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सिद्धियों का सदुपयोग!!!!!

(आपको कोई भी पद की प्राप्ति पिछले जन्म के पुण्य कर्मो से मिलती है अगर आप उस पद पर रहकर उससे प्राप्त शक्ति का दुरुपयोग करते हो/ पद की गरिमा खोते है तो वह पद तब तक ही आपके पास रहेगा जब तक आपके पुण्य शेष है उसके बाद इसी जन्म अथवा अगले जन्मो में आप पद हीन / श्री हीन हो जाओगे। अतः भ्र्ष्टाचार / भेदभाव से दूर रहो)

एक व्यक्ति पशु -पक्षियों का व्यापार किया करता था। एक दिन उसे पता चला कि उसके गुरु को पशु-पक्षियों की बोली की समझ है। उसने सोचा कि यदि उसे भी यह विद्या मिल जाए तो वह उसके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। वह अपने गुरु के पास गया, उनकी खूब सेवा की और उनसे पशु-पक्षियों की बोली सिखाने का आग्रह किया। गुरु ने उसे यह विद्या सिखा दी। पर यह भी चेतावनी दी कि वह अधिक लोभ न करे और अपने फायदे के लिए किसी का नुकसान न करे।
घर लौटने पर उस व्यक्ति ने अपने दो कबूतरों को बात करते सुना कि उसके घोड़े को कोई अंदरूनी बीमारी हो गई है, वह एक-दो दिन में मर जाएगा। उस व्यक्ति ने तत्काल उसे अच्छे दाम पर बेच दिया। उसे पता चला कि वास्तव में एक-दो दिन के बाद घोड़ा मर गया। अब उसे यकीन हो गया कि पशु-पक्षी एक-दूसरे के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। एक दिन उसने अपने कुत्ते को कहते सुना कि उसकी सारी मुर्गियां किसी महामारी से मरने वाली हैं। उसने तुरंत सारी मु्र्गियां इकट्ठी कीं और बाजार में बेच आया। बाद में उसे पता चला कि शहर में किसी बीमारी से एक-एक करके सारी मुर्गियां मरती जा रही हैं। उसे प्रसन्नता हुई कि वह नुकसान से बच गया।
कुछ दिनों के बाद उसने अपनी बिल्ली को कहते सुना कि उनका मालिक कुछ ही दिनों का मेहमान है। उसे इस पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन जब उसके गधे ने भी यही बात दोहराई तो वह घबरा गया। वह भागा हुआ अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला, ‘गुरुदेव मेरा अंत समय निकट है। कृपया मुझे अंतिम घड़ी में स्मरण योग्य कोई काम बताएं, जिससे मेरी मुक्ति हो जाए।’
उसके गुरु ने कहा, ‘अगर तुम मरने वाले हो तो जाओ अपने आप को भी किसी को बेच दो। …अरे मूर्ख, सिद्धियां न किसी की हुई हैं और न हो सकती हैं। इसीलिए मैंने कहा था कि अपने लाभ और किसी के नुकसान के लिए इसका प्रयोग मत करना
परामर्श ,,,,,,, ईश्वर ने अगर आपको धन , सत्ता एवं शारीरिक बल दिया है तो यह बहुत बड़ी सिद्धियां है ! इनका दुरुपयोग करने पर ये सारी सिद्धियां आपको अगले जन्मों में छोड़कर चली जाती है जिसका ज्ञान मानव को इस जन्म में नहीं हो पाता है ! अतः न्यायाधीश को न्याय कर्म , चिकित्सक को बिना लालच के इलाज , विधायकों को सही कानून बनाना , व्यापारी को गुणकारी चीजों का व्यापर ही करना चाहिए ! ” प्राणी जगत की सेवा ईश्वर सेवा है ” सच्चे आदमी के साथ सिद्धियां हमेशा बनी रहती है !
सत्कर्म करते रहना ही सही अर्थों में,,, जीवन से प्रेम,, है !
सुप्रभात ,,,,आपका दिवस मंगलमय हो !
मंगलकामना : प्रभु आपके जीवन से अन्धकार (अज्ञान )को मिटायें एवं प्रकाश (ज्ञान )से भर दें!
आध्यात्मिक जीवन ,,,,,,
आत्मा के कल्याण की अनेक साधनायें हैं। सभी का अपना-अपना महत्त्व है और उनके परिणाम भी अलग-अलग हैं।
‘स्वाध्याय’ से ,,,,सन्मार्ग,,,,,, की जानकारी होती है।
‘सत्संग’ से ,,,,,,स्वभाव और संस्कार,,,,, बनते हैं। कथा सुनने से सद्भावनाएँ जाग्रत होती हैं।
‘तीर्थयात्रा’ से ,,,,,,,भावांकुर,,,,,, पुष्ट होते हैं।
‘कीर्तन’ से ,,,,,,,तन्मयता,,,,,, का अभ्यास होता है।
दान-पुण्य से ,,,,,,सुख-सौभाग्यों,,,,,, की वृद्धि होती है।
‘पूजा-अर्चना से ,,,,,,आस्तिकता,,,,,,, बढ़ती है।
इस प्रकार यह सभी साधन ऋषियों ने बहुत सोच-समझकर प्रचलित किये हैं। पर ,,,,,,,,,,,,,,,,‘तप’ (परिश्रम ),,,,,,,,,,,,, का महत्त्व इन सबसे अधिक है। तप की अग्नि में पड़कर ही आत्मा के मल विक्षेप और पाप-ताप जलते हैं। तप के द्वारा ही आत्मा में वह प्रचण्ड बल पैदा होता है, जिसके द्वारा सांसारिक तथा आत्मिक जीवन की समस्याएँ हल होती हैं। तप की सामर्थ्य से ही नाना प्रकार की सूक्ष्म शक्तियाँ और दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसलिए तप साधन को सबसे शक्तिशाली माना गया है। तप के बिना आत्मा में अन्य किसी भी साधन से तेज प्रकाश बल एवं पराक्रम उत्पन्न नहीं होता।

” जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !”

“जब तक मन में खोट और दिल में पाप है, तब तक बेकार सारे मन्त्र और जाप है !”
!!जय श्री कृष्ण!!राधे राधे!!🕉🙏🕉

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