🌺उपदंश (सिफलिस) क्या है :
🍂स्त्रियों को इस रोग में भग के ओष्ठों पर घाव बन जाता है, जो 3-4 सप्ताह तक रहता है। यह भी सुजाक की ही भाँति एक संक्रामक रोग है । इस रोग के दो प्रकार होते हैं- 1. हार्ड शेन्कर 2. साफ्ट शेन्कर । इसका कारण भी एक विशेष प्रकार का कीटाणु है ।
यदि यह रोग माता-पिता के कारण वंशानुगत क्रम से संतान को हो जाये तो इसको ‘प्राइमरी सिफलिस’ कहते हैं तथा यह रोग स्त्री से पुरुष को या पुरुष से स्त्री को मैथुन द्वारा हो जाये तो उसको ‘सेकेन्ड्री सिफलिस’ कहते हैं।
🌹यदि माता पिता दोनों या किसी एक को यह रोग हो तो अनेक वीर्य द्वारा गर्भस्थ बच्चे को यह रोग हो जाता है। माता पिता के रक्त से इस रोग के कीटाणु आँवल द्वारा भ्रूण (बच्चे) में चले जाते हैं ।
🌹यदि यह रोग पति या पत्नी को हो तो मैथुन द्वारा एक से दूसरे को लग जाता है। ऐसी परिस्थिति में घाव सबसे पहले स्त्री या पुरुष जननेन्द्रिय पर होता है। यदि बच्चे को पैत्रिक उपदंश हो तो दूध पिलाने स्त्री को भी यह रोग अपनी चपेट में ले लेता है।
🍁स्त्री उपदंश (सिफलिस) के कारण :
🌹उपदंश के रोगी से बहुत अधिक मिलने-जुलने, उसको चूमने-चाटने, उसके कपड़े पहनने, उसके बिस्तर पर लेटने तथा कई बार डाक्टरी यन्त्रों (जिन्हें किसी उपदंश रोगी पर प्रयोग किया जा चुका हो और यन्त्रों को भली प्रकार संक्रमण रहित न किया गया हो) को स्त्री की जननेन्द्रिय में प्रवेश कर देने से यह रोग हो जाता है। उपदंश के रोगी को खन या पीव यदि किसी स्वस्थ मनुष्य के शरीर में चला जाये तो उसको भी यह रोग हो जाता है।
🍁स्त्री उपदंश (सिफलिस) के लक्षण :
- 🌺साफ्ट शेंकर :
जब उपदंश का संक्रमण पीड़ित स्थान की श्लैष्मिक कला पर प्रभावी होता है तो वह स्थान छिल जाता है तथा 24 घन्टे के अन्दर वहाँ लाली हो जाती है। दूसरे या तीसरे दिन वहाँ फुन्सी निकल आती हैं। जिनकी नोंक काली होती है और उसके चारों ओर लाली के साथ नीलापन दिखलाई पड़ता है और अक्सर पाँचवे दिन फुन्सी फट जाती है। उसमें से कुछ तरल सा निकलकर गहरा घाव बन जाता है । जिसमें सख्त दर्द होता है तथा बहुत अधिक मात्रा में पीव निकलता है । इस घाव का रंग मटियाला और इसके किनारे साफ एवं जड़ कुछ कठोर होती है। प्रायः जाँघों की ग्रन्थियां सूजकर पक जाती हैं। अक्सर यह घाव भग के ओष्ठों और योनि की श्लैष्मिक-कला में होते हैं और कभी-कभी गर्भाशय के मुँह तक हो जाते हैं। इसका समय 3 सप्ताह से 2 मास तक का होता है। इस रोग का संक्रमण रक्त में प्रवेश नहीं करता है । इसलिए इसे स्थानीय संक्रमण कहा जाता है।
2.🌺 हार्ड शेंकर :
जिस समय इस प्रकार के उपदंश की छूत मनुष्य के शरीर में प्रवेश करती है तो तुरन्त ही इसके लक्षण प्रकट नहीं होते हैं बल्कि यह संक्रमण अन्दर ही अन्दर अपना विष फैलाता है तथा 10 से 60 दिनों के अन्दर लक्षण प्रकट होने लग जाते हैं। हार्ड शेन्कर उपदंश को लक्षणों के आधार पर 3 श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है।
(अ🥀) इसमें प्राय: भग के ओष्ठों या योनि के बाहरी भाग में एक लाल रंग का सख्त उभार उत्पन्न होकर फुन्सी का रूप ग्रहण करती है, जो कुछ ही दिनों में फूट जाती है और इसके चारों ओर एक घेरा उत्पन्न हो जाता है । इस घाव से कभी-कभी पतला स्राव और पीव निकलती रहती है और कई बार यह घाव बिल्कुल खुश्क भी हो जाता है। यह घाव अधिक गहरा नहीं होता है और न इसमें अधिक दर्द ही होता है । अक्सर यह घाव 6 माह के अन्दर स्वयं ही ठीक हो जाता है । परन्तु यह दुबारा भी निकल आता है।
(ब)🌺 प्रथम श्रेणी के समाप्त होने के लगभग डेढ़ या दो माह के बाद रोगिणी स्वयं को स्वस्थ अनुभव करती है, किन्तु उपदंश अन्दर ही अन्दर अपने पैर मजबूती से जमाकर फैलता चला जाता है । फलस्वरूप रोगिणी के रक्त और शरीर के प्रत्येक तन्तु में फैल जाता है। जिसके कारण रक्तविकार के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं । शरीर के विभिन्न स्थानों (अंगों) पर फुन्सियाँ और दाने निकल आते हैं। जिनमें बारीक-बारीक छिलके उतरने लगते हैं। अक्सर बड़े-बड़े छाले निकला करते हैं। जिनमें पीव या पानी भरा रहता है। कभी-कभी चर्म पर छोटी-छोटी गाँठें भी हो जाया करती हैं। इस प्रकार इस अवस्था में रोगिणी दिन प्रतिदिन कमजोर होती चली जाती है । उसे अनिन्द्रा हो जाती है । भूख भी कम लगती है। बेचैनी, गले की टॉन्सिल सूज जाना और बाद में पककर घाव बन जाना तथा उन घावों का रंग मटियाला होना और किनारे उभरे हुए होना इत्यादि लक्षण दिखलाई पड़ते हैं । इन लक्षणों के अतिरिक्त शरीर के दूसरे अंगों की ग्रन्थियाँ थी सूज जाती हैं। आँखों की भवों के बाल तथा सिर के बाल झड़ने लग जाते हैं । आँखों की पुतलियाँ भी धुंधली हो जाती हैं और आँखों के अन्य भाग सूज जाते हैं ।
(🌼परन्तु यह आवश्यक भी नहीं है कि उपरोक्त समस्त लक्षणे प्रत्येक रोगी स्त्री में पाये जायें) यह अवस्था रोगिणी में कुछ सप्ताहों से लेकर दो वर्ष तक रह सकती है।
(स) 🥀जब उक्त दूसरी, श्रेणी समाप्त हो जाती है, उसके कुछ माह अथवा कई वर्ष बाद तीसरी, श्रेणी आरम्भ हो जाती है । इस खाली काल में अक्सर स्त्री की जीभ तथा उसके हाथों में कुछ जलन सी महसूस हुआ करती है । इस तीसरी श्रेणी की अवस्था में शरीर में शोथ आने लगती है और चर्म की रक्त वाहिनियाँ फट जाती हैं । फलस्वरूप शरीर के विभिन्न अंगों और स्थानों पर घाव हो जाते हैं । सम्पूर्ण शरीर में हर समय हल्का-हल्का दर्द होता रहता है। लम्बी हड्डियाँ मध्य में जुड़ जाती हैं और उनके सिरे मोटे हो जाते हैं, तालु में छेद हो जाते हैं। नाक बैठ जाती है, आवाज साफ नहीं निकलती है और इन परिस्थितियों से जूझती हुई रोगिणी अन्त में विभिन्न भयानक रोगों यथा पक्षाघात, सन्यास (ऐपोलैक्सी) इत्यादि रोगों से ग्रसित होकर असमय ही काल के गाल में समा जाती है ।
🌺स्त्री उपदंश (सिफलिस) के घरेलु इलाज🌸 / उपचार :
🥀इस रोग से ग्रस्त रोगी अथवा रोगिणी को काफी लम्बे समय तक रक्त शोधक औषधियों का प्रयोग करते रहना अति आवश्यक है। जब तक रक्त बिल्कुल ही उपदंश के कीटाणुओं से रहित न हो जाये, रक्त शोधक औषधियों का सेवन करना न छोड़े।
🌻आयुर्वेद में शास्त्रीय तथा रक्त शोधक औषधियों का असीम भन्डार है।
(1) सिरस –🌺 सिरस की छाल को पानी में घिसकर रसौत मिलाकर घावों पर लेप करने से उपदंश के घाव मिट जाते हैं।
(2) तसतुम्बे – 🌻तसतुम्बे की जड़ को उसके पाँच गुने पानी में उबालें, जब तीन गुना पानी रह जाय, तब उसमें उतनी ही मात्रा में शक्कर मिलाकर पीने से उपदंश एवं वातज-पीड़ा में लाभ होता है।
(3) सुपाड़ी🌺 – सुपाड़ी का चूर्ण डालने (बुरकने) से उपदंश के घाव मिटते है।
(4) बड़ –🌻 बड़ के पत्तों की भस्म पान में डालकर खाने से उपदंश-रोग में लाभ होता है
(5) बबूल –🌼 बबूल के फूलों को रात को ठण्डे पानी में भिगो दें। सुबह इसे मसल-छानकर पीने से उपदंश मिट जाता है।
(6) तालमखाना 🌺– एक पैसेभर तालमखाना,एक पैसेभर बेदाना, डेढ़ पैसेभर चोबचीनी कूटकर ठण्डे पानी के साथ खाने से उपदंश में लाभ होता है। चार-पाँच दिन तक फीकी रोटी खाएं। घी, नमक और मिर्च का परहेज करें।
(7) त्रिफला 🍂– त्रिफला के काढ़े से उपदंश के घावों को धोकर ऊपर से त्रिफला की राख को शहद में मिलाकर लगाने से उपदंश के घाव भर जाते हैं।
(8) नीम🌻 – एक तोला नीम के पत्ते पानी के साथ पीसकर उसमें 3 माशा अजवायन मिलाकर पीने से उपदंश मिट जाता है।
(9🥀) एक तोला नीम के पत्ते बकरी के दूध की लस्सी के साथ लेने से उपदंश मिटता है।
(10) बीसानी 🌻– बीसानी के पत्ते पीसकर मिश्री मिलाकर पीने से पुराना उपदंश भी ठीक हो जाता है।
(11) चमेली 🍂– चमेली के ताजे पत्तों का रस, गाय का घी और राल दो-दो तोला मिलाकर पीने से हर तरह का उपदंश मिट जाता है।
(12) अरणी 🍁– छोटी अरणी के पत्ते का रस सवा तोला दिन में दो बार पीने से पुराना उपदंश मिट जाता है।
(14)अनार 🍁– अनार के 100 ग्राम ताजे पत्ते कुचल कर एक किलो पानी में उबालें, जब आधा किलो रह जाय, तब छानकर दो-तीन बार जख्मों पर लगाना चाहिए।
(15) चोबचीनी 🌻– उपदंश का विष यदि अधिक फैल गया हो तो चोबचीनी का क्वाथ, या फाँट शहद मिलाकर पिलाना चाहिए।
(16) चिरचिटा –🌻 अजाझाडे (चिरचिटा की धूनी देने से उपदंश के घाव मिट जाते है ।
(17)बबूल🌳 – बबूल की छाल के हिम या क्वाथ से कुल्ला करने से उपदं🌻श का मुखपाक मिट जाता है।
(18) बेर –🌺 बेर और बबूल की जड़ का हिम, फाँट अथवा क्वाथ में से किसी भी एक चीज से कुल्ला करने से उपदंश का मुखपाक मिट जाता है।
(19) अनार 🌼– अनार की छाल का चूर्ण बुरकने से उपदंश के घावों में लाभ होता है।
(20) ताड़ 🌻– ताड़ के हरे पत्तों का रस पीने से सूजन और घाव मिट जाते हैं।
(21) रसकपूर 🌻– सवा पाव चूने के पानी में 15 रत्ती रसकपूर मिलाकर उपदंश की फुन्सियों पर लगाने से उनमें लाभ होता है।
(22) दूब 🌻– उपदंश के दाग मिटाने के लिए दूब की जड़ का क्वाथ पिलाना चाहिए। (23)🌻 आक की जड़ की छाल का चूर्ण देने से उपदंश के घाव मिट जाते हैं।
(23) मदार –🍁 मदार की जड़ 20 माशा तथा 10 माशा कालीमिर्च को कूटकर गुड़ मिलाकर ज्वार के बराबर गोली बना लें। सुबह-शाम एक-एक गोली खाने से उपदंश मिट जाता हैं। खटाई का परहेज रखें।
(24) अनार –🌼 अनार के पत्ते छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। इस 1-1 तोला चूर्ण को सुबह-शाम पानी के साथ खाने से उपदंश में लाभ होता है।
(25) चोबचीनी🍂 – चोबचीनी के शीत-निर्यास में शहद मिलाकर पीने से उपदंश मिट जाता है।
(26) सत्यानाशी –🍁 एक माशा सत्यानाशी की जड़ की छाल ढाई तोला मक्खन के साथ सुबह-शाम लेने से उपदंश में लाभ होता है।
(27) चिरायता 🥀– अमलतास, नीम, हरड़, बहेड़ा, आँवला तथा चिरायता के क्वाथ में खैरसार और विजयसार मिलाकर पीने से हर प्रकार के उपदंश रोग मिट जाते हैं।
(28)🌼 गिलोय – गिलोय के काढ़े में एक या दो तोला अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से उपदंश-रोग में लाभ होता है। इसके सेवन से खून साफ होता हैं और गठिया-रोग भी मिट जाता है।
कुछ अन्य आयुर्वेदिक उपचार :🌼
1🥀-रस कपूर, केसर, चन्दन, लोग, जावित्री, खाँड, (प्रत्येक समभाग) लेकर पीसकर खसखस के क्वाथ में खरल करके खुश्क कर लें तथा सुरक्षित रख लें। इसे आधा से 2 रत्ती तक की मात्रा में दिन में 3 बार खिलाते रहने से उपदंश तथा इससे उत्पन्न समस्त विकार कष्ट हो जाते हैं ।
2- 🌻फिटकरी सफेद 10 तोला, मकोय के हरे पत्ते 10 तोला लें । दोनों को पीसकर गोला सा बनाकर उसके मध्य में एक तोला संखिया रखकर दो प्यालों में बन्द करके यथाविधि 5 सेर उपलों की आग लगायें। प्याले ठन्डे हो जाने पर संखिया-भस्म और फिटकरी अलग-अलग कर लें । संखिया-भस्म 2 से 4 चावल की मात्रा में खाली कैपसूल में भरकर खिलायें । यह औषधि उपदंश में अत्यन्त ही लाभप्रद है। यदि इस रोग से रोगी के ताल में घाव भी हो गये हों तथा रोगी की हालत बहुत ही खराब हो गई हो तब भी उसको आराम जा जाता है ।
3🌻-शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक 1-1 तोला लें। दोनों को 3-4 घन्टे तक खूब खरल करके पारा की चमक नष्ट करके कज्जली बनालें, तब इसमें शुद्ध जमालघोटा 2 तोला मिलाकर 6 घन्टे तक खरल करें । तदुपरान्त इसमें 1 तोला खूपरिया मिलाकर पुन: 6 घन्टे तक खरल करते रहें। फिर मिट्टी के नये प्यालों में दवा को डालकर खरल को पानी में धोकर इस पानी को भी दवा में ही मिला दें, (पानी इतना हो कि दवा से 2 उँगली ऊँचाई रहे), फिर उसको आग पर उतनी देर तक रखें कि काफी पानी खुश्क हो जाये । दवा थोड़ी सी गाढ़ी रहे । इसको 2 रत्ती की मात्रा में कैपसूल में डालकर निगलकर दूध की कच्ची लस्सी पीयें। यह रोग उपदंश की दूसरी तथा तीसरी श्रेणी के लिए अमृत-तुल्य है । इसके उपयोग से उपदंश का विष दस्तों और कै (वमन) के द्वारा तमाम शरीर से निकल जाता है।
नोट🌺-नाजुक स्वभाव तथा कमजोर रोगियों को यह योग प्रयोग न करायें ।
4-🌼नीम की छाल, कचनार की छाल, इन्द्रायण की जड़, बबूल की फलियां, कंटकारी की जड़, फल और पत्ते, पुराना गुड़ (प्रत्येक 5 तोला) लेकर उन्हें 8 गुने पानी में उबाल लें । इसकी 7 मात्रायें बना लें । प्रतिदिन प्रात:काल 1 मात्रा पिलायें तथा औषधि प्रयोग-काल में मूंग की दाल की खिचड़ी खाने को दें। यह उपदंश के विष को शरीर से निकाल देती है।
🥀(वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)