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समाधि

ध्यान की उच्च अवस्था को समाधि कहते हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा योगी आदि सभी धर्मों में इसका महत्व बताया गया है। जब साधक ध्येय वस्तु के ध्यान मे पूरी तरह से डूब जाता है और उसे अपने अस्तित्व का ज्ञान नहीं रहता है तो उसे समाधि कहा जाता है। पतंजलि के योगसूत्र में समाधि को आठवाँ (अन्तिम) अवस्था बताया गया है।

समाधि समयातीत है जिसे मोक्ष कहा जाता है। इस मोक्ष को ही जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान और बौद्ध धर्म में निर्वाण कहा गया है। योग में इसे समाधि कहा गया है। इसके कई स्तर होते हैं। मोक्ष एक ऐसी दशा है जिसे मनोदशा नहीं कह सकते।

समाधि योग का सबसे अंतिम पड़ाव है। समाधि की प्राप्ति तब होती है, जब व्यक्ति सभी योग साधनाओं को करने के बाद मन को बाहरी वस्तुओं से हटाकर निरंतर ध्यान करते हुए ध्यान में लीन होने लगता है।

‘समाधि’ शब्द मूलरूप से ‘धा’ शब्द से लिया गया है, जिसके अर्थ होते हैं – रखना, स्थापित करना, प्रस्तुत करना, छोड़ देना या स्थित। इसी प्रकार ‘समाधि’ शब्द के अर्थ हैं – एक साथ जोड़ना, संजोना, संघ, समापन, एकाग्रता, ध्यान, या समझौता।

वैसे, आध्यात्मिक जीवन में ‘समाधि’ ध्यान की उस स्थिति को कहा जाता है जब ध्यान लगाने वाला व्यक्ति और ध्यान की जाने वाली चीज दोनों का आपस में विलय हो जाते हैं, एकाकार हो जाते हैं, उनमें कोई भेद नही रह जाता। फिर इस चरण में कोई विचार प्रक्रिया नहीं रह जाती।

इसे ध्यान की उच्चतम अवस्था माना जाता है। समाधि, शांत मन की सबसे अच्छी स्थिति है। इसके अतिरिक्त इसे एकाग्रता की भी सर्वोच्च अवस्था माना जाता है। इसके अंतर्गत किसी वस्तु पर ध्यान एकाग्र करने वाला व्यक्ति और वस्तु आखिरकार दोनों एक हो जाते हैं।

जो व्यक्ति समाधि को प्राप्त करता है उसे स्पर्श, रस, गंध, रूप एवं शब्द इन 5 विषयों की इच्छा नहीं रहती तथा उसे भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, मान-अपमान तथा सुख-दु:ख आदि किसी की अनुभूति नहीं होती। ऐसा व्यक्ति शक्ति संपन्न बनकर अमरत्व को प्राप्त कर लेता है। उसके जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।

मोक्ष या समाधि का अर्थ अणु-परमाणुओं से मुक्त साक्षीत्व पुरुष हो जाना। तटस्थ या स्थितप्रज्ञ अर्थात परम स्थिर, परम जाग्रत हो जाना। ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय का भेद मिट जाना। इसी में परम शक्तिशाली होने का ‘बोध’ छुपा है, जहाँ न भूख है न प्यास, न सुख, न दुख, न अंधकार न प्रकाश, न जन्म है, न मरण और न किसी का प्रभाव। हर तरह के बंधन से मुक्ति। परम स्वतंत्रता अतिमानव या सुपरमैन।

संपूर्ण समाधि का अर्थ है मोक्ष अर्थात प्राणी का जन्म और मरण के चक्र से छुटकर स्वयंभू और आत्मवान हो जाना है। समाधि चित्त की सूक्ष्म अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है।

समाधि की अवस्था में मन अन्य सभी वस्तुओं का संज्ञान खो देता है। समाधि का एक अर्थ यह भी है कि इस स्थिति में व्यक्ति तीनों सामान्य चेतनाओं – सोने, जागने और सपने देखने की अवस्थाओं से परे किसी चौथी अवस्था में चला जाता है।

समाधि की स्थिति में व्यक्ति का अहंकार पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। फिर मन एक ऐसे अस्तित्व में रहता है, एक ऐसी अवस्था में विलीन हो जाता है, जो ज्ञान और अहं से कहीं ऊपर है। इनसे कहीं परे है। जहां व्यक्ति स्वयं अपनी चेतना खो देता है।

समाधि, व्यक्ति को सामान्य से विशेष बना देती है। यह एक ऐसा परिवर्तन है जिसमें व्यक्ति प्रबुद्ध हो जाता है, उसे आत्मज्ञान हो जाता है। और फिर वो सदा – सदा के लिए जन्म-मृत्यु (आवागमन) की बेड़ियों के बंधन से मुक्त हो जाता है।

इसके अतिरिक्त समाधि में कारण, प्रभाव और तर्क के संकीर्ण क्षेत्रों का कोई स्थान नही रह जाता। समाधि में कुछ भी तार्किक नहीं है। इस स्थिति के अंतर्गत शरीर लगभग पूरी तरह से अपनी सभी सचेतन शारीरिक गतिविधियों को बंद कर देता है, फिर भी व्यक्ति मरता नहीं है।

यह एक विचारशून्य अवस्था है, जिससे लौटने के बाद व्यक्ति के विचार अपने आप में पूर्ण और निर्बाध होते हैं और उसके विचारों में स्पष्ट वैश्विक दृष्टि झलकती है। इस प्रकार से समाधि को ऐसी अवस्था के रूप में समझा जा सकता है जो तर्क, चेतना और विचारों से कहीं परे है।

स्वामी विवेकानंद जी द्वारा बताए गए चार योगों – क्रियायोग, कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग में से किसी एक के द्वारा समाधि की अवस्था प्राप्त की जा सकती है।

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