन्द्रमा ने राजसूय यज्ञ करके एश्वर्य और यश की उपलब्धि की| चन्द्रमा की सत्ताईस पत्नियां ही सत्ताईस नक्षत्रों के नाम से जानी जाती है| अत्रि का पुत्र होने के कारण चन्द्रमा को “आत्रेय” भी कहा जाता है|

· वर्ण- शुभ्र

· स्वरुप- सुन्दर

· आकृति- स्थूल

· तत्व- जल

· स्वभाव- चर(चंचल)

· प्रकृति- कफ

· गोत्र- अत्रि

· वाहन- हरिण

· राज्याधिकार- रानी

· शरीर में प्रभाव- गले से ह्रदय तक

· उपरत्न- चंद्रमणि

· पराभव- बुध से पराजित

· संज्ञा- शुभाशुभ के अनुसार पूर्णबली चन्द्र हो तो शुभ जबकि क्षीणबली चन्द्र हो तो अशुभ

· रूचि- ज्योतिष शास्त्र में

· भाग्योदय काल- २४ से २५ वर्ष तक

· जड़ी- खिरनी की जड़

· दान पदार्थ- बांस के पात्र में चावल

· अवस्था- युवा-तरुणी

· लिंग- स्त्री

· गुण- सत्व

· स्वाद- नमकीन

· धातु- चाँदी

· जाति- वैश्य

· वार- सोमवार

· समिधा- पलाश

· ऋतु- वर्षा

· कद- दीर्घ(लम्बा)

· रत्न- मोती

· निसर्गबल- शुक्र से अधिक बली

· बली- रात्रि

· क्रीड़ास्थल- जलाशय

· स्थान- जलाशय व गीली भूमि

· दोषशमन- राहु, बुध, शनि, मंगल, शुक्र और गुरु का

· शुभाशुभ- पूर्ण बली हो तो शुभ जबकि क्षीणबली हो तो अशुभ

· दान का समय- संध्या समय

· भाग- x

· विचारणीय विषय- मन, बुद्धि, माता, धन, प्रसन्नता एवं उन्नति

· विद्या- ज्योतिष

· दीप्तांश-१२ अन्श

· द्रष्टि- सम

· शरीर में कारक- रक्त

· काल समय- मुहूर्त

· मंडल- चतुरस्त्र या त्रिकोणाकार

· देश- यमुनातटवर्ती

· देवता- वरुण

· स्वामी- कर्क राशि का

· रोग- रक्त विकार, रक्ताभाव, रक्तचाप, जलोधर, उन्माद, शीतज्वर एवं कफ विकार

· दिशा- वायव्य

· शुष्कता- जलीय

· राशिभोगावधि- ढाई दिन

मंगल ग्रह –
पृथ्वी का निकटवर्ती ग्रह मंगल लाल होने के कारण युद्ध का देवता (God of War) कहलाता है | मंगल ग्रह को युद्ध के देवता कार्तिकेय का ही स्वरुप माना जाता है | मंगल शिव और पृथ्वी का पुत्र होने से भौम, भूमिपुत्र, महासुत कहलाता है | इसका रंग लाल होने से वह ‘लोहित’ भी कहलाया और कालिदास इसीलिए संस्कृत साहित्य में अंगारक भी कहा है |

    कार्तिकेय युद्ध के देवता जिन्हें ‘कुमार’ और ‘स्कन्द’ के नाम से भी जानते हैं | मंगल ग्रह से उनका सम्बन्ध जोड़ा जाता है | महाभारत और रामायण में उन्हें शिव या रूद्र का पुत्र कहा गया है | पुत्र ऐसा जिसकी कोई माता नहीं थी | पौराणिक परंपरा के अनुसार शिव ने अपना वीर्य अग्नि में डाल दिया था जिसे गंगा ने स्वीकार किया तो कार्तिकेय की उत्पत्ति हुई | इसीलिए उन्हें अग्निभू और गंगापुत्र भी कहते हैं | जन्मोपरांत छह कृत्तिकाओं ने स्तनपान द्वारा उन्हें संपुष्ट किया जिससे उनके छह मस्तक बने इसलिए इन्हें ‘षष्मुख’ और ‘कार्तिकेय’ के नाम से जाना गया | मंगल को काल पुरुष का पराक्रम माना गया है जो कर्म (क्रिया) के फलस्वरुप ही प्राप्त होता है |

· वर्ण-लाल

· स्वरुप-कृशकाय

· आकृति-चतुष्कोण

· तत्व-अग्नि

· स्वभाव-उग्र व कामुक

· प्रकृति-पित्त

· गोत्र-भारद्वाज

· वाहन-मेढ़ा

· राज्याधिकार-सेनापति

· शरीर में प्रभाव-पेट से पीठ तक

· उपरत्न-लाल अकीक

· पराभव-शनि से पराजित

· संज्ञा-पापी,अशुभ

· रूचि-शस्त्रविद्या

· भाग्योदय काल-२८ से ३२ वर्ष तक

· जड़ी-अनंतमूल

· दान पदार्थ-मूंगा,गेहूँ,मसूर,लाल बैल,गुड,स्वर्ण,तांबा,लाल वस्त्र व कनेर के लाल फूलादि

· अवस्था-तरुण

· लिंग-पुरुष

· गुण-तम

· स्वाद-तीखा

· धातु-तांबा (मतान्तर से स्वर्ण)

· जाति-क्षत्रिय

· वार-मंगलवार

· समिधा-खदिर (खैर अर्थात् कत्था की लकड़ी)

· ऋतु-ग्रीष्म

· कद-छोटा

· रत्न-मूंगा

· निसर्गबल-शनि से अधिक बली

· बली-रात्रि में

· क्रीड़ास्थल-दग्धा भूमि

· स्थान-पर्वत या अरण्य

· दोषशमन-राहु, बुध और शनि का

· शुभाशुभ-अशुभ

· दान का समय-प्रातः सूर्योदय से ४८ मिनट तक

· भाग-x

· विचारणीय विषय-पराक्रम, रोग, भाई, भूमि व शत्रु आदि

· विद्या-शस्त्र विज्ञान, युद्ध शास्त्र सैन्य-विज्ञान

· दीप्तांश-८ अंश

· द्रष्टि-उर्ध्व

· शरीर में कारक- मांस व मज्जा

· कालसमय-दिन

· मंडल-त्रिकोण

· देश-अवंति

· देवता-स्कन्द (कार्तिकेय)

· स्वामी-मेष,वृश्चिक राशि का

· रोग-पित्तविकार, जलना-गिरना, गुप्तरोग, शिरशूल, सूखारोग, रक्तविकार, उदरविकार, एपिन्डी-साइटीज, चोट-चपेट, दुर्घटनादि

· दिशा-दक्षिण

· शुष्कता-शुष्क

· राशिभोगावधि-डेढ़ मास

बुध ग्रह-

सौर परिवार का सबसे लघु और चमकदार ग्रह बुध सूर्य के अत्यंत निकट है |यह सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले आकाश में दृष्टिगोचर होता है | बुध ग्रह सूर्य से अधिकतम २८ अंश दूर तक जा सकता है | सूर्य का निकटवर्ती ग्रह होने के कारण इसे सूर्य का सहायक कहते है | ब्रहस्पति की पत्नी तारा को उनके शिष्य सोम (चंद्रमा) हर ले गए थे जिस कारण तारकमय युद्ध हुआ | सोम का पक्ष उशना रूद्र तथा दानवों ने ले लिया तथा ब्रहस्पति का इंद्र आदि देवताओं ने | इस प्रकार जब इस देवासुर संग्राम ने उग्र रूप धारण कर लिया तो पृथ्वी को भी विचलित कर दिया तब उसने ब्रम्हा से युद्ध का अन्त करवाने की प्रार्थना को भी विचलित कर दिया | ब्रम्हा ने बीच-बचाव कर तारा को उसके पति ब्रहस्पति को लोटा दिया | इसी बीच तारा का एक पुत्र हुआ था उसे ब्रहस्पति और चन्द्र दोनों ने अपना-अपना पुत्र बताया | लेकिन जब ब्रम्हा ने तारा को बाध्य किया तो उसने रहस्य का उद्घाटन किया की वह सोम का पुत्र है | आगे चलकर उसका नाम इंदुसुत अर्थात् बुध पड़ा जो अपने नामानुरूप ग्रह कहलाया | बुध ने पौराणिक परम्परा के अनुसार, वैवस्वत मनु की कन्या इला से विवाह किया जिससे पुरूरवा नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ | इसीलिए पुरुरवा का एक नाम ऐल भी पड़ा | पुरुरवा ने सौ से भी ज्यादा अश्वमेध-यज्ञ किये थे | ऋग्वेद के एक सूक्त का ऋषि भी बुध को बताया गया है |बुध को काल पुरुष की वाणी और बुद्धि माना गया है |

· वर्ण-हरा

· स्वरुप-प्रसन्न

· आकृति-गोल (क्षीण शरीर)

· तत्व-पृथ्वी

· स्वभाव-मिश्रित

· प्रकृति-सोना

· गोत्र-अत्रि

· वाहन-सिंह

· राज्याधिकार-राजकुमार

· शरीर में प्रभाव-हाथ-पैरों में

· उपरत्न-हरा मरगज, हरा ओनेक्स, हरि तुरमुली, पैरी डाट

· पराभव-शुक्र से पराजित

· संज्ञा-अकेला शुभ, पापयुत या दृष्ट होने पर अशुभ

· रूचि-अर्थशास्त्र, लेखाशास्त्र अर्थववेद, गणित, शिल्पकला रसायन शास्त्र आदि

· भाग्योदय काल-३२ से ३६ वर्ष तक

· जड़ी-विधार की जड़

· दान पदार्थ-हरा, नीला वस्त्र, अशुभ सोना, चाँदी, कांसा, मूंगा, गौ, पुष्प, दासी, हाथीदांत, घी, शक्कर, कपूर

· अवस्था-कुमार

· लिंग-नपुंसक

· गुण-राजसिक

· स्वाद-मिश्रित

· धातु-सोना

· जाति-शूद्र

· वार-बुधवार

· समिधा-अपामार्ग (चिरचिटा) कटींले फूलों वाला कुरूप पौधा झाड़-झंकाड़ के रूप में सर्वत्र पाया जाता है | वर्षा ऋतु में उगकर गर्मी तक रहता है

· ऋतु-शरद

· कद-सामान्य

· रत्न-पन्ना

· निसर्गबल-मंगल से अधिक बली

· बली-पूर्वाह्न (प्रातःकाल से दोपहर तक का समय)

· क्रीड़ास्थल-खेल का मैदान या क्रीड़ा भवन

· स्थान-श्मशान, विद्वानों का घर या गाँव

· दोषशमन-राहु का

· शुभाशुभ-अकेला शुभ, अशुभ ग्रह युत या दृष्ट होने पर

· दान का समय-सूर्योदय से २ घंटे तक

· भाग-x

· विचारणीय विषय-विद्या, बंधु, मामा, विवेक, मित्र व वाणिज्यादि

· विद्या-शिल्पकला, अर्थशास्त्र, रसायनशास्त्र, लेखाशास्त्र एवं वैदिक साहित्य आदि

· दीप्तांश-७ अंश

· दृष्टि-कटाक्ष

· शरीर में कारक-त्वचा

· काल समय-ऋतु

· मंडल-बाणाकार

· देश-मगध

· देवता-विष्णु

· स्वामी-मिथुन व कन्या राशि

· रोग-वात-पित्त, कफ विकार, चर्मरोग, कर्णरोग, कुष्ठ रोग, घुटनों में दर्द, मूत्ररोग, गला एवं वाणी दोष

· दिशा-उत्तर

· शुष्कता-जलीय

· राशिभोगावधि-एक मास (स्थूलतः २१ से ३० दिन तक)

गुरु ग्रह-

सौर परिवार का वृहद् और ज्वलन्त ग्रह गुरु गौर से देखने पर पीला प्रतीत होता है| गुरु को बृहस्पति भी कहा जाता है| बृहस्पति ग्रह को देवताओं का गुरु होने का गौरव प्राप्त है| गुरु ग्रह देवगुरु के रूप में अपनी विदत्ता, ज्ञान, तेज, प्रतिभा, सम्मान और व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध है| कर्दम ऋषि की तीसरी पुत्री श्रद्धा का विवाह अंगिरा ऋषि के साथ हुआ था| उन्हीं के गर्भ से गुरु ग्रह का जन्म हुआ है| गुरु ग्रह देवताओं के गुरु माने जाते है| पुराणों के अनुसार गुरु ग्रह की स्थिति मंगल से ऊपर दो लाख योजन की दूरी पर है| यदि यह ग्रह वक्री न हो तो एक राशि को एक वर्ष में भोग लेता है|

गुरु ग्रह को कालपुरुष की त्वचा माना जाता है| वक्ष स्थल पर इसका विशेष प्रभाव रहता है| इसके सम्बन्ध में कुछ तथ्य निम्नलिखित है-
· वर्ण –पीत
· आकृति-गोल
· तत्व- आकाश
· स्वभाव- मृदु
· प्रकृति- वात-पित्त-कफ
· गोत्र- अंगिरा
· वार- गुरुवार
· राज्याधिकार-राजगुरु
· शरीर में प्रभाव-कमर व जांघ
· उपरत्न- सुनहला, पीला ओनेक्स, पीला हकीक
· संज्ञा- शुभ
· क्रीड़ास्थल- भंडारगृह
· रूचि- वेदाभ्यास, वेदांत, दर्शन, व्याकरण व भाषाशास्त्र
· भाग्योदय काल- १६ से २२ वर्ष तक
· जड़ी- भारंगी या केले का मूल
· दान का समय- संध्याकाल
· मंडल- दीर्घ, चतुरस्त्र
· भाग- उभय
· विचारणीय विषय- बुद्धि, धन
· विद्या- व्याकरण, भाषा विज्ञान व वेद
· दीप्तांश-९ अंश
· दिशा- ईशान
· अवस्था-वृद्ध
· लिंग- पुरुष
· गुण- सत्व
· स्वाद- मीठा
· धातु- स्वर्ण
· जाति-ब्राम्हण
· वाहन- हाथी
· समिधा- पीपल की लकड़ी
· ऋतु- हेमन्त
· कद- मध्यम या ह्रस्व
· रत्न- पुखराज
· निसर्गबल-शुक्र से कम बली
· पराभव-मंगल से पराजित
· स्थान- ग्रामभूमि
· दोष शमन-राहु, बुध, शनि, मंगल और शुक्र का
· शुभाशुभ-शुभ
· दान पदार्थ-शक्कर,हल्दी,अश्व
· देश-सिन्धु
· देवता-ब्रम्हा(मतान्तर से इन्द्र)
· स्वामी-धनु व मीन राशि का
· रोग-वायु-कफ विकार, मुखरोग, फाइलेरिया, सूजन, नितम्ब एवं पैरों में पीड़ा, स्थूलता, दुर्बलता, कमरदर्द एवं कब्ज आदि
· द्रष्टि-सम
· शरीर में कारक-वसा व कफ
· शुष्कता-मधुर
· राशिमोगावधि- तेरह मास
· कालसमय- मास

शुक्र ग्रह-
सौर परिवार का सबसे चमकीला ग्रह शुक्र दूरबीन से देखने पर सफ़ेद प्रतीत होता है| शुक्र महर्षि भृगु के पुत्र हैं| जो दैत्यों और राजा बलि के गुरू बने| उनकी पत्नी का नाम सुषुमा और पुत्री का नाम देवयानी था| देवयानी का विवाह चंद्रवंशी राजा ययाति के साथ हुआ पर उसके शर्मिष्ठा से पति-पत्नी सम्बन्ध हो जाने से शुक्र ने शाप द्वारा उसे जराग्रस्त कर दिया| हरिवंश पुराण की कथा है कि शुक्र ने शिव के पास जाकर पूछा कि असुरों की देवों से रक्षा और ईश्वर विजय का क्या उपाय है| उन्होंने हजारों वर्षों तक तप किया| इसी बीच देवों और दैत्यों में युद्ध छिड़ गया और विष्णु ने शुक्र की माता को मार डाला| इस पर शुक्र ने विष्णु को शाप दिया कि वे पृथ्वीं पर सात बार मनुष्य रूप में जन्म लें| शुक्र ने अपनी माता को फिर से जीवित कर लिया क्योंकि वे संजीवनी विद्या के ज्ञाता थे| यह विद्या उन्होंने देवयानी के माध्यम से यच को सिखायी थी| शिव के वरदान के लिए उन्होंने हजारों वर्षों से भी अधिक वर्षों तक तप किया| इंद्र ने तप को भंग करने के लिए अपनी पुत्री जयंती को उनके पास भेजा, लेकिन शुक्र ने अपना जप पूर्ण किया और फिर जयंती को ब्याहा| शुक्र का और एक नाम उशना या उशनस् भी है| शुक्र का राजनीतिक ज्ञान इतना मान्य है कि अनेक ग्रंथो में उनके मतों की चर्चा होती है| शुक्रनीति नामक विशिष्ट ग्रन्थ के तो वे रचयिता माने जाते हैं, यद्यपि उसके अनेक अंश १५वीं सदी में लिखे गए हैं| एक किवदंती प्रसिद्ध है कि वामन वेष धरकर विष्णु (वामन) जब दैत्यराज बलि को छलने गए, उस समय राजा बलि दान का संकल्प न कर पायें| इस अभीष्ट से वे जल की झारी (गंगासागर) की टोंटी के छिद्र में घुस गए थे| विष्णु (वामन) ने उन्हें पहचान लिया और झारी के छेद में कुश डाल दिया जिस कारण उसमे छिपे शुक्र की एक आँख नष्ट हो गयी, तभी से वे काने हैं|
· वर्ण-चितकबरा सफेद
· स्वरुप-तेजस्वी घुंगराले श्याम केश युक्त
· गुण-रज
· स्वाद-खट्टा
· धातु-चाँदी
· जाति-ब्राम्हण
· वार-शुक्रवार
· समिधा-गूलर की लकड़ी
· ऋतु-बसन्त
· शरीर में प्रभाव-जननांगों पर अर्थात् शिश्न से वृषण तक
· उपरत्न-ओपल,स्फटिक,सफ़ेद जिरकान
· संज्ञा-शुभ
· क्रीड़ास्थल-शयनकक्ष
· अवस्था-युवा किशोर
· लिंग-स्त्री
· आकृति-खण्ड
· तत्व-जल
· स्वभाव-लघु व मृदु
· प्रकृति-कफ
· गोत्र-भार्गव
· वाहन-अश्व
· राज्याधिकार-गुप्त मंत्री या प्रधान नायिका
· कद-ह्रस्व (छोटा)
· रत्न-हीरा
· निसर्गबल-चन्द्र से कम बली
· पराभव-चन्द्र से पराजित
· बली-सायंकाल में
· स्थान-जलभूमि
· रूचि-ललित कलाएँ
· भाग्योदय-२५ से २८ वर्ष तक
· शुभाशुभ-शुभ
· दानपदार्थ-छींट के वस्त्र, श्वेत अश्व, सवत्सा गो, चाँदी, सोना, चावल, सुगन्धित पद
· देश-भोजकट
· देवता-देवी, इन्द्राणी
· स्वामी-वृष व तुला राशि का
· रोग-कफ व वात विकार, वीर्य विकार, गुप्त रोग, प्रमेह, मधुमेह धातुक्षय, उदारविकार, मूत्ररोग एवं नेत्ररोग आदि
· दिशा-आग्नेय पूर्व
· शुष्कता-अम्लीय
· राशि भोगावधि-एक मास
· दोष शमन-राहु, बुध, शनि और मंगल
· जड़ी-सरपंखा मूल
· दान का समय-सूर्योदय काल
· मंडल-षटकोण
· भाग-शीर्ष
· विचारणीय विषय-स्त्री, वाहन, आभूषण, व्यापार एवं सुख
· विद्या-चित्रकला, ललितकलाएँ, शिल्प, पेंटिंग, चिकित्साशास्त्र आदि
· दीप्तांश-7 अंश
· दृष्टि-कटाक्ष
· शरीर में कारक-वीर्य व ओज
· कालसमय-पक्ष
[ ।।पूजा से जुड़ी हुईं अति महत्वपूर्ण बातें।।

★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।

★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।

★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

★ जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।

★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

★ संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।

★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।

★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,

★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

★ देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

★ किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

★ एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

★ बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

★ शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

★ शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंुकुम नहीं चढ़ती।

★ शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

★ अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावंे।

★ नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

★ विष्णु भगवान को चावल गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।

★ पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।

★ किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।

पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें

★ सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।

★ गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं।

★ पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।

★ दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।

सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिएआ

पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें

पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें

घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें
बनवारी लाल एंड कंपनी सबलगढ़

आप सभी को निवेदन है अगर हो सके तो और लोगों को भी आप इन महत्वपूर्ण बातों से अवगत करा सकते हैं
[कृपया ध्यान दे सभी बंधु,,🙏

मनुष्य को जीवन मे पांच ऋण चुकाने होते हैं:-

  1. माता का ऋण
  2. पिता का ऋण
  3. गुरु का ऋण
  4. घरती का ऋण
  5. धर्म का ऋण

इन ऋणो को चुकाने के निम्न उपाय कहे गए हैं।

  1. माता का ऋण चुकाने के लिये कन्या दान करना चाहिए।
  2. पिता का ऋण चुकाने के लिए संतान उत्पति करनी चाहिए।
  3. गुरु ऋण चुकाने के लिए लोगों को शिक्षित,जागरूक करना चाहिए।
  4. घरती का ऋण चुकाने के लिए कृषि करें या पेड पौधें लगाएं।
  5. धर्म का ऋण चुकाने के लिये धर्म का प्रचार-प्रसार करें।

“मन” का झुकना बहुत ज़रूरी है…तभी यह सभी सम्भव है….

जय जय श्री राम,,,🙏🙏
[💠❤💠❤💠❤


आपकी खूबसूरती ओर स्वास्थ्य का रखते है ख्याल
❤💠❤💠❤💠❤

इन कामो के बाद तुरंत पानी नही पिए

पानी शरीर का सार है, हमारे शरीर का 75 % पानी ही है, हमको दिन भर में कम से कम 8-१० गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए, मगर कुछ घड़ियाँ ऐसी होती हैं जिनमे पानी पीना अनेक रोगों को आकर्षित करता है, ऐसे में इसका पूरा ख्याल रखें. आइये जाने…

बिलकुल सोते हुए
शौच के आते ही
लघुशंका (मूत्र) करते ही
दूध के पीते ही
चाय पीते ही
चाट खाते ही
चना खाते ही
भोजन करते ही
चलकर थके हुए हों तो
पसीने में आते ही
मेहनत करके निबटते हुए
भूखे पेट व्रत खोलते ही
उपरोक्त परिस्थितियों में अचानक से पानी नहीं पीना चाहिए। जैसे ही शरीर का तापमान सामान्य हो तब ही जल ग्रहण करें। अन्यथा शारीर और पानी का तापमान भिन्न होने के कारण शारीर रोगों कि चपेट में आ सकता है।

भोजन के तत्काल बाद गले में खुश्की जैसा लगता है, उससे विचलित होने के बजाये उसे सहन करने कि आदत डालनी चाहिए, जो लोग भोजन के तत्काल बाद पानी पीते हैं, वे लगभग एक घंटे तक सब्र रखें।

Health Benefit of Drinking Water Early in morning.

वैसे तो सुबह उठ कर ताम्बे के बर्तन में रखे हुए पानी के अनगिनत लाभ है, छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बीमारी के लिए ये रामबाण सिद्ध हो सकता हैं। आज हम आपको ऐसी ही कुछ लाभ बताते हैं। कई सारी बीमारियां हमारे पेट से ही जन्‍म लेती हैं इसलिए पेट को दुरुस्‍त रखना बहुत जरूरी है, तो क्‍यों न इसकी शुरूआत सुबह होने के बाद करें और उठने के तुरंत बाद खाली पेट पानी पियें और स्‍वस्‍थ रहें।

तो आइये जाने जागने के तुरंत बाद क्यों पियें पानी

1:- सुबह खाली पेट पानी पीना है फायदेमंद

क्‍या आपको मालूम है कि अगर आप सुबह के समय उठते ही रोजाना खाली पेट पानी पियेंगे तो आपकी कितनी बीमारियां दूर हो सकती हैं? कई सारी बीमारियां हमारे पेट से ही जन्‍म लेती हैं और अगर आप खाली पेट पानी पियेगें तो आप इस खतरे को काबू में करने का पहला कदम उठाएंगे। आइये जानते हैं कि सुबह खाली पेट पानी पीने से हमारे शरीर को कौन-कौन से लाभ पहुंचते हैं।

2:- पेट साफ रहता है

जब आप बहुत सारा पानी पीते हैं तो आपको अपने आप ही टॉयलेट जाने की इच्‍छा होने लगती है। अगर ऐसा रोजाना करेगें तब आपके पेट का सिस्‍टम गंदगी को बाहर निकालने लगेगा और आपका पेट साफ हो जाएगा। जिन लोगों को कब्ज़ की शिकायत रहती है उनके लिए ये नुस्खा बेहद कारगर साबित होता है।

3:- शरीर से गंदगी बाहर निकाले

सुबह सुबह उठकर खाली पेट पानी पीने से आपके पेट के अंदर की हर प्रकार की गंदगी बाहर निकल जाती है। पानी शरीर से हर प्रकार की गंदगी को बाहर निकाल देता है। जब आप खाली पेट अधिक पानी पी कर पेशाब करते हैं, तब आपका शरीर गंदगी से छुटकारा पा लेता है और साथ ही, आपको ताजगी का एहसास होता है।

4:- भूख बढ़ती है

जब सुबह पेट साफ नहीं हो पाता तो भूख भी नहीं लगती। ऐसे में आपके शरीर को जरूरी पोषण नहीं मिल पाता। अगर आप सुबह उठते ही पानी पीते हैं तो आपका पेट साफ हो जाता है और इस प्रकार से आपको भूख लगती है। फिर आपका सुबह का नाश्ता अच्‍छा होता है।

5:- सिरदर्द से छुटकारा

अक्सर लोगों को नींद पूरी करने के बावजूद सुबह सिर दर्द महसूस होता है। हममें से काफी लोगों को ये बात नहीं मालूम होती कि कई बार हमारे शरीर के अंदर पानी की कमी ही वजह से सिर में दर्द शुरु हो जाता है। अगर आपको भी ऐसी समस्या का सामना करना पड़ता है तो कोशिश करें कि सुबह खाली पेट बहुत सारा पानी पियें।

6:- बढ़ाए मेटाबॉलिज्‍म

पानी पीने से मेटोबॉलिज्म को भी मजबूती मिलती है। सुबह सुबह खाली पेट पानी पीने से आपके शरीर का मेटाबॉलिज्‍म 24 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। इसका मतलब है कि आप खाने को जल्‍द पचा सकेगें। जब खाना ठीक से पच जाता है तो शरीर अन्य समस्याओं से भी बच जाता है।

7:- खून बढ़ता है

सुबह सुबह खाली पेट पानी पीना आपका खून भी बढ़ाता है। दरअसल, खाली पेट पानी पीने से रेड ब्‍लड सेल्‍स जल्‍दी जल्‍दी बढ़ने लगते हैं। इसलिए अगर आपको खून की कमी है तो आप इसकी आदत जरूर डाल लें।

8:- वजन घटता है

अगर आप ओवर वेट हैं, और वजन घटाना चाहते हैं तो सुबह खाली पेट पानी पीना आपकी मदद कर सकता है। सुबह खाली पेट पानी पीने से शरीर से खराब ट्रांसफैट बाहार निकल कर शरीर का फैट मैटोबॉलिज्‍म बढ़ाता है। इस वजह से आपको वजन घटाने में आसानी होती है।

9:- त्वचा पर चमक आती है
जब आप सुबह उठते ही सबसे पहले पानी पियेंगे, तो आपकी त्वचा चमकने लगेगी। इस आदत से चेहरे पर निकलने वाले कील-मुंहासे पानी पीने से साफ हो जाएंगे। दरअसल, चेहरे की चमक का पेट के स्वास्थ्य से गहरा संबंध होता है। जब पेट ठीक रहेगा तो आपकी त्वचा स्वस्थ्य रहेगी।

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आपकी खूबसूरती ओर स्वास्थ्य का रखते है ख्याल
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: बीमार पड़ने के पहले , ये काम केवल आयुर्वेद ही कर सकता है. —-
1–केंसर होने का भय लगता हो तो रोज़ाना कढ़ीपत्ते का रस पीते रहें.
2– हार्टअटेक का भय लगता हो तो रोज़ना अर्जुनासव या अर्जुनारिष्ट पीते रहिए.
3– बबासीर होने की सम्भावना लगती हो तो पथरचटे के हरे पत्ते रोजाना सबेरे चबा कर खाएँ .
4– किडनी फेल होने का डर हो तो हरे धनिये का रस प्रात: खाली पेट पिएँ.
5– पित्त की शिकायत का भय हो तो रोज़ाना सुबह शाम आंवले का रस पिएँ.
6– सर्दी – जुकाम की सम्भावना हो तो नियमित कुछ दिन गुनगुने पानी में थोड़ा सा हल्दी चूर्ण डालकर पिएँ.
7– गंजा होने का भय हो तो बड़ की जटाएँ कुचल कर नारियल के तेल में उबाल कर छान कर,रोज़ाना स्नान के पहले उस तेल की मालिश करें.
8– दाँत गिरने से बचाने हों तो फ्रिज और कूलर का पानी पीना बंद कर दें .
9– डायबिटीज से बचाव के लिए तनावमुक्त रहें, व्यायाम करें, रात को जल्दी सो जाएँ, चीनी नहीं खाएँ , गुड़ खाएँ.
10–किसी चिन्ता या डर के कारण नींद नहीं आती हो तो रोज़ाना भोजन के दो घन्टे पूर्व 20 या 25 मि. ली. अश्वगन्धारिष्ट ,200 मि. ली. पानी में मिला कर पिएँ .
किसी बीमारी का भय नहीं हो तो भी — 15 मिनिट अनुलोम – विलोम, 15 मिनिट कपालभाती, 12 बार सूर्य नमस्कार करें.
स्वयं के स्वास्थ्य के लिए इतना तो करें .
🌷कफ़ रोग का इलाज

🌷50 ग्राम शहद (honey), 50 ग्राम लहसुन (garlic), 1 ग्राम तुलसी के बीज पीस कर उसमें डाल दो, चटनी बन गयी थोड़ा-थोड़ा बच्चे को चटाओ हृदय भी मजबूत हो जायेगा, कफ़ भी नाश हो जायेगा

: अपने क़र्ज़ या लोन को कैसे चुकाएँ और अपने आमदनी को कैसे बढ़ाएं ?

दोस्तों , जन्मकुंडली में 12 भाव होते हैं जिसमें 6 वा भाव क़र्ज़ का , 8 वां भाव बदनामी का और 12 वां भाव नुकसान का होता है। ज़ाहिर है जब आप क़र्ज़ नही चुकाएंगे तो देने वाला व्यक्ति बेइज़ती करेगा , और आपका बिज़नेस में नुकसान होगा तभी आप क़र्ज़ नही चूका पाएंगे।
यानि क़र्ज़ या लोन अपने साथ बदनामी और नुकसान भी साथ लाएगा।
अब सवाल ये है की ये 6,8,12 भाव की तीव्रता को कम कैसे किया जाए,

सबसे पहले हमें देखना होगा कि 6,8,12 भाव के स्वामियों की क्या स्थिति है? यदि ये खराब हैं तो इनके स्वामी ग्रह का मंत्र करना होगा और यदि ये अच्छे हुए तो इनके स्वामी ग्रह का रत्न पहनना होगा और साथ ही 11 वां भाव जो की इनकम का होता है उसको भी बलवान करना होगा ।
इतना करने से आपकी आमदनी बढ़ेगी और लोन धीरे धीरे कम होगा।
क़र्ज़ लेने की इच्छा ही नहीं होगी नहीं तो एक क़र्ज़ को चुकाने के लिए आप दूसरा क़र्ज़ लेने लगेंगे ।
[01/07, 20:04] Daddy: भोजन के बाद सौंफ खाने के बेहतरीन फायदे और जबरदस्त नुस्खे

1 भोजन के बाद रोजाना 30 मिनट बाद सौंफ लेने से कॉलेस्ट्रोल काबू में रहता है।
2 पांच-छे ग्राम सौंफ लेने से लीवर और आंखों की रोशनी ठीक रहती है। अपच संबंधी विकारों में सौंफ बेहद उपयोगी है। बिना तेल के तवे पर सिकी हुई सौंफ और बिना तली सौंफ के मिक्चर से अपच होने पर बहुत लाभ होता है।
3 दो कप पानी में उबली हुई एक चम्मच सौंफ को दो या तीन बार लेने से अपच और कफ की समस्या समाप्त होने में मदद मिलती है।
4 अस्थमा और खांसी के उपचार में भी सौंफ का सेवन सहायक है।
5 कफ और खांसी होने पर भी सौंफ खाना फायदेमंद होता है।
6 गुड़ के साथ सौंफ खाने से मासिक धर्म नियमित होने लगते है।
7 यह शिशुओं के पेट और उनके पेट के अफारे को दूर करने में बहुत उपयोगी है।
8 एक चम्मच सौंफ को एक कप पानी में उबलने दें और 20 मिनट तक इसे ठंडा होने दें। इससे शिशु के कॉलिक का उपचार होने में मदद मिलती है। शिशु को एक या दो चम्मच से ज्यादा यह घोल नहीं देना चाहिए।
9 सौंफ के पावडर को शकर के साथ बराबर मिलाकर लेने से हाथों और पैरों की जलन दूर होती है। भोजन के बाद 10 ग्राम सौंफ लेनी चाहिए। 

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