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🙏भोजन से सम्बंधित महत्वपूर्ण बातें । एक बार पूरा लेख पढ़ें, जीवन में कोई रोग नही होगा ।🙏
आयुर्वेद में भोजन 18 प्रकार से विरुद्ध बताये हैं :-

1.#देशविरुद्ध: सूखे या तीखे पदार्थों का सेवन सूखे स्थान पर करना अथवा दलदली जगह में चिकनाई -युक्त भोजन का सेवन करना. 2.#कालविरुद्ध: ठंड में सूखी और ठंडी वस्तुएँ खाना और गर्मी के दिनों में तीखी कशाय भोजन का सेवन.
3.#अग्निविरुद्ध: यदि जठराग्नि मध्यम हो और व्यक्ति गरिष्ठ भोजन खाए तो इसे अग्नि विरुद्ध आहार कहा जाता है. 4.#मात्राविरुद्ध: यदि घी और शहद बराबर मात्रा में लिया जाए तो ये हानिकारक होता है.
5.#सात्मयविरुद्ध: नमकीन भोजन खाने की प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्य को मीठा रसीले पदार्थ खाने पड़ें. 6.#दोषविरुद्ध: वो औषधि , भोजन का प्रयोग करना जो व्यक्ति के दोष के को बढ़ाने वाला हो और उनकी प्रकृति के विरुद्ध हो.
7.#संस्कारविरुद्ध: कई प्रकार के भोजन को अनुचित ढंग से पकाया जाए तो वह विषमई बन जाता है. दही अथवा शहद को अगर गर्म कर लिया जाए तो ये पुष्टि दायक होने की जगह घातक विषैले बन जाते हैं. 8.#कोष्ठविरुद्ध: जिस व्यक्ति को कोष्ठबद्धता हो, यदि उसे हल्का, थोड़ी मात्रा में और कम मल बनाने वाला भोजन दिया जाए या इसके विपरीत शिथिल गुदा वाले व्यक्ति को अधिक गरिष्ठ और ज़्यादा मल बनाने वाला भोजन देना कोष्ठ-विरुद्ध आहार है.
9.#वीर्यविरुद्ध: जिन चीज़ों की तासीर गर्म होती है उन्हें ठंडी तासीर की चीज़ों के साथ लेना. 10.#अवस्थाविरुद्ध: थकावट के बाद वात बढ़ने वाला भोजन लेना अवस्था विरुद्ध आहार है.
11.#क्रमविरुद्ध: यदि व्यक्ति भोजन का सेवन पेट सॉफ होने से पहले करे अथवा जब उसे भूख ना लगी हो अथवा जब अत्यधिक भूख लगने से भूख मर गई हो. 12.#परिहारविरुद्ध: जो चीज़ें व्यक्ति को वैद्य के अनुसार नही खानी चाहिए, उन्हें खाना-जैसे कि जिन लोगों को दूध ना पचता हो, वे दूध से निर्मित पदार्थों का सेवन करें.
13.#उपचारविरुद्ध: किसी विशिष्ट उपचार- विधि में अपथ्य (ना खाने योग्य) का सेवन करना. जैसे घी खाने के बाद ठंडी चीज़ें खाना (स्नेहन क्रिया में लिया गया घृत). 14.#पाकविरुद्ध: यदि भोजन पकाने वाली अग्नि बहुत कम ईंधन से बनाई जाए जिस से खाना अधपका रह जाए अथवा या कहीं कहीं से जल जाए.
15.#संयोगविरुद्ध: दूध के साथ अम्लीय पदार्थों का सेवन. हृदय विरुद्ध: जो भोजन रुचिकार ना लगे उसे खाना. 16.#समपदविरुद्ध: यदि अधिक विशुद्ध भोजन को खाया जाए तो यह समपाद विरुद्ध आहार है. इस प्रकार के भोजन से पौष्टिकता विलुप्त हो जाती है. शुद्धीकरण या रेफाइनिंग (refined or matured foods) करने की प्रक्रिया में पोशाक गुण भी निकल जाते हैं.
17.#विधिविरुद्ध: सार्वजनिक स्थान पर बैठकर भोजन खाना. 18.#ह्रदयविरुद्ध:ह्रदय (मन)को जो आहार पसन्द ना हो ऐसा भोजन करना.

■इस प्रकार के भोजन के सेवन से अनेक प्रकार के चर्म रोग, पेट में तकलीफ़, खून की कमी (अनेमिया), शरीर पर सफेद चकत्ते, पुंसत्व का नाश इस प्रकार के रोग हो जाते हैं.■

•दूध के साथ फल खाना.
•दूध के साथ खट्टे अम्लीय पदार्थ का सेवन.
•दूध के साथ नमक वाले पदार्थ भी नही खाने चाहिए.
•गेहूँ को तिल तेल में पकाना.
•दही, शहद अथवा मदिरा के बाद गर्म पदार्थों का सेवन.
•केले के साथ दही या लस्सी लेना.
•ताम्र चूड़ामणि (chicken) के साथ दही का सेवन.
•तांबे के बर्तन में घी रखना.
•मूली के साथ गुड़ खाना.
•मछली के साथ गुड़ लेना.
•तिल के साथ कांजी का सेवन.
•शहद को कभी भी पकाना नही चाहिए.
•चाय के बाद ठंडे पानी का सेवन करना.
•फल और सलाद के साथ दूध का सेवन करना.
•मछली के साथ दूध पीना.
•खाने के एकदम बाद चाय पीना (इससे शरीर में आइरन की कमी आ जाती है).
•उड़द की दाल के साथ दही या तुअर की दाल का सेवन करना. (दही-वड़े वास्तव में विरुद्धाहार हैं).
•सलाद का सेवन मुख्य भोजन के बाद करना. ऐसा करने से सलाद को पचाना शरीर के लिए मुश्किल हो जाता है और गॅस तथा एसिडिटी की समस्या उत्पन्न हो जाती है

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